शुक्रवार, अक्तूबर 31, 2008

अहसान फरामोशो क्या सरदार पटेल को भी भूल गए ?


हमें याद नहीं रहा कि आज भारत के लौह पुरुष का जन्मदिन था । उन सरदार पटेल का जिन्होंने खंडित भारत को एकसूत्र में बंधा ,उन तथाकथित शासक जो पाकिस्तान में विलय चाहते थे उनको साम ,भय से भारत में मिलाया । पाकिस्तान से आ रहे लोगो की रक्षा की । भारत को राजा रजवाडो से भी सरदार पटेल ने ही मुक्त कराया ।


बल्लभ भाई पटेल ने किसानो की लिए बारदोली में सफल आन्दोलन किया तभी महत्मा गाँधी ने उनेह सरदार कह कर पुकारा और वह सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए ।


आज भी भारत को सरदार की आवश्यकता है । सरदार की बात अगर नेहरु मान जाते तो कश्मीर में कोई समस्या नहीं होती ।


सिर्फ आज कुछ लोग पटेल की मूर्ति पर माला पहना कर उनेह याद कर लेते है ,यदि सरदार की नीतियाँ अपना कर आतंक से लड़ा जाए जैसे उन्होंने रजवाडो को खत्म किया वैसे ही हम आतंक को खत्म कर सकते है । यही सच्ची श्र्ध्न्जली होगी सरदार पटेल को ।


और आज हम उन्ही सरदार को भूल रहे है कोई सरकारी कार्यक्रम नहीं कोई विज्ञापन नहीं

सिर्फ नजरिया [ब्लॉग] में ही सरदार का जिक्र है । अहसान फरामोश नहीं तो क्या कहें अपने को ।

बुधवार, अक्तूबर 29, 2008

क्या ब्लॉग लिखना निठल्लेपन की निशानी है ?

ब्लॉगर बिरादरी से कुछ घायल सवाल

हम समाज के कौन से हिस्से का प्रतिन्धित्व करते है ?
हमारी आवाज कहा तक पहुच रही है ?
क्या हम अपना समय खराब कर रहे है ?
क्या पोस्ट लिखना हमारे निठल्लेपन की निशानी है ?

यह सवाल मुझे आंदोलित कर रहे है , कल मैं एक ब्यूरोक्रेट से मिला और गर्व सहित बताया कि आजकल मैं नियमित ब्लोगिंग कर रहा हूँ तो उनका जबाब था यह तो निठल्लों का काम है आपका लिखा हुआ पढता ही कौन है खुद ही लिखते हो और आपस में एक दूसरो को पढ़वाते हो । दस बीस लोग पढ़ते है दो ,चार टिप्पणी कर देते है । एक सबसे कम प्रसारित अखवार से भी कम पाठक है ब्लॉग के ।

आप लोग अपना समय खराब कर रहे है ,आपकी आवाज़ कम्पुय्टर के अंदर ही रह जाती है ,आप लोग मानसिक विलासता कर रहे हो सिर्फ अपनी कुंठा को जिसे आप अपनी प्रतिभा समझते हो को ब्लॉग में लिख कर अपने को प्रतिष्ठित पत्रकारों ,लेखको व कविओं की श्रेणी में समझते हो ।

उसी समय से उनके तीर रुपी सवाल मुझे परेशानकर रहे है । वैसे उनके कुछ सवाल जबाब के हक़दार है । आये ,सोचे , और जबाब ढूंढे कि हम समाज के किस काम आ सकते है ? आखिर अस्तित्व का प्रश्न है ।

मंगलवार, अक्तूबर 28, 2008

माँ लक्ष्मी से प्रार्थना दिवाली के शुभ अवसर पर

लो जी दिवाली हो गई । पूजा ,पटाखे सब निबटे जा रहे है । माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद किसे मिला होगा यह तो अभी पता नहीं चल पा रहा लेकिन मैंने तो एक ही प्रार्थना की है कि हे माता आपने बहुत दिया जीवन को सम्मान पूर्वक बिताने के लिए , आगे आप उसे बढाए न तो कोई बात नहीं लेकिन जो है उसे बरकरार रखें ।

