गुरुवार, मार्च 25, 2010

मेरी टिप्पणी पर सेंसर - आडवाणी जी आपसे जबाब चाहिए

 एक ब्लोगर का या कहें ब्लॉग पढ़ने वाले पाठक का मूलभूत अधिकार है टिप्पणी देने का और वह भी स्वतंत्र रूप से .यदि ब्लॉग लिखने वाले को टिप्पणी पर आपत्ति है तो उसे हटाने का अधिकार है लेकिन टिप्पणी पर सेंसर यह कुठाराघात  है अभियक्ति की स्वतंत्रता पर . और उस व्यक्ति द्वारा जो हजारो या कहें लाखो लोगो के आदर्श के रूप में स्थापित है . 


आजकल एक फैशन चल गया है ब्लॉग लिखने का हम जैसो की देखा देखी . :-) यह ब्लॉग की समाज में स्थापित होने की गारंटी है . बहुत बड़े बड़े लोग भी ब्लॉग पॉवर का फायदा उठाने की कोशिश में है . ब्लॉग एक माध्यम बन गया है अपने मन की बात कहने का . 


खैर विषय पर लौटते हुए ...........  बड़े बड़े लोग ब्लॉग लिख रहे है उनमे से एक है अपने प्राइम मिनिस्टर बेटिंग 
लौह पुरुष माननीय लाल कृष्ण आडवाणी . आडवाणी जी आजकल ब्लॉग वह भी हिन्दी में लिख रहे है . हिन्दी में ब्लॉग पढ़ने की लालसा लिए में आडवानी जी के ब्लॉग पर पंहुचा . पोस्ट का विषय था विदेश में जमा गुप्त भारतीय धन पर श्वेत पत्र की जरुरत  . पढ़ कर अच्छा लगा छः साल सत्ता सुख के बाद छः साल विपक्ष में बैठने के बाद आडवानी जी को ध्यान आया . 


तुरंत एक टिप्पणी की -   छ साल बहुत होते है इन सब के लिये …………………… आप इतना तो कर सकते है कि भा ज पा के सभी नेताओ से शपथ पत्र दिला दे उनका कोइ ऎसा खाता नही है.ख़ास कर मेनका और वरुण गांधी से 




आडवानी जी ने जो टिप्पणी अपने ब्लॉग पर लगाई वह चौकाने वाली थी उन्होंने मेरी टिप्पणी को सेंसर कर दिया और जो उनके ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी आई उसमे मेनका और वरुण गांधी का नाम नदारत था 


dhiru singh Says:

छ साल बहुत होते है इन सब के लिये …………………… आप इतना तो कर सकते है कि भा ज पा के सभी नेताओ से शपथ पत्र दिला दे उनका कोइ ऎसा खाता नही है.

इसका क्या अर्थ लगाया जाए . मेनका या वरुण गाँधी में ऐसा क्या आपत्तिजनक था जो आडवानी जी ने उसे हटा दिया . मुझे कोई परेशानी नहीं थी कि आडवानी जी मेरी टिप्पणी को बिलकुल हटा देते . लेकिन सेंसर पर मुझे एतराज है . 

क्या सेंसर मेरी स्वतंत्र अभियक्ति पर रोक नहीं . क्या इसे फासीवादी कार्यवाही मानी जाए . यह विषय मेरे लिए महत्वपूर्ण है और मैं आप सब से संरक्षण मांगता हूँ . 

इस तरह से तो टिप्पणी देना व्यर्थ सा लगता है . और मैं इस तरह के सेंसर के पूर्ण रूप से खिलाफ हूँ वह भी आडवाणी जी के द्वारा जो मेरे पिता तुल्य है .

क्या  आप मेरी आवाज़ के साथ है ?


                                                                                                                



मंगलवार, मार्च 23, 2010

हे ईश्वर मुझे तेरा यह कर्म मुझे अच्छा नहीं लगा

कुछ ही साल हुए थे वह दुल्हन बन कर आई थी . सुन्दर और मृदुभाषी थी वह . एक बेटी की माँ . कुछ दिनों से बीमार थी एक दिन ही अस्पताल में भर्ती रही शाम को डाक्टर ने कहा वह सही है उसे आप घर ले जा सकते है . सब खुश थे क्योकि आज ही उस का जन्मदिन था . और घर पर एक उत्सव सा तो ही सकता था . ख़ुशी ख़ुशी वह घर आई . घर में घुसते ही वह कुछ असहज हुयी जब तक कुछ होता वह जन्मदिन वाले दिन मृत्यु की गोद में समां गई . 


