मंगलवार, मई 25, 2010

अगर हिन्दू हो तो शर्म करो

डेनमार्क में छपा एक कार्टून पूरी दुनिया को हिला  देता है . भारत सहित कई देशो में हिंसक आन्दोलन होते है . होने ही चाहिए अगर धर्म पर आंच आती है तो आग भड़कने ही चाहिए .

लेकिन हम गर्म देश के ठन्डे खून वाले हिन्दुओ पर कोई फरक नहीं पड़ता कोई अपनी किताब में लिखे लक्ष्मण की सीता के प्रति कामभावना थी या विवेकानंद गौमांस खाने को कहा था . ऐसी ही कई बेहूदा बाते प्रोफेसर  वेंडी डोनिगर ने अपनी किताब 'द हिंदू- ऐन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री' में लिखी  हैं।



हम लोग इसका उत्तर भी नहीं दे सकते क्योकि हम मुर्दा कौम है और मानते है एक अमरीकी ने लिखा है तो गलत तो शायद नहीं होगा . अगर यह बाते मोहम्मद साहब या उनके परिवार के बारे में लिखी होती तो अब तक तो वेंडी डोगिनर  ताबूत में आराम कर रहे होते . 


हम अहिंसक है कमजोर है कायर है लेकिन अपनी कलम से ,अपनी जुबान से तो विरोध कर सकते है . अगर इतनी हिम्मत बची है तो आगे आये . वरना आराम से जिए क्योकि आराम से तो नाली का कीड़ा भी जीता है . 


 गिडगिडाने  से  नहीं  सुनता यह  जहाँ 
 मुहं भर कर गालियाँ दो पेट भर कर बद्दुआ 

बुधवार, मई 19, 2010

तीस साल बाद ............. अपने पहले स्कूल में भुलाए ना भुलेंगा यह दिन

तीस साल ठीक तीस साल पहले मैंने अपना पहला स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर छोड़ा था . कई यादे आज तक पूरी तरह से याद है . तीस साल में मैं शायद ही कुछ भूला होउंगा . पैतीस साल पहले  स्कूल का पहला दिन जब रोते पीटते गया और वहाँ रखे खिलोनो से खेलता रहा . इंटरवेल में जब सब जूते उतार कर साथ में बैठ कर भोजन करते थे उसके बाद जब मैं जूते के फीते नही बाँध पाता था तब वहाँ मेरी बड़ी बहिन आकर मेरे फीते बांधती थी . वही पुरानी यादें आज चलचित्र की भाति मेरे दिमाग में घूम रही थी . क्यों ........ क्योकि आज मैं तीस साल बाद फिर से अपने स्कूल में था .

कुछ भी तो नहीं बदला हां दो मंजिल भवन अब तीन मंजिल का हो गया . वही क्लास रूम , वही ब्लेक बोर्ड ,वैसी ही कुर्सिआं ....... शब्द नहीं मिल रहे है उस आनंद को व्यक्त करने के लिए . खो सा गया वहां पहुच कर . लगता है जैसे कल की बात है मैं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा हूँ ,भागदौड़ कर रहा हूँ , स्कूल में  बैंड बजा रहा हूँ ....................... छोटे छोटे बच्चे देख अपना बचपन याद आ गया था .

इन सब यादो का मौक़ा मिला क्योकि आज एक समारोह  था और मैं उस समारोह में उस जगह बैठा था जहाँ बचपन में सोचा करता था बैठने के लिए . तीस साल पहले एक शील्ड बतौर इनाम मिली थी और आज तीस साल बाद मैं मेधावी बच्चो को अपने हाथो से शील्ड बाँट रहा था . ठीक तीस साल बाद . आज का यह द्रश्य में हमेशा के लिए सहेजना चाहता हूँ . कितनी खुशी मिली है आज व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ .

कुछ फोटो अब के और तब के इकट्ठे कर रहा हूँ जल्दी ही आपको दिखाउंगा .

मंगलवार, मई 18, 2010

नंगई शुरू हो गयी है तो नंगई पूरी होनी चाहिए

जनगणना शुरू हो गई जोर शोर से नए नए कालमो के साथ . पिछड़ी  सोच के नेताओ की मांग स्वीकार कर जातिवार गणना शुरू हो गई . एक तरह से अच्छा है पता चलेगा ओं बी सी कितने पिछड़े है . और एक बात जब जाति बताओ की नंगई शुरू हो गयी है तो नंगई पूरी होनी चाहिए . यानी आप कौन है आपकी जाति क्या है उपजाति क्या है गोत्र क्या है आदि आदि .

