सोमवार, सितंबर 28, 2009

दिखावे के लिए ही रावण को मार कर दशहरा मनाते है

  हर साल की तरह दशहरा इस बार भी निभा  ही लिया


  एक बार फिर  रावण  मार कर जश्न  मना  ही  लिया 


  लेकिन दिलो में बसे रावण को हम साल भर पालते है 


  क्योकि अपनी लंका को सोने की बनाने को जो ठानते है 


  और साल में एक बार अपने दिलो को सकूं देने के लिए 


 दिखावे के लिए ही रावण को मार कर दशहरा मनाते है 

शुक्रवार, सितंबर 18, 2009

आपबीती - काश हम वी आई पी न होते तो आज मेरी माँ मेरे साथ होती

वी आई पी यह एक तमगा है जो शान की बात लगती है . जहाँ जाईये सबसे आगे क्योकि वी आई पी जो ठहरे . एक बार मुंबई से दिल्ली आते समय हवाई जहाज में इसलिए कम्फर्ट नहीं मिला  क्योकि उसमे जे क्लास नहीं था पुराना बोइंग था और उसमे जे क्लास नहीं थी . हवाई जहाज उड़ने में देर थी कई अभिनेता और बड़े आदमी लोंबी में टहल रहे थे और हम आराम से वी वी आई पी लाउंज में बैठे आराम कर रहे थे क्योकि हम आखिर वी आई पी थे उस समय .

दिल्ली में लुटियन के बंगलो में आराम से रहे हम . ए.सी . की कूलिंग कम लगती तो नया बदलवा देते थे आखिर सरकार के दामाद हुआ करते थे . जिस समय क्वालिटी आइस क्रीम की ब्रिक ५० रु की थी तब हमे मात्र १४ रु की मिलती थी . २.५० रु की थाली ,१० रु का बटर चिकन वाह वाह , क्या दिन थे भाई आखिर वी आई पी थे उस समय . जब लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर धक्के खाते थे तो हम स्टेट एंट्री से सीधे प्लेटफार्म नम्बर  १ तक अपनी गाड़ी से जाते थे .

उसी समय एक झटका लगा और हमें लगा काश हम वी आई पी ना होते . मेरी माँ को थायरोड था और गले में सूजन थी दिल्ली में मिलेट्री अस्पताल में इलाज़ चल रहा था पिता जी एक साथी जो बाद में मुख्मंत्री भी बने मेजर जनरल से रिटायर थे उनके सहायता से वहां इलाज़ चल रहा था . आप्रेस्शन की तारीख तय थी . तभी हमारे यहाँ हमारे यहाँ हमारे प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री आये और उन्होंने कहा की उनके लिए शर्म की बात है की उनकी भाभी का ओप्रेस्शन दिल्ली में हो . आपने साथ वह हमको लखनऊ ले गए और एस.जी .पी .जी.आई में इलाज़ शरू हुआ .

स्वास्थ्य मंत्री तीमारदार ,मुख्यमंत्री समय समय पर हाल चाल ले रहा हो तो कल्पना कर सकते है अस्पताल में क्या स्थति होगी . बड़े सा बड़ा डाक्टर वह काम कर रहे थे जो कम्पौवडर करते है . वही हुआ ओप्रेस्शन के समय अनेस्थिसिया के लिए हेड ऑफ डिपार्टमेंट आये जिन्होंने शायद २० साल से पढाने के आलावा कुछ नहीं किया था . ओप्रेस्शन से पहले ही मेरी माँ की मृत्यु हो गई . वह भी इसलिए हुआ क्योकि हम वी आई पी थे .

आज से ठीक १८ साल पहले आज ही के दिन (२० सितम्बर ) को अस्पताल में ढेरो वी आई पी मेरी माँ के पास खडे थे खाली हाथ . सैकडो लाल नीली बत्ती , सैकडो कमांडो हजारो तमाशबीन गवाह थे की वी आई पी के परिवार को भी मौत आसमयिक उठा ले जाती है और उस समय वी आई पी और लाचार में कोई अंतर नहीं होता .

