गुरुवार, जुलाई 23, 2009

हिन्दी का अपमान - कब तक सहेगा हिन्दुस्तान

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है यह एक मज़ाक से ज्यादा कुछ नही । हिन्दी को इस उपाधि से मुक्त करना हमारे लिए भी अच्छा है और हिन्दी के लिए भी । क्योकि हिन्दी के साथ इतना सौतेलापन बर्दाश्त नही होता । यह सब विचार इसलिए आए क्योकि भारत के सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दी में फैसले व कार्यवाही में असमर्थता जताई है । कहा गया हिन्दी में कार्य सम्भव नही ।

अगर बेचारी हिन्दी के साथ यह व्यवहार सुप्रीम कोर्ट का है तो किस मुहं से हिन्दी अपने को इस देश की राष्ट्र भाषा कहे । बेचारी और लाचार हिन्दी का हाल बिल्कुल ऐसा ही है जैसे शहंशाह आलम - दिल्ली से पालम

जो देश और देशवासी अपनी भाषा का सम्मान नही कर सकते उनका सम्मान कौन करेगा । आज फ्रांस ,जर्मनी ,रूस ,चीन ,जापान जैसे देश अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करते है । और विकसित है उन देशो को किसी दूसरी भाषा की बैसाखी की जरूरत नही पड़ती । लेकिन हम लोगो को अ आ इ ई से पहले ऐ ,बी ,सी ,डी सिखा दी जाती है बचपन में । और यह बात भर दी जाती है बिन अंग्रेज़ी सब सून ।

मैं भी अपवाद नही , समय के साथ चलने के चक्कर में मेरी बेटी भी एक कोंवेंट स्कूल में पढ़ रही है । क्योकि मैं इतना शक्तिशाली नही जो धारा के विपरीत बह सकू ।

अपनी हिन्दी को राष्ट्र भाषा न सही मातृ भाषा के रूप में तो सम्मान दे ही सकते है । और उसके सम्मान के लिए कुछ तो योगदान दे ही सकते है । वैसे कुछ समय बाद हिन्दी सिर्फ़ एक १०० नम्बर का एछिक विषय के आलावा कुछ नही रह जायेगी संस्कृत की तरह । हिन्दी की जगह लेने के लिए हिंगलिश तैयार है ।

बुधवार, जुलाई 22, 2009

एक था कृष्णा ... लोग उसे पागल कहते थे

लगभग ६० साल पहले हल्द्वानी में एक आदमी था नाम उसका कृष्णा । कृष्णा को लोग पागल कहते थे उसकी हरकते भी थी पागलो जैसी । मांग कर खाना छीन कर खाना । लोगो को परेशान करना । लेकिन कृष्णा की एक विशेषता थी वह सबसे मांगता नही था और जिससे मांगता था और उसे मिल गया तो उस आदमी की तरक्की शुरू हो जाती थी । कृष्णा ने अगर किसी को गाली दी या झापड़ मार दिया तो क्या कहने ।

मेरे बाबा जो वैध थे और देशभक्त भी . एक क्रन्तिकारी की जमानत लेने के कारण अंग्रेजो ने जिला बदर कर दिया और उनेह बदायूं जिला छोड़ कर हल्द्वानी जाना पड़ा । नई जगह एक दूकान खोली मरीज़ नदारद । दिन भर खाली बैठना पड़ता था । खाली बैठने के कारण आँख लग गई अचानक उसी समय कृष्णा आया और उसने सामने रखा रजिस्टर उठा कर बाबा के सर पर जोर से मारा और कहा सोता है उठ जाग । विश्वास मानिए उस दिन ऐसे काम चला की ५ ,५ कमपावडर भी दवा नही दे पाते थे इतने मरीज़ आते थे ।

कृष्णा एक किद्वान्दिती था । नैनीताल रोड पर एक कार ने उसे टक्कर मार दी और वह मर गया । सारा शहर ईकट्ठा हुआ तभी विवाद हुआ की वह हिंदू है या मुसलमान । दोनों पक्ष उसे अपना बता रहे थे ।

हिंदू दलील मानी गई की उसका नाम हिंदू था । उसकी शवयात्रा मिकाली गई । सैकडो लोग शामिल थे . गोला नदी के किनारे चिता सजाई गई तभी अचानक पानी बरसने लगा बरसाती नदी उफान पर आगई और एक धारा कृष्णा को मय चिता के बहा ले गई ।

