शनिवार, जून 26, 2010

आपातकाल ---- हमने भी झेला था .

सिर्फ ४  साल का था मैं जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था . आपातकाल  की गाज मेरे घर पर भी गिरी . मेरे पिताजी जनसंघ के पदाधिकारी थे . और हमारे शहर में जनसंघ का ही होल्ड रहा करता था . आपातकाल लागू होते ही सरकार की हिट लिष्ट में मेरे पिताजी भी थे . संघठन के आदेश से पिता जी भूमिगत हो गए और पुलिस का कहर हमारे घर पर वरपा रहा .

चार साल की उम्र में जो मंजर मैंने अपनी आँखों से देखा वह आज तक मुझे याद है . शहर के सबसे ख़ास इलाके में हमारा घर है जो उस समय भी आतंक विरोध की गतिविधियों का केंद्र था . मुझे अब भी रात याद है जब पुलिस ने हमारे घर पर छापा मारा था पुलिस वालो का दीवार पर से कूदना घर के अन्दर कोने कोने की तालाशी लेना सामान को उलट पलट कर देना . मैं ,मेरी माँ, बहिन जो मुझ से दो साल बड़ी है सिर्फ वही घर पर थे .

हमारा चलता हुआ व्यापार  ठप्प  हो गया  . कई  रिश्तेदार  कन्नी  काट  गए  .घर पर रुपया पैसा ख़त्म हो चला था ग्राहक डर के मारे दूकान पर नहीं आते थे लेकिन उस समय कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने हमारे परिवार की मदद की . उनमे एक थे हमारे दूध वाले रामनाथ जिन्हें हम बाबा कहते थे . मेरी माँ ने बाबा से दूध बंद करने के लिए कह दिया बाबा ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा बेटी पैसा मिले या ना मिले लेकिन बच्चो का दूध बंद नहीं होगा और दो साल तक बिना पैसे के उन्होंने दूध दिया . ऐसे ही थे श्री लक्ष्मण प्रसाद इनकी परचूनी की दूकान थी उन्होंने भी जब सामान का पर्चा नहीं पहुचा तो अपने आप महीने का राशन भिजवाने लगे .ऐसे लोगो का भूलना अहसान फरामोशी ही कहलायेगा .

मेरे पिताजी को  सत्याग्रह कर जेल जाने का निर्देश हुआ . मुझे आज भी याद है पापा सुबह घर आये उस दिन कोई त्यौहार था कई सत्याग्रहियों को गिरफ्तारी देनी थी .लेकिन डर के मारे कोई नहीं आया . पापा अकेले ही घर से नारे लगाते हुए घर से निकले मैं उन्हें बाहर तक छोडने आया . बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और मीसा में बंद कर दिया . जब वह तारीख पर  कचहरी आते थे तब हम लोग मिलाने जाते थे .

किस तरह हमारे परिवार ने वह दिन झेले वह हमारा परिवार ही जानता है लोग डर के मारे पहचानते नहीं थे पड़ोसी नज़र नहीं मिलाते थे . लेकिन हर रात की एक सुबह होती है सूर्य उगा रोशनी हुयी लेकिन दिन आज तक नहीं निकला . आज भी परिस्थितिया आपातकाल की ही तरह है . उस समय तो लाखो लोग विरोध में थे आज अगर फिर ऐसा हुआ तो सत्याग्रही खोजते रह जाओगे . क्योकि सत्य से तो आजकल सब मूहँ फेर लेते है

गुरुवार, जून 24, 2010

जहां जिसकी सरकार वह वहां हावी - दिल्ली मे हाथ और नोयडा मे हाथी


मायावती हाथी लगवाये तो गलत
कांग्रेस हाथ लगवाये तो सही 











इंदिरा गांधी एयर पोर्ट टर्मिनल ३ पर लगे हाथ और नोयडा में लगे हाथी इस बात को दर्शा रहे है कि हाथी की नक़ल हाथ कर ही रहा है . दोनो ही चुनाव चिन्ह है . क्या चुनाव आयोग इस की सुध लेगा या उठी सूंड  हाथी और टेढी उगली हाथ की कह मूहँ  मोड लेगा

चित्र गूगल ,नभाटा से सभार 


शुक्रवार, जून 18, 2010

मुन्ना लाल ....... वह एक कहानी का पात्र नही था . लेकिन कहानी हो गया

दुनिया भर का सामान अपने और गम अपने कंधो पर ढोता था .भिखारी  सा दिखता था लेकिन भीख मांगते किसी ने नहीं देखा . खिचडी बाल बड़ी हुई दाड़ी और खामोशी ओडे दरबदर घूमता रहता था . दो ईट रख बना लिया चुल्हा और एक भगोने में जो मन आया पकाया और खाया . यही दिनचर्या  थी उसकी . लोग उसे मुन्नालाल नाम से जानते थे .

