रविवार, मई 31, 2009

गुलाम आस्ट्रेलिया के लोग हमला करके साबित क्या करना चाहते है ?

आस्ट्रेलिया एक गुलाम देश है उसके गुलाम नागरिक अपने को महान साबित करने के लिए हमले कर रहे है हम आजाद देश के नागरिको पर । हमारे बच्चे पढ़ाई के लिए वहां पर है और उन पर हमला हो रहा है और हमारी सरकार कोई कठोर कदम नही उठा रही है । जय हो विदेश नीति की ।

दुनिया के छोटे से छोटे देश आज आजाद है लेकिन आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की राष्ट्र अध्यक्ष आज भी बिर्टेन की महारानी है । यह गोरी चमडी के गुलाम मानसिकता के लोग अपनी गुलामी में खुश है ।

आस्ट्रेलिया पर भारत को अपनी तरफ से लगाम कसनी चाहिए । उसका बहिष्कार होना चाहिए ख़ास कर क्रिकेट में भी । हमारी टीम एक देश के ख़िलाफ़ खेले नाकि दुसरे देश के गुलाम देशो के साथ भी । कठोर कदम उठाना ही चाहिए सरकार को ।

और आख़िर में श्री अमिताभ बच्चन को सलाम उन्होंने आस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर अमानवीय व्यवहार के कारण वहां का सम्मान ठुकरा दिया । ऐसी ही इच्छा शक्ति भारत सरकार को दिखानी चाहिए ।

मंगलवार, मई 26, 2009

ऐसा कौन गुरु होगा जो यह शिक्षा देता होगा की मारो ,लूटो ,काटो

हम हिंसक हो चुके है क्या यह सच नही । बात बात पर हिंसा , जैसे हम हमेशा तैयार है लडाई झगडा करने के लिए । कल की ही घटना है पंजाब जल उठा . ऐसा कौन गुरु होगा जो यह शिक्षा देता होगा की मारो ,लूटो ,काटो । लेकिन सम्प्रदाय की आड़ लेकर अपने गुरु की हत्या का आक्रोश निरही यात्रियों पर उतारा गया ,सरकारी सम्पतियों को जलाया गया ।

यह बर्बर अत्याचार का हल क्या है और सज़ा क्या है ? दंगे खत्म होने के बाद सभी भूल जाते है । कौन दोषी है ? उन दोषियों को क्या सज़ा मिली ? शायद आज तक किसी भी दंगे के आरोपी को सज़ा न मिलना ही इस तरह के दंगो को बढावा देती है ।

गाँधी हत्या , इंदिरा हत्या के बाद हुए दंगे के आरोपी आज तक अदालत की सीडिया तक नही चड़े सज़ा की बात ही अलग है । और तो और आज भी हमारे देश में साल में दस बीस बार साम्प्रदायिक दंगे होते रहते है सैकडो लोग मारे जाते है और दंगे में बंद आरोपी राजनितिक दबाबो के कारण आजाद हो जाते और नए दंगे की तालाश में घटनाओं का इंतज़ार करते है ।

रविवार, मई 17, 2009

मेनका की जीत में सोनिया का हाथ - इस चुनाव का १००% सच

देवरानी जीत गई जिठानी के कारण यह सच है । मेनका गाँधी की जीत में सोनिया गाँधी का बहुत बड़ा हाथ था यह मज़ाक नही १००% सच है । मैं आवंला लोकसभा का ही रहने वाला हूँ और राजनीति पर नज़र रखता हूँ और दखल भी

गाँधी परिवार के प्रति लोगो का पागलपन किस हद तक है इसका नज़ारा पेश है । मेनका भाजपा के टिकिट पर चुनाव लड़ रही थी और गाँव में चर्चा हो रही थी -

बड़े घर की बहू है जाकी जिठानी ने किसानन के कर्जा माफ़ कद दये जाई को वोट देयेंगेदेखो नरेगा से रोज़गार भी मिल रहो है