कहते है संतो का जल प्रवाह ही होता है । और प्रकृति ने अपने काम कर दिया ।

रविवार, जुलाई 19, 2009

भैय्ये का दिमाग बड़ा आला है . कितनी दूर की सोची

शेर सिंह के बारे में थोड़ा तो पता चल ही गया होगा । हमारे शेर सिंह कितने मक्कारी की हद तक जा सकते उसकी एक कहानी । शेर सिंह एक जमींदार परिवार से थे ही और छोटी छोटी पंचायते करते रहते थे पञ्च परमेश्वर बन कर । ऐसे ही एक पंचायत की बानगी

दो मुसलमान परिवार आपस में लड़ गए । पंचायत के लिए शेर सिंह को बुलाया गया । शेर सिंह ने दोनों पक्षों को सुना । दोनों पक्ष अपने को सही साबित करने के लिए दलीले पेश कर रहे थे कसमे खा रहे थे । फैसले की घड़ी आ गई । सब लोग फैसले का इंतज़ार करने लगे । शेर सिंह ने कहा । सब लोग सुनो दोनों गलत थे । इसलिए दोनों लोग ५०० ,५०० रूपय जुरमाना देंगे ।

चारो ओर खामोशी छा गई , एक ने डर के पूछा जुर्माने का क्या होगा । शेर सिंह यह सुनते ही भड़क गए और चीख कर कहा सालो तुम यह समझते हो यह रुपया शेर सिंह खा जाएगा । नालयको इस रुपए से गावं की मस्जिद के लिए कालीन आएगी । जनता खुश लोग कहने लगे - भय्ये का दिमाग कितना आला है कितनी दूर की सोची

समय बीतता रहा कालीन का कहीं अता पता नही था लोग ईक्ट्ठे हुए शेर सिंह के पास गए । कालीन के बारे में पूछा तो शेर सिंह ने कहा शेर सिंह के गाँव में क्या बरेली से कालीन आएगी , कश्मीर से मंगाई है इंतज़ार करो । और आज कई दशक बीत गए कालीन आज तक नही आई । और वह १००० रुपए शेर सिंह के हो गए । उस समय १००० रुपए की कीमत आज से बहुत ज्यादा थी १५० रु तोला था सोना उस समय

बुधवार, जुलाई 15, 2009

शेर सिंह --- एक चालू आदमी .........1

आपको कुछ ऐसे लोग मिलते है जो आपको हमेशा याद रहते है अपनी अच्छाई के साथ या अपनी बुराई के साथ । ऐसे ही थे एक शेर सिंह आप बताये उनेह किसलिए याद किया जाए ।

शेर सिंह एक जमींदार परिवार से है । बहुत ही चालू व्यक्तित्व के स्वामी , उनकी एक खटारा जीप थी। कबाडी भी लेने से पहले सोचे । लेकिन एक सरदार जी फस गए जीप लेने को तैय्यार थे , सौदा पट गया लेकिन शेर सिंह ने कहा सरदार जी गाड़ी आपकी हुई लेकिन एक परेशानी है अगर शेर सिंह की कोठी से गाड़ी खीच के ले जाओगे तो मेरी बहुत बदनामी होगी इसलिए तुम्हे गाड़ी तो सही करानी है ऐसा करो यही सही करा लो फ़िर चला कर ले जाना । सरदार जी मान गए । उन्होंने शेर सिंह के घर पर गाड़ी समल्बाही ।

जब सही हो गई सरदार जी लेने आए और कहा अच्छा गाड़ी ले जाऊ । शेर सिंह बोले तुम कौन तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी गाड़ी छूने की । सरदार जी समझे वह मज़ाक कर रहे है बोले मेने खरीदी है । शेर सिंह बिफर गए और चीखे किसी साले में ओकात है जो शेर सिंह की जीप खरीदे , लौंडो लाओ बन्दूक पकडो साले को । इतने सुनते ही सरदार जी अपनी जान बचा कर भाग गए और वह जीप कई साल शेर सिंह शान से चलते रहे ।

