मंगलवार, सितंबर 30, 2008

२ अक्टूबर का सच (वर्तमान समय में )

हेलो बापू

कैसे है आप ? आप की कृपा से हम लोग तो बहुत मौज से है । आपका जन्मदिन आ ही गया समझो ,परसों है । बहुत बिजी हूँ आपके जन्मदिन पर होने वाली छुट्टी को कैसे सेलिव्रेट करू यह सोअच कर । आपके जन्मदिन पर होने वाली पूरी छुट्टी यह बताती है की आपने जरुर कुछ अच्छे से काम किये होंगे । काश ऐसे आप जैसे ४ या ५ लोग और हो जाते तो छुट्टी और मिलती ।

बापू एक बात समझ में नहीं आती उस दिन ड्राई डे क्यों होता है ,बहुत परेशानी होती है । पहले से ही इंतजाम करना पड़ता है पिछले साल बहुत परेशानी हुई थी ।

यह है मन की बात जो अधिकांश लोगो के मन में उमड़ रही होगी । यह सच है की अगर सार्वजानिक अवकाश न हो तो २ अक्टूबर का इंतजार कोई न करे । आखिर अभी कल या परसों हम लोग शहीद भगत सिंह का जन्मदिन याद नहीं रहा क्यिंकि उस दिन छुट्टी नहीं होती।

यह सच है नंगा सच और सच के सिवा कुछ नहीं । हम भूल चुके है बापू को .लाल बहादुर शास्त्री को , और इसके जिम्मेदार हम खुद है ।

कहा जाता है अपने बुजर्गो को भूलने वाली कौमे बहुत जल्दी भुला दी जाती है ।

सोमवार, सितंबर 29, 2008

दो लाशें चली ९ कोस एक रात में

मानो या न मानो सच है दो लाशें उस जगह से चली गई ९ लोस दूर जहाँ उनका कत्ल हुआ । यह कोई भूतिया कहानी नहीं ,कोई राम गोपाल वर्मा की पिक्चर का सीन नहीं ,यह एक बाजीगिरी थी थाना पुलिस की ।

बरेली के आवला थाने के अंतर्गत यह लोमहर्षक कृत्य स्थानीय पुलिस द्वारा किया गया । दो रिश्तेदार जो आपस में फूफा -भतीजे थे उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई और लाशें एक बाग में डाल दी गई । सुबह सेकडों लोगो ने लासों को देखा । लेकिन पुलिस ने उस दिन कोई कार्यवाही नहीं की । रात होते ही थाना पुलिस ने लाशों को उठवा कर सीमावर्ती जिले बदायु के थाना वजीरगंज के खेत में डलवा दिया ।

जाच के बाद लोगो की चर्चा के माध्यम से यह बात खुली । थाना आवला के सब इंस्पेक्टर को निलंबित कर दिया गया ।

प्रश्न यह है लाशों की बेकद्री का जुम्मेदार कौन है ,यह पहली बार नहीं हुआ है । ऐसा होता ही रहता है अपने थाने का क्राइम कंट्रोल करने के लिए लाशों और भुक्तभोगी पीडितों को थाने थाने घूमना पड़ता है ।

रविवार, सितंबर 28, 2008

आतंकियो आओ हमें मारो क्योंकि हम इस लायक है

आतंकियो की सक्रियता को सलाम
आतंक के झंडा बरदारो तुम्हारी निरंतरता के हम कायल हो गए । बिलकुल निश्चिंतता से कार्य करने के लिए साधुबाद । हमें मारो और मारो हम तो मरने के लिए ही है । क्योंकि महाभारत काल से ही भाई भाई को गोली मार रहा है ऐसा हमारे गृह मंत्री का कहना है ।


ध्यान रहे किसी विशिष्ट लोगो पर गलती से भी बम्ब मत मारना इससे शायद तुम लोगो को कुछ परेशानी हो । पुलिस का मनोबल तो हम जैसे लोग तोअड चुके है मुठ भेड पर प्रश्न चिन्ह लगाकर । कोई पुलिस वाला क्यों शहीद होगा जब उस पर आरोप लगे ।

हम लोग ने अपना काम कर दिया है अब आपको डरने की जरुरत नहीं आओ हमें मारो हम मरने के ही लायक है।क्योंकि आप के कृत्य के बाद हम चर्चा करते है पोटा पर ,कानून पर । क्योंकि हमारे हुक्मरानों को वोट की चिंता है । और आप पर कार्यवाही वोट पर फर्क डाल सकती है । इसलिए आप अपना काम करो ।

हमे मरना है क्यों न आपके हाथ मरे । आपके द्वारा मरने से सरकार से मुआबजा तो मिलेगा ।

शनिवार, सितंबर 27, 2008

शहीदे आज़म भगत सिंह की जयंती पर मुबारकां











शहीदे आज़म भगत सिंह की जयंती पर हर हिन्दुस्तानी को मुबारकां । आओ उनकी भी याद करे जो शहीद हो गए हमारे लिए ।

गुरुवार, सितंबर 25, 2008

आतंक, के अलावा और भी गम है ज़माने में

पहले बाढ़ फिर बम उससे पहले सिंगूर ,संसद में लूट ,नॉएडा यानि समाचार और चर्चाये करेंट टोपिक्स पर ही होती है । इन सब में महत्वपूर्ण मुद्दे जिनको जरुरत है ध्यान देने की पीछे छूट जाते है । और हम लोग एक ही मुद्दे के पीछे पड़ जाते है उसी पर टिपणी उसी पर कहानी उसी पर चर्चा उसी पर चिट्टा ।