वह पत्नी थी मेरे बचपन के साथी मेरे दोस्त शोभित की . आज ही शमशान से  उसके  अंतिम संस्कार में शामिल होकर  लौटा हूँ .


 कुछ सवाल मेरे मन को उद्धेलित करते है .विश्वास को डिगाते है , ईश्वर पर प्रश्नचिन्ह लगाते है जबकि मैं पूरे नवरात्र व्रत रखा हूँ 


 क्या वह इस तरह मृत्यु के योग्य थी उस बेचारी ने तो कोई पाप भी नहीं किया होगा . उसकी मासूम सी बेटी का क्या गुनाह था जो छोटी सी आयु में ही वह माँ से दूर कर दी गई . प्रभु इच्छा कह कर कब तक हम अपने दिल को तसल्ली दे . एक माँ की अर्थी पर विलखती मासूम बेटी को देखा है मैंने . एक बाप को ,एक माँ को ,एक पति को , एक भाई को , एक सास को ,एक ससुर के क्रदन को सुना है मैंने . 


हे ईश्वर यही तेरे कर्म मुझे समझ नहीं आते . आखिर क्या बताना चाहता है तू क्या समझाना चाहता है तू . आज तूने जब यह द्रश्य देखा होगा तो तेरी आँखे भी तो नम हुयी होंगी . क्या होगा उस मासूम बेटी का ................



गुरुवार, मार्च 18, 2010

राजा मकरंद राय ने बनबाई मस्जिद और चुन्ना मियाँ ने मंदिर -ऐसा था शहर हमारा बरेली

अब आया हुआ तुफ़ान थम गया हमारे यहाँ बरेली में . कर्फ्यू में १४ घंटे की राहत मिली है लेकिन सख्ती बरक़रार है . शायद यह हमारे शहर के लिए अच्छा है . हालात तेज़ी से सामान्य हो रहा है . आम आदमी रोज़ी रोटी के लिए निकल चुका है शायद इस समय इससे ज्यादा जरुरी कुछ नहीं है . 


क्या हुआ इस शहर को ,किसकी नज़र लग गई उससे पहले  यह जानना बहुत जरुरी है कि गंगा जमुनी तहजीब का एक बहुत बड़ा केंद्र रहा है बरेली .इस शहर के चारो ओर मध्य में प्राचीन शिव मंदिर है . इस्लाम के बहुत बड़े मसलक के आला हज़रत का जन्म बरेली में ही हुआ . आम आदमी के लिए गाने योग्य रामायण को रचने वाले प. राधेश्याम कथावाचक की भी जन्मस्थली बरेली ही है . खानखाहे नियाजिया जो हर कलाकार की मंजिल है वह भी बरेली में है . 


राजा मकरंद राय ने यहाँ विशाल मस्जिद बनवाई तो फज़ल उर रहमान चुन्ना मियाँ ने विशाल लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया जो चुन्ना मियां के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है इसका  उदघाटन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ . राजेन्द्र प्रसाद ने किया .  


बरेली के आस पास के जिलो में वैमनस्य फैला दंगे हुए तब भी बरेली शांत रहा . मुरादाबाद ,मेरठ ,अलीगढ ,बदायूं जो कुख्यात हो गए दंगो के लिए वहाँ तो शांती रही लेकिन हमेशा शांत रहने वाला बरेली सियासत के लोगो को बर्दाश्त नहीं हुआ और झोक दिया दंगो की आग में . 