मैं संतुष्ट रहूँ मेरे पैर चादर के अंदर ही रहें ,मैं वह सपना न देखूं जो पूरा न हो सके । मुझे कभी आपका घमंड न हो । और आपका स्नेह ऐसा ही बना रहे ।

बस यही माँगा मैंने माँ लक्ष्मी से ।

रविवार, अक्तूबर 26, 2008

अहा दिवाली -आह दिवाली

भारत में दो धर्म है , दो जाति है । एक अमीर और एक गरीब ।
यही दो तरह के लोग है जो एक त्यौहार को दो तरीको से मानते है । अहा या आह

अहा दिवाली

एक तरफ दिवाली के लिए चिंता है की सजावट कैसी हो , कपडे नए कहाँ से खरीदे जाए ,मिठाइयां और पकवान कितने तरह का हो , पटाखे कितने रूपये के लाये जाए , गिफ्ट महंगे कहाँ मिलेंगे और जुआ खेलने कहा जाए ।

आह दिवाली

दूसरी और भी दिवाली के लिए चिंता है कि खील -खिलोने कहाँ से आये ,बच्चो के नए कपडे कैसे आये , कुछ तो पकवान बन जाए , एक दो पटाखे तो घर ले आये जिससे बच्चो का मन बहल जाए। कहीं से तो थोड़े रूपये मिल जाए जिससे बच्चो के चहेरे पर दिवाली के दिन तो ख़ुशी दिख जाए ।
खैर त्यौहार तो मनआएंगे चाहे अहा दिवाली हो या आह दिवाली

आप सब को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाये

{त्यौहार पर यह लेख लिखने का एक कारण था कि आज सुबह ही एक आदमी काम मांगने आया कोई भी काम करने को तय्यार था क्योंकि उसे अपने बच्चो के लिए दिवाली का सामान खरीदना था । और वह अभी मेरे खेत में काम कर रहा है । }

शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

बीस रूपये का एक पटाखा -याद आयी एक दिवाली

दीपावली का त्यौहार आते ही पुरानी दिवाली याद आती है खासकर बचपन की दिवाली , त्योहारों का असली मज़ा तो बचपन ही उठाता हैशरारते ,शिकायते जब तक हो तब तक त्योहार किस बात काक्या वह दिन थे। एक शरारत जो जिन्दगी भर मुझे याद रहेगी

दिवाली का मौसम ,घर की सफाई रंगाई पुताई चल रही थीउसी समय अलमारी से झाकता एक बीस रूपये का लाल लाल नोट दिल में हल चल पैदा कर रहा था ,तरह तरह के सपने जगाने लगा वह लाल नोट ,चुपके से वह नोट मेने जेब के हवाले कर दियासही में कहे तो चोरी कर लियाउस समय १९७६-७७ में बीस रूपये अपनी अहमियत रखते थे

बीस रूपये कहाँ ऐसी जगह खर्च करुँ कि किसीको पता चले और आनंद भी आयेबहुत सोच कर फैसला लिया कि पटाखे लिए जाये ,उस समय बीस रूपये के पटाखे मायने रखते थेफिर दिमाग में आया एक पटखा बीस रूपये का लिया जाए एक बार में चले और किसी को पता भी चले

घर के पास पटाखे कि दुकानों पर गया और बीस रूपये का एक पटाखा माँगा दूकानदार भी चकराया क्योंकि उस समय बीस रूपये का एक पटाखा नहीं मिलता थामेरी जिद थी कि एक ही चाहिएदूकानदार ने घर पर खबर की, और फिर घर पर हमारी खबर लीयह बचपना मुझे आज भी याद रहता है और वह पिटाई भी

उस समय बीस रूपये का पटाखा नहीं था औए आज २००० रूपये से ज्यादा का भी पटाखा मौजूद है

महंगाई हाय महंगाई

बुधवार, अक्तूबर 22, 2008

उड़नतश्तरी की तहकीकात सर्रर्र ............

