बुधवार, दिसंबर 21, 2011

टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव

लगभग एक महीने बाद फिर आपके पास आया हूँ . नई नौकरी (?) या कहे पहली नौकरी ने बहुत समय ले लिया है . हर महीने टारगेट को अचीव करने में बहुत वक्त ख़राब होता है . और यह उस समय और कष्टप्रद है जब महंगाई का शोर है और जोर भी .

एक टारगेट रूपी बम हम पर फेका जाता है की कम से कम इतनी कार बेचना है . और उस बम को हम छड़ी बना कर अपने सेल्स के बन्दों  पर चलाते है . ठिठुरती ठंड में जब मै अपनी आटो ऐ सी कार में २२-२३ डिग्री टेम्प्रेचर मेंटेन कर  चलता हूँ तो रास्ते में से ही अपनी सेल्स टीम की थाह लेता हूँ की कही वह घर में बैठे ठंड तो नहीं मना रहे है . वह बेचारे ठंड में अपनी बाइको से हमारे टारगेट को पूरा करने के लिए दौड़ते रहते है . यही नहीं कितनी भी मेहनत करे वह बेचारे शायद ही कभी हमारी तरफ से उन्हें शाबासी मिलती हो . हां उन्हें एक लालच दे दिया जाता इंसेंटिव का ............. और उनके टारगेट इतने कर दिए जाते है शायद ही वह उसे अचीव कर सके .

और कुछ कुछ यही सब हमारे साथ होता है कम्पनी की तरफ से .हमें भी शालीन तरीके से लताड़े सुननी पड़ती है .

 लेकिन सब करा जाता है सब सहा जाता है . आखिर क्यों न हो एक ऐसी दौड़ हम सब दौड़ रहे है जो शायद कभी ख़त्म हो . ठीक उसी तरह बचपन में एक कहानी पढी थी कि एक राज्य में राजा ने कुछ पैसो में ही उतनी जमीन देने की घोषणा की जितना आदमी दौड़ कर पूरे दिन में घूम ले . एक व्यक्ति आया और वह  सम्पति पाने के लिए दिन भर दौड़ा और शाम होने से पहले ही थक कर गिर गया और मर गया उसके हिस्से में सिर्फ दो गज ज़मीन ही आ पाई . शायद वही दौड़ हम सब लगा रहे है . पैदा हुए थे तो नंगे थे और मरेंगे तो तो दो गज का कफ़न होगा यह सब जानते हुए भी दौड़ रहे है सिर्फ याद है तो सिर्फ ...............टारगेट ......अचीवमेंट ......इंसेंटिव 

गुरुवार, नवंबर 24, 2011

हुआ वही जो होना था

आखिर पानी गड्डे मे ही गया .

 बहुत दिनो पहले एक चुटकला सुना था . एक कम्पनी के चेयर मैन ने एक मीटिग मे अपने इम्पलाईयो से कहा इसे कहते है लगन ....... यह लडका ६ महीने पहले हमारी कम्पनी मे एक ट्रेनी के तौर पर आया और अपनी मेहनत और लगन से आज वह डायरेक्टर बन गया ..................... आइये जैन्टल मैन कुछ कहिये . लडका आगे आया और कहा थैन्क य़ू अंकल

यही कुछ टाटा संस मे हुआ . दुनिया को दिखाने के लिये खोज कमेटी बनी और आखिर ढाक के तीन पात .मिस्त्री सही अगर टाटा नही . 

यही तो होता आया है योग्य सिर्फ़ अपने ही पाये जाते है . चाहे किसी भी क्षेत्र मे हो . बदनाम तो सिर्फ़ राजनीतिक ही है . 


रविवार, अक्तूबर 23, 2011

गद्दाफी के बहाने



मुझे तानाशाह अपनी ओर आकर्षित करते रहे है . पता नहीं क्यूँ  . हर विवादस्पद व्यक्ति को जानने में मेरी रूचि रहती है .  यह मानव स्वभाव है या मेरा शौक ? 

खैर  गद्दाफी का अंत यही बताता है दुनिया गोल है गद्दाफी  जिस माहौल में पैदा हुए उसी माहौल में मर गए .गद्दाफी के बहाने एक सवाल उठता है आखिर क्यों क्रांति के कारण सत्ता परिवर्तन के वाहक बने लोग तानाशाह हो जाते है .

हिटलर ,मुसोलिनी ,स्टालिन ,सदाम हुसैन .गद्दाफी ,इदी अमीन जैसे तानाशाहों में एक समानता यह रही वह अति साधारण परिवारों से सम्वन्ध रखते थे . जुल्म और जालिम के खिलाफ क्रान्ति कर सत्ता में आये यह लोग जुल्म और जालिम के प्रतीक  बन गए . 