आज कोई किसानो की बात नहीं कर रहा ,गरीबो की बात नहीं कर रहा ,गाँव की चर्चा में तो शायद बदबू आती है इसलिए यह तो पूरी तरह वर्जित । क्यों तथाकथित बुद्धिजीवी शबाना के घर के लिए चिंतित तो थे लेकिन गाँव,गरीब, किसान, झुग्गी झोपड़ी के इंसान के लिए उनकी रूचि नहीं दिखती ।

अनाज महंगा हो गया ,सब्जी महंगी हो गई ,दाले महंगी हो गई लेकिन कभी इसके पीछे यह देखा जो इनको पैदा कर रहा है उसकी लागत तो बढ गई लेकिन उसकी आमदनी तो घट गई । मुनाफा किसकी जेब में गया इस पर कोई चर्चा नहीं होती जो होनी चाहिए ।

अमीर और ज्यादा अमीर ,गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है । वह तो गरीबो की कोई फोर्ब्स मेगजीन नहीं है अगर होती तो पहले से आखिरी नंबर तक भारतीय ही होते । हम कंप्युटर पर उंगली चलाने वाले लोग सिर्फ एक ही ओर दौड़ लगाते है । कभी इस ओर भी ध्यान दें।

मुझे मालूम है बहुत लोग यह सब बकबास समझ कर इस को पढने में अपना समय जाया नहीं करेंगे । लेकिन एक बात मान लीजिये जब गरीब की हाय नहीं सुनी जाती तब क्रांति होती है ,ओर क्रांति की आग हम वातान्कुलित कमरों में बैठ कर खाली दिमाग दौडाने वाले को जायदा तपिश देगी ।

बुधवार, सितंबर 24, 2008

लड़ के लिया पाकिस्तान ,हस के लेंगे हिंदुस्तान

यह जिन्ना के चेलो का एक नारा था " लड़ के लिया पाकिस्तान -हस के लेंगे हिंदुस्तान " और इसी मिशन पर चल रहा है आतंकबाद ,और उसे इधन दे रहे है हम । हमारी कायरता का कारण हमारी तथाकथित सहनशीलता है । और हम संवेदनहीन हो गए है हमें कोई चिंता नहीं आतंक वादियों का शव लेने बुखारी जाता है

कोई प्रतिक्रिया नहीं कोई क्रिया नहीं । हम भूल चुके है देश प्रेम भी कोई वस्तु है । हम आतंक को इसलिए बुरा नहीं कहते कि हमारी धर्म निरपेक्ष छवि पर दाग लग जायगा । एक रुबिया के बदले आतंकवादियों को मुक्त करा कर हमने एक राह दिखाई ,विदेशी आतंकियों को सुरक्षित मार्ग दिया जिन्होंने हज़रत बल मस्जिद में आग लगा दी । संसद हमले के अरोपिओं को बा इज्ज़त रिहाई , यह वोह फाँसी के फंदे है जो हम अपने गले में डाल चुके है।

हम क्यों नहीं सीख लेते है इस्राइल से जो अपने एक नागरिक को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देता है । हम कमजोर मानसिकता के साथ यह लडाई लड़ रहे है । अपने शहीदों का अपमान सह लेते है अगर यही हाल रहा तो जिन्ना का सपना पूरा हो ही जायेगा कि
लड़ के लिया पाकिस्तान -हस के लेंगे हिंदुस्तान

मंगलवार, सितंबर 23, 2008

ऐसा प्रेम ही पूजा जाता है .

राधे -राधे जपे चले आएंगे बिहारी । क्यों ! राधा ही कृष्ण की परम प्रिये है क्यों ! एक कथा



तीनो लोको में राधा की स्तुति हो रही थी , देवर्षि नारद को लगता था वह ही कृष्ण के सच्चे भक्त है और उन से ज्यादा प्रेम कोई नहीं करता। यही पीडा मन में दवाये वह श्री कृष्ण के पास पहुचे वहां देखा प्रभु दर्द से कराह रहे है। नारद ने पूछा भगवन क्या इस वेदना का कोई उपचार नहीं? क्या यह मेरे ह्रदय के रक्त से शांत नहीं हो सकता?



कृष्ण ने उत्तर दिया 'मुझे रक्त की आवश्यकता नहीं यदि मेरा कोई भक्त अपना चरणोदक पिला दे तो यह वेदना शांत हो जायेगी । यदि रुक्मणी अपना चरणोदक पिला दे , तो शायद लाभ हो सकता है ।



नारद ने सोचा भक्त का चरणोदक भगवान् के श्री मुख में । रुक्मणी के पास जाकर पूरा हाल बताया ,सुन kar रुक्मणीजी बोली 'नहीं देवर्षि मैं यह पाप नहीं कर सकती ' नारद ने लौट कर यह भगवान् को सुनायाकबताई। तब कृष्ण ने नारद को राधा के पास भेजा ।