ना जाने क्यों मन हुआ कि उड़न तश्तरी की तहकीकात करू । एक आदमी कैसे शरुआत करता है और कैसे कदम दर कदम आगे बढ कर उस जगह पर पहुचता है जहा हर ब्लॉगर पहुचंना चाहता है । उनकी पहली पोस्ट से और उनको प्राप्त पहली टिप्पणी पर उनका धन्यबाद उनकी पकड़ बताता है पूत के पाँव पालने में दिखने लगे थे ।

समीर जी को प्राप्त टिप्पणीयों से इर्ष्या होना सभी ब्लोग्गरों को लाज़मी है क्योंकि
वह आह भी भरते है तो हो जाते है चर्चित
लोग कत्ल भी करते है रह जाते है गुमनाम
लेकिन उनकी मेहनत ,उनका प्रयास ,लाजबाब है । और शोध का विषय इसलिए उड़नतश्तरी की उड़ान पर सरसरी नज़र

सोमवार, अक्तूबर 20, 2008

मुंबई के चूहे हिम्मत हो तो बिल से बाहर निकलो

महाराष्ट्र में चूहों का आतंक बढ़ रहा है खासकर मुंबई में ,और वहां के चूहों ने राजनितिक पार्टी भी बना ली है मनसे ,शिसे जैसी । पता नही बिल में घुस कर चूं-चूं करते यह चाचा भतीजे अपनी आवाज़ को दहाड़ समझ लेते है । जो कलम ले कर पढने वाले बच्चो पर मारपीट कर अपनों को सूरमा समझ लेते है ।

हिम्मत हो ,मर्द हो तो यह चूं -चूं बिल से निकल कर करो आओ दिल्ली वहां बात करो। ऊठ जब पहाड़ के नीचे आता है तब उसको अपनी उचाई का सही पता चलता है । मराठी भाइयों ने तुम्हे खारिज कर दिया है ,यह विष वमन बंद करो । एक बार बिल्ली के भाग्य से झीकां टूट गया था अब कभी सत्ता में मराठी जनता तुम्हारा साथ नही देगी ।

और भाजपा व सहयोगी दलों को चेतावनी है अगर उन्होंने इन चूहों से कोई रिश्ता रखा तो हिन्दुस्तानी जनता उन्हें भी खारिज कर देगी । इसलिये अपनी साख बचाना चाहते हो तो ऐसे समाज तोड़क चूहों से दूरी रखो ।

चूहों का प्रयोग इसलिए की यह लोग ऐसी भाषा का प्रयोग करते है ,और ऐसी भाषा ही समझते होंगे ।

रविवार, अक्तूबर 19, 2008

जबाब चाहिए - तथाकथित बुद्धिजीविओं से

जबाब चाहिए आप लोगो से जो दिमागी घोडे दोडाते रहते है ?
यदि सज्जन ,ईमानदार, जुझारू लोग राजनीति को अछूत मान कर उससे दूर रहेंगे तो देश का भला कैसे होगा ?

आज के समय में आप जैसे पढ़े लिखे लोग जो देश के हित में सोचते है , उसकी तरक्की करना चाहते है ,और जानते है कि लोक तंत्र में चुने गए प्रतिनिधि ही देश के भाग्य विधाता होते है ,राजनीति पर सब कुछ निर्भर करता है । उसके बाबजूद आप लोग वर्तमान व्यवस्था को गाली तो देते हो लेकिन परिवर्तन करने के लिए कोई कदम नहीं उठाते ।

गंदगी को साफ़ करने के लिए गंदगी में घुसना पड़ता है । तभी गंदगी साफ़ हो सकती है सिर्फ यह कह देने से आप लोग बरी नहीं हो सकते कि बहुत गंदगी है और कोई इस साफ़ नहीं कर रहा ।

ऐ पढ़े लिखे मेरे दोस्तों बहुत हो गया अब यह कहना छोडो कि देश को भगत सिंह की जरुरत है अगर आपको लगता है भगत सिंह होना चाहिए तो अपने को भगत सिंह बनाओ । लोकतंत्र में राजनीति के द्वारा ही व्यवस्था परिवर्तन हो सकता है ,इसलिए उसे अछूत न समझ कर उसका त्याग न करे ।

