रविवार, फ़रवरी 28, 2010

हॉकी- जीत गए हम सन ८२ का दिल्ली का बदला ले लिया हमने

हॉकी जीत गए हम .  सन ८२ का दिल्ली का बदला ले लिया हमने . 


होली का इससे बढ़िया उपहार क्या हो सकता है 


सलाम हाकी के शेरो को . 


चक दिया , मन खुश कर दिया .  


जय हो जय हो जय हो 

होली के रंग में डूबने से पहले ,बहकने से पहले ,लड़खड़ाने से पहले मेरी गीली गीली सी शुभकामनाये

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शोक और गमी को भुलाने का त्यौहार भी है होली . होली के हुडदंग में होली की महत्ता को कम कर दिया है होली एक ऐसा त्यौहार है जो जाति , ऊच नीच की दीवारों को तोड़ता है . हमारे यहाँ होली पर सब मत भेद भुला कर गले मिलाने की पुराणी परंपरा है .और होली के रंग शायद यह सन्देश देते है सब रंग विरंगे रहे और एक रंग रहे . 


और होली ही एक ऐसा पर्व है कि सच भी बोलो और होली है कह कर बरी हो जाओ शायद सॉरी होली है से ही इंस्पायर्ड है . होली पर बज़ते ढोल गाते हुरियारे शायद गवाही देते है खुशहाली का . आज की महंगाई भी होली पर असर नहीं डालती . उत्साह उमंग का त्यौहार होली . 


होली की सच्ची खुशी देखनी है तो चले मेरे गावं और देखे वहां के बच्चे जो साल भर होली का इंतज़ार इस लिए करते है कि उनेह नए कपडे मिलेंगे पहनने को . साल भर में एक बार ही तो नए कपडे मिल पाते है . और होली पर तो गुजिया बन ही जाती है खोये और शक्कर की ना सही लेकिन राब यानी गुड की गुजिया जिसे पिच्चाकिया कहते है बन ही जाती है . 


हम लोगो की तो हर दिन होली और रात दिवाली हो सकती है लेकिन असली होली की उमंग देखनी हो तो किसी गावं में जा कर देखे या किसी झुग्गी वस्ती में . होली उन चेहरों पर भी मुस्कान लाती है जो ३६४ दिन उदास से रहते है . 


होली के रंग में डूबने से पहले ,बहकने से पहले ,लड़खड़ाने से पहले मेरी गीली गीली सी शुभकामनाये 

मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

आज मिला मैं दो हाई प्रोफाइल ब्लोगरों से -आपको भी मिलवाता हूँ

आज का दिन याद रहेगा दो हाई प्रोफाइल ब्लोगरो से मुलाक़ात हुई . मेरे शहर में आज दो ब्लोगर आये थे दोनों ब्लॉग क्यों लिखते है किस लिए लिखते है पता नहीं लेकिन वह लिखते है और हम पढ़ते है बिलकुल वैसे ही जैसे हम लिखते है . उन ब्लोगरो में से एक थे ठाकुर अमर सिंह और एक थे स्वामी चिन्मयानन्द .

ठाकुर अमर सिंह अरे वही ठा. अमर सिंह ........ समझ गए होंगे आप . ठा. अमर सिंह को आप कुछ भी समझे उनके बारे में कैसी भी धारणा रखते हो लेकिन उनकी जीवटता का मैं कायल हो गया हूँ . मौत को हरा कर और गुर्दा प्रत्यारोपण करा कर इतनी ऊर्जा को अपने अन्दर समेटे एक कमाल का व्यक्तित्व है . जिस तरह की उनकी सर्जरी हुई है और कोई होता तो उसे सालो लग जाते सामान्य जीवन व्यतीत करने में लेकिन उनकी सक्रियता युवाओं को एक चुनोती है . उनसे उनके ब्लॉग के बारे में  मैने बात की और यह भी कहा कि कभी कभी मै चुटीले कमेन्ट करता हूँ . तो उन्होंने कहा पढ़िए मैं जबाब दूंगा .