राधा ने जैसे ही बात सुनी तो तुंरत एक पात्र में जल लाकर अपने दोनों पैर डुबो दिए और नारद से बोली 'देवर्षि इसे तुंरत कृष्ण के पास ले जाईए । मैं जानती हूँ कि इससे मुझे नरक मिलेगा ,किन्तु अपने प्रियेतम् के सुख के लिए मैं अनंत युगों बात यातना भोगने को प्रस्तुत हूँ । ' यही सुन कर देवर्षि समझ गए कि तीनो लोकों में राधा के ही प्रेम की स्तुति क्यों हो रही है ।

सोमवार, सितंबर 22, 2008

मेड इन चाइना से बच के रहना

चीन का सामान पूरे विश्व में इतना सस्ता बेचा जा रहा है कि वह उस देश में बने सामान की लागत से भी कम में उपलब्ध है । सस्ते के चक्कर में लोगो ने गुडवत्ता से भी समझोता कर लिया । पर एक चौकाने वाली रिपोर्ट आंख और कान खोलने की लिए काफी है ।
अंतर राष्ट्रीय बाज़ार में चीनी प्रोडक्ट अपनी विश्वसनीयता लगातार घट रही है । चीन के खिलोनो को लेकर दुनिया भर में उनकी हयजिन पर प्रश्न चिन्ह लग चूका है। वह बच्चो के लिए खतरनाक साबित हो चुके है । और बच्चो का दूध पाउडर भी जहरीला साबित हुआ है । फ्रांस और जापान में भी चीनी उत्पादों को लेकर शिकायत मिली है ।
फ्रांस में चीन में बनी कुर्सिया विषाक्त पाई गई है । इन कुर्सियो पर बैठने वाले लोगो ने अलेर्जिक खुजली और संकर्मण जैसी समस्याए बताई है । पेरिस के केरोलिन मोरिन ने बताया है कई महीनो से उसे त्वचा सम्वन्धी कुछ समस्या थी । वह यह जानकार वह सन्न रह गई कि उसकी समस्या के पीछे चीन की बनी कुर्सी थी जो पिछले दिसम्बर में खरीदी थी । चीन में बनी कुर्सियो का इस्तमाल करने वालो को एक्जीमा की शिकायत पाई गई ।
फ्रांसीसी वितरक कोंफोर्मा ने अपने ग्राहकों को चेतावनी दे दी है ,और चीनी ब्यापार से तौबा कर ली है । और जापानी कम्पनी ने भी यही किया है।
और हम लोग क्या कर रहे है कब तक सोचेंगे। इस चीन के चक्कर से हम भी तौबा कर ले .यह तो हमारे लिए भी नुकसानदायक है और हमारे देश के किये भी ।

रविवार, सितंबर 21, 2008

मानो या न मानो . डाक्टर भी ऐसे होते है .

ऐसा भी हो सकता है ? नही ! सच ! यही हुआ एक न्यूज़ पढ़ के , समाचार था एक बड़े दिल वाले डाक्टर का । डाक्टर है बंगलुरु के नारायण ह्रदयालय के डाक्टर देवी प्रसाद शेट्टीउनका सिदांत है "अगर आपके पास पैसे है तो दीजिये और पैसे न होने पर इलाज मुफ्त में किया जाएगा । "

लोकप्रिय डाक्टर शेट्टी को लोग डाक्टर हार्ट भी कहते है। उनके अस्पताल में रोज़ लगभग ३० हार्ट सर्जरी होती है। गरीबो के मसीहा ही कहा जाएगा ऐसे डाक्टर को ।

दुनिया में सबसे सस्ता और अच्छा इलाज यही पर है। हार्ट सर्जरी की फीस सिर्फ़ ६०००० रुपए । और इसको भी ३५००० रुपए करने का प्रयास चल रहा है। और जगह का खर्चा कम से कम १५०००० रुपए है।

काश ऐसे डाक्टर हर प्रदेश में एक या दो हो जाऐ तो देश का एक दर्द तो दूर हो जाए । सस्ते इलाज का जो हर नागरिक का मौलिक अधिकार है । डॉ शेट्टी जिंदाबाद ,लगे रहो डाक्टर

(पूरा समाचार दैनिक जागरण झंकार में शिखा शुक्ला द्वारा )

शनिवार, सितंबर 20, 2008

आतंक पर अभिनय बंद हो .

क्या कोई कानून आतंक पर रोक लगा सकता है ? बिलकुल वैसा ही प्रश्न क्या कोई तलवार स्वयं किसी पर वार कर सकती है ? उत्तर सिर्फ एक नहीं बिलकुल नहीं ।

क्यों जब कोई आतंकी वारदात होती उसी समय इस तरह के बेहूदी चर्चा होने लगती है । विरोध के लिए सिर्फ विरोध कहाँ तक ठीक है । पोटा लागू हुआ किस पर लगा, रघुराज सिंह और वाइको पर । क्या हुआ ,कुछ नहीं सिर्फ राजनीति केवल राजनीति ।

आतंक सिर्फ एक हथियार से कम हो सकता है वह है 'इक्छाशक्ति' । अगर राजनीति से थोडा ऊपर उठ कर सोचे तो यही एक हथियार है जिससे आतंक का अंत किया जा सकता है ।

आतंकवादी के प्रति नरमी सिर्फ इसलिए की वह अल्पसंख्यक हो सकता है यह ठीक नहीं ,और हिंदुस्तान में सब आतंकी मुसलमान हो यह भी सच नहीं । माओवादी ,नक्सलवादी ,जो पूर्वोत्तर से दखिन तक जो फैले है वह मुसलमान नहीं है यह सत्य है ।