एक सच याद रखे जुल्म करने से ज्यादा जुल्म सहने वाला दोषी होता है ।

शुक्रवार, अक्तूबर 17, 2008

फूलमती -इज्ज़त की खातिर दबंग का सिर काट दिया

भारत की नारी है- राख नहीं चिंगारी है

मायावती के उ .प्र की फूलमती जिसने व्यभिचारी को ऐसी सजा दी कि मजबूत दिल वाले भी हिल गए ।
जिला खीरी के ईसानगर कि फूलमती को उसका दबंग पडोसी अन्नू जुलाहा तीन महीने से उससे छेडछाड़ कर रहा था । दबंग का हौसला इतना बड़ा कि हद पार कर गया , खेत पर काम कर रही फूलमती को अन्नू ने पकड़ लिया औए जबरदस्ती करने लगा ।
अपनी इज्ज़त बचाने को वह चंडी बन गई और गड़ासे से उसका लिंग काट दिया और उसे उसके मुँह में रख कर उसका सिर काट दिया । उसके बाद एक हाथ में कटा सिर और दुसरे हाथ में गडासा लिए अकेली थाने की ओरपैदल चली ।
जिसने यह देखा उसकी रूह काप उठी । ओर उसने कहा "इसलिए खुलेआम सिर लेकर थाने जा रही थी ताकि कोई व्यक्ति किसी औरत से बदतमीजी करने की हिम्मत न कर सके । "

क्या विचार है आप सबका इस बारे में ,कानून अपने हाथ में लेकर फूलमती ने सही किया ?

क्या अब भी नारी को कमज़ोर माना जाए ?

तथाकथित नारी संघटनों का क्या कहना है ?

अमर उजाला से सम्भार

गुरुवार, अक्तूबर 16, 2008

एक समाचार - गौर फरमाएं

समाचार की भीड़ में एक छिपा समाचार ,जेट एयर वेज़ और किंग फिशर पर इंडियन आयल का क्रमश ८२५ करोड़ और ११० करोड़ बकाया है । उधार तेल मिल रहा है उन बड़ी कम्पनियों को जो सेक्डो लाख रूपए विज्ञापन में खत्म करती है ।

सरकार का दोगलापन नहीं तो यह क्या है ? किसान को सब्सिडी पर एतराज ,परेशानी । और उद्योगपतिओं पर मेहरवानी । सरकार बड़े आदमिओं की परेशानी से दुखी है उनेह तमाम तरह की छूट , सुबिधायें मोह्य्या करा रही है ।

और दूसरी तरफ आम आदमी महंगाई के बोझ से मर रहा है । आज तक सरकार ने उसकी राहत के लिए क्या कदम उठाये किसी को नहीं मालूम , उसे क्या सुबिधा दी पता नहीं । क्यों ?

क्योंकि आम आदमी सरकार को चंदा नहीं दे पाता। और वह वोट बिना सोअचे देता है ,और राजनीतिक ताकते उस का वोट उसी पैसे से खरीदने का माद्दा रखती है जो बड़े आदमी चंदे में देता है ।

बुधवार, अक्तूबर 15, 2008

श्रधान्जली सभा में वोट मांगता बी जे पी का गाँधी

राजनीति कैसे संवेदन हीन लोग करते है इसका नमूना एक शोकसभा में देखने को मिला । पूर्व विधायक के निधन के उपरांत हुई शोक सभा में सभी दलों के लोग उनको श्रधान्जली दे रहे थे । तभी एक नए चुनाव छेत्र की तलाश में दरदर भटक रहे बी जे पी की गाँधी और उनके राजकुमार वहा पहुच्ये ।

गाँधी परिवार का ग्लेमर वहा भी चला । पब्लिक उनको देखने को उठी , छोटा गाँधी खुश हो गया । और जब बोलने को खडा हुआ तो भूल गया की उसे क्या कहना है , वह जोर शोर से अपनी माँ के समर्थन की मांग की और वोट की अपील की ।