काश उस समय हम वी आई पी नहीं होते तो वह ओपरेशन छोटा सा डाक्टर भी किसी साधारण से अस्पताल में सफलतापूर्वक कर देता . ख़ैर अब हम आम आदमी है क्योकि वी आई पी बन बहुत कुछ खोया जो हमें फिर कभी वापिस नहीं मिल पाया .

गुरुवार, सितंबर 17, 2009

सरकार के खर्च कटौती प्रस्ताव के पक्ष में मेरा भी योगदान

सूखे के कारण मै भी बचत और सादगी से दिसम्बर तक अपना जीवन बिताने के लिए तैय्यार हूँ आखिर देश की तरक्की में अपना योगदान भी तो देना है . इसलिए मैने खर्चो पर कटौती लगाने के लिए एक रूप रेखा बनाई है शायद आपके भी काम आये - 



  • पिछले १० सालो से मैं विदेश में छुट्टी मनाने का प्लान बनाता था लेकिन इस साल मै यह प्लान नहीं बनाऊंगा . 
  • एक तमन्ना थी परिवार के साथ कभी फाइव स्टार होटल में जाऊ लेकिन बचत के कारण स्थगित . 
  • इस बार सत्यनारायण की कथा का आयोजन करना चाहता था लेकिन सूखे के कारण अब अगले साल तक स्थगित 
  • रिश्तेदारों से कह दिया जाएगा दिसम्बर तक दूर की रिश्तेदारी ही रखे . 
  • बहुत सालो से सपना था की एक कार खरीदू  नैनो यह सपना पूरा करने के करीब थी लेकिन इस साल कार का सपना नहीं देखूंगा . 
  • ऐसे कई सपने जो मै देखता हूँ इस साल नहीं देखूंगा आखिर हम सरकार के कहे पर नहीं चलेंगे तो कौन चलेगा . 

रविवार, सितंबर 13, 2009

लॉन्ग लिव हिन्दी - सेलिब्रेट हिन्दी डे


ओह गोड कल  हिन्दी डे कैसे करे सलेब्रेशन थिंक ? बॉस ने कहा 


सर एक सजेस्शन क्यों न हिन्दी डे  पर एक प्रोग्राम रखे । सेकेट्री ने कहा


गुड वैरी गुड क्या प्रोग्राम करे थिंक ?


एक हिन्दी के रिटाएर टीचर को बुके एंड गिफ्ट प्रेसेंट कर देंगे ,ओल्ड हिन्दी डे के बैनर साफ़ करके लगवा देंगे । आल स्टाफ मीटिंग विथ हाई टी , एंड अ प्रेस रिलीज़ विथ फोटो इससे जायदा हिन्दी डे पर क्या करे 

ओ.के .एक मेरे लिय स्पीच रेड्डी करो उसमे हिन्दी की इम्पोर्तेंस  के बारे में लिखना ।

प्रोग्राम स्टार्ट एंड बॉस स्पीअच बीगन 


रेस्पेक्टेड़ गुरु जी एंड आल ऑफ़ माय कुलीग्स , आज हम हिन्दी डे इव स्लिब्रेशन कर रहे है ,हिन्दी हमारी नेशनल लेंग्वेज ही नहीं हमारी मदर टंग भी है । कितनी ब्यूटी फुल बात है ऑवर चिल्ड्रन रीड हिन्दी । इन द प्रोग्रेस ऑफ़ हिन्दी हमको एवेरी मोंथ हिन्दी डे सलिब्रेट करना चाहिए । बिदआउट हिन्दी हमारी प्रोग्रेस नहीं हो सकती है बी काज इफ वी नॉट रेस्पक्ट ऑवर नेशनल लैंग्वेज वह नेशन को क्या प्रोफिट करेंगे ।
बेल प्रोग्राम में पार्टीस्प्रेट  के लिए थैंक्स ,एंड टेक क्येर । प्लीअज हाई टी वेटिंग यू ।

लॉन्ग लिव हिन्दी   

शनिवार, सितंबर 12, 2009

जुल्म की इन्ताह और ऊपर वाले का इन्साफ

जुल्म की दास्ताने आपने पढ़ी होंगी . महसूस की होंगी लेकिन जुल्म की इन्ताह कैसी होती है उसकी एक बानगी ...