आतंक को धर्म के चश्मे से न देखा जाये तो हिंदुस्तान की सेहत के लिए ठीक रहेगा । आतंकी सिर्फ आतंकी होता है ,उसकी गोली हिन्दू या मुसलमान का सीना नहीं देखती गोली जिस सीने पर लगती है अपना काम कर देती है। आतंक को महिमामंडित न करे ।

सब हिन्दुस्तानी मिल कर सोचे ,एक स्पष्ट नजरिया रखे तब ही इस दानव से पार पा सकेंगे । सब अपनी जिमेदारी महसूस करे ,चाहे वह नेता हो ,मीडिया हो ,आम आदमी हो ।

बहुत हो चुका अभिनय बंद हो , आरोप -प्रत्यारोप बंद हो ,तथाक्तित मानवाधिकार के हिमायतियों पर रोक लगे, हो सके तो कुछ ठोस कदम उठे जिससे कुछ तो शांति मिले । आतंक के खिलाफ जेहाद या कहो धर्म युद्ध शुरू होना चाहिए ।

गुरुवार, सितंबर 18, 2008

शीर्षक में ही तो सब कुछ है

समय चाहिए जो लिखा है उसे पढने के लिए ,जो पढ़ा उसे समझने के लिए । लेकिन हम तो आकर्षक शीर्षक को देख कर उसे पढ़ लेते है चाहे उसका स्तर कैसा भी हो । और गंभीर विषय अगर शीर्षक विहीन है तो उस ओर हमारी नज़र जाती ही नहीं है ।
क्या करे प्रचार का जमाना है भाई -अंडर बिअर बेचने के लिए बन्दर की फंतासी होना जरूरी है ,कहे तो तोइन्ग होना जरुरी है । ओर हम उसी ओर दौड़ रहे है ,और चरचे भी उन्ही के हो रहे है जो चर्चित शीर्षक का उपयोग कर रहे है ।
अपनी आप बीती बता रहा हूँ बेकार की तुकबंदी ज्यादा लोगो ने सराही ,और किसानो का दर्द किसी को आकर्षित नहीं कर पाया ।
समय के साथ चलने की मझबुरी हमें गंभीरता से दूर कर रही है । बिलकुल वैसे ही जैसे कवियो की जगह लाफ्तारोने ले ली । मुझे यकीन है यह भी न पढ़ा जायगा और टिपण्णी की तो बात ही न करे ।

आओ मौत को जाने करीब से

कैसी दिखती है मौत क़रीब से?
मौत के क़रीब पहुँचने का अनुभव कैसा होता है यह जानने के लिए डॉक्टर दिल का दौरा झेल चुके लोगों के बीच एक बड़ा अध्ययन करने जा रहे हैं.
ब्रिटेन और अमरीका के 25 अस्पतालों के डॉक्टर ऐसे 15 सौ लोगों से उनका अनुभव पूछेंगे जिनके दिल ने धड़कना बंद ही कर दिया था या मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था और फिर उनका जीवन लौट आया.
डॉक्टर जानना चाहते हैं कि क्या ऐसे लोगों को अपने शरीर से बाहर भी कोई अनुभव हुआ था.
ऐसे अनुभव से गुज़र चुके कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने गुफ़ा देखी या फिर तेज़ रोशनी. जबकि कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने ऊपर से मेडिकल स्टाफ़ को देखा.
तीन साल में होने वाले इस शोध का संयोजन साउथैंपटन यूनिवर्सिटी करेगी.
इस प्रयोग के लिए ऐसी जगहों पर तस्वीरें लगाई जाएँगी जो सिर्फ़ छत से दिखाई पड़ सकती है.
इस शोध का नेतृत्व कर रहे डॉ सैम पार्निया का कहना है, "यदि आप ये दिखा सकें कि मस्तिष्क के काम करना बंद करने के बाद भी किसी की चेतना बची रहती है तो एक संभावना यह दिखती है कि चेतना कोई अलग ही चीज़ है."
उनका कहना है,"इसकी संभावना बहुत कम है कि ऐसे बहुत से मामले मिलें लेकिन हमें अपना दिमाग खुला रखना होगा."
वे कहते हैं, "यदि उस तस्वीर को कोई नहीं देख पाता है तो यह मानना ठीक होगा कि लोगों ने जो अनुभव बताए वो केवल भ्रम थे या फिर कोई झूठी याद है."
डॉ पार्निया का कहना है कि यह एक रहस्य है लेकिन लेकिन अब इसका वैज्ञानिक परीक्षण किया जा सकता है.
सघन चिकित्सा कक्ष में काम करने वाले डॉ पार्निया का मानना है कि मौत के क़रीब पहुँचने पर होने वाले अनुभवों को लेकर वैज्ञानिक क्षेत्र में बहुत अधिक काम नहीं किया गया.
मौत की प्रक्रिया
उनका कहना है कि आम तौर पर माना जाता है कि मौत का कोई एक क्षण होता है लेकिन ऐसा है नहीं.
वे कहते हैं, "यह एक पूरी प्रक्रिया होती है जिसमें पहले दिल धड़कना बंद करता है, फिर फेफड़े काम करना बंद करते हैं और फिर मस्तिष्क काम करना बंद करता है...यह एक चिकित्सकीय स्थिति है जिसे हृदयाघात कहा जाता है."
डॉ पार्निया कहते हैं कि हृदयाघात के दौरान ये तीनों परिस्थितियाँ मौजूद होती हैं.
उनका कहना है कि उसके बाद एक ऐसा समय शुरु होता है जब चिकित्सकीय उपायों से दिल की धड़कन को शुरु किया जा सकता है और मौत की प्रक्रिया को रोका जा सकता है. यह समय कुछ सेकेंड का भी हो सकता है और एक घंटे का भी.
वे कहते हैं, "हृदयाघात के दौरान लोगों का अनुभव एक मौक़ा देगा कि हम समझ सकें कि मौत की प्रक्रिया के दौरान का अनुभव कैसा होता है।" (बी बी सी से साभार )