यह जन्मजात राजनीति करने वाले लोग किसी की भावना ,किसी का दुःख ,किसी का दर्द नहीं समझते केवल अपना फायदा देखते है । और पूरा परिवार सत्ता का सुख उठाना चाहता है चाहे रास्ता कोई भी अपनाए । रुपये का नंगा नाच करते है ,लोगो को खरीदते है ,विकास की बड़ी -बड़ी बातें करते है और करते कुछ नहीं है ।

और नकली गाँधी तो कुछ करते ही नहीं है ,उनेह घोडो ,कुत्तो से ज्यादा हमदर्दी है बजाय इंसानों के ।

मायावती का भी तो यही कहना है गान्धिओं के बारे में

मंगलवार, अक्तूबर 14, 2008

युवाओ का देश -बुजुर्गो का राज, कल भी था और है आज

भारत युवाओं का देश ।

यहाँ पर कुल जनसँख्या का ५०% से ज्यादा युवा है पर सबसे हैरानी की बात है यहाँ के नेता राष्ट्र पति ,प्रधानमंत्री ,कई राज्यों के मुख्यमंत्री और लगभग सभी राज्यपाल की औसत आयु ७० से ८० वर्ष के बीच है ।

और तो और पी ऍम पद के मुख्य उमीदवार मनमोहन सिंह और लाल कृष्ण अडवानी दोनों ८० + है । भारत की दिल दिल्ली के दोनों मुख्यमंत्री पद के घोषित भी ८० के आस -पास

युवा क्या करें ? बुजुर्ग होने का इंतज़ार । जबाब चाहिए क्या युवा इतना परिपक्व नहीं कि वह देश को चला सके

वैसे जवान कन्धे ज्यादा बोझ उठा सकते है ज्यादा देर तक उठा सकते है ।

सोमवार, अक्तूबर 13, 2008

क्या होगा बी. जे. पी. के नारो का

जीतेगा भारत कब जब भाजपा जीतेगी । भाजपा का यह मजाक नहीं तो क्या है ? क्या भारत हार रहा है ? क्या हो गया है भाजपा के नारे लिखने वालो को ?

मानसिक दिवालियापन नहीं तो क्या है यह , राम को ताक पर रख कर अब जीतेगा भारत फिर भारत को भी ताक पर रख देंगे । सत्ता की हवस जितनी भाजपा में प्रबल है शायद और दलों में उतनी न हो ।

भाजपा से इसलिए शिकायत है की वह अपने को अलग पार्टी विथ डिफ रेन्स मानती है । सत्ता के लिए अपनी तथाकथित आदर्शो और नीतियों की हत्या कर उन लोगो से समझोता कर रही है जो चार साल से एक दुसरो को गाली दे रहे थे ।

रविवार, अक्तूबर 12, 2008

मेरा एक्याव्न्वा पत्र ब्लॉग पर {आपका आशीर्वाद चाहिए }

एक दिन ब्लॉग के बारे में पता चला ,पहले पढ़ा फिर लिखने की कोशिश की । शरुआत हुई तुकबंदी भिडाई , अपना दरवार नाम से ब्लॉग बनाया । दरवार नाम इसलिए बचपन से दोस्तों से बैठ कर बाते होती रहती थी पापा से डाट पड़ती थी क्या हमेशा दरवार लगाये बैठे रहते हो कुछ करो ।



पहले के दो तीन चिट्ठे बिलकुल ऐसे थे कि किसी ने कोई तबज्जो नहीं दी । अचानक भड़ास पर लिखा और जैसा देश वैसा भेष जैसा हुआ एक मजाक चर्चा बन गई । भड़ास से निकाला गया लोगो ने साथ भी दिया दुबारा सदस्यता बहाल हुई । यह मेरा टर्निंग पॉइंट था ब्लॉग लेखन में ।



उसी समय कुछ टिप्पणी महान लोगो की मिली जिसमे शास्त्री जी ,समीर जी उड़नतश्तरी ,विवेक सिंह ,परमजीत बाली,फिरदौस खान,सुरेश चंदर गुप्ता ,डॉअनुराग ,सीमा गुप्ता ,संगीता पुरी , दिनेश राय द्विवदी ,रंजन राजन ,रतन सिंह एवं राज भाटिया जी (जिन्होंने अपने पराये देश में मुझे जगह दी )आदि मुख्य है । और उनकी नियमित टिप्पणियों ने मुझे सार्थक लेखन को प्रेरित किया ।