अपने यहाँ खासकर नेताओ की परम्परा है मीठा मीठा हप्प हप्प कडुआ कडुआ थू  . अब मांग मानी गई है ओ बी सी की अलग से गिनती . अरे क्यों क्या गारंटी है बाद में इन में आपस में जूता नहीं चलेगा कि इस ओ बी सी में मेरी जाति के लोग ज्यादा है इस लिए मेरी मांग है अलग अलग बिरादरी की गिनती हो जैसे

        यादव -  यादव में कौन से खमरिया या घोसी 
        कुरमी -  कुरमी में कौन से कन्नोजिया या गंगवार 
         मुराव -  मुराव में कौन से सक्सेने या खमरिया 

            या 
          ब्राह्मण -ब्राह्मण कौन से सनाढ्य या साढ़े सात घर या ...... या ............ 
          क्षत्रिय -क्षत्रिय कौन से सूर्यवंशी या चन्द्र वंशी या अग्नि वंशी फिर उसकी पचासों उपजाति 
          वैश्य-   वैश्य कौन से अगरवाल ,गुप्ता , बारहासैनी, या ....................... 

इस तरह से एक सही स्थिति सामने आयेगी . दूध का दूध  पानी का पानी हो जाएगा . सिर्फ एक कालम ही तो और बढेगा . इसी तरह मुस्लिमो को सिया ,सुन्नी में बाटो फिर सययद् शेख , पठान , अंसारी ,धुना ,सैफी जैसो में बाट दो . कितना अच्छा होगा . 

हिन्दुस्तान में ठाकुर, ब्रह्मण, वैश्य ,यादव, कुरमी ,जाट ,मुराव, लोधे, कश्यप, जाटव, बाल्मीकि ,कायस्थ ,खत्री ,सय्यद शेख ,पठान ,धुना ,जुलाहे ,कुरैशी ,सैफी ,कैथोलिक ,मेथोडिस्ट ना जाने कितने और होंगे लेकिन हिन्दुस्तानी ना होंगे . 

जय हिंद जय भारत  या जय ज़ात  

गुरुवार, मई 13, 2010

नेता तो बहुत से ब्लागर हुए अब ब्लागर बनेगा नेता .............. खुशदीप भाई अब राजनीति मुझे मिस नहीं करेगी



गाँव, गरीब, किसान,झुग्गी ,झोपड़ी के इंसान की समस्यायों को दूर करने के लिए संघर्ष  कर रहे है हम लोग .  जगह जगह धरना देते है जन समयस्या के निराकरण के लिए . इस एक महीने में निम्न कार्य किये है हमने 

१-  क्षेत्र में बिजली की अव्यवस्था के खिलाफ मुख्य अभियंता का घेराव 

२- पेयजल और साफ़ सफाई के लिए नगर निगम का घेराव 

३-किसानो की उपज गेहूं खरीद में जो सरकारी भ्रष्टाचार और काला बाजारी हो रही है उसके विरोध में तहसीलों पर घेराव 

४- एक गाँव में लगी आग में १६ परिवार पूरी तरह से तबाह हो गए सरकारी मदद ना के बराबर मिली उसके विरोध में प्रदर्शन और उन परिवारों को वस्त्र वितरण 

५-एक गाँव में दीवार गिरने से ३ बच्चो की दर्दनाक मौत हो गई . प्रशासन ने आपदा मानने से मना कर दिया उसके विरोध में जिलाधिकारी कार्यालय में पीडितो के साथ प्रदर्शन . शासन से मदद का आश्वासन मिला . 

यह कुछ बानगी है . निस्वार्थ भाव द्वारा  राजनेतिक माध्यम से समाज की सेवा करने की . आगे भी जारी रहेगी . और हां एक बात एक भ्रान्ति दूर करने की कोशिश सब नेता एक से नहीं होते . 


बुधवार, मई 12, 2010

हिन्दी मर रही है

         
 ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी सेवा कौन कर रहा है मैं ढूंढ़ने का प्रयत्न कर रहा हूँ . लेकिन मैं कोई हिन्दी सेवा के लिए ब्लॉग नहीं लिखता . मैं हिन्दी में इसलिए लिखता हूँ कि मुझे हिन्दी के अलावा कोई दूसरी भाषा  आती नहीं और हिन्दी में ही सोचता हूँ अपने भाव व्यक्त करने के लिए हिन्दी ही एकमात्र माध्यम है .  


हिन्दी की  सेवा कैसे की जाती है ? 


किसने की हिन्दी सेवा ? 


और हिन्दी सेवा करना जरुरी है क्या ? 


कितने ब्लोगर है जिन्हें हिन्दी वर्णमाला याद है ?


उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा में हूँ 


हिन्दी वह एक भाषा जो कई भाषाओ को हरा कर अस्तित्व में आई . सिर्फ देवनागरी लिपि के अलावा हिन्दी कहीं  की ईट कहीं का रोड़ा ही तो है . तमाम भाषाओ को मिला कर संस्कृत की लाश पर हिन्दी अवतरित हुई . उर्दू ,फ़ारसी ,अरबी और संस्कृत जैसी भाषाओ का बिगड़ा रूप छावनियो की बोली कब हमने आत्मसात कर ली पता ही नहीं चला . फिर भी हिन्दी आज हमारी मातृ भाषा है मातृ भाषा इसलिए क्योकि मेरी माँ बोलती थी हिन्दी . 
मेरे विचार से हिन्दी का बच पाना अब मुश्किल है . हिंगलिश ने हिन्दी की जगह लेनी शुरू कर दी है . वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी संस्कृत के साथ बैठ आसूं बहाएगी . 