जमींदारो के जुल्मो को अगर लिखा जाए तो एक ब्लॉग बनाना होगा और रोज़ एक पोस्ट भी लिखी तो सालो तक लिखने पर भी जुल्मो की दास्ताँ खत्म न होगी . ऐसे कई जमींदारो से दुर्भाग्य से दूर की रिश्तेदारी भी रही है उनका जुल्म के किस्से सुने और और उनके जुल्मो की सजा उनेह झेलते हुए भी देखा है . 

ऐसे ही एक जमींदार का जुल्म की दास्ताँ है यह . गाँव के तालाब में कुत्ता बैल पानी पिए या निकाले कोई प्रतिवंध नहीं था लेकिन अछूत अगर वह पानी पिने के लिए भर ले तो कयामत आ जाती थी . जानवरों से बदतर जिन्दगी बिताने के लिए ही पैदा होते थे वह बेचारे . 

कभी किसी दयालु ने उनकी बस्ती में एक कुँआ बनबा दिया जिससे पानी तो साफ़ मिल ही जाए उनको . यह जमींदार को नागवार लगी . बेगार न करने पर उनके कुए पर आदमी का मैला डलवा दिया जिससे वह लोग पानी न पी सके . फरियाद कहीं नहीं क्योकि मुंसिफ ही जुल्मी था . मुलजिम था . 

ऐसे कई जुल्म झेल कर वह बेचारे गरीब पैदा से मरने तक का सफर पूरा करते थे . उधर जमींदार सहाब अपनी अय्याशी से भरपूर जिन्दगी बिताने के बाद जब बुडापे में  पहुंचे तो अर्ध विछिप्त हो गए थे क्योकि कहां जाता है स्वर्ग भी यहीं और नर्क भी यहीं . समय के साथ साथ हालात ऐसे हो गए कि जमींदार को आपने खाने में मैला दिखने लगा . और ऐसी दर्दनाक मौत हुई उनकी जिसके वह हक़दार थे   इस कहते है ऊपर वाले का इन्साफ और सही है उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती

मंगलवार, सितंबर 08, 2009

काला पहाड़ - सिर्फ़ कहानी ही नही है यह

सोने की चिडिया को लूटने की मंशा से विदेशी आक्रमणकारी हिन्दुस्तान को रौंधने के लिए सिंध पंजाब की तरफ से आने लगे । सिकंदर आया चला गया । गजनी आया गुजरात तक लूट कर ले गया । चंगेज खान आया । शक आए हूण आए । हलाकू आया . न जाने कितने आए और चले गए लेकिन मुग़ल आए और यही बसने के लिए कोशिश करने लगे उनके लश्कर आगे बड़ने लगे । लूट ,नरसंहार करते हुए एक लश्कर कश्मीर की तरफ बढ़ा ।

कौतहुल वश गाँव के कई युवा छुप कर लश्कर देखने आए । फौज डेरा डाल वहां आराम कर रही थी और उनका खाना बन रहा था । अचानक एक सिपाही उन लड़को के सामने आ गया । और उसने कुछ नही कहा। एक लड़का खुशबु सूंघ कर सिपाही से बोला बहुत बढ़िया महक आ रही क्या पक रहा है । इतना सुन कर सिपाही हसा और बोला अब तुम हिंदू नही रहे क्योकि गाय का मांस पक रहा है और तुमने उसे पसंद किया ।

यह बात आग की तरह फैली और जब वह लड़का गाँव पंहुचा तब पंचायत हुई । और पंचायत ने उसे अलग कर दिया । क्योकि उसने गाय के मांस की तारीफ की । क्षमा याचना का भी असर नही हुआ पंडितो ने भी उसे धर्म से अलग किया । हर धर्म अधिकारी से गुहार यहाँ तक बनारस तक से उस युवक को निराशा मिली ।