ऐसे कई और किस्से है शेर सिंह के जो फिर कभी ।

रविवार, जुलाई 05, 2009

बचपन की शरारते --- चक्कू अंदर दम बाहर

आदित्य का बचपन अपना बचपन याद दिला देता है । जो याद है वह एक पिक्चर की तरह दिमाग में चलने लगता है जैसे कल की ही बात है । कितनी शैतानिया और उन पर पड़ी मार आज भी याद आती है । शैतानियों की श्रंखला अगर शुरू करू तो कई दिनों तक चलती रहे । ख़ैर एक पर से परदा उठाता हूँ ।

बचपन से अपना पढाई से रिश्ता कुछ अच्छा नही रहा . कामचलाऊ सम्बन्ध था आख़िर यही कहा गया चलो स्नातक तो हो जाओ । बचपन में शुरुआत के समय एक बंगाली महाशय घर पर पढाने के लिए आए । उनेह सभी अधिकार दिए गए मारो पीटो कुछ भी करो इसे पढाओ ।

मास्टर सहाब सभी अधिकार का प्रयोग कठोरता से करने लगे बात बात पर पिटाई । कष्ट होने लगा मुझे दिमाग में कुछ विचार चलने लगे कैसे पीछा छुटे । बहुत उपाय करे कोई काम नही आए । एक दिन एक उपाय सूझा और उस पर अमल कर ही दिया ।

शाम को मास्टर सहाब आए । वह घर पर ऊपर के कमरे में पढाते थे । किसी बहाने से मै नीचे आया और सब्जी काटने वाला चाकू लेकर जीने के नीचे छिप गया । तभी अचानक पापाजी कहीं से आ गए उन्होंने पूछा क्या कर रहे हो । मैने कहा आज मास्टर सहाब नीचे उतरे तब चक्कू अंदर और दम बाहर होगा । उसके बाद तो झापड़ का एक लंबा दौर चला । मै रोते हुए पढने को चला गया बेचारे मास्टर सहाब ने पूछा बेटा क्या हुआ , मैने कहा आज बच गए आज चक्कू अंदर था और दम बाहर थी आपकी ।

इतना सुनते ही मास्टर सहाब तुंरत नीचे आए और मेरी माँ से बोले बहिन जी कल से मै नही ओऊंगा मेरे छोटे छोटे बच्चे है और मै परदेश मे हूँ ,मेरे घर पर तो खबर भी नही पहुचेगी । मेरी माँ ने समझाया बच्चा है उसे डाट दिया है अब ऐसा नही करेगा । मास्टर सहाब बोले आप लोग तो ठाकुर हो आपका लड़का तो कुछ भी कर सकता है । बेचारे मास्टर सहाब ऐसे गए आज तक नही लौटे ।

उसके बाद कई आए पढाया लेकिन मै मार पीट कर ही पढ़ पाया । कामचलाऊ तो पढ़ ही लिया बे काम नही बी काम तो कर ही लिया था रो धो कर

गुरुवार, जुलाई 02, 2009

तेल का खेल - सरकार का तिल्लिस्म जनता फेल

तेल का खेल चलता रहता है हमेशा । बहुत पहले सिर्फ़ बजट में ही तेल के दाम बढ़ते थे साल में एक बार , अब तो हर महीने का चक्कर हो गया है । जब मन आया तो दाम उठा दिए या कुछ गिरा दिया । और सब्सिडी को बहाना बना दिया जाता है , और सबसे ज्यादा केरोसिन का रोना होता है लगभग १६ रु.का घाटा होता है १ लिटर पर ।

आख़िर मिटटी का तेल का फायदा किसे मिलता है कोई भी सवा सौ करोड़ में से
एक हिन्दुस्तानी को सामने लाइए जो यह कह उसे इतना तेल मिलता है जो उसका १५ दिन का तेल का खर्चा पूरा हो जाता है । शायद कोई नही मिलेगा । क्योकि मिटटी के तेल की सप्लाई ऊठ के मुहं में जीरा है । सारा तिल्लिस्म क्या है यह जानना पड़ेगा ।

मिटटी का तेल सरकार से लेकर ग्राम प्रधान की आमदनी का एक जरिया है । हक़दार को न मिल कर ब्लैक कर दिया जाता है । पेट्रोल और डीजल में मिला कर इसका प्रयोग होता है ।

शेष आगे ............. क्योकि लाइट चली गई और कम्पुटर बंद होने वाला है