और दुसरे थे स्वामी चिन्मयानन्द . स्वामी जी नए नए ब्लोगर है . स्वामी जी उच्च शिक्षित व्यक्तित्व है और भारत के गृह राज्यमंत्री रह चुके है . राम जन्म भूमि आन्दोलन से सक्रिय भूमिका निर्वाहन करने वाले स्वामी जी से मिल कर एक सुखद अनुभुति प्राप्त होती है . स्वामी जी के ब्लॉग पर मैंने पहली टिप्पणी की थी यह बात स्वामी जी को याद है . शायद इसे कहते है टिप्पणी पावर

खैर एक यादगार दिन था. मैं इन लोगो से मिला लेकिन एक ब्लोगर की हैसियत से आखिर मैं इनसे वरिष्ट जो ठहरा . वरिष्ट ब्लोगर हूँ मैं इन दोनों हाई प्रोफाइल ब्लोगरो से

गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

मिल गया उपहार छप्पर फाड़ के

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फागुन जैसे उपहारों का मौसम हो गया . जगह जगह सम्मान बटने लगे फलाना फलाना ...... अपनी किस्मत में तो सम्मान का योग बनता नहीं दिखता लेकिन उपहार तो छप्पर फाड़ के मिल ही सकते है . जो आज ही मिल गया मुझे .

कई दिनों से अपने पिताजी से एक वाहन की मांग सरका दी थी . और जिद की हद तक मांग को पेश किया . एक कार बढिया सी ,अपने आकार के कारण कारे छोटी सी महसूस होने लगी . इसलिए कुछ बड़ी कार की दरकार थी इसलिए कुछ माडल छाटे गए एस यु वी सपने में आने जाने लगी . इस्कर्पियो ,सफारी ,इन्डिवर जैसी कारे लुभाने लगी . बहुत मशक्कत के बाद बात कुछ बनती दिखी . आज वह घडी आ गई और एक नयी टाटा सफारी पिताजी की तरफ से उपहार स्वरुप प्राप्त हो गयी .

खैर आनंद ले रहे नयी सफारी का फागुन में , धन्यवाद शब्द बहुत छोटा लग रहा है उपहार के लिए . कभी कभी लगता है लायक बाप के यहाँ पैदा होने के कितने फायदे है .

रविवार, फ़रवरी 14, 2010

यहाँ का खान भी खुश और वहाँ का खान भी खुश - नयी परम्परा ना पड़ने दी सरकार ने बम विस्फोट तो रोज़ की बात

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महाराष्ट्र में पिछले दो तीन दिनों में जो घटनाएं हुई उससे यहाँ के भी खान खुश और वहां के खान भी खुश . यहाँ का  खान इसलिए खुश की बिना विघ्न के उसका काम हो गया और वहां का खान इसलिए खुश उसका काम भी बिना विघ्न के हो गया . और इन सबका श्रेय जाता है महाराष्ट्र के नेताओ को और उनके कुशल निर्देशन को .

कितना अजब संयोग है दो दिन में दो खान प्रसन्न हो गए तुष्टिकरण के तीरों द्वारा . बिना बात के हल्ला मचा माई नेम इज  खान के लिए . पूरा मीडिया कन्धा मिलाये खड़ा रहा खान के लिए जब मीडिया साथ था तो सरकार का कर्तव्य था राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न था फिल्म रिलीज कराने का और वह खरी उतरी. लेकिन खान को खुश करने के चक्कर में वह ख़ुफ़िया विभाग की चेतावनी को भूल गयी और नाकारापन के कारण दूसरे खान को भी खुशी का मौका मिल ही गया और इसके लिए सरकार को साधुवाद .

यह सच है अगर पुणे में ओशो आश्रम के पास कोई सिनेमाहाल होता तो यह घटना ना घटती .क्योकि सारी मापो(महाराष्ट्र पुलिस )तो सिनेमा हाल के इर्द गिर्द थी . खैर आतंकी हमला तो रोज़ की बात है एक पिक्चर तो एक बार ही रिलीज़ होती है .हमारी सरकार सफल हुयी एक नयी परम्परा कायम ना होने दी फिल्म वहिष्कार की . और हमले व बम विस्फोट तो रोज़ की ही कहानी है . अगर एक असफल हो जाता तो कौन सा आतंक हमेशा के लिए ख़त्म हो जाता . लेकिन एक फिल्म की रिलीज़ रुक जाती तो विदेशो में क्या मूह दिखाते हम हिन्दुस्तानी .

बुधवार, फ़रवरी 10, 2010

ऊठ को पहाड़ के नीचे आने दीजिये -बाबा रामदेव करेंगे नेतागिरी




बाबा राम देव की जय . स्वामी राम देव नाम दाम बटोरने के बाद अब राजनीति को साफ़ करेंगे . और सफाई को घुसकर ही  किया जाता है ऐसा ही मानना होगा शायद बाबा का .