वह युवक क्रोधित हुआ और उसने अपमान का बदला लेने के लिए हिंदू धर्म को छोड़ कर मुस्लिम धर्म अपनाया । और बदला लेने के लिए हिन्दुओं का संहार किया । किद्व्नती है उसने अस्सी किलो जनेऊ काटे । और वह काला पहाड़ के नाम से जाना गया ।

यह कहानी है या हकीकत पता नही लेकिन अंधविश्वास , धार्मिक सत्ता और तथाकथित धर्म रक्षको ने अपने देश का सबसे ज्यादा नुक्सान किया । संस्कृति के रक्षा के नाम पर वही गलतियां आज भी दोहराई जा रही है । न जाने कितने काला पहाड़ और बनवायेंगे यह लोग

सोमवार, सितंबर 07, 2009

लल्लू मियाँ ,चेतराम और अब राजनाथ भाजपा वाले

एक थे लल्लू मियाँ , हमारे पड़ोस में काम करते थे पूरी जवानी वहां ही काम किया । फर्नीचर की पोलिश में करने में माहिर थे । बहुत ही हुनरमंद कारीगरों में गिनती थी उनकी । लेकिन एक बात बहुत मजेदार थी उनके साथ अगर उनके सामने बालूशाही नाम की मिठाई का नाम ले दो तो वह आपा खो देते थे । उनकी चिढ थी बालू शाही । हम लोग उनसे जाकर कहते लल्लू मियाँ बालूशाही खाओगे । और लल्लू मियाँ झल्ला जाते थे और घर पर शिकायत करने की धमकी देने लगते थे ।

और दूसरे थे चेतराम जो चौकीदार थे उनकी भी थी एक चिढ थी चचीडा , जो एक प्रकार की सब्जी होती है तुरई से लम्बी । जब भी उन से मज़ा लेना होता था कहते थे आज हमारे यहाँ खाना खाना सब्जी बनी है चचीडा । और चेतराम भी बिदक जाते और हम लोग ताली बजा बजा कर हँसते ।

कम से कम २० साल से ज्यादा हो गए इन बुजर्गो को गए हुए लेकिन इनकी आत्माए आज भी महसूस होती है जब कोई आदमी चिढता है तो मुझे इन दोनों की याद आती है । ऐसे ही एक आदमी की खोज की है वह है राजनाथ

यह है राजनाथ जिन्हें समय से पहले और भाग्य से ज्यादा मिला । पहचाना नही अरे पहचानिये यह भाजपा के डूबते जहाज के भागने के लिए तैयार कप्तान है राजनाथ । राजनाथ की भी एक चिढ है उनकी ही क्यो उनकी पूरी पार्टी की एक चिढ है वह है जिन्ना । जिन्ना नाम सुनते ही बिदक जाते है जैसे लाल कपड़ा देख कर साड़ बिदक जाता है ।

पता नही जिन्ना कब उनके खेत काट ले गए । जिन्ना का जिक्र करते ही उन्होंने अडवानी की बुरी हालत कर दी और बेचारे जसवंत को दरवाज़ा दिखा दिया । और जिन्ना रूपी बाउंसर का सामना करते अपनी पूरी लाइन और लेंथ भुला कर पूरी पार्टी ही बोल्ड हो गई । अबतो भाजपा और राजनाथ के सामने सिर्फ़ जिन्ना जिन्ना जिन्ना और यह सब आउट । क्योकि राजनाथ ने आज कह दिया है जो जिन्ना कहेगा वह बख्शा नही जाएगा

