शुक्रवार, जनवरी 29, 2010

कौन कहता है भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ?


कौन कहता है भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ?

अगर होता तो राष्ट्रपति भवन के स्तम्भ पर यह क्रास क्या कर रहा है शायद क्रास एक धर्म का निशान है जिसके मानने वालो ने हमें गुलाम रखा . और छोड़ कर जाने के ६२ साल के बाद भी हम उसके धार्मिक चिन्ह को ढ़ो रहे है और ढिंढोरा पीट रहे है धर्मनिरपेक्ष होने का . 

मेरी बेटी को इस बात पर गुस्सा है कि आज भी हम गुलामी को क्यों ढ़ो रहे है . आज तक अपने शहीदों का कोई स्मारक ना बना सके इण्डिया गेट का उपयोग करते है जो अंग्रेजी सेना के लिए लड़े गए लोगो के लिए बना था . जबकि अमेरिका जब आज़ाद हुआ था तब उसने गुलामी के सब चिन्ह अपने हाथो से मिटा दिए थे 

गुरुवार, जनवरी 28, 2010

महान मीडिया का चमत्कार -गणतंत्र दिवस पर भारी पड़ा प्रीति जिन्टा का टायलेट में फसने का समाचार

प्रीति जिन्टा का टायलेट में फसना और दीवार फांद कर निकलना भारी पड़ गया महान भारत के गणतंत्र के समारोह पर . लगता तो ऐसा ही है आज के अखबार को देख कर . अमर उजाला ,दैनिक जागरण ,हिन्दुस्तान ,पंजाब केसरी ,हिन्दुस्तान टाइम्स आदि जो मैने देखे उनकी मुख्य खबर में भी नहीं था गणतंत्र दिवस समारोह . एक अरसा हो गया गणतंत्र दिवस के सचित्र  कवरेज हेड लाइन में हो . जबकि गणतंत्र दिवस पर करोडो रुपए विज्ञापन के रूप में कमाते है यह अखवार .


यह मानसिक दिवालियापन नहीं तो और क्या है देश के प्रहरी पत्रकारिता का जो राष्ट्र सम्मान को भी तबज्जो नहीं देता  . दूसरो का  छिद्रान्वेष्ण और खुद  अपने गिरहवान में भी झांक कर देखे कभी .


आज मीडिया भी ज्यादा निरंकुश हो गया है .सर्वोपरि मानसिकता से ग्रस्त किसी को कुछ ना समझने वाला मिडिया असल में एक माफिया से मिलता जुलता हो गया है जो सिस्टम को डरा  सकता है ,पब्लिक को भड़का सकता है रस्सी का साप बना सकता है .


और मीडिया एक मिशन ना हो कर व्यापार हो गया . आज सब अखवार , न्यूज़ चैनल उद्योगपतियों के हरम में दाखिल हो चुके है और वही से चल रहे है .


यह मेरा गुस्सा ही समझे . आखिर नक्कारखाने में तूती बजाता हूँ- ब्लागर हूँ लिखकर भूल जाता हूँ



मंगलवार, जनवरी 26, 2010

६० साल के संविधान में ९४ पैबंद

६० साल के संविधान में ९४ पैबंद . यानी कपड़ा तार तार हो चुका लेकिनपैबंद से गणतंत्र ढका सा है .समय समय पर अपने हिसाब से तोड़  मरोड़ कर संविधान का मज़ाक सा बना दिया .अदालत   का  कोई फैसला वोटो 
पर असर डालता तो छेड़छाड़ संविधान से , आरक्षण को हथियार बनाना हो तो फिर छेड़छाड़ . 


२६  जनवरी के दिन तो यह सोच ही लिया जाए कि संविधान जो राजनीतिज्ञों द्वारा  क्षत विक्षत कर दिया गया  उसे संरक्षण की जरूरत है ?

शुक्रवार, जनवरी 22, 2010

आज जनेश्वर जी के साथ समाजवाद भी दम तोड़ गया

                                                               
साम्यवाद और समाजवाद के आख़िरी मुग़ल एक सप्ताह के अंदर इस दुनिया को छोड़ कर चले गए  . पहले ज्योति बाबू अब जनेश्वर मिश्र . इन दोनों विचारधाराओ को एक धक्का लगा है इन दोनों के ना रहने से .