आखिर क्या वजह है आम आदमी जब ख़ास बनता है तो भ्रष्ट और तानाशाह हो जाता है .  
क्रान्ति वीर लोग जो जुल्म के खिलाफ आगे आते है क्यों वह जालिम बन जाते है ? जबकि वह साधारण परिवारों से तालुक रखते है . ........................... और जो राज्य पारिवार सैकड़ो सालो से काबिज़ है वहा इतने तानाशाह आजतक पैदा नहीं हुए 

बुधवार, अक्तूबर 19, 2011

एक अन्ना हुये थे

बहुत दिनों बाद हां या ना में जूझते  हुए आखिर लिखने का मन करने लगा . लेकिन बिषय का आभाव साल रहा है . भ्रष्टाचार और अन्ना मुझे आकर्षित नहीं करते .क्योकि मै कितने भी कुछ कहू लेकिन यह सच है भ्रष्टाचार का शिकार या शिकारी हर आम व्यक्ति है . या कहे आम आदमी शिकार और जो शिकारी हो जाता है वह ख़ास हो जाता है . 

आज अन्ना और उनकी टीम ईमानदारी का ढिंढोरा पीट रही है शायद वह ईमानदार इसलिए है की उन्हें बेईमानी  का मौक़ा नहीं मिला है . हम आम लोग इन्हें भी बेईमान बना कर छोड़ेंगे क्योकि जब जब व्यक्ति को जनसमर्थन हासिल होता है या तो वह निरंकुश हो जाता है या भ्रष्ट . टीम अन्ना निरंकुश  तो है ही समय रहते वह भ्रष्ट भी हो ही जायेगी . और टीम अन्ना ने साबित कर दिया है वह हरवाने की क्षमता रखते है . जितवाना उनके लिए सम्भव नहीं .एक ना एक दिन वह आम जनता के उस विश्वास को भी हरा देंगे जो १२ दिन २४ घंटे उपवास के समय हासिल हुआ था . 

अन्ना के कहेनुसार यदि कांग्रेस जनलोकपाल बिल लाती है तो कांग्रेस के समर्थन में वह आगे आयंगे . कांग्रेस जरुर यह बिल लायेगी . क्योकि फुदकने वाले चूहों के लिए बिल मिल जाए तो वह शांत रहते है .

खैर अन्ना प्रकरण बहुत ही थोड़े समय के अन्दर कोल्ड स्टोर में फ्रीज़ कर दिया जाएगा . कई सालो बाद याद करेंगे एक अन्ना हुए थे 

बुधवार, सितंबर 14, 2011

आज हिन्दी का वार्षिक श्राद्ध है



आज हिन्दी का वार्षिक श्राद्ध है . तमात विज्ञापन छपे है हिंदी को याद करने के लिए अखबारों में . तभी याद आया हिंदी डे का . आज से हिन्दी की सेवा के लिए पखवाड़े मनाये जायेंगे . बेंको ,सरकारी आफिसो में हिन्दी की सहानुभूति के जो पट लगे है वह साफ़ किये जायेंगे जिन पर लिखा होता है हम हिन्दी में लिखे पत्रों को स्वीकार करते है . 

आज हिन्दी के बेचारे लेखको को खोज खोज  कर उनको अंगवस्त्र व् श्री फल के उपहार दिए जायेंगे . उनकी रचनाओं को जो शायद पढी भी ना हो प्रशंसित की जायेंगी . 

 मुझे यह सब उसी तरह लगता है जैसे हम अपने  पितरो का श्राद्ध करते है .

 हिन्दी की दुर्दशा के दोषी कौन है अगर खोज की जाए तो हम सब दोषी ही साबित होंगे . ६२ साल हो गए हिन्दी दिवस मानते हुए लेकिन आज भी कृषि ,विज्ञानं के शोध अंगरेजी में ही होते है जबकि उनका फायदा तभी हो सकता है जब वह हिंदी ,तमिल ,तेलगू ,कन्नड़ ,बंगाली ,मराठी ,असामी ,पंजाबी,गुजराती आदि में हो क्योकि हम यही भाषाए जानते है अंगरेजी नहीं .

खैर लेट्स सैलीव्रेट हिंदी डे  


गुरुवार, अगस्त 25, 2011

लोकपाल बिल खारिज , सरकार आज लायेगी भ्रष्टाचार संरक्षण बिल

अभी अभी सभी राजनैतिक दलों  की  बैठक  में  यह  निर्णय  लिया गया है की देश की वैश्विक पहचान को बचाने के लिए तुरंत एक बिल पास किया जाए जिसको कहा जाएगा भ्रष्टाचार संरक्षण बिल  

बैठक समाप्त होने  बाद एक साझा ब्यान में यह कहा गया है लोकपाल जैसे फ़ालतू बिल देश के विकास में बाधक है . ४२ सालो से यह बिल नही है तभी देश आज तक तरक्की कर रहा है . और जन लोकपाल बिल की मान्ग करने वाले हताश और निराश लोगो की टोली है जो देश और दूसरो की तरक्की बर्दाश्त नही कर पा रहे है . सिर्फ़ दो ,चार या दस लाख लोगो का यह आन्दोलन पूरे भारत की जन्संख्या का .०००१% भी नही है . इसलिये इस राष्ट्र विरोधी हरकत को तुरन्त बन्द करने की हिदायत की गई है . 

इस बिल का ड्राफ़्ट  तैयार करने के लिये एक कमेटी बनाई गई है जिसमे मुख्य रूप से चिदम्बरम . कपिल सिब्बल , अरुन जेटली ,लालु यादव , सुषमा स्वराज , ए राजा , कलमाणी आदि मुख्य रूप से शामिल रहेंगे .