यह में नहीं जानता कि आज कहाँ खडा हूँ लेकिन में एक छात्र हूँ और और अपने वरिष्ठो के द्वारा सीखने कि कोशिश कर रहा हूँ । ५० पत्र ब्लॉग लिख लिए लेकिन में संतुष्ट नहीं हूँ । कुछ कुछ समझ ने कि कोशिश कर रहा हूँ आप सबका सहयोग चाहता हूँ । मेरी मदद करे। और इश्वर से मेरे लिए प्रार्थना करें कि मैं कुछ पहचान बना सकूँ अपनी ब्लोगेर दुनिया में।
आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में
आपका
धीरू सिंह

शुक्रवार, अक्तूबर 10, 2008

क्या आप जानते है लोक नायक जय प्रकाश नारायण को ?

हमें भूलने की बीमारी है ,सिनेमाओं के फर्जी नायको के आगे हम असली राष्ट्र नायको को भूल जाते है । अमिताभ के आभा मंडल के आगे लोक नायक जय प्रकाश नारायण की पहचान फीकी हो रही है । दोनों का जन्मदिन एक दिन है , अमिताभ के बारे में तीन दिन पहले से अखबारों में छपने लगा ,रेखा के बारे में भी लेकिन लोकनायक .............

भारत के लोकतंत्र का जब कत्ल हो रहा था तब पुराने स्वतंत्रता सेनानी जय प्रकाश नारायण ने एक बार फिर से आजदी बरकरार रखने के लिए युवाओ को साथ लेकर नवनिर्माण आन्दोलन शुरू किया । उस समय एक तानाशाह इंदिरा गाँधी जो मीसा को हथियार बना कर जुल्म कर रही थी उनके खिलाफ एक बुडी आवाज़ ने सारे हिंदुस्तान में जोश भर दिया ।

इंदिरा इज इंडिया ,इंडिया इज इंदिरा कहने वाले भी उस लोक नायक की एक ऐसी क्रांति की उम्मीद नहीं कर रहे थे । आपातकाल के खिलाफ सम्पूर्ण विरोधी दलों को एक प्लेटफोर्मपर लाकर पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन किया ।

लोकनायक ने एक नयी आज़ादी की लडाई लड़ी,और जीती

लोकनायक के चेलो ने उन्हें जिन्दा पर ही भुला दिया । और उनके जिन्दा रहते हुए संसद में शोक सन्देश प्रसारित कर दिया ।

और आज लोक नायक के द्वारा निर्मित नेता केंद्र सरकार में मंत्री है ,राज्य के मुख्य मंत्री है फिर भी वह उनेह याद नहीं करते और जनता उसकी तो यादाश्त बहुत कमजोर होती है , गाँधी के बाद जय प्रकाश नारायण ने ही भारत को बचाया ।

हम लोक नायक जय प्रकाश नारायण को भूल गए ,क्रप्या उनेह याद करे । ११ अक्टोबर को उनका भी जन्म दिन है ।

गुरुवार, अक्तूबर 09, 2008

आओ राम बन आतंक रूपी रावण का संहार करे

विजयादशमी पर आओ हम यह संकल्प करे ,

आतंक रूपी रावण का राम बन संहार करे ।

हनुमान की भांति हम अपनी शक्ति भूल गए ,

आओ सोई शक्तियों को जगाने का आव्हान करे ।

अपने क्रोध की ज्वाला को इतना आज प्रवल करे ,

आतंक रूपी रावण का हम आज ही दहन करे ।

कलयुग में किसी चमत्कार की आशा बिलकुल न करे ,

आओ राम बन आतंक रूपी रावण का संहार करे ।

मंगलवार, अक्तूबर 07, 2008

स्कूटर में तेल डलाने के पैसे नहीं -सपने नैनो के

भारत के सबसे बड़े सपनो के सौदागर रतन टाटा ने नैनो नामक सपनीली कार के द्वारा आम आदमी को कार का सपना दिखा कर उसके साथ एक मजाक के आलावा कुछ नहीं किया है । यही मजाक संजय गाँधी द्वारा ८० के दशक में मारुती के रूप में आम आदमी के साथ किया, लेकिन मारुती ने भारत में कार क्रांति की शरुआत तो की ।