शनिवार, सितंबर 05, 2009

गुरु हो तो ऐसा जय शिक्षक दिवस

हे गुरु जी आज मौका मिला है आपको याद करने का आख़िर शिक्षक दिवस पर भी नही याद करेंगे तो कब करेंगेआख़िर आपने हमें पढ़ा लिखा कर इस लायक किया कि हम इतने लायक बन सके आप के कारणयह मुकाम हासिल किया लेकिन इसके बदले गुरु दक्षिणा हमने हर महीने ट्यूशन फीस के रूप में दी । आपका धेय्य वाक्य आज तक हम अपना रहे है कि बिना धनोबल के मनोबल नही बढ़ता है । यह ब्रह्म वाक्य आज तो सत्य ही प्रतीत होता है ।

हे गुरु जी आप धन्य हो आपने हमें प्रेक्टिकल मेन बना दिया । अगर आप हमारे ज्ञान चक्षु नही खोलते तो हम तमाम किताबी आदर्शो को जीवन में अपना कर किसी कोने में निखद चाकरी भीख निदान जैसा कुछ कर रहे होते ।

हे गुरु जी आप जहाँ भी हो सुखी ही होगे । और मै प्रभु से कामना करता हूँ जब जब जन्म लू आप ही मेरे गुरु बने । जिससे मै इस मतलबी दुनिया में जीने के सभी पैतरे सीख सकू । अगले शिक्षक दिवस तक के लिए आप भी मस्त रहो और मै भी ।

ठीक ही कहा है

गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेशरा :
गुरु साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः

मंगलवार, सितंबर 01, 2009

वह होनहार था

वह होनहार था . गरीबी में जैसे तैसे पढ़ रहा था उसकी मेहनत रंग लायी अच्छे नम्बरों से इंटर पास किया । आगे की पढाई की इच्छा इतनी प्रबल थी कि लगन देख मजदूर बाप एक जून खा कर भी अपने होनहार को कलक्टर बनाने को तैय्यार हो गया । बड़ी पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया गया । एक सपना लिए वह शहर पहुँचा और कालेज में पढ़ाई शुरू की । नया माहौल कुछ रास नही आ रहा था शहरी आबोहवा माफिक भी नही थी ।

तभी एक मुलाक़ात ने उसमे विश्वास भर दिया । यह था रघु भाई एक छात्र नेता जो कमजोर छात्रों का मसीहा से कम नही । होनहार को उसने अपना छोटे भाई सा प्यार दिया और सहायता भी , अच्छे रहने खाने पहनने के लिए मिलने लगा । शिक्षको से भी स्नेह मिला अब पढ़ाई भी अच्छी होने लगी सब को लगता था लड़का नाम रोशन करेगा माँ बाप का ,कालेज का और रघु भैय्या का भी ।

पहले साल कालेज में सबसे ज्यादा नम्बरों से पास हुआ । एक उत्सव सा मना जहाँ होनहार अपने साथियों के साथ रहता था । लेकिन रघु भैय्या उदास थे न जाने क्योँ । सब उन से पूछने लगे तब भी भैय्या कुछ न बोले । होनहार दुखी हुआ उसने रघु से बात की तो उसने कहा की मैं अब ज्यादा दिन जिन्दा नही रह पाऊंगा क्योकि मेरे कुछ दुश्मन मुझे मारना चाहते है । अब तो मेरा मरना निश्चित है लेकिन तुम चिंता न करो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ।

बड़े भाई पर परेशानी और छोटा पढाई करे यह कैसे हो सकता था । होनहार ने अपने भाई के लिए कुछ भी करने की कसम खायी और भाई से बचने का तरीका पूछा । भाई ने उसे मना किया लेकिन जिद के आगे हार गया और बताया अगर दुश्मन को कोई मार दे तो वह बच जाएगा । होनहार अपने रघु भैय्या को बचाने के लिए तैयार हुआ एक रिवाल्वर का इंतजाम हुआ और दुश्मन खत्म हो गया और भैय्या की जान बच गई ।

लेकिन होनहार पकड़ा गया और अब वह अपने सपनो के साथ जेल में है और उसके माँ बाप गरीबी के आलावा एक और गम झेल रहे है । और रघु भैय्या एक और होनहार की तलाश में है क्योकि सुपारी लेकर काम भी तो करवाना है ।