प्रधान मंत्री ने इस बिल को अपने कार्यकाल का सबसे अहम बिल स्वीकार किया है . उनहोने कहा है यह बिल देश की तरक्की को और आसान करेगा . लोकपाल जैसे स्पीड बेकर को भुलाने से ही देश सोने की चिडिया बनने के हाइ वे पर फ़ुल स्पीड से दौडेगा . 

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शेष आगे ........ समय समय पर इस बिल के बारे मे चर्चा होती रहेगी 

गुरुवार, अगस्त 18, 2011

क्या एक कानून भ्रष्टाचार खत्म कर सकता है

हल्ला मचा है जन लोक पाल का ............ बहुत समय से सोच  रहा हूँ क्या एक कानून से भ्रष्टाचार सच में ख़त्म किया जा सकता है . बहुत सोचने पर लगता है नहीं ...... अगर कानूनों से अपराध ख़त्म होता तो आज हम आज
अपराध मुक्त वातावरण में सांस ले रहे होते . खैर एक तबीयत से पत्थर तो उछाला ही जा सकता है . 

लाखो लोग सड़को पर है मेरा मानना है वह भीड़ जन लोकपाल के समर्थन में नहीं पर भ्रष्टाचार के विरोध में है . जनता को लोकपाल से कोई सरोकार नहीं यह  सच है .और अन्ना ........अन्ना सिर्फ निमित्त मात्र है इस लड़ाई में या कहे तो एक मौखुटा या कहे आवाज़ 

यह जो चिंगारी लगी है दावानल से पहले ना रुके ........और भ्रष्टाचार इसमे दफ़न हो जाए ......................आमीन 

शनिवार, जुलाई 23, 2011

चलता है होता है दुनिया है

चाह कर भी आलस्य के कारण ब्लॉग पर नियमित नहीं आ पाता . रोज़ के घटना क्रम जो हो रहे है उन पर लिखना चाहता हूँ लेकिन आलस्य मुझे यह नहीं करने दे रहा है . आज  आलस्य को हराकर कुछ लिखने की ठानी है . 

राहुल गांधी पदयात्रा पर निकले अच्छा  लगा . उन्होंने यह दिखाया वह चल भी सकते है . लेकिन हासिल क्या किया लोगो को फ़ायदा क्या यह तो पता भी ना चला . खैर बड़े बड़े लोग बड़ी बड़ी बाते हमें क्या 

जिन्हें फ़ायदा हुआ उन्हें जांच से पहले निर्दोष साबित कर दिया और जोकरों को बंद ....मै बात कर रहा हूँ नोट के बदले वोट के बारे में . अमर सिंह और उनके तथाकथित जोकरों ने उचल कूद उस समय की थी मुझे नहीं लगता वह सोनिया ,मनमोहन को पता ना हो . आखिर फ़ायदा तो उन्ही का था . लेकिन उन्हें तो क्लीनचिट मिल ही गई .कितना अजीब है . फिर भी चलता है होता है दुनिया है . 

और भी घटनाएं रोज़ हो रही है आजकल तो सावन में भोले शंकर के भक्त भक्ति का भोडा प्रदर्शन कर रहे है . डीजे पर बजाते फिल्मी धुन के भजन और सड़क पर कब्जा देख कर दया तो आती है लेकिन पैदल सैकड़ो मील चलने का जज्बा देख कर भक्ति पर विशवास भी होता है 

रविवार, जून 19, 2011

फादर्स डे................. जस्ट सैलीब्रेट

अमरीकी तहजीब या कहे मार्केटिंग के फंडे ने तरह तरह के डे इजाद  कर दिए है . फादर ,मदर ,सिस्टर ,ब्रदर ,सन,डाटर और ना जाने क्या क्या .................. और हम उसे आत्मसात भी कर रहे है . आज फादर डे है . एक पुत्र और एक पिता होने के नाते इस दिन को अपने तरीके से देख रहा हूँ मै .

पूर्वजन्मो का फल है मुझे ऐसे घर में जन्म मिला जो बिरलो को ही मिलता होगा . मेरे पिता एक प्रेरणा हो सकते है किसी के भी . मेरा सौभाग्य है मेरे पापा . उनकी मेहनत लगन ने उन्हें वहां तक पहुचाया जहां लोग कल्पना ही कर सकते है . 

एक ऐसे परिवार में जन्म लिया मेरे पापा ने जहा किसी बात की कोई कमी नहीं थी . उस जमाने में अपने इक्के [तांगा] से स्कूल जाना बहुत ही विलासता मानी जाती थी . लेकिन एक दुर्भाग्य भी था उनकी माँ का निधन उस समय हो गया जब वह दूध पीते बच्चे थे . समय के साथ दूसरी माँ आई और वह वैसी ही साबित हुई जैसे लोगो के मन में छवि है दूसरी माँ की . बचपन कष्ट कारक बीता . आज तक यह समझ नहीं आता है पति क्यों कमजोर पड़ जाता है पत्नी के सामने . खैर ......... .. कल्पना कीजिये चार पांच साल का बच्चे को आटा,  दाल ,नमक दे कर कहा जाए की अपना खाना खुद बनाओ तो क्या होगा ............. किसी तरह बचपन कट गया लेकिन मन में ठाना किसी से कुछ नहीं लेंगे . अपने पैरो पर खड़े होने की ललक ने उन्हें कठिन परिश्रम की ओर आगे किया . 

