इतना तो व्यस्त भी नहीं रहता कि ब्लॉग भी ना लिख सकू लेकिन थकान या कहे आलस्य हावी हो जाता है . ना लिखू तो कई विषय जो सामयिक है जिस पर लिखना चाहता हूँ वह पुराने हो जाते है . अन्ना हजारे की क़वायद भी मुझसे लिखने की रह गई . आज तक समझ नहीं पा रहा हूँ एक क़ानून कैसे भ्रष्टाचार को ख़त्म कर देगा . अगर कानूनों से कुछ होता तो पोटा से आतंक तो कब का हार चुका होता .
भ्रष्टाचार हमारी जीवनशैली में सुविधानुसार समा चुका है . सिर्फ रिश्वत ही भ्रष्टाचार है यह मुझे कुछ बात हलकी लगती है . १०० में से सिर्फ १० या १५ रिश्वत जरूर माँगी जाती है और ८० से ९० बार हम लोग अपनी सुविधा के लिए रिश्वत देते है . ऐसा मेरा मानना है .
खैर यह एक लम्बी बहस है मै तो मानता हूँ खुद सुधरोगे जग सुधरेगा .
और एक खबर आज अभी पढी अब गिद्धों की गिनती हो रही है . टाइगर तो गिन लिए थे पहले . अब गिद्धों का संरक्षण होगा . एक तरफ जन लोकपाल बिल और दूसरी ओर गिद्ध ...................... क्या सामंजस्य है . खैर उस दिन का बेसब्री से इन्तजार है जब भ्रष्टाचारियो का संरक्षण करना पडेगा जब यह खात्मे की तरफ हो . शायद यह मुमकिन नहीं लेकिन दिल बहलाने को यह ख्याल तो अच्छा है