बुधवार, सितंबर 17, 2008

प्रभु कि माया ,गूगल कि छाया

मैं लिखता था कागज पर वह रद्दी बन कर फिक जाता था,
लेखक का बेटा न था ना आलोचक मेरा चाचा था
मुझ जैसा हर एक यही प्रार्थना करता था
कुछ तो ऐसा करो प्रभु
कि हमको भी कोई रास्ता मिले जाये
हमारी भावना को भी कोई पढ़ने वाला मिल जाये
प्रभु ने तब ऐसा वरदान दिया
गूगल को ब्लॉग बनाने का आदेश किया
हम जैसो को एक हथियार दिया
आज हम जो चाहते है वह लिखते है
दो -चार हमें भी पढ़ते है


गुनाहों को छिपाओ श्राद्ध मनाओ

श्राद्ध बड़े श्रद्धा के साथ मना रहे है ,
अपने पितरो को हलुआ पूरी खिला रहे है ,
पंडितो को दान ,कौओं को दावत ,
समाज में अपना रुतबा बड़ा रहे है ।
जिन्दा थे जब पितृ तो पानी भी न दिया ,
तड़प तड़प के मर रहे थे तब सहारा न दिया ,
आज अपने गुनाहों को छिपा रहे है ,
श्राद्ध बड़े श्रद्धा के साथ मना रहे है ।

मंगलवार, सितंबर 16, 2008

सुप्रीम कोर्ट की जय हो .

एक फैसला सुप्रीम कोर्ट का उच्च शिक्षण संस्थान में बी सी की खाली पड़ी सीटो को सामान्य बर्ग से भरी जाय । ५ न्याय धीशो की संविधान पीठ में से ३ न्यायधीशो के द्वारा यह फैसला हुआ । प्रो- इन्द्रसेन की याचिका पर हुआ फैसला आरक्षण नीति को एक नयी दिशा प्रदान करेगा ।



ऐसे कई छेत्र है जहा आरक्षण की हुई जगह खाली है अरक्षित वर्ग के अभ्यर्ति है ही नहीं और सामान्य वर्ग को वहां उनकी नहीं मिल पता था । आज एक रौशनी की किरण दिखाई दी है सामान्य वर्ग के होनहारों के लिए

सोमवार, सितंबर 15, 2008

उठो जवान

पुकारता तुम्हे वतन बाँध शीश से कफ़न
उठो जवान देश के उठो गुमान देश के
खीच लो क्रपांड सुप्त म्यान में है जो पड़ी
आज आ गई है तेरे इम्तेहान कि घडी
उठो प्रयलय कि आग बन
आंधियो का राग बन
झनझना उठे जो आज वीरता की हर लड़ी
उठो श्रमिक ,उठो पथिक ,उठो जवान देश के
आसमान देश के उठो गुमान देश के
(यह वीर रस की कविता बचपन में याद की थी । और आज भी प्रासनगिक

रविवार, सितंबर 14, 2008

जबाब दो हिन्दुस्थान में हिन्दी दिवस का क्या औचित्य है ?

हिंदुस्तान में हिन्दी दिवस क्या औचित्य है ? इसका जबाब चाहिए उन हिन्दी प्रेमियो से
जो हिन्दी दिवस को दिल से मनाते है । क्या हिन्दी दिवस हिन्दी की दुर्दशा का दर्द
कुछ कम कर देता है ? मेरा तो मानना है हिन्दी दिवस को हिन्दी के पुण्य स्मर्ति दिवस के रूप में
मानना चाहिए और श्रधांजलि सभा करके हिन्दी के लिए दो मिनट का मौन

शनिवार, सितंबर 13, 2008

लॉन्ग लिव हिन्दी लेट्स हिन्दी डे सेलिब्रेट

ओह गोड कल सन्डे एंड हिन्दी डे कैसे करे सलेब्रेशन थिंक ? बॉस ने कहा
सर एक सजेस्शन क्यों न हिन्दी डे इव करे ,एंड सन्डे को होलीडे ही रहने दे । सेकेट्री
गुड वैरी गुड क्या प्रोग्राम करे थिंक ?
एक हिन्दी के रिटाएर टीचर को बुके एंड गिफ्ट प्रेसेंट कर देंगे ,ओल्ड हिन्दी डे के बैनर साफ़ करके लगवा देंगे । आल स्टाफ मीटिंग विथ हाई टी , एंड अ प्रेस रिलीज़ विथ फोटो इससे जायदा हिन्दी डे पर क्या करे
ओ.के .एक मेरे लिय स्पीच रेड्डी करो उसमे हिन्दी की इम्पोर्तांस के बारे में लिखना
प्रोग्राम स्टार्ट एंड बॉस स्पीअच बीगन

