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शायद सतयुग में समुन्द्र मंथन हुआ . देव और दानवो ने पर्वत को मथनी और शेषनाग को रस्सी बना कर बहुत मेहनत से समुन्द्र को मथा . बहुत से रत्न समुन्द्र में से निकले सामर्थ्य के अनुसार उन रत्नों पर देवो ने औए दानवो ने कब्जा कर लिया . धन्वन्तरी निकले , कामधेनु आदि आदि . लक्ष्मी जी निकली तो विष्णु ले गए . विष निकला जो शिवजी को पिला दिया , एरावत इंद्र ले गए ,अमृत देवता पी गए और सुरा दानवो को पिला दी छल करके .
और मनुष्यों को कुछ नहीं मिला कुछ भी नहीं . क्या करते उस समय भी मनुष्य की गिनती आज के आम आदमी की तरह होती थी . निरही प्राणी बस और कुछ नहीं . मनुष्यों की गुहार देवताओ ने अनसुनी कर दी और अपने दरवाजे भी बंद कर दिए हमेशा के लिए . चिंतित मनुष्यों को अब दानवो से ही कुछ उम्मीद थी गुहार हुई कुछ तो हमें भी दो कुछ तो हमें भी दो . दानव शरीर से डरावने होते है लेकिन मन से नहीं ,उनमे दया का भाव जागा जो देवताओ में नहीं जगा था . दानवो ने मनुष्य से कहा हे मनुष्यों जो हमें मिला वह हम तुमको दे रहे है और युगों युगों तक तुम उसका उपभोग करते रहोगे .
इस तरह सुरा मनुष्यों को प्राप्त हुई और युगों युगों से ख़ुशी और गम में समान रूप से सुरा का सेवन अनिवार्य सा हो गया . आज सुरा का रूप और गुण तो नहीं बदला लेकिन समय के साथ साथ नाम बदल गया . सुरा का लोकप्रिय नाम शराब हो गया और उसके पौराणिक रूप को देख कर सरकार का संरक्षण उसे प्राप्त हुआ . आज दूध से सरकार को कोई मतलब नहीं लेकिन शराब उसकी सरपरस्ती में दिन दुनी रात चौगनी तरक्की पर है .
इसलिए किसी विद्वान ने कहा
कृष्ण युग में दूध मिला राम युग में घी
कलयुग में दारु मिली सोच समझ कर पी
ना छरण होने वाला यह रत्न तब भी याद आता है जब ज्यादा सर्दी होती है . औषधीय गुणों से भरपूर दवा का विकल्प जो बिना डाक्टर या वैध के पर्चे को आम आदमी को सुलभ है नित नए नए विधियों द्वारा निर्मित विभिन्न नामो से उपलब्ध है . इसका सेवन बिना किसी पूर्वाग्रह के करे क्योकि यही तो एक रत्न है जो समुन्द्र मंथन से निकला और आज भी प्रचलित है . ...
वैधानिक चेतावनी -
सुरा यानी शराब समुन्द्र मंथन से उत्पन्न है और दानवो द्वारा प्रदत्त है . सेवन के बाद दानवी प्रवत्ति हावी हो सकती है -
बात तो जमा ही दी है आप ने। निश्चित ही और भी बहुत कहानियाँ होंगी इस के बारे में।
जवाब देंहटाएंदेखते हैं...
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
कृष्ण युग में दूध मिला राम युग में घी
जवाब देंहटाएंकलयुग में दारु मिली सोच समझ कर पी
सोच-समझकर? वाह!
बहुत बढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंकृष्ण युग में दूध मिला राम युग में घी
कलयुग में दारु मिली सोच समझ कर पी
ककृष्ण युग में दूध मिला राम युग में घी
जवाब देंहटाएंकलयुग में दारु मिली सोच समझ कर पी...
BAHUT ACHAA LIKHA HJAI DHIRU JI .... ACHAA KIYA CHETAAWNI DAAL DI AAPNE ... NAHI TO CASE HO JAATA AAP PAR BHI ....
wah kya khub kaha
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है. दुध घी और सुरा यानि शराब वाली बात अच्छी लगी धन्यबाद जी
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