योग गुरु बाबा ने योग के प्रति जो जागरूकता पैदा की उसमे किसी को संदेह ना है और होना चाहिए . बाबा ने योग को सरल किया और आम जनता में लोकप्रिय किया . पहले जब योग सिखाने जाते तो योगाचार्य कहते  थे पदमासन में बैठो . आज के लोग कुर्सी पर तो बैठने में असहज थे तो आसन में कैसे बैठते .इसलिए योग से हमेशा के लिए दूर जो जाते . लेकिन रामदेव ने सारी बंदिशे हटा दी और किसी भी स्थति में प्रणायाम करने को कहा तभी योग लोकप्रिय हो गया और बाबा भी .

नाम के साथ बाबा पर जब दाम आने लगा और सम्पत्ति बनने लगी . तब बाबा को देश सेवा की सूझने लगी . बाबा ने एक आन्दोलन को खड़ा किया और अपनी सोई हुई राजनेतिक महत्वकांक्षा को जगा दिया . आज भारत के कोने कोने में बाबा को लोग जानते ही है और उसी का फायदा बाबा उठाना चाहते है . बाबा बड़ी बड़ी बात करके राजनीति के दलदल में फिसलने लगे है . बाबा को अब सिर्फ और सिर्फ सत्ता के घोड़े पर सवार होने की इच्छा है .

ऐसा नहीं बाबा पहले व्यक्ति है जो यह कर रहे है आज से पहले बाबा जयगुरु देव ने भी दूरदर्शी पार्टी बनायीं थी और जोरशोर से चुनाव लड़ा था लेकिन बाबा को कोई सफलता नहीं मिली . मुझे याद है सन ८५ में बाबा की पार्टी को पूरे भारत में पहली पांच छह पार्टियों में नंबर था वोटो के मामले में . उसी राह पर रामदेव भी चल रहे है .

२०१४ का चुनाव लड़ने को तैयार बाबा रामदेव इतने विवादित हो जायेंगे कि उनेह जान बचानी मुश्किल पड़ जायेगी . बाबा को भूलना नहीं चाहिए आचार्य रजनीश जो अमेरिका को हिला देने की हैसियत में आ गए  थे उनका क्या हश्र हुआ था . अभी तो बाबा बाबा है कल से नेता बनेंगे तब इनकम टेक्स और ना जाने कितने आरोप और जांचे शुरू हो जायेंगी तब बाबा को पता चलेगा आते दाल का भाव . अभी ऊठ को पहाड़ के नीचे आने दीजिये .

शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

विवादास्पद लिखो टिप्पणी पाओ - एक सफल प्रयोग



विवादास्पद लिखो टिप्पणी पाओ  . 

यही शिक्षा पायी मैने . बचपन में जब विज्ञान की किताब पढ़ा करता था उसमे लिखा देखा था आओ विज्ञान करके सीखे . वही प्रयोग मैने ब्लॉग में किया .जब सही लिखा तब वही आये मेरे पास जो जिनका स्नेह हमेशा से मुझे मिलता रहा . लेकिन जब विवादास्पद लिखा तो टिप्पणी  की बाढ़ आ जाती है . ऐसा मैंने प्रत्यक्ष देखा है .


कल जो मैंने लिखा उसके पीछे कोई कारण नहीं था ना ही में किसी छद्म ब्लोगर से परेशान था . मैंने एक प्रयोग किया की विवादास्पद लिखो तो क्या स्थिति होगी . और मुझे उम्मीद से कई गुना मिला . बहुतो ने पढ़ा और टिप्पणी की तो पुछीये मत . आप खुद ही महसूस कर सकते है पढ़ कर . 


खैर मैं यह समझ रहा हूँ की हम जैसे अल्प जानकार लोग विवादों के सहारे ही अपनी  पहचान बना सकते है मैं कहाँ तक सही हूँ यह तो आप लोग ही बता सकते है . हमारा दर्द है जब हम सार्थक लिखते है [यह हम समझते है ]तब हमको वह नहीं प्राप्त होता जो हम विवादित लिख कर प्राप्त कर सकते है . 


और कहने वाले तो कह ही गए है  बदनाम हुए तो क्या नाम ना  होगा . 



गुरुवार, फ़रवरी 04, 2010

क्या छद्म नामो से ब्लॉग लिख रहे लोगो पर रोक लगानी चाहिए ?

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क्या समय आ गया है कि छद्म नामो से ब्लॉग लिख रहे लोगो पर रोक लगानी चाहिए . जो व्यक्ति सही पहचान नहीं बता सकता उसे हक़ भी नहीं हो ब्लोगिंग करने का .