पहली शुरुआत सायकिल पर सामान रखकर लगभग १०० किमी रोज़ की परिक्रमा . यह कार्य मुझे लगता है जीवकोपार्जन से ज्यादा घर वालो को यह दिखाना था मै कुछ भी कर सकता हूँ . शुरू से ही समाज सेवा व् राजनीति का भी जज्बा था वह भी साथ साथ चलता रहा . राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के  प्रचारक बन संघ के शुरआती दौर में घर घर ,गाँव गाँव उसका काम किया . बाद में जनसंघ में सक्रिय रूप से शामिल हुए . अपना व्यापार शुरू किया और उसे बुलंदियों तक पहुचाया . 

बाद में अपनी मेहनत और इमानदारी से तीन बार संसद सदस्य चुने गए . आज के दौर के ऐसे नेता जो इतने ऊँचे पदों पर रहने के बाद भी बेदाग़ है . विरोधी भी उन पर आरोप लगाने का साहस ना कर सके . आज वह रिटायर है राजनीति से भी क्योकि आज के माहोल  को वह अड्जेस्ट नहीं कर पा रहे है . सब एक थैली के चट्टे बट्टे है यह उनका मानना है . 

मै उनका पुत्र जो इस कोशिश में हूँ अपने पिता के पदचिन्हों पर कदम दो कदम चल सका तो अपने  को धन्य समझूंगा . 



शनिवार, जून 04, 2011

मुफ्ते माल दिले बेरहम

कुछ दिनों से व्यापार कर रहा हूँ . व्यापार भी कार का . बहुत पैशन और टेंशन का काम है यह . टारगेट की तलवार हमेशा सर पर  लटकती है . कैसे हमारे सेल्स की टीम मेहनत करती है तब कही जाकर टारगेट के नज़दीक पहुँच पाते है . 

नए नए अजीबोगरीब ग्राहक से रोज़ पाला पड़ता है . आजकल दहेज़ के लिए  कारे बिक रही है जैसे कभी मोटर साइकिल और उनसे पहले साइकिल बिका करती थी . लड़की का बाप जो निरही गाय नज़र आता है उस समय और लडके का बाप कसाई . आते है कम कीमत की कार खरीदने और शोरूम पर पसंद करते है उससे महंगी कार .वह समय लड़की के बाप के लिए बहुत भारी होता है . मुझ से मदद की उम्मीद लिए मेरे चेंबर में जब आता है तो मुझे समझोता कराना पड़ता है . जब जब मैंने यह कहा की लड़की वालो की सामर्थ्य इतनी ही है क्यों ना आप और पैसा डाल कर इससे बढ़िया कार खरीद ले . तब तब लड़के वाले उसी कार पर आ जाते है जो लड़की वाले दे ना चाहते थे . 

मुफ्ते माल दिले बेरहम का उदहारण रोज़ देखने को मिल रहा है .........................

शनिवार, मई 21, 2011

मै जिन्दा हूं

पता नहीं कैसे  हुआ मै दुनिया से कुछ दिन के लिए कट गया . कारण रहा मेरा लैपटाप जो काल के गाल में समा गया . हुआ यह जब से लिया था तब से बिना एंटी वायरस के बिंदास काम कर रहा था . सयानो की सलाह से उसमे एंटी वायरस वह भी खरीद कर डाला और उसे डालते ही एंटी वायरस ही उसका काल बन गया . आजतक वायरस जो नुक्सान ना पहुचा पाया वह एंटी वायरस ने पहुचा दिया . तमाम जरुरी दस्तावेज ,फोटो गायब हो गए जो अब कभी नहीं मिल पायेंगे .

खैर अब दुबारा से मै लौट आया हूँ .  सब तैयारी के साथ . आज २१ मई को दुनिया भी ख़त्म नहीं हुई . ना होने थी इसलिए एक डर भी निकल गया है कल आधी रात के बाद चली आधी और तूफ़ान ने एक बार को तो डरा ही दिया था . लेकिन दिल को  तसल्ली थी रजनीकान्त ने दुनिया बचाने के लिए अस्पताल में जाना स्वीकार कर लिया .

खैर अब दूबारा आ ही गए  तो मिलते रहेंगे

सोमवार, मई 02, 2011

ओसामा को जन्नत .............खुदा खैर करे

धोखा धोखा धोखा अपनो से धोखा ......... यह तो पाकिस्तान की नापाक आदत है . बेचारे ओसामा को जंगल और पहाडो से धोखे से मारने के लिए गद्दारों ने एबटाबाद में रिहायश देकर खुद ही मरवा दिया . कितनी नाइंसाफी है यह तो गद्दारी है इनका हिसाब तो क़यामत के दिन होगा . 

आज तो मुहर्रम सा लग रहा है . एक बार फिर से अपनो ने अपने को मरवा दिया . खुदा भी मुआफ नहीं करेगा इन्हें ..... अब जेहाद अपनो के खिलाफ करना पडेगा . अगर अपने ही धोखा नहीं देते तो यह कौम के गुनाहगार बाल भी बांका ना कर पाते . और अफ़सोस सबसे बड़ा यह भी अमरीका का राष्ट्रपति जो अपना ही था पहले अपने इलेक्शन जीतने के चक्कर में ओसामा  को शहीद कर दिया . खुदा इन्हें कभी मुआफ नहीं करेगा .

यही कुछ लिखना चाहता है बीबीसी शायद  इतनी शालीनता से ओसामा की मौत की खबर दी है उसने कमाल है .

बुधवार, अप्रैल 20, 2011

गिद्ध

इतना तो व्यस्त भी नहीं रहता कि ब्लॉग भी ना लिख सकू लेकिन थकान या कहे आलस्य हावी हो जाता है . ना लिखू तो कई विषय जो सामयिक है जिस पर लिखना चाहता हूँ वह पुराने हो जाते है . अन्ना हजारे की क़वायद भी मुझसे लिखने की रह गई . आज तक समझ नहीं पा रहा हूँ एक क़ानून कैसे भ्रष्टाचार को ख़त्म कर देगा . अगर कानूनों से कुछ होता तो पोटा से आतंक तो कब का हार चुका होता . 

भ्रष्टाचार हमारी जीवनशैली में सुविधानुसार समा चुका है . सिर्फ रिश्वत ही भ्रष्टाचार है यह मुझे कुछ बात हलकी लगती है . १०० में से सिर्फ १० या १५ रिश्वत जरूर माँगी जाती है और ८० से ९० बार हम लोग अपनी सुविधा के लिए रिश्वत देते है . ऐसा मेरा मानना है . 

खैर यह एक लम्बी बहस है मै तो मानता हूँ खुद  सुधरोगे जग सुधरेगा .  

और एक खबर आज अभी पढी अब गिद्धों की गिनती हो रही है . टाइगर तो गिन लिए थे पहले . अब गिद्धों का संरक्षण होगा . एक तरफ जन लोकपाल बिल और दूसरी ओर गिद्ध ...................... क्या सामंजस्य है . खैर उस दिन का बेसब्री से इन्तजार है जब भ्रष्टाचारियो का संरक्षण करना पडेगा जब यह खात्मे की तरफ हो . शायद यह मुमकिन नहीं लेकिन दिल बहलाने को यह ख्याल तो अच्छा है 

गुरुवार, अप्रैल 07, 2011

मिलिये एक नये ब्लागर से

मिलिये एक नये ब्लागर से . यह मेरा भान्जा है अक्षय  जिसने अभी +२ के पेपर दिये है . पढने मे बहुत तेज़ है क्लास १० मे उसने डिस्ट्रिक टॉप किया था . अभी डाक्टर बनने का इरादा है उसका .उसी की तैयारी में जुटा है . 

आजकल की युवा पीढी जैसी है वैसा ही है और वह अंगरेजी में सोचता  है और लिखता भी है  उसने अपने ब्लॉग का नाम रखा है SHARE YOUR TONGUE  

कृपया उसका मार्गदर्शन करे और उसका उत्साह बढाए .

बुधवार, मार्च 30, 2011

रुकावट के लिए खेद है

कभी कभी लगता है जिसने आपको लायक बनाया उसी का साथ पीछे छूट जाता है . मेरे साथ भी एसा हो रहा है . ज्यादा काम के कारण मै ब्लॉग से दूर हो रहा हूँ . अगर ज्यादा दूर हुआ तो कही एक दिन गुमनाम ना हो जाऊ इस ब्लॉग की दुनिया से ,इसी डर के कारण रात मै एक बार नींद उजड़ गई .तो जल्दी से चंद लाईने लिखने बैठ गया हूँ .

एक लाइन जो बचपन  से टीवी पर देखी थी ..... रुकावट के लिए खेद है . .........वह लिखने का मन कर रहा है ब्लॉग पर .......इसलिए  जल्द ही हाज़िर होते है ब्रेक के बाद . इंतज़ार कीजिये आज से अपना टाइम टेबिल सुधारा है 

गुरुवार, मार्च 10, 2011

चोरी लेकिन सीना जोरी से

आज पहली बार अपने नए प्रतिष्ठान से यह पोस्ट लिख रहा हूँ . पहले एक चर्चा छिड़ी थी कार्यस्थल से ब्लोगिंग क्या जायज है . यह सच है अगर मेरा स्टाफ यह करेगा तो मै परमीशन नहीं दूंगा . यहाँ तक की टीवी भी देखने की भी मनाही है स्टाफ को .खैर हेड होने का यह तो फ़ायदा है ही कोई आपको टोक नहीं सकता . आप सर है और आपके अंडर में आने वाले लोग आपको कुछ नहीं कह सकते क्योकि यह परम्परा है . 

दिन के चौबीस  घंटे कुछ कम पड़ने लगे है . बिलकुल घड़ी की सुइया हमें चला रही है . सब कुछ एक सा सब दिन एक सा . खैर ओखली में सर दिया तो मूसलो से क्या डरना .

तो कुछ दिनों तक यही चोरी चकोरी चलेगी . तब तक क्षमा सहित उनसे जो अपने ऑफिस से ब्लॉग नहीं लिख सकते .




शुक्रवार, मार्च 04, 2011

आप सादर आमन्त्रित है

मेहनत जब रंग लाती है तब अपने पर एक अज़ीब सा गर्व महसूस होता है . जबकि मै तो निमित्त मात्र हूं और दुनिया के इस रंग मंच पर अपनी भूमिका निभा रहा हूँ . उपाधिया बदल सी रही है पहले मै धीरू भैय्या कहलाता था अब धीरू सर कहलाया जा रहा हूँ कुछ लोगो द्वारा . 






कुछ इस तरह मेरा ऊपर भी मुलम्मा चढ़ रहा है . आजकल यहाँ ही कार्यरत  हूँ . यह सब ईश्वर की कृपा ,माँ पिता के आशीर्वाद , और मित्रो की सद्भावना  के बिना हासिल नहीं होता . 

६ मार्च को पूजा अर्चना के साथ हम इसका शुभारम्भ कर रहे है . आप सादर आमंत्रित है 
स्थान ;- कोरल मोटर्स 
             बरेली रोड 
             बदायूं 

गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

हम ब्लोगिग करते क्यों है ?

साहित्य के समकक्ष ब्लोगिग को लाने के प्रयास हो ही रहे है . मुट्ठी भी तन चुकी है . लेकिन एक  सवाल .......
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खुद अपने से और अपनो से -


हम ब्लोगिग करते  क्यों है ?

मंगलवार, फ़रवरी 08, 2011

बसंत पंचमी पर ३०० वी पोस्ट दरबार की

आज बसंत  पंचमी पर जब मैंने यू ही अपनी लिखी पोस्टो को गिना तो पाया २९९ हो गई . लगभग तीन साल हो गए इस ब्लॉग के आसमां में उड़ते हुए .अनजाने में ही वहा पहुच गया था एक दो दिन देखा तो लगा अपने दिमाग में उठते और मडराते विचारों की सेफ लैंडिग के लिए यह प्लेटफार्म ही सबसे उम्दा है . एक ब्लॉग बनाया नाम रखा दरबार , और ठेलने लगे अपने विचार . लोग आये पढ़ा और टिप्पणी मिली . कुछ भी कह ले नए ब्लॉगर के लिए ओक्सिजन का काम करती है टिप्पणीयाँ .

खैर यह ३०० वी पोस्ट लिखना मेरे लिए तो बहुत बड़ी उपलब्धि है . मैंने कोई काम इतना निरंतरता से नही किया यहाँ तक की राजनीति भी .आज से १२ साल पहले एक सत्ता धारी पार्टी का युवा मोर्चा का जिला अध्यक्ष रहा . सत्ता  को अपने हिसाब से चलाया . लेकिन मज़ा नही आया सब छोड़छाड़ बैठ गए घर जबकि राजनैतिक परिवार से हूँ .अब भी एक पार्टी का प्रदेश पदाधिकारी हूँ मंच पर शोभा बढाता हूँ लेकिन ...................... . इसी तरह पारिवारिक चलता हुआ व्यापार जब मेरे हाथ में आया तो वह असमय गति को प्राप्त हो गया . लेकिन ईश्वर का वरदहस्त मेरे साथ हमेशा रहा है .मेरे बारे में यह कहावत सच ही है खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान .

यह सब तो हादसे है लेकिन ब्लॉग लिखना मेरे लिए एक वरदान साबित हुआ .कैसे ....................... ब्लॉग ने मुझे सिखाया निरंतरता के क्या फायदे है . और आज मैं नियमित पाठक हूँ और लेखक भी .लेकिन अभी भी बहुत खामिया है मुझ में , हो सकता है इस जन्म में ही वह दूर हो जाए . ब्लॉग  लेखन ने मुझे एक इंडडिपेंडेंट पहचान दी . आज दुनिया के कई कोने में लोग मुझे मेरे कारण से  जानते है . अपने परिवार से हटकर भी मेरी एक पहचान है . या कहें मैंने अपने परिवार में एक नया परिवार और जोड़ दिया .

ब्लॉग के कारण ही मैं फिर से अपना व्यापार शुरू कर रहा हूँ . उसी कारण मैं थोड़ा व्यस्त हूँ . समय आभाव है . लेकिन जल्द ही सब स्मूथ हो जाएगा . 

आप का आशीर्वाद ऐसे ही मिलता रहे तो एक दिन आपको फक्र होगा कि वह धीरू है जिसे हम जानते है . 

सोमवार, फ़रवरी 07, 2011

बाप की अस्थिया

यह कहानी नही एक हकीक़त है .

हमारे शहर के पास रामगंगा नाम की नदी बहती है . जो की गंगा में जा कर मिल जाती है . हमारे यहाँ उसे गंगा का ही दर्जा प्राप्त है .
पड़ोस के शहर के  एक सर्राफा   व्यापारी के सगे बाप मर गए . व्यापार में फसे रहने के कारण बाप की अस्थिया विसर्जन करने का वक्त नही मिल पा रहा था . एक दिन बरेली आना हो रहा था व्यापार के सिलसले में तो उसने सोचा लगे हाथो बाप की अस्थियो को भी गंगा में समर्पित कर दिया जाए . सो बाप की अस्थिया जो लाल कपडे में थी रखी और अपने सोने चांदी के  जेवर जो लाल थैले में थे भी साथ रख लिए . और अपने नौकर के साथ कार में चला .

बेटा बाप की अस्थिया ले कर चला जब पुल पर पहुंचा तभी किसी का फोन आ गया उसने नौकर से कहा लाल थैले को गंगा जी में खोल कर सिरा दो . नौकर ने आदेश का पालन किया . बिना देखे थैला खोल कर गंगा जी में थैले का सामान सिरा दिया तभी जब उसकी नज़र पड़ी तब तक थैले में भरा सोना चांदी गंगा जी की भेट चढ़ गया . कहा तो जाता माल कई लाख रूपये का था

और पिता की आत्मा  शायद यह देखकर मुस्काराई जरूर होंगी . बेटे को इतनी भी फुर्सत नही मिली कि वह कार से उतर कर विधी विधान से अस्थियो का विसर्जन कर देता . 

रविवार, जनवरी 30, 2011

बापू को एक पत्र

आदरणीय बापू
सप्रेम चरण स्पर्श

बहुत सालो से आपको चिट्ठी लिखने का मन था . यह बता दू मैं आपका ५०% प्रशंसक हूँ और ५०% आलोचक .
 बापू अफ्रीका से जब आप आये थे तब भी आज़ादी का आन्दोलन उसी गति चल रहा था लेकिन सितारे आपके साथ थे और १८५७ से सतत लड़ने वालो को भूल कर सब आप पर फ़िदा हो गए . आप के कुशल नेतृत्व में आज़ादी की लड़ने वाली लडाइयां टेबिल पर आ गई .खैर बापू आपको चोरा चोरी की हिंसा तो दिखी लेकिन भगत सिंह और उनके साथियो की फासी हिंसा नही दिखी .

छोड़िये इन बातों को क्या फ़ायदा . बापू आज भी आप चर्चा में रहते हो आपका मीडिया मैनेजमेंट इतना अच्छा था कि आप को अमर कर गया . बापू एक बात माननी पड़ेगी आप को अमर करने में गोडसे की बहुत बड़ी भूमिका थी . अगर गोडसे आपके प्रति हिंसा का प्रयोग नही करता तो आपकी गति भी जिन्ना की तरह होती .

बापू कभी तो आप से मुलाक़ात होगी .तो होंगी बाते . लेकिन बापू अपने बारे में सच लिखना और वह सच लिखना जो आप ही जानते हो बहुत ही कठिन है या कहें असम्भव है . यही आपकी आदत आपकी बहादुरी को दर्शाती है .

बापू आज आपकी पुण्यतिथी पर आपको श्रधांजलि

आपका ही
धीरू


सेवा में,
महात्मा गांधी
जहाँ में जहा कही भी हो 

मंगलवार, जनवरी 25, 2011

गणतंत्र दिवस पर एक मांग -शहीदो के लिये एक हो स्मारक

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जब माहौल देश भक्ति से भरा नज़र आ रहा है बैठे ठाले एक बात कौंध रही है . कई सदियों की लड़ाई लड़ कर हम आज़ाद हुए . लाखो शहीद हुए तब मिली आज़ादी ना कि खडग बिना ढाल मिली यह आज़ादी . और उस आज़ादी को बरकरार रखने के लिए आज़ादी के बाद कई युद्धों में हमारे  हजारो वीर सैनिक अपनी जान की कुर्वानी दे चुके है .लेकिन आज तक हम उनका एक स्मारक ना बना सके . आज भी हम उस स्मारक  का इस्तेमाल कर रहे है जो विश्वयुद्ध में अंग्रेजो की तरफ से लड़कर मरे भारतीयों  का है



आखिर यह हमारी बीमार मानसिकता का परिचायक नही . हम अपने शहीदों को आज तक वह सम्मान ना दे सके जिसके वह हकदार थे . क्या एक स्मारक  उनका नही बन सकता जो आज़ादी के लिए सर्वस्य न्योछावर  कर गए . और जो आज़ादी को अक्षुण रखने के लिए शहीद हो गए . क्या राजपथ पर उनका हक़ नही . क्या यह अभिलाषा कभी पूरी नही होगी ? 

तो क्यों ना एक मुहीम चालू हो आज से एक स्मारक बने अपने लोगो का जो अपनो के लिए शहीद हो गए . अपने देश के लिए शहीद हो गए .  

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाये (?)उस संविधान  की भी जय हो जिसमे ९४ पैबंद (अब तक)

बुधवार, जनवरी 19, 2011

इस को क्या कहेंगे ....................... ममता या बलिदान

अभी अभी मैं एक नामकरण संस्कार की दावत खा कर लौटा हूँ . यह कोई ख़ास बात नही और ना ही ब्लॉग में लिखने वाली बात है लेकिन मुझे लगा कि इस दावत के बारे में बताना ही चाहिए . इसलिए मैं बता रहा हूँ .

करीब दस साल पहले मेरे एक जानपहचान वाले ने अंतरजातीय विवाह किया परिवार से खिलाफ जाकर . नव दम्पति जो पढ़े लिखे थे जीवन यापन के लिए गाँव में एक छोटा सा स्कूल खोला . कठिन परिस्तिथियों का सामना करके अपना संघर्ष शुरू किया . सफलता मिलती रही और आज वह दो बड़े इंटर कालेज चला रहे है . समय या कहें मिलती सफलता और धन ने फिर से सब रूठे रिश्ते मिला दिये .

लेकिन एक कमी थी सन्तान नही थी . पता चला कि पत्नी माँ नही बन सकती . लेकिन पत्नी को माँ का सुख चाहिए था इसलिए उसका एक फैसला निश्चित  ही चौकाने वाला था .पत्नी ने अपने पति की  दूसरी शादी कराने  की ठान ली . कल्पना  कीजिये कैसे वह क्षण होंगे . फिर शादी हुई और फिर पुत्र ...................... उसी बच्चे का आज नामकरण संस्कार था . और जो कार्ड छपा था उसमे दोनों माओं का नाम था .

यही बात मैं आपको बताना चाहता था . माँ की ममता ही कहेंगे इसे या ..............................

रविवार, जनवरी 16, 2011

दाता के सखी

अलाव के इर्दगिर्द बैठे हाथ  तापते लोगो की निगाहें आती जाती कारो को घूर रही थी शायद कोई दाता का सखी आज आये और कम्बल दे जाए . कम्बल से ठंड मिटाने का जुगाड़ तो हो ही जाएगा . खुसरपुसर हो ही रही थी तभी एक कार रुकी सेठ जी के ड्रायवर ने डिक्की से कम्बल निकाल कर उन तापने वालो को दिये और कार आगे निकल गई .

तापने वालो के हाथ उन कंबलो को टटोलने में लगे थे . एक ने कहा .... साले कम्बल बाट रहे है या चद्दर क्या कीमत होगी ६० रुपेय  क्या भला होगा एक पौआ  भी तो नही मिलेगा इसे बेच  कर . और ठण्ड में एक पौआ  से भी क्या होगा इससे अच्छा  तो कल वाला था कम से कम कम्बल तो ढंग का था पौआ  के साथ साथ अंडे  का भी जुगाड़ हो गया था . चलो दान की बछिया के क्या दांत  गिने इसी से काम चलाओ . फिर कोई दाता की सखी आयेगी हमें ठंड से बचाने . साले कम्बल दान कर रहे है अगर पौआ बाटे तो इनकी दो चार पुश्ते तक सबाब मिलेगा . 

बुधवार, जनवरी 12, 2011

???

मैं भूल गया लिखने को
या लिखना क्या है भूल गया
रोज़ की आपाधापी में
मैं अपने को भी भूल गया

रोटी की नही मुझको
अब भूख की तलाश है                                
क्या खाऊ अब भी
सबसे बड़ा सवाल है

शुक्रवार, जनवरी 07, 2011

अनुराग जी से मिलना और खुश्दीप जी से ना मिलना

लगभग  एक  साल  हो गया पोस्ट लिखे हुए .सन  2010 की दिसंबर ३१ को आखिरी पोस्ट लिखी थी . इस बीच पोस्ट पढी बहुत और लिखी एक भी नही . साल के शुरुआती दिनों में कई ब्लोगरों से मिलने का योग बना लेकिन समय अभाव में मिलना ना हो पाया . हमारे यहाँ एक कहावत है खरदा चलता नही तो नही चलता लेकिन चलता है तो सब मेढ़े तोड़ देता है . खरदा मतलब गधा .

कुछ दिन पहले समय ही समय था और अब समय बहुत कम पड़ गया मेरे लिए . एक जनवरी को मेरे पास खुशदीप जी का फोन आया कि वह स्वर्ग की साल में आ रहे है और मो सम कौन वाले संजय जी से पता चला अनुराग जी स्मार्ट इन्डियन  इंडिया में ही है और बरेली की ओर है . दोनों से मिलने की बात पक्की हो गई . लेकिन ........ खुशदीप जी बरेली में और हमें दिल्ली जाना पड़ गया . फोन पर ही मुलाक़ात हुई हाय हेलो करके हम दिल्ली चले गए . जान कर संतोष था अनुराग जी से मुलाक़ात हो ही जायेगी.

लेकिन समय अपनी चाल पर था हमें दिल्ली में एक दिन ज्यादा लग गया . जल्दी जल्दी में अनुराग जी से संपर्क किया तो पता चला वह एक दिन और बरेली में रहेंगे लेकिन मुझे उस दिन लखनऊ में रहना था . मिलने की उम्मीद धूमिल हो गई . मैं निराश अपने बदायूं स्थित प्रतिष्ठान  में बैठा था . अचानक मैंने अनुराग जी को फोन किया तो पता चला वह बदायूं आ रहे है और अपने पुश्तैनी गाँव को देखने जा रहे है . रास्ते में मैं मौजूद था अब मुलाक़ात पक्की थी . थोड़ी देर में अनुराग जी वही पहुच गए मुझसे मिलने साथ में उनके पिता जी और भाई साहब भी थे . कुछ पलो की मुलाक़ात हुई समय कम था और उन्हें अपने गाँव भी जाना था . बदायूं में मेरी हालत चमगादड़ सी रहती है और मेरे मेहमान भी उलटे ही लटके रहे . मैं अनुराग जी और उनके पिता जी व भाई का सत्कार भी ठीक तरह से ना कर सका . मेरा दुर्भाग्य है . लेकिन वह लम्हे यादगार रहेंगे हमेशा .