रेस्पेक्टेड़ गुरु जी एंड आल ऑफ़ माय कुलीग्स , आज हम हिन्दी डे इव स्लिब्रेशन कर रहे है ,हिन्दी हमारी नेशनल लेंग्वेज ही नहीं हमारी मदर टंग भी है । कितनी ब्यूटी फुल बात है ऑवर चिल्ड्रन रीड हिन्दी । इन द प्रोग्रेस ऑफ़ हिन्दी हमको एवेरी मोंथ हिन्दी डे सलिब्रेट करना चाहिए । बिदआउट हिन्दी हमारी प्रोग्रेस नहीं हो सकती है बी काज इफ वी नॉट रेस्पक्ट ऑवर नेशनल लैंग्वेज वह नेशन को क्या प्रोफिट करेंगे । बेल प्रोग्राम मं पर्तिस्पेट के लिए थैंक्स ,एंड टेक क्येर । प्लीअज हाई टी वेटिंग यू ।
लॉन्ग लिव हिन्दी

शुक्रवार, सितंबर 12, 2008

अब क्या करेंगे मनमोहन सिंह

'ईंधन आपूर्ति की क़ानूनी बाध्यता नहीं'
अमरीका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने यह कहकर भारत को चिंता में डाल दिया है कि परमाणु की ईंधन की 'आपूर्ति की क़ानूनी बाध्यता नहीं है'.
बुश ने भारत के साथ हुए 123 समझौते को अमरीकी संसद में रखते हुए ये विचार व्यक्त किए हैं.
एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में बुश के इस विचार पर आश्चर्य प्रकट किया है और माना जा रहा है कि भारत जल्द ही अमरीका से स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहेगा.
भारतीय सूत्रों का कहना है कि 123 समझौते में स्पष्ट लिखा है कि इसके लागू होने के बाद भारत को परमाणु ईंधन की अबाध आपूर्ति कराना अमरीका की ज़िम्मेदारी होगी.
भारत अमरीका परमाणु समझौते पर क़रीब से नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन कहते हैं, "समझौते में साफ़ लिखा है कि ईंधन की आपूर्ति क़ानूनी बाध्यता है, अगर बुश इससे मुकर रहे हैं तो भारत के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करना बहुत मुश्किल हो जाएगा."
123 समझौते के मुताबिक़ यह अमरीका की ज़िम्मेदारी होगी कि वह 'अंतरराष्ट्रीय परमाणु ईंधन बाज़ार से निर्बाध रूप से पर्याप्त कच्चा माल भारत को उपलब्ध कराने में' मदद करेगा.
इससे पहले भी इस तरह की स्थिति पैदा हो चुकी है जब अमरीकी विदेश विभाग की एक चिट्ठी मीडिया में लीक हो गई थी जिसमें कहा गया था कि अगर भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो अमरीका परमाणु ईंधन की सप्लाई बंद कर देगा.
बी .बी.सी हिन्दी से साभार

आओ बच्चन -ठाकरे वाला खेल खेले

आओ एक नया खेल खेले
एक का नाम बच्चन ,एक टीम का नाम ठाकरे रख ले
खेल बहुत मजेदार है
करना सिर्फ़ एक दूसरे का प्रचार है
एक दूसरे को यह है करना
बिना बात के ऐसा माहोल पैदा करना
कि दुनिया समझे आपस में लडाई है
फ्री में हो प्रचार अपना
सिर्फ़ इस खेल में यही एक भलाई है ।

गुरुवार, सितंबर 11, 2008

बेचारा किसान (भाग -१)

बेचारा किसान (भाग -१ )
मारुती ८०० -१९९४ में जितने रूपए की थी आज २००८ में भी उसकी कीमत लगभग उतनी ही है । तबसे लोहा ,प्लास्टिक ,अल्मोनियम ,टायर मतलब हर उस वस्तु के दाम बड़े और कई गुना बड़े जो कार बनाने के काम आती है । न सरकार ने तब और ना अब उसका मूल्य घोषित किया ना उसकी लागत देखी।
लेकिन सरकार किसानो की खून -पसीने की मेहनत और उसकी लागत और उसके जोखिम की अनदेखी कर उसकी उपज का मूल्य घोषित कर देती है, क्यों ? क्योंकि बेचारे किसान की बात या कहे उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं । जो आवाज़ उठाते है वह कुछ दिन बाद सत्ता के गलिआरों में भटक जाते है या कहे सत्ता के हरम में शामिल हो जाते है या उने खारिज करके मजबूर कर दिया जाता की वह घर बैठे । दुर्भाग्य है किसानो का संसद में जाने वाले हर सुबिधा तो याद रखते है लेकिन जिन किसानो के वोट लेकर वहा गए उनको भूल जाते है ।
किसानो की कोई एसोचेम या फिक्की जैसी संस्था नहीं जो देश के लीडर या ब्यूरोक्रेट को फाइव स्टार होटल में सेमीनार करके अपनी परेशानी बताय और चुनाब में मोटा चंदा देकर अपना फायदा पाए ।
आज गन्ना की बात है तो सुप्रीम कोर्ट तक को दखल देना पड़ रहा है ,और सरकार व गन्ना मिल मालिक उन निर्देशों को हवा में उदा दे रहे है क्योंकि भाई चंदा चाहिए उसी रूपए से तो वोट खरीदेंगे किसान का
मेरी समझ से किसानो की दुर्दशा का जिम्मेदार किसान खुद है क्योंकि जो अपने अधिकारो के प्रति सजग नहीं उसका कुछ नहीं हो सकता ..........