लोगो ने समझाया यह दोनों अलग अलग है इन से उसका कोई मतलब नही । जबाब आया है

झूठ मति बोलो दोनों एक है तई तो जिठानी ने कांग्रेस से कोई कंडीडेट नाय उतारो देवरानी के ख़िलाफ़

अब क्या कहे क्या न कहे कांग्रेस ने महान दल जैसी गुमनाम सी पार्टी के लिए यह सीट दे दी । इसका फायदा उठा कर मेनका केवल ६००० वोटो से चुनाव जीत गई जबकि पड़ोस में लाडले वरुण की लहर चल रही थी और मेनका के पास आते आते लहर रुक गई और भाजपा साफ़ हो गई ।

बुधवार, मई 13, 2009

डाल आए वोट - लेकिन फ़िर भी रहेंगे पप्पू के पप्पू ही

डाल दिया वोट , अब हमारे वोट की कीमत वसूल करेंगे नेता सरकार बनाने मेमुझे तो यह लग रहा है वोट डालने केबाद पप्पू बन जाता है बेचारा वोटरक्या करे आम वोटर की किस्मत में ही है पप्पू बनना

जोड़ तोड़ शुरू जो एक दुसरे को गाली दे देकर हमारे वोट ले रहे थे वह आदरणीय नेता सत्ता के लिए १६ मई को गले मेहाथ डाले खड़े होंगे और हम पप्पू लोग उनके चक्र व्यूह मे फस कर हमेशा की तरह रोयेंगे फिर सालो के लिए

तो भारत के वोट डालने वाले पप्पुओ तुम जग रहे थे इसलिए वोट डालने गए और अपना सब कुछ गवां कर घर मे टीवी देखो टी वी । .

शनिवार, मई 09, 2009

नफरत से नेता बनने का आसान तरीका -समाज को कहाँ ले जाएगा

नसबंदी वह भी जबरदस्ती कई कदम आगे का एजेंडा दिल मे या कहे खून मे समाया हुआ है इस गाँधी केउसके ब्यान या कहे उसकी आग उगलती जबान क्या साबित करना चाहती है

क्या नफरत से नेता बननेका यह आसान तरीका जब फैशन बन जाएगा तो समाज को काटना पीटना आग मे झोकने के अलावा बचेगा क्या । राजनीति का यह घिनोना रूप समाज को कहाँ ले जाएगा । इन लोगो का सामाजिक बहिष्कार जरुरी हो गया है । वरना यह सत्ता के भूखे भेडिये जनता के अमन चैन को भाई चारे को रोंध देंगे ।

उन राजनेतिक दलो का भी बहिष्कार हो जो इन सापो को दूध पिला रहे है क्योकि अगर भारत को अखंड और खुशाल रखना है तो यह छोटा सा कदम उठाना ही होगा ।



मंगलवार, मई 05, 2009

आख़िर क्यो -महंगाई को मुद्दा सिर्फ़ कांग्रेस बना पाती है कोई और नही

कांग्रेस पिछले ६० साल से अधिकतर समय हम पर राज कर रही है । दो चार मौके मिले बेचारे विपक्षी दलों को लेकिन उनेह विपक्ष में रहना ज्यादा भाता है इसलिए सत्ता को सम्हाल नही पाते और थोड़े दिनों मे कांग्रेस को सत्ता सौप देते है ।

एक बात जो चिंतनीय है वह यह की आज तक विपक्षी दल महंगाई को मुद्दा क्यो नही बना पाते जबकि कांग्रेस ने महंगाई को मुद्दा बना कर दो बार सत्ता पर कब्जा कर लिया । इंदिराजी ने आपातकाल के बाद हुई हार को मात्र ढाई साल बाद प्याज महंगा हो गया सोना महंगा हो गया के नाम पर जनता पार्टी को पैदल कर दिया । उसके बाद ९८ मे उसी प्याज ने भाजपा की चार राज्यों की सरकार निगल ली