वैसे गीता में कहा गया है जो पैदा हुआ है वह मरेगा जरुर

शनिवार, मई 08, 2010

शीर्षक सूझ नहीं रहा .......................... क्या करू

पैसो की दौड़ तो नहीं कह सकते लेकिन परिस्थितिया ने हमें अलग कर दिया कुछ समय के लिए ही | हुआ यह मेरी पत्नी को प्रवक्ता पद पर चयन हुआ लेकिन पोस्टिंग मेरे शहर से काफी दूर हुई है . एक महाविद्यालय में प्रवक्ता पद सम्मान की तो बात है ही और कह सकते है जो जीवन में आपने जो लिखा पढ़ा है उसे सीखाने को आपको मौक़ा मिला है . डिग्री ,टॉप ,पी.एच .डी और उसके बाद चुल्हा चौका शायद प्रतिभा के साथ अन्याय हो सकता है लेकिन ..........

मेरी शादी जब हुई तो बी एस सी पास पत्नी मिली मेरे पिता जी को अपनी बहू में पढने की लगन देखते हुए एम् एस सी बोटनी कराई जो विश्व विद्यालय में  टॉप करने पर पी एच डी के लिए प्रेरित किया . फिर अंशकालिक प्रवक्ता के रूप में ५ साल महाविद्यालय में कार्य किया लेकिन यह सब घर में रहते हुए हुआ . अब यह जो खुशी मिली है इसे हम मना नहीं पा रहे है . अपना घर छोड़ कर दूसरे शहर में नौकरी हम जैसे प्रष्टभूमि वालो के लिए बेहद मुश्किल है और उस पर यह ताने क्या कमी है जो बहू शहर से बाहर घर छोड़ रहे . वैसे मेरे घर में मेरे पिता जी  मैं और मेरी बेटी जो पहले से ही बोर्डिंग में है और अपनी पढाई कर रही है . घर की एक मात्र महिला सदस्य के होने के कारण  परेशानी तो निश्चित ही है खासकर मेरे पिताजी को .

एक  वेदना तो है विछोह की ,परिस्थितियां कब तक सामान्य होगी पता नहीं  लेकिन परिवार से दूर वह भी महिला सदस्य का समाज में तो स्वीकार्य नहीं है अभी तक . मैं भी अपने को शिफ्ट नहीं कर सकता वहां क्योकि मेरा शहर मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है और सबसे बड़ी ताकत भी . व्यवहार और व्यापार को त्यागना असंभव है .हमारी भी किस्मत देखिये घर में चार सदस्य है ओर चारो अलग अलग ............ खैर भविष्य के गर्भ में क्या है समय बताएगा ?

सोमवार, मई 03, 2010

आखिर चूहे ने नितीश कुमार की ऊंगली ही क्यों काटी

इसे कहते है सशक्त विरोध . नितीश कुमार बहुत दिनों से चूहा व्यंजन को महत्ता दे रहे थे . चूहा बर्गर ,चूहा सैंडविच और ना जाने क्या क्या . इससे चूहों में आक्रोश था और इसके विरोध के लिए चूहा संघ ने अपने क्रांतिकारियों को नियुक्त किया . उसका परिणाम यह हुआ नितीश कुमार की ऊँगली काट कर सांकेतिक रक्त सहित विरोध का प्रदर्शन किया . काटा कही भी जा सकता था . फिर भी चूहों ने मर्यादा में रहते हुए कार्य किया . और आगाह किया है अभी तो ली अंगडाई है आगे बहुत लड़ाई है .


चूहों  की जीवटता को देखकर एक हलचल सी मची है चारो तरफ यही हल्ला है ऊँगली ही क्यों ...............
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आखिर यही प्रश्न आपको भी उद्धेलित कर रहा होगा . ऊंगली ही क्यों ...........
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बहुत खोजने पर चूहों के प्रतिनिधि से बात हुई उत्तर मिला ऊंगली इसलिए क्योकि ब्लोगर के प्राण ऊंगली में ही बसते है और ब्लोगर सब काम ऊंगली से ही करते है और  नितीश कुमार नए नए ब्लोगर है ऊंगली की आदत है उन्हें इसलिए ऊंगली काट कर विरोध किया गया . 


सावधान ब्लोगर  ..................................



शनिवार, मई 01, 2010

मजदूर ही है वह जो रोज़ कपड़ा बुन कर बिन कफ़न के मरता है

पेट की आग बुझाने को 
रोज़ कुआं खोदता है 
मजदूर ही है वह जो 
रोज़ महल बना कर 
झोपड़ो में सोता है 

मेहनत कर अन्न उगाता 
पर अन्न के लिए तरसता है 
मजदूर ही है वह जो
रोज़ सड़क  बना कर 
पगडंडी पर चलता है 

अपने खून पसीने से 
मशीनों को गति देता है 
मजदूर ही है वह जो 
रोज़ कपड़ा बुन कर 
बिन कफ़न के मरता है 

चलो साल में एक दिन 
याद करके अपने को चमकाते है 
मजदूरों  को दधीच बना कर 
अपना इन्द्रलोक बचाते है