१७ दिन से कर्फ्यू भुगत रहे बरेली की पीड़ा पर एक शेर सटीक है 
  
                                 दिल के फफोले जल उठे दिल की आग से 
                                  घर को आग लग गई घर के चिराग से 

बरेली के कुछ नेता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना चाहते है एक मोहल्ले में रहने वाले कई भाइयो ने अपनी पार्टियाँ बना रखी सब अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष है . और अपनी ताकत को दिखाने के लिए यह प्रयोग कर रहे है अपने शहर से . आखिर कांग्रेस ने इनके वोटो के लालच  में बिहार  तक इनका  प्रयोग किया .हवाई जहाज मुहैया कराये इन्हें . अब यह उड़ान पर है क्योकि मदर इण्डिया तक पहुच है इनकी लेकिन अपने वार्ड का चुनाव तक ना जीतने वालो को आगे बड़ाया राष्ट्रवादी हिंदूवादी भाजपा ने . अपने फायदे के लिए हर पार्टी इनका प्रयोग कर रही है . और उपभोक्ता अपनी ताकत जान चुका है और ताकत का एक छोटा सा नज़ारा १६ दिन के कर्फ्यू में बदल गया है . 

इब्तदा इश्क है रोता है क्या 
आगे आगे देखिये होता है क्या 


सोमवार, मार्च 15, 2010

वसीम बरेलवी भी रो उठे बरेली की बर्बादी देखके - कर्फ़्यु मे बरेली

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कई दिन बाद चार घंटे की छूट मिली कर्फ्यू में पूरी सख्ती के साथ . सडको पर कार स्कूटर से चलना मना था . सिर्फ सायकल या रिक्शा को इजाजत थी अनजाने में ही सही गरीब रिक्शे वालो की  थोड़ी सी मदद हुयी इस नियम से . जो रोज़ कुआं खोदते है और पानी पीते है उनकी १४ दिन की कैद ................... कल्पना से ही भय लगता है . भुखमरी की ओर हजारो परिवार बड़ रहे है . आज के हालात को देखकर कल कर्फ्यू में ढील बड़ाई जा  सकती है . 


एक शान्ति यात्रा निकाली गयी शहर में . हमारे बरेली की शान वसीम बरेलवी भी फफक फफक के रो पड़े इस अमनपसंद शहर की दुर्दशा देखकर . शायद उनके आसूं देखकर कुछ संगदिल पिघले . 




 शहर को जिसने इतनी हिंसा आज तक ना झेली देखकर डर सा लगता है . एक लाइन खिच  गयी जो हाल फिलहाल मिटती नज़र नहीं आ रही क्योकि सियासत के सौदागर नहीं चाहते उनकी तिजारत में कोई कमी आये . दिल्ली  लखनऊ के होलसेलर भी नहीं चाहते कि इतनी जल्दी उनकी दुकाने सिमटे . उन्हें तो मौका मिला है एक दुसरे को गरियाने का इसीलिए तो अपने एजेंट रोज़ बरेली की तरफ  भेज रहे है . आज यह ,कल यह ,परसों यह एजेंट फिजा को बिगाड़ने आ रहे है . 


ईश्वर के लिए खुदा के लिए हम बरेली वालो को अकेला छोड़ दीजिये . हम ने गलती की हम ने चोट खाई हमने सजा भुगती हम ही इस दर्द का इलाज़ ढूंड लेंगे . आप हम पर रहम करे हमारे जख्मो को सूखने दे उन्हें कुरेदे नहीं . 







रविवार, मार्च 14, 2010

दंगे से तो नहीं मरे लेकिन भूख से जरुर मरेंगे बरेली के लोग - कर्फ्यू के कारण


अभी तक आप लोगो ने गंभीरता से नहीं लिया बरेली के कर्फ्यू के समाचारों को .......


बी बी सी में प्रकाशित खबर देखे . अभी भी हम मौत से लड़ रहे है .भूख से मर जायेंगे लोग अगर 

कर्फ्यू नहीं हटा . स्थिति तनावपूर्ण लेकिन  नियंत्रण [? ] 