 ऐसे कौन से कारण है जो लोग उपनामों से लिखते है और अपनी पहचान छुपाना चाहते है .ब्लॉग लिखने पर शायद कोई पाबंदी भी नहीं है सरकारी या गैरसरकारी विभागों में . या तो वह अपने को श्रेष्ट समझते है या पढने वालो को बेबकूफ़ जो ऐसा करते है . 


क्या कोई ऐसा नियम हो जो ब्लोगर को अपना पहचान प्रमाणित अनिवार्य करे . 


मेरे विचार से तो ब्लॉग लिखने वालो को अपनी पहचान छिपानी नहीं चाहिए . जो खुलकर सामने आने से डरते है वह ब्लोगिंग करते क्यों है .  यह कुछ सवाल दिमाग [?] में उठे तो मैंने यहाँ बैठा दिए .अब आपकी राय जानना चाहता हूँ . 

मंगलवार, फ़रवरी 02, 2010

भारत में १४११ बाघ लेकिन इंसान कितने बचे गिनती करिए



कितनी चिंता का विषय है सिर्फ १४११ बाघ बचे है भारत में . एस ऍम एस करके बचाने के लिए मुहीम चालु हो गई . लेकिन क्या भारत में १४११ इंसान बचे है इस बात कि किसी को चिंता है या नहीं पता नहीं . पूरे भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक  भीड़ तो है लेकिन उस भीड़ में इंसान कितने है खोजना मुश्किल है . 


हम बाघ का अस्तित्व तो बचाने के लिए चिंतित है होना  भी चाहिए आखिर जीवो पर दया करना सिखाया गया है हमें . लेकिन बाघ से पहले हमें इंसानियत को बचाने की कोशिश भी तो करनी चाहिए . 


आइये इंसानियत को बचाए . बाघ से ज्यादा जरुरी है इंसान को बचाए रखना . 


 

सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

बाल ठाकरे से एक जन्मजात मराठी की गुहार (मूल मराठी लेख का हिन्दी अनुवाद )

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बाल ठाकरे से एक जन्मजात मराठी की गुहार 
(मूल मराठी लेख का हिन्दी अनुवाद )

बाला साहेब 
जय मराठा 

बाला साहेब में एक जन्मजात मराठी मुलगा हूँ . और मुंबई में पैदा हुआ . मैंने मुंबई में ही अपना कारोबार शुरू किया . आपके वरदहस्त से दिन दुनी रात चौगनी तरक्की की . अपने मराठी मानुषो के लिए मैंने कई काम किये . सैकड़ो लोगो को रोजगार दिया . जब मैंने  अपने व्यापार को शुरू किया था उससे पहले एक मद्रासी हाजी मस्तान के यहाँ नौकरी की . उस समय मेरे व्यापार में मद्रासियो का कब्जा था . आपने ही शिवसेना के माध्यम से पहली बार मद्रासियो के खिलाफ जंग छेड़ी थी . और उसी का फायदा उठा मैने व्यापार पर कब्जा कर लिया . परन्तु मेरा समय ख़राब था जो आपका स्नेह मुझे नहीं मिल पाया . मेरे एक साथी राजेन्द्र सदाशिव निक्ल्जे जिसे  मैं प्यार से छोटा राजन कहता था के चक्कर में आप से दूर हो गया . 
आप का साथ क्या छुटा मुझे देश ही छोडना पड़ गया . और एक दुश्मन देश पाकिस्तान में शरण लेनी पड़ी . वहां से अपना व्यापार चला रहा हूँ .लेकिन मेरा दिल अभी भी मुंबई में ही रहता है . मैंने गलती से एक उत्तर भारतीये अबू सलेम को अपना व्यापार सम्हालने को दिया तो उसने कब्ज़ा करने की कोशिश की . यह मेरी गलती थी एक उत्तर भारतीय पर भरोसा किया .
अगर आपकी कृपा हो जाए तो मै फिर से अपनी मराठी मातृभूमि में  दुबारा आ जाऊ और आपकी जो इच्छा है उसे पूरा करू . मुंबई सिर्फ मराठियों की होनी चाहिए इसके लिए मै तन मन धन से न्योछावर हो जाऊ यही अरमान बचा है . इसके लिए मैंने अपने आका लादेन साहब से भी बात कर ली है . 
आपके आदेश की प्रतीक्षा में. 
एक सच्चा मराठी 
दाउद इब्राहीम 
dauad@laden.com