१ लाख की कार नैनो दुनिया भर में चर्चा का विषय है अपनी कीमत से और अपने बनने वाली जगह को लेकर । सिंगुर को अमर कर दिया नैनो ने .ममता को फिर से चर्चा में ला दिया नैनो ने ,कामुनिस्ठो के पूंजीपति प्यार को दर्शा दिया नैनो ने ।

लेकिन आम आदमी की कार आम आदमी के द्वारा प्रोयोग हो सकेगी इस पर एक प्रश्न चिन्ह है । १ लाख से यह कार १ लाख २५ हजार की हो गई आते आते १५०००० की हो जायेगी एसी उम्मीद है । उसका पेट्रोल का खर्चा क्या आम आदमी उठा पायेगा वह आम आदमी जो अपने स्कूटर में पेट्रोल नहीं डला पा रहा है ।

आज सरकारे टाटा की नैनो के लिए रतन टाटा की चरण बंदना कार रही है । नरेंदर मोदी सच्चे भक्त साबित हो गए है और टाटा का सानिद्य और आशीर्वाद उनेह प्राप्त हो गया है ।

टाटा का सपना तो पूरा हो गया ,आम आदमी के सपने की परवाह किसे है । आम आदमी को आज भी कार से ज्यदा रोटी ,कपडा ,और मकान की आवश्यकता है जो ६३ साल के बाद भी सपना सरीखा ही है ।

सोमवार, अक्तूबर 06, 2008

हर साल जलता है फिर भी रावण कभी नहीं मरता है

रावण फिर अट्टहास कर रहा है
दशहरे पर जलने के लिए मचल रहा है
क्योंकि
उस दिन वह फिर से नया जन्म लेता है
अपनी आसुरी शक्तियों को नई शक्ति देता है
त्रेता से आज तक
हम रावन को हर साल जलाते है
लेकिन उसे मार न पाते है
क्योंकि
वह हमारे भीतर पलता है
इसलिए
हर साल जलने वाला रावण
फिर भी नहीं मरता है

शुक्रवार, अक्तूबर 03, 2008

अरे तुम तो मुझ से बड़े पागल लगते हो

एक पगलिया जो एक पहली सी लगती थी
सारे शहर में पत्थर लिए फिरती थी
न जाने कब वह बिगड़ जाती थी
हाथ में पत्थर लेकर लोगो को दौड़ती थी
भयभीत जनता सहम जाती थी
उसे देखते ही सडके खाली हो जाती थी
एक दिन हमारी किस्मत खराब थी
वह सड़क पर हमारे साथ थी
उसका रौद्र न्रत्य चालू था
उसका हाथ का पत्थर डरा रहा था
चोट न लग जाये लोगो को भगा रहा था
हमें अपनी मर्दांगनी का जोश चढ़ गया
हमने भी एक पत्थर हाथ में उठा लिया
वह यह देखकर जोर से हसीं
बोली यह क्या करते हो
अरे तुम तो मुझ से भी बड़े पागल लगते हो

गुरुवार, अक्तूबर 02, 2008

बापू अलविदा ,अब अगले २ अक्तूबर को याद करेंगे


बापू इस साल की छुट्टी के लिए धन्यबाद । अब अगले साल इसी दिन का इंतजार रहेगा उसी दिन फिर से याद कर लेंगे । अबकी बार खास मज़ा नहीं आया क्योंकि ईद भी इस दिन पड़ गयी ,एक छुट्टी कम हो गई ।


वैसे बापू किसी भी बहाने हमने याद तो किया । बापू हमें माफ़ करो हम आपको भुला रह है । हम शर्मिंदा है अपने इस कुक्र्त्य पर , परन्तु हम क्या करे बापू हम चाहे तो भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हम अहसान फरामोश हो गए है ।


बापू बप्पा मोरया - अगले वरस तू जल्दी आ