बुधवार, सितंबर 10, 2008

अपनी इलैक्ट्रिक मीडिया कब होगी बालिग

एक -दो चैनलों को छोड़ कर सब दुनिया ख़तम करने पर आमादा थे । बच्चे स्कूल जाने से डर रहे थे ,बड़े चर्चा कर रहे थे । खेत की मेड हो या कारपोरेट आफिस एक ही बात क्या दुनिया ख़त्म हो जायगी ?न दुनिया ख़त्म हुई और १० -२० हज़ार साल तक तो न खत्म होने की कोई उम्मीद है ।
लेकिन ब्रेकिंग न्यूज़ ,सनसनी टाइप खबरे इतना आतंक फैला देती है कि लगने लगता है सब कुछ खत्म । कोई तो तरकीब निकली जाए जिससे हमारी मीडिया कुछ तो बालिग़ हो ।
अमरीका में ९/११ होता है तो हवाई जहाज टावर से टकराते तो दिखा लेकिन कोई लाश नहीं दिखती । कैटरिना हो या गुस्ताब नुक्सान तो दिखा लेकिन तैरती लाश नहीं । और अपने यहाँ तो सिर्फ लाशें , सड़ी-गली लाशे । देखे बिहार की बाढ़ ,कोई आतंकवादी हमले की तस्वीरे हर तरफ खौफ ।

मंगलवार, सितंबर 09, 2008

हिन्दी -चीनी भाई -??


जब -जब हिन्दी चीनी भाई भाई की उम्मीद होती है तब -तब चीनी लोग मुह कडबा कर देते है । आखिर पंचशील का क्या हुआ सिर्फ एक पंचशील रोड और एक पंचशील एन्क्लेव वह भी दिल्ली में ।
चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत उसके बराबर आये ,वह तो यह भी भूल गया होगा १९४५ में भारत ने ही उसे राष्ट्र संघ में सदस्यत्या दिलवाई थी ।
यह तो पुरानी बाते है ख़ाक डालिए ,नई बातो पर गौर करे -
अभी ताज़ा ताज़ा चीनी हरकते पहले अपने मानस पुत्रो (कम्निष्ठो) से १२३ का विरोध ,सरकार गिराने की कोशिश , इसमें कामयाबी न मिली तो युरेनिम आपूर्ति कर्ता देशो में परदे के पीछे भारत का विरोध ,लेकिन एक बड़े बाज़ार भारत को खुश करने के लिए अमरीका ने पूरा जोर लगाया ओर विअना में उसने अपनी इज़त बचाई । ओर परमाणु करार के बाद चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा भगवान् बचाय अपने देश को ..........

सोमवार, सितंबर 08, 2008

ऐ खुदा

ऐ खुदा
इंसानियत ,ईमान ,खुद्दारी ,इज्ज़त ,एहतराम
को दाखिल किताबी कर दे
इसे ज़माने में सिर्फ इतना कर दे
दूसरो की ख़ुशी अपनी से लगे
और उसके गम हमें ग़मगीन कर दे
ऐ खुदा सिर्फ इतना कर दे

रविवार, सितंबर 07, 2008

मेरी समझ

ईश्वर

* एक शक्ती है जो पूरे ब्रह्माण्ड को गति प्रदान करती है
*निराकार है ,सर्वशक्तीमान है , व्यापक है ,दयालू है
* हर देश ,धर्म , व्यक्ति द्वारा अपनी सोच से परिभाषित है
* जन्मदाता है ,पालक है ,संहारक है
* एक विश्वास है

धर्म

* एक आस्था है
*जिंदगी जीने की कला है
*एक ज्ञान दायी संस्था

जाति

*अपने को श्रेष्ट सिद्ध करने का हथियार

राम

हम
राम के वंशज
इस तरह नपुंसक हो जाएँगे
अपने राम के अस्तित्व पर लगा प्रश्न चिन्ह
चुपचाप सह जायेंगे
क्यों नही आंदोलित करती हमें यह बातें
क्यों हमारा खून उबाल नही खाता है
कुछ कारोबारी नेताओ के अलावा
देश का दूसरा नेता इस बात को क्यों नही उठाता है
हजारो मील दूर छपा कार्टून
देश को भड़का सकता है
हमारे विश्वास के साथ बलात्कार करने वाला
भी तो सज़ा पा सकता है
ढोंग बंद करो ,मंदिरों मे जाना बंद करो
यदि राम की मर्यादा को बरकरार नही रख सकते
तो राम को पूजना बंद करो