मुन्नालाल को आते जाते कुछ लोग चिडाते थे तो खामोश सा रहने वाला मुन्नालाल फट जाता था दुनिया भर की तमाम गालियाँ बकने लगता था . उसका रोद्र रूप देखकर बच्चे डर जाया करते थे जिसमे से मैं भी एक था . मुन्नालाल के बारे में लोग तरह तरह की बाते करते थे . कोई कहता था वह सरकारी नौकरी में था उसकी बीबी बच्चा मर गया तो वह पागल हो गया और घर बार छोड़ सड़क पर रहने लगा . लेकिन मैंने उसे कभी पागलो की तरह व्यवहार करते नहीं देखा . सिर्फ एक बार वह मेरे घर आया और खाने को सब्जी माँगी . उसके बाद उसने कभी कुछ नहीं माँगा . मुन्नालाल को देखते देखते मैं बड़ा हो रहा था . और मेरे देखते देखते मुन्नालाल बूढ़ा हो रहा था .

किद्ववन्तियों  से घिरा मुन्नालाल  कब लाश में बदल गया पता  जब चला जब कई घंटो तक हलचल नहीं हुई . लावारिस मुन्नालाल अब मर चुका था . पुलिस ने जब उसके सामान की तालाशी ली तो उस सामान में टुडे मुड़े डेढ़ लाख रुपए और दो लाख रुपए की ऍफ़ डी निकली . यह बात पता चलते ही लावारिस मुन्नालाल के कई वारिस सामने आ गए .अब मुन्नालाल किसी का चचा था तो किसी का मामा .  बहुत विवादों के बाद मुनालाल को चिता नसीब हुई . अगले दिन अखवार में एक विज्ञापन छपा था .

बड़े दुःख के साथ सूचित करना पड़ रहा है हमारे  पूज्य  श्री मुन्नालाल जी सेवानिवृत डाक बाबू का स्वर्गवास हो गया है . उनका दसवां संस्कार बाग़ ब्रिग्तान में और तेहरवी हमारे निवास में होगी - शोकाकुल राम लाल भतीजा ,जवाहर लाल भांजा .

............................. और पैसे ने रिश्तेदारों को रिश्तेदारी निभाना सिखा दिया .

बुधवार, जून 02, 2010

बुलंद दरवाज़ा और मैं



गर्मियों की छुट्टी पर तीर्थ यात्रा  के लिए मेहंदीपुर बालाजी ,मथुरा ,ब्रन्दावन के लिए हम लोग निकले . बालाजी से लौटते हुए भरतपुर में रास्ता भटक गए मुड़ना था मथुरा की ओर और चले गए आगरा की ओर . और पहुच  गए २० किमी दूर फतहपुर सीकरी -जहाँ हम लोग बुलंद दरवाज़े से होते हुए बाबा सलीम चिश्ती की मज़ार पर सजदा के लिए चले गए . एक ऐसी जगह जहाँ अकबर भी आता था मागने . और बाबा के आशीर्वाद से ही अकबर को जोधाबाई से एक पुत्र हुआ जिसका नाम रखा सलीम जो आगे चल कर जहांगीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ '

यह है बुलंद दरबाजा 


यह है सलीम शेख चिश्ती की दरगाह 



हमने भी किया  सजदा और चडाई चादर . कहते है यहाँ हर मुराद पूरी होती है 



 बुलंद दरवाज़े का पीछे का हिस्सा 


यह वह दरवाज़ा जिससे अकबर आता था 



बाबा सलीम चिश्ती के परिवारियो की कब्रे 

और यह मेरा परिवार 

फोटो में जो तारीख दिख रही वह गलत है