जनेश्वर जी तो प्रखर समाजवाद के आखिरी द्रष्टा थे . आज जनेश्वर जी के साथ समाजवाद भी दम तोड़ गया . अब समाजवाद के नाम पर सिर्फ समाजवाद शब्द का प्रयोग रह गया समाजवादी पार्टी में , आज के समय लोहिया जी के सिद्धांत के अकेले ध्वजवाहक छोटे लोहिया के नाम से लोकप्रिय जनेश्वर मिश्र राजनीति में आप्रसंगिक हो गए से लगते थे . समाजवादी पार्टी ने उनका प्रयोग किया यहाँ तक के खाटी समाजवादी मिश्र जी को जीवन के अंतिम सालो में ब्राह्मण नेता के रूप में पेश किया और विधानसभा चुनाव से पहले उनका जन्मदिन इसी प्रयोजन से प्रेरित था .

कितने सहज शब्दों में अपनी बात रखकर मन को मुग्ध करने वाले छोटे लोहिया हमेशा देसी लहजे में ही सबसे मिलते रहे . और जीवन को बिना ताम झाम के सादगी के साथ बिता गए . अगर अमर सिंह जैसे लोग उनका कहना कि समाजवादी बनो मुलायमवादी नहीं मान लेते तो इतनी कष्टप्रद स्थिति नहीं झेलते जो आज झेल रहे है .

साम्यवाद ,समाजवाद ,राष्ट्रवाद जैसे विचारधाराये पूंजीवाद ,जातिवाद ,परिवार वाद के आगे हार रही है . और इन विचारधाराओ के वाहक एक एक करके ख़त्म हो रहे है जो देश के लिए घातक साबित हो सकता है . देश की नैय्या के लिए यह आवश्यक है कि राजनेतिक विचारधाराए  .

स्व.जनेश्वर मिश्र जी को हार्दिक श्रधांजली .ईश्वर उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे
ॐ शांति शांति शांति

 

गुरुवार, जनवरी 21, 2010

ब्रेकिंग न्यूज़ -समीर लाल उड़नतश्तरी वाले करेंगे नेतागिरी

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ब्लॉग के शहंशाह ,हर दिल अज़ीज़ , हमारे आपके समीर लाल समीर उड़नतश्तरी वाले कनाडा प्रवासी कुछ नया सोच रहे है .विश्वस्त सूत्रों से पता चला है समीर जी राजनीति में जाने के लिए मन बना रहे है . उनके साथी डॉ. झटका से जब पूछा गया तो गोलमोल जबाब मिला . लेकिन हमें पक्की खबर है इस बात में सच्चाई है उनके एक टिप्पणी ने उनके इरादे की ओर इशारा किया है . यह टिप्पणी उन्होंने एक नेता जी के ब्लॉग पर की है .टिप्पणी इस प्रकार है  :

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Don!!

आज आप स्वतंत्र हैं. नये सिरे से शुरुवात करिये. हमें इन्तजार होगाएक नई सुबह हुई है. आप आगाज़ किजिये नये मूल्यों के साथ एक साफ सुथरी पार्टी का जिसमें मौकापरस्तों के लिए कोई जगह न होगी. प्रोफेशनलस को लिजिये. एक नये युग का शंखनाद करिये. टोरंटो से मैं पहला व्यक्ति होंगा जो आपकी पार्टी ज्वाईन करेगा अगर भारत की राजनित के सुधार के लिए उचित कदम उठाने की पहल हो. इस हेतु भारत लौटना भी मुझे मंजूर है.
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     इसका क्या अर्थ निकाला जाए  वैसे होगा बहुत बढ़िया-अपने जानकार भी होंगे सक्रिय राजनीति में तो भैय्या जोर से बोलो  

     नेता समीर लाल जिंदाबाद- जिंदाबाद जिंदाबाद 

वैसे भी विलायत से लौट कर आने वाले ही हमारा उद्धार करते है अरे मोहनदास को भूल गए क्या ? 
कौन मोहनदास अरे भाई मोहनदास करमचंद गाँधी .

