आज हिन्दी का वार्षिक श्राद्ध है . तमात विज्ञापन छपे है हिंदी को याद करने के लिए अखबारों में . तभी याद आया हिंदी डे का . आज से हिन्दी की सेवा के लिए पखवाड़े मनाये जायेंगे . बेंको ,सरकारी आफिसो में हिन्दी की सहानुभूति के जो पट लगे है वह साफ़ किये जायेंगे जिन पर लिखा होता है हम हिन्दी में लिखे पत्रों को स्वीकार करते है .
आज हिन्दी के बेचारे लेखको को खोज खोज कर उनको अंगवस्त्र व् श्री फल के उपहार दिए जायेंगे . उनकी रचनाओं को जो शायद पढी भी ना हो प्रशंसित की जायेंगी .
मुझे यह सब उसी तरह लगता है जैसे हम अपने पितरो का श्राद्ध करते है .
हिन्दी की दुर्दशा के दोषी कौन है अगर खोज की जाए तो हम सब दोषी ही साबित होंगे . ६२ साल हो गए हिन्दी दिवस मानते हुए लेकिन आज भी कृषि ,विज्ञानं के शोध अंगरेजी में ही होते है जबकि उनका फायदा तभी हो सकता है जब वह हिंदी ,तमिल ,तेलगू ,कन्नड़ ,बंगाली ,मराठी ,असामी ,पंजाबी,गुजराती आदि में हो क्योकि हम यही भाषाए जानते है अंगरेजी नहीं .
खैर लेट्स सैलीव्रेट हिंदी डे