बरेली में फिर भड़की हिंसा, कर्फ़्यू जारी

बरेली में आगजनी
बरेली में दो मार्च को सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी
उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले में कर्फ़्यू के बावजूद शनिवार को एक बार फिर सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी. शहर के प्रमुख कुतबखाना चौराहे के नज़दीक सब्ज़ी मंडी में दंगाइयों ने क़रीब 20 दुकानों में आग लगा दी.
शहर में शनिवार को कर्फ़्यू का 12वाँ दिन है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक शहर के सभी स्कूल, कॉलेजों को बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं और उपद्रवग्रस्त इलाकों में हैलीकॉप्टर से निगरानी रखी जा रही है.
अधिकारियों के अनुसार हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में कर्फ़्यू में तब तक ढील नहीं दी जाएगी, जब तक वहाँ हालात सामान्य नहीं हो जाते. शहर के छह में से चार थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू लगा है.
स्थिति तनावपूर्ण
स्थिति पर काबू पाने के लिए बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है.
इससे पूर्व, भीड़ को उकसाने के आरोप में गिरफ़्तार बरेलवी धड़े के मौलाना तौकीर रज़ा ख़ान को शुक्रवार को रिहा कर दिया गया.
मौलाना की रिहाई के विरोध में संजय नगर और सुभाष नगर से बड़ी तादाद में लोग सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतर आए और तोड़फोड़ शुरू कर दी. भीड़ ने चार थाना क्षेत्रों में कर्फ़्यू का उल्लंघन किया. कुछ इलाक़ों में भीड़ ने पुलिस पर पथराव भी किया.
प्रदर्शनकारियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने आँसू गैस के गोले छोड़े और रबड़ की गोलियाँ दागी.
उल्लेखनीय है कि दो मार्च को जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान शहर में दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई थी, इसके बाद शहर में लगातार तनाव बना हुआ है


शुक्रवार, मार्च 12, 2010

और ज्वालामुखी फट गया . बरेली में कर्फ्यू का १२वा दिन

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और ज्वालामुखी फट गया . मेरे शहर में १२ दिन से कर्फ्यू है और तीन दिन से बिना ढील के . दहशत में कैसे जीते है यह बरेली वालो से ज्यादा कोई नहीं जानता . कई राते जग कर काट रहे बरेली वालो को अब अपने पड़ोसियों पर भरोसा नहीं . १५० साल से निकलने वाली राम राजगद्दी दंगो के कारण नहीं निकली .


मौलाना  को पकड़ा और दंगो का आरोपी बनाया और फिर दबाब में कानून को नीचा दिखाकर छोड़ दिया . अगर मौलाना बेक़सूर थे तो क्यों झूठी रिपोर्ट लिखी और रिपोर्ट सही थी तो छोड़ा क्यों . क्यों आग में घी डाला और इसका नतीजा यह हुआ कल रात से बरेली जल उठा और झुलस गयी इंसानियत .


हुआ यू फिर आज तक झुलस रही  है  बरेली . आज तो मौत नाच रही है खबर है दर्जन भर ट्रक ,बस और गाडिया आग की भेट चढ़ चुकी है . दर्जनों दुकाने जल चुकी है . कई घायल है पुलिस अफसर सहित . उड़ती उड़ती खबर है एक दो मर भी चुके है . ऐसा ना हो तो यह अच्छा रहेगा शहर के लिए . ख़ैर आने वाले कई दिन हमें जिन्दगी के लिए डर डर कर मरना पडेगा . 


शायद कल क्या हो पता नहीं आज तो जिन्दगी का एक दिन डर डर कर जी लिया . लेकिन जो जिल्लत भरी जिन्दगी बरेली वाले जी रहे वह कोई ना जिए . 

बुधवार, मार्च 10, 2010

कर्फ्यू का ९ वा दिन ........ ज्वालामुखी सी शांत है बरेली

सिर्फ १० दिन ही हुए है फिजा खराब हुए . ९ दिन कर्फ्यू को झेलते हो गए . आज बाज़ार खुलने थे लेकिन भगदड़ ऐसी मची लोग गिरते पड़ते भागे . अफवाहों का बाज़ार गरम है .दिन भर उदासी और रात को शमसान सा सन्नाटा है . इक्का  दुक्का गाडी चल रही है . हर चहरे पर मुर्दानी छाई है . दहशत चारो ओर फ़ैली है . लाल नीली बत्तिया और हूटर लगी सरकारी गाडिया भी दौड़ रही है .

लेकिन यह खबर आपको अखबारों में पढने को नहीं मिली . क्योकि इन दंगो में अभी तक कोई मरा नहीं घायल तो सैकड़ो हुए . दर्जनों मकान ,दुकाने स्वाह कर दी गई . शायद राष्ट्रीय मीडीया जब तक लाशो का ढेर ना देखे तब तक वह खबर नहीं मानता . खैर कोई बात नहीं . दंगो का एक आरोपी मौलाना तौकीर रजा खान पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है . बरेली मरकज के आला हज़रत परिवार के लोग  पहली बार इतिहास में दंगा फैलाने में आगे आये है . आला हज़रत आज जन्नत में आसूं बहा रहे   होंगे  .

और अभी की स्थिति यह है हजारो मुसलमान और हिन्दू अपने अपने इलाको में इकठ्ठा है . अभी ९-३० की बात कर रहा हूँ . एक ज्वालामुखी पर हम बैठे है . शायद कल सुबह बरेली सुर्खियों में हो अखवार और न्यूज़ चैनल की . लेकिन ऊपर वाले से प्रार्थना है बरेली में अमन चैन फैले और आज रात शान्ति से कटे .

कल अगर इस लायक रहे तो फिर मिलेंगे ..

शुक्रवार, मार्च 05, 2010

आग जब चुल्हे मे जलती है तो जिन्दगी पलती है - और आग जब सडको पर लगती है तो जिन्दगी उजडती है

आग 

जब चुल्हे मे

जलती है

तो जिन्दगी

 पलती है

और

आग 

जब सडको पर

लगती  है 

तो जिन्दगी 

उजडती  है 

यह आग आजकल मेरे शहर में लगी है झुलसा रही है इंसानियत को ,सपनों को और अपनो को . शैतानो ने अपना काम कर दिया और हमें छोड़ दिया नफरत की फसल में पानी लगाने के लिए .लम्हों की खता है जिसकी सज़ा  सदिया उठाएंगी .दंगे की आग ने हमारी आँखों की  शील को जला दिया . एक चोडी खाई खोद दी गई है हमारे बीच में .कब तक भरेगी पता नहीं . वैसे रहीम लिख गए है 

रहिमन  धागा प्रेम का मत तोरो  चटकाए 

टूटे ते फिर ना जुरे ,जुरे गाठ परिजाए

धागा टूट गया है गाठ पड़ गई है . दिलो पर भी और दिमाग पर भी . कैसे भरपाई होगी पता नहीं .आपको अगर पता हो तो हमें भी बता दे .......

गुरुवार, मार्च 04, 2010

बरेली के दंगे और कर्फ्यू का तीसरा दिन

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आज भी हम कर्फ्यू के कारण घरो में घुसे  बैठे है . थोड़ी देर की मोहलत मिली लेकिन सख्ती बरकरार रही अगर १० % सख्ती उस दिन होती तो दंगा नहीं फैलता . कितना अजीब है हमारे शहर की आग की तपिश सिर्फ हमें ही झुलसा रही है . इतनी आगजनी के बाद भी किसी  राष्ट्रीय समाचार पत्रों ,समाचार चैनलों ने हमें भुला दिया . यदि यह दंगा गुजरात में होता तो अभी तक तो हजारो लीटर आसूं सडको को गीला कर देते . खैर बहुसंख्यक लूटे है पिटे है कोई बात नहीं लेकिन अल्पसंख्यको को कोई तकलीफ नहीं हुई . हमारी धर्म निरपेक्ष छवि पर कोई आंच नहीं आयी अगर आ जाती तो हम मूंह कहाँ दिखाते .

दंगा एक ऐसा शब्द है जो मानवता को नंगा करने के सन्दर्भ में कहा जाता है . हम सहिष्णु बहुसंख्यक शायद पिटने के लिए  ही है मन खिन्न है . इसके सिवा कुछ कर भी नहीं सकते .

 यदि कानून अपना काम करे सख्ती से करे तो दंगो का नामो निशान मिट जाए लेकिन राजनीति का पैर कानून को लडखडा देता है और दंगाईयो को सहारा देता है . राजनितिक हस्तक्षेप ने कानून के प्रभाव को कम किया है . प्रशासन को पंगु किया है .पुलिस का मनोबल तोडा है . अगर इन संस्थाओ के साथ राजनीति का मज़ाक नहीं रुका अगर यह ह्तौत्साहित हो गई तो हम जन गण मन तो नहीं ही रहेंगे लेकिन यह भाग्यविधाता भी नहीं रहेंगे . और वह दिन दूर नहीं जो यह सब होने को है .

सुनियोजित दंगे एक प्रकार का आतंकवाद ही है . इस पर कठोरता से ही रोक लगानी चाहिए . दंगाई चाहे बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक हो सबको सजा   एक ही लाठी से मिले .

बरेली के दंगे और कर्फ्यू का तीसरा दिन

बुधवार, मार्च 03, 2010

मेरा शहर जल रहा है दंगे की आग में - हमें नाज़ था कौमी एकता पर [ कर्फ्यू में फसे है हम ]

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होली क दिन बीता भी नहीं रंग छुटा भी नहीं हमारे बरेली शहर में आग की होली खेली गई . मेरा अमनपसंद शहर [?]दंगे की भेट चढ़ गया और पूरे शहर में कर्फ्यू में है . पुलिस की गाडियों में बजता सायरन और रेपिड एक्शन फोर्स के बूटो की आवाज़ ही सुनाई दे रही है .

हुआ यूँ  बाराबफात का जलूस कल निकालना था और उसका एक मार्ग निर्धारित है लेकिन शहर के कोने कोने से जलूस बना कर मुसलमान लोग हाथो में तलवार ,भाले लेकर जहाँ से असली जलूस निकलना था वहाँ पहुचने लगे . इस नयी परंपरा का हिन्दुओ ने जुबान से विरोध किया . सिर्फ जुबान से क्योकि हिन्दुओ की सिर्फ जुबान ही तो चलती है . इसके बाद जो हुआ वह कलंक है इस शहर के लिए . आगजनी चालु हुई  गिन गिन के हिन्दुओ की दुकाने जलाई गई जिसमे बड़े शोरुम भी शामिल है , मकानों में आग लगाईं गई . एक पेट्रोल पम्प में आग लगाने की कोशिश हुई . और तो और एक पुलिस चोकी जला दी गई . लोगो को बुरी तरह से मारा पिटा गया . महिलाओ की बेईज्ज़ती की गई . पुलिस पिटी , अफसरों से हथियार छीनने का प्रयास हुआ ,हाथापाई हुई .

लगभग ३ घंटे अराजकता का माहोल रहा . सुनियोजित ढंग से गैस सिलेंडरो के द्वारा आग लगाईं गई . तीन घंटे बाद पुलिस पूरी ताकत से उतरी . आई जी , डी आई जी ने अपने हाथो से गोली चलाई . लगभग १००० राउण्ड गोली चलाने के बाद स्थिति काबू में नहीं आ पाई है . दलित वस्तियो पर हमला हुआ . बाहर के गुंडों ने अपना काम अंजाम दिया और सकुशल चले गए .

हम लोग डरे सहमे से अपने घरो में कैद है . सड़क तक पर आने की इजाजत नहीं है . शहर में केबिल काट दी गई है सिर्फ दूरदर्शन का सहारा है . बच्चो के बोर्ड इग्जाम शुरू हो गए है . अपनी जान पर खेल कर जिन्दगी की जंग लड़ने बच्चे जा रहे परीक्षा देने . उन्हें कर्फ्यू में ढील दी गई है . आज के बाद अगर स्थिति नहीं सुधरी तो कल से दूध , सब्जी का अकाल तय है .

हमें बहुत नाज़ था अपने शहर की कौमी एकता पर जो तार तार हो गई . राजनीति का चूल्हा भी गरम हो चुका है तवा भी गरम है रोटी सेकने वाले भी आ गए है . लेकिन जिनकी  दुकाने जली जिनके  मकान जले अरमां जले बिटिया के सहेजे हुए दहेज़ जले उनका क्या होगा . कल जरुर छपेगा स्थिति तनाव पूर्ण लेकिन नियंत्रण में है .