मंगलवार, जनवरी 19, 2010

सच या मज़ाक -अमर सिंह का इस्तीफ़ा स्वीकार मुलायम सिंह पहुचे सडक पर

कमाल है कमाल है क्रिया की प्रतिक्रिया इतनी तेज़ हो सकती है इसी बात का तो कमाल है . आज दो खबरे अखबार  में छापी गई दोनों को साथ जोड़ कर पढ़े तो उसका जो अर्थ निकला वही कमाल है . 


खबर नम्बर १ - अमर सिंह का इस्तीफ़ा स्वीकार           






 खबर नम्बर २ -मुलायम सिंह पहुचे  सड़क पर 




           

वैसे दोनों खबरे लग तो सही रही है . लेकिन जब आपस में जुड़ गयी तब भी सही लग रही है . बिना हनुमान के राम का क्या होगा . ख़ैर जो होगा तो होगा अभी तो महंगाई के बोझ से दबे हम लोग इस खबर पर मुस्करा तो सकते है . 
फोटो गूगल सर्च से 


                                                                                                                                                                                                                       













शनिवार, जनवरी 16, 2010

लगाकर आग दौलत में हमने यह खेल खेला है - हम कहते है ब्लॉग और घर वाले कहते झमेला है

सच में ब्लोगिंग बहुत खर्चीली लग रही है .पहले तो चूहे भगाने वाली कम्पनी के इंटरनेट कैफे का मेंबर बना २५०० जमा करके ५००० रु मिलने का वादा मिला लेकिन बाप का सपना सारा माल अपना . बताया गया आपका टाइम लेप्स हो गया और पैसा भी .फिर कमर कसी सरकारी ब्रोड बैंड लगवाया घर पर २५० रु का प्लान जो पहले महीने १५०० रु हो गया फिर सयानो की मानी अन लिमिटेड प्लान लिया अब ७५० रु महीना टैक्स अलग भुगत रहे है .

अब ब्लोगिंग चालु हो गई बेधड़क .धडाधड . अच्छे अच्छे लोग दोस्त बने दुनिया के कोने कोने में . फ़ोन भी आने लगे और दोस्त भी . एक परिवार भी मिला शुभचिंतक भी . रोज़ वक्त जो जाया होता था अब जाया नहीं होता . ख़ैर यह बाते तो चलती रहती है बात तो अभी खर्चे की चल रही है . अब मै अपने को स्थापित मान बैठा . डेस्क टॉप जरा लेबिल से नीचे महसूस होने लगा जुगत भिडाने लगा कैसे भी लेप टॉप की जुगाड़ तो होनी ही चाहिए . और एक कैमरा भी आखिर फोटो से सजी पोस्ट ज्यादा सुंदर लगेगी . ..

यह सब हथियार ऐसे लगने लगे इससे में टक्कर ले सकूंगा सर्व श्री इनसे उनसे और उनसे और उनसे ................................  अरे यह तो अपने है मै तो ब्लॉग लिख रहे बड़े भैय्या और जल्दी शुरू हुए छोटे भईय्या से टक्कर लेने की सोचने लगा . सारा ध्यान लैप टॉप पर देने लगा . अपने अन्न दाता को मनाया गुहार मनुहार जो हो सकता है सब तीर निशाने पर साधे . बार खाली ना जाए पेशबंदी शुरू कर दी . डेस्क टॉप पर बैठो तो ठण्ड लगती है ,मच्छर लगते है . गर्मी लगती है .हमारे यहाँ बिजली आती कम है जाती ज्यादा है और इसलिए बैटरी बैकप से काम चल जाया करेगा .

 सारी दलील और गवाही को  मद्देनज़र रखते हुए अन्नदाता ने एक लेपटोप स्वीकृत किया साथ में स्केनर और कलर प्रिंटर भी . लगभग आधा लाख खर्च कर प्रगतिशील ब्लोगरो में से एक दरबार वाले धीरू सिंह कहाँ होंगे यह तो वक्त तय करेगा फिलहाल -


लगाकर आग दौलत में हमने यह खेल खेला है 
हम कहते है ब्लॉग और घर वाले कहते झमेला है 

शुक्रवार, जनवरी 15, 2010

पांच करोड़ महामूर्खो का महाकुम्भ लिखने वालो कभी महामूर्खो का हज लिख कर देखना

5 करोड़ महामूर्खो का महा कुम्भ  यह कहना है नव भारत टाइम्स के ब्लॉग में बारामासा लिखने वाले कोई राकेश परमार का . कितना लिखा है और क्या लिखा है कमाल है . हिन्दू आस्था के साथ इतने प्यार से किया गया बलात्कार हमें स्वीकार्य है वह भी एक तथाकथित हिन्दू द्वारा . परमार साहब में हिम्मत है तो कभी करोडो महामूर्खो का हज जैसा लिखे . क्यों हज पर जाते है हजारो किलोमीटर चल कर यह महामूर्ख , जम जम की जगह मिनरल वाटर लाये और जो करना है अपने घर पर करे . तो उन्हें ज्ञात हो जाएगा वह कहा गलती करते है


इतना लिखे तो उन्हें पता चल जाएगा कौम क्या होती है . और अनर्गल लिखने का क्या हश्र होता है . भाई परमार आपने जो लिखा शायद वह आपको संस्कार में नहीं मिला होगा . जब आप पैदा हुए होंगे तो आपके परिवार ने खुशियाँ मनाई होंगी और निश्चित ही नामकरण संस्कार करके पहला मूर्खतापूर्ण कदम उठाया होगा . कितनी बार ऐसे कदम उठे होंगे इनका प्रायश्चित कीजिये .

सोमवार, जनवरी 11, 2010

स्व . लाल बहादुर शास्त्री को भी भूल गए है- हां हम है ही अहसानफरामोश


                                               


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हां हम है ही अहसानफरामोश . हमारे खून में ही घुल गयी है यह बीमारी . हम भूलने की बीमारी से ग्रसित है . हम उन्हें भी बिसार चुके है जो देश की खातिर कुर्बान हो गए .  भारत के लाल ,सादगी की प्रतिमूर्ति, हिम्मत के धनी  जय जवान जय किसान के उद्बोधक स्व लाल बहादुर शास्त्री का आज शहीदी दिवस है . पुण्य तिथि की जगह शहीदी दिवस मैने जानबूझ कर लिखा है .

आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

 ६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल - लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा .

तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुई . क्या  हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो  दिया .

और हम लाल बहादुर शास्त्री को भी भूल रहे है . क्या करे हम अल्प स्मृति के शिकार है हमें तो करंट इशु ही याद रहते है और ४४ साल पहले आज के दिन क्या हुआ हमें क्या मतलब . हां शास्त्री जी ने भी अपने बच्चो को राजनीति में अपने समय में ही एडजेस्ट कर देते तो आज शास्त्री जी को भी याद कर रहे होते कई लोग ...... और पार्टी ..........हम भी


रविवार, जनवरी 10, 2010

कहीं इतिहास फिर ना दोहराया जाए -मुलायम की अमर कथा

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बहुत पहले उत्तर प्रदेश में एक किस्सा मशहूर था कि सपा का टिकट के लिए अपराधियों  को प्राथमिकता दी जाती थी . एक बार टिकिट के लिए इंटरव्यू हो रहा था . लाइन लगी थी समस्या यह थी टिकिट उसी को मिलेगा जो सबसे बड़ा हो . तभी एक आदमी आया और उसने कहा मैं जब तक कत्ल नहीं कर लेता तब तक खाना नहीं खाता . एक बार जब कोई नहीं मिला तो अपने बाप का क़त्ल करके  ही खाना खाया . कितना बात का पक्का था और उसे टिकिट मिल गया और वह विधायक बना .

यह था सपा का चरित्र उस दौर में , सरकार बनी तो सत्ता में हारे तो विक्रमादित्य मार्ग पर बंद . बस यह था सपा का कार्य . सपा का स जो समाजवादी को दर्शाता है उसका अर्थ मुलायम सिंह और दो चार के अलावा किसी को नहीं मालुम . राम मनोहर लोहिया और समाजवाद का तो सपा ने फायदा उठाया . जब सपा काशी राम मायावती को कंधे पर उठाई हुई थी और मूहँ की खाई .मायावती पर हमला और भाजपा ने मायावती को मुख्यमंत्री बना कर सपा को मात दी ,और सपा पर एक कुहासा छा गया . उस समय के मुलायम सिंह के फंड मनैजर उनके सजातीय भी धोखा दे गए . उस समय यह स्थिति थी गाहे बगाहे नेताजी की कार जो बेकार हुआ करती थी धक्का लगता रहता था .

तभी अचानक एक ओक्सिजन मिली सपा को अमर सिंह के रूप में . और अमर सिंह के साथ सपा में आया ग्लेमर , परिवर्तन . एक देहाती पार्टी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में बदलने लगी . कश्मीर से कन्याकुमारी तक अमर संग मुलायम घुमने लगे  . अम्बेसडर पेजरो में बदलने लगी . जहाँ एक हैलिकोप्टर बड़ी मुश्किल से मयस्सर होता था वहां फ्लीट थी अब . पहले सिर्फ सहारा का सहारा था अब अम्बानी थे बिडला थे . पहले राजबब्बर से काम चलता था अब अमिताभ बच्चन मय परिवार थे . कम्युनिष्ट दोस्त थे . ना जाने क्या क्या मिला अमर सिंह से सपा को .

उत्तर प्रदेश जल रहा है के पोस्टर और होर्डिंग से प्रदेश पट गया ,और सपा एक नई ताकत से उभरी लेकिन सरकार नहीं बनी . कल्याण सिंह की क्रांती का फायदा उठवा कर सत्ता सुख भीगने के पीछे अमर सिंह का ही हाथ रहा . मुलायम अमर से लगने लगे लेकिन मुलायम के अलावा उनका परिवार भी अमर सुख तो प्राप्त करता रहा लेकिन उनेह खटका भी लगा रहा कहीं अमर अमर ना हो जाए कही सपा में . रामगोपाल यादव ,अखिलेश यादव ,शिवपाल यादव यादव  ही यादव पचा नहीं पा रहे थे . राजबब्बर ,बेनीप्रसाद वर्मा ,आज़म खान को मोहरा बनाया जब मोहरा पिटा तो अमर को दोषी ठहरा दिया . यादव वाद तो हावी  था ही यादव क्षत्रप ही सपा को हरवा रहे थे लेकिन १००% सुरक्षित रहे और गैर यादव पार्टी से निकाले जाते रहे . दोष अमर सिंह के खाते में जाता रहा .

और प्रस्थितिया इस तरह से कर दी गई कि अमर सिंह को पलायन करना पड़ा . बेचारे मुलायम खामोश है अपनी मेहनत को जाया होते देख रहे है . कहीं इतिहास फिर ना दोहराया जाए द्वापर और कलयुग का . जब कृष्ण के समय यादव निरंकुश हो गए तो कृष्ण ने ही ऐसी परस्थितिया उत्पन्न कर दी की समूर्ण कृष्ण के खानदानी नष्ट हो गए . कहीं मुलायम ने भी कोई ऐसा कदम ना उठा ले .

शनिवार, जनवरी 09, 2010

गोरी या काली हो या नखरेवाली हो कैसा भी चक्कर चला दे राहुल बाबा की शादी करा दे - प्राथमिकता २०१० मिशन २०१०

खिच खिच चक चक बक बक........................ खामोश . बहुत हुआ सबको अपनी अपनी पड़ी है दूसरो के लिए सोचने का समय ही नहीं है . उनके लिए भी नहीं जो रात दिन हमारे बारे में सोचते रहते है . सब अपनी अपनी गाडी  धकेल रहे है मतलबी कहीं के .

अरे मेरे गुस्से की वजह नहीं जानना चाहेंगे जायज है मेरा गुस्सा , मेरा गुस्सा है सब पर.......... क्यों ? अब बता ही देता हूँ मै आक्रोशित हूँ सब पर क्योकि हम राहुल बाबा .......... राहुल गाँधी के बारे में सोचते ही नहीं वह गाँव गाँव जा कर घर घर घूम रहे है अब जवान सभ्रांत लड़का अपने मुहं  से तो नहीं कहेगा मेरी शादी करा दो . हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है राहुल बाबा की शादी कराने की . माता जी तो देश चलाने में व्यस्त है मनमोहन जी तो कार्य वाहक से ही है . ऐसे में बेटे की चिंता नहीं कर पा रही है .

और हम अहसानफरामोश लोग भी भुलाए हुए है अपने मुस्तकबिल को . अगर राहुल बाबा ने शादी नहीं की तो देश को ३० साल बाद कौन चलाएगा  आखिर रेहान बडेरा से ही उम्मीद ही बचेगी . इसलिए आज सौगंध खाए की  देश हित में राहुल बाबा की  शादी देश की पहले प्राथमिकता  होनी चाहिए . कांग्रेसियों के चक्कर में रहे तो हो गई शादी ........

तो आप सब से विनती है गोरी या काली हो या नखरेवाली हो कैसा भी चक्कर चला दे राहुल बाबा की शादी करा दे . देश की प्राथमिकता २०१० मिशन २०१० सिर्फ और सिर्फ राहुल बाबा की शादी ...............और कुछ नहीं

मंगलवार, जनवरी 05, 2010

ब्लॉग और ब्लॉगर भी हो गए शिकार - वही राजनीति , वही उठा पठक ,वही उछाड पछाड़ .

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क्या करु मैं ? दुविधा में हूँ .  मैं जिस दुनिया से भाग कर शांति की तलाश में ब्लॉग की दुनिया में आया वहां पर भी वही सब कुछ हो रहा है . वही राजनीति ,  वही उठा पठक ,वही उछाड पछाड़ .  


अगर इन्ही सब में पिसू या देखू तो इससे अच्छा है अपने टांगे गए हथियारों को थाम फिर निकल पडू क्योकि समर शेष है . और तटस्थ रह कर मै अपराधी नहीं बनना चाहता . 


राजनीति के  वीभत्स रूप का साक्षी रहा हूँ . जितनी आप कल्पना नहीं कर सकते उससे ज्यादा विचित्र है राजनीति , माँ सगी माँ की  चिता को आग देने के बाद तुरंत चुनाव प्रचार पर निकलते हुए नेता को देखा है . अपने बेटे सगे बेटे की चिता को इसलिए आग लगाते नहीं देखा क्योकि मंत्री की शपथ लेनी है और अस्थि विसर्जन से पहले घर से नहीं निकला जा सकेगा . या एक माँ उस जगह घुमती रही जहाँ उसका बेटा गिर कर मरा .  लाश घर पर थी और माँ कुछ ढूंड रही थी जो खोया था ना जाने क्या . 


और दूसरा पहलू यह भी है नेता ओपरेशन के लिए जा रहा है और फरियादी इस जुगत में है के चिट्ठी पर साइन  हो जाए ओपरेशन के बाद नेता जिन्दा बचे या नहीं . नेताजी अपने परिजन का दाह संस्कार करके आये है और वहां भी फरियादी है और उसका काम ज्यादा महत्वपूर्ण है उनके दुःख से . 


दुनिया जहान के तमाम कृत्य कुकृत्य देखने के बाद मोह हट गया इस राजनीति से . और भटकते भटकते यहाँ आये थे कुछ मानसिक हलचल को शांत करने के लिए . कुछ नया दिखा था , बहुत अच्छे लोग मिले हमेशा के लिए . लेकिन यहाँ भी राजनीति घुस गयी या कहें राजनीति पहुँच गयी . खैर फिलहाल मैं राजनीति को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हूँ . 


जहाँ जहाँ नम्बर की दौड़ शुरू हो जाती है