आज भी महंगाई चारो ओर सुरसा के मुँह की तरह फ़ैल रही है प्याज को तो छोडिये आलू ,आटा,दाल ,सब्जी हर चीज में आग लगी है लेकिन शक्तिशाली नेता निर्णायक सरकार इस ओर ध्यान नही दे रहे है । कभी भारत को चमका कर वोट मानते है कभी परमाणु bomb के नाम पर लेकिन महंगाई के नाम पर वोट मांगना उनेह नही आता
महंगाई का मुद्दा सिर्फ़ कांग्रेस बनाना जानती है और उसका फायदा उठाती है । अगर कांग्रेस हार भी गई तो वह कुछ दिनों बाद महंगाई को मुद्दा बना कर फ़िर वापिस आ जायेगी ।

रविवार, मई 03, 2009

आतंक के ख़िलाफ़ मुंबई के मुस्लिमो की पहल को सलाम

मुम्बई एक मायानगरी , कहते है यह शहर कभी सोता नही अब तो यह साबित होगया है की मुम्बई सोये हुए लोगो को जगा भी रहा है । एक घटना जो मुंबई खासकर मुंबई के मुसलमानों की राष्ट्रभक्ति को उजागर करती है । एक आतंकी घटना ने जब सारे देश को हिला दिया मुंबई को छलनी कर दिया । सैकडो भारतीय व विदेशी मारे गए और कई पाकिस्तानी आतंकी भी मारे गए और एक पाकिस्तानी जिन्दा पकड़ा गया ।

हमारे मुंबई के बहादुर मुसलमानों ने उन आतंकियों की लाशो को अपने कब्रिस्तान मे दफन करने से इनकार कर दिया और जिन्दा आतंकी के पैरवी के लिए आगे आए वकील अब्बास काज़मी को प्रतिष्टित इस्लाम जिमखाना के ट्रस्टी पद से हटा दिया कारण बताया गया कि इस्लाम मे आतंक की कोई जगह नही है । आतंक की पैरवी करना इस्लाम के ख़िलाफ़ है ।

यह मुस्लिमो की राष्ट्रवादी मानसिकता काबिले तारीफ है और उन लोगो को करार तमाचा है जो मुस्लिमो की राष्ट्रीय भावना पर प्रश्नचिन्ह लगाते है । इस लिए मुंबई के मुस्लिमो को सलाम

शुक्रवार, मई 01, 2009

१ मई तो है ही मजदूरों के लिए घडियाली आँसू बहाने को

मजदूर दिवस को मना रहे है आज क्योकि आज के दिन कही मजदूरों को उनकी मांग पूरी करने के लिए मार दिया गया था । क्या १ मई को ही सिर्फ़ मजदूरों को मारा गया अगर यही एक कारण है तो बाकी के ३६४ दिन कौन सा ताज मिल गया मजदूरों को । क्या १ मई को जगह जगह लाल ,केसरिया ,तिरंगे झंडे फहरा कर भाषण वाजी करके मजदूरों के दुःख दूर किए जा सकते है ?

नही बिल्कुल नही फ़िर क्यो यह तथाकथित मजदूरों के हमदर्द या कहे उन बेचारे मजदूरों के सौदागर साल मे सिर्फ़ एक दिन मजदूरों की चिंता करते है फ़िर साल भर उनके दम पर अपने घरो को भरते है । आज या कहे हमेशा से तरक्की की राह के सबसे बड़े स्पीड ब्रेकर रहे है यह मजदूर संघटन चाहे वह कोई भी हो सीटू हो या मजदूर संघ या इंटक

मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सिर्फ़ एक दिन के जलसों से काम नही चलेगा । नारों से काम नही चलेगा । नारों से तो सिर्फ़ मजदूरों के नेताओ का काम चलता है क्या यह बात आपको चौकाती नही है कि एक मजदूरों के ईमान दार नेता कि एक बड़े और महंगे शहर मे कई एकड़ ज़मीन है ।

काश कोई मजदूरों के हित मे ईमानदारी से सोचे उसी दिन से बेचारे मजदूरों की दशा मे सुधार होना शुरू हो जाएगा। वरना १ मई तो है ही मजदूरों के लिए घडियाली आँसू बहाने को