शुक्रवार, सितंबर 05, 2008

वी .ऍम .डव्लू. कांड का फैसला

अदालत का फैसला आ गया ,सज़ा हो गई ५ साल की । ९ साल के बाद आया फैसला लेकिन आया तो न जाने कितने लोग इन्साफ की आस लिए चले जाते है और लौट के कभी नही आते । एक सकून तो मिला होगा उन को जो कुचल गए थे । चलो इन्साफ तो हुआ जैसा भी ,जैसी भी परस्थितियो में । गवाह खरीदे गए ,वकीलों के ईमान डोल गए ,एक बड़ी रकम का इस्तमाल हुआ मरने वालो के परिवारों का मुँह बंद करने के लिए ।
लेकिन इन्साफ मिला या कहे समाज के डर से इन्साफ हुआ , इन्साफ को भी तो खरीदने की कोशिश तो हुई होगी क्योंकि कहा जाता है नंदा परिवार तो बहुत मालदार है ।

शिक्षक दिवस

आज एक अखबार मैं कार्टून देखा ,हम शिक्षक दिवस क्यों मनाते है ?उत्तर था सर ,मेम को गिफ्ट देने के लिए । कितना सही था वो कार्टून एकदम खरा । मेरी बेटी भी परेशान थी गिफ्ट ले जाने के लिए और वह ले कर भी गई । आज सुबह से ही फूल वाले अपनी दुकाने खोले बैठे थे ,और शिष्य व शिषाये अपने गुरुओ को इम्प्रेस करने के लिए बुके खरीद रहे थे ।

यह डॉ सर्वपल्ली राधा कृष्णन कौन थे और आज उनका जनम हुआ था ,अच्छा वो सेकेंड प्रेजिडेंट थे अपने देश के ,टीचेर भी थे ऐसे जबाब मिलेंगे अगर पूंछे तो आप । क्या होगा हमारी आगे आने वाली नस्लों का - आज बच्चे हिन्दी,इंग्लिश ,मथ्स,फिजिक्स ,केमेस्ट्री ,बायो,जी के ,कम्पुटर और बहुत से तो मुझे याद नही बोह सब पढ़ते है लेकिन अपना देश ,अपने पूर्बज ,अपनी संस्कीरती के बारे मैं न बो पढ़ते थे है न हम पढाते है क्योंकि उस से पर्सन्टेज पर फरक नही होता । आज हर काम फायदे के लिए करना सिखाया जाता है चाहे बोह पढाई हो या दुनिआदारी ...........

गुरुवार, सितंबर 04, 2008

1857

ठंडी रोटियों ने क्रांती की जवाला को जला दिया

डरे हुए हमारे दिलो में जवालामुखी बरपा दिया

अपनी आज़ादी को लड़ते रहने का जज्बा सिखा दिया

९० साल लगे आजाद होने में फिर भी आजाद तो करा दिया

आज

१५० साल बाद भी जश्न सिर्फ सरकार मानती है

हमें अपनी रोटी की चिंता है देश तो सिर्फ माटी है

आज़ादी मिली पर हमने महसूस नहीं की

क्योंकि हमें सिर्फ गुलामी ही भाती है ।

बचपन बचाओ

बरेली मैं एक कॉन्वेंट स्कूल की बच्ची यामिनी ने स्कूल की तीसरी मंजिल से कूद कर आत्महत्या की कोशिश इस लिए की उसकी माँ ने कहा था कि अगर फेल हो जाओ तो मुह न दिखाना । और वो फेल थी ,माँ-बाप का प्रेशर ,टीचर की उल्हाना,साथियो की मजाक उसे मौत की और ले गई । आज भी वो जिंदगी की जंग लड़ रही है चुपचाप । कौन दोषी है ? इसका जवाब पाना है ,यह एक यामिनी की बात नही करोडो बच्चो का सवाल है -

आख़िर हम अपने बच्चो को क्या बनाना चाहते है ?उनसे हमारी क्या उम्मीदे है ?क्या अच्छे स्कूल ,महँगी फीस , सभी सुविधाए बच्चो को मेघावी बना सकती है ?

आज के माँ-बाप अपने बच्चो को बिल गेट्स बनाना चाहते मतलब अकल भी रखे और पैसा भी । कितने बिल गेट्स आज तक पैदा हुय ? यह दौड़ हमें कहाँ ले जायेगी । न जाने कितनी यामिनी अपनी जान की बाज़ी लगाय्गी अपने माँ -बाप के अरमानो को पूरा करने के लिए ..........


मंगलवार, सितंबर 02, 2008

सोमवार, सितंबर 01, 2008

जम्मू जीत गया .

संगठन में शाक्ती होती है ,अगर यह मुहाबरा भूल गए हो तो जम्मू का जोश देख लीजिये । जम्बुबासियो की यह जंग अपने आत्म सम्मान जागने के कारण हुई ,और सबसे खुशी की बात कोई बाहरी नेतृत्व नही ,कोई साहयता नही , और सबसे बड़ी बात लडाई अपने लिए नही अपने देश के लिए अपने देश वासियो के लिए । हम तो नही थे लकिन आजादी की लडाई भी तिरंगा लेकर इसी जज्बे से लड़ी गई होगी । लेकिन उस समय गोलियां दुश्मनों ने चलाई इस बार अपनों ने ,बस यही एक फरक था तब में और अब में । अब जम्मू जीत गया उसका स्वाभिमान जीत गया और इस जीत का जश्न हम सबको मनाना चाहिए क्योंकी यह संकेत है एकता का ,संगटन का , और अपनी कायरता से पीछा छुडाने का ।

जो होता है होने दो यह पौरुष हीन कथन है ,

हम जो चाहेंगे वह होगा इन शब्दों में जीवन है ।