बुधवार, अगस्त 15, 2012

आजादी में गिरफ्तार हम ....हमारा कसूर क्या

आजादी के दिन हमारा शहर कर्फ्यू ग्रस्त हालत में जश्न ? मना रहा है . लगभग महीना भर होने को आ रहा है हमारे शहर की फिजा खराब हुए .सडको पर सन्नाटा है दिलो में खौफ है .

हम जैसे लोग तो कर्फ्यू को कई महीनो तक झेलने का माद्दा रखते है . लेकिन रोज़ कुआँ खोदने वाले लोगो के दुखो की कल्पना से ही मेरा तो मन विचलित हो ही जाता है .दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों के हालत तो बदतर हो गए होंगे उन बेचारो को तो नमक भी रोज़ ही खरीदना पड़ता है . खैर हमारे हुक्मरानों को इससे कोई फर्क तो पड़ता नहीं वह तो 2014 की गुणा भाग लगा रहे होंगे इसका फायदा कैसे उठाया जाए .

दुःख तो होता है आज की मीडिया को देख कर .किसी भी चैनल किसी भी अखबार में   कोई भी खबर हमारे बरेली की नहीं जबकि दो साल में तीसरी बार दंगे हुए और कर्फ्यू लगा . तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया को चिंता है हाई फाई सोसाईटी  औरतो की मौत मर ,उन्हें चिंता है मीडिया द्वारा प्रायोजित आन्दोलनों की कवरेज पर . और न जाने कितने जरूरी काम है सिवाय देश के शन्ति प्रिय इलाको में हो रही हिंसा के

मुंबई में हिंसा हुई सिर्फ वही  चैनल रो रहे  है जिन्हें नुक्सान हुआ . बाकी सब खामोश . आसाम की आग धर्म आधारित कर दी गई जबकि  लड़ाई घुसपैठियो के खिलाफ है . खैर हम भी ओरो पर क्यों रोये अभी अपने ही दर्द बहुत है हमें रुलाने को .

अगर अब जल्दी हमारी समस्या का कोई  समाधान नहीं हुआ तो कई शहर बरेली बन जायेंगे . हो सके तो कोई हमारी आवाज़ मे  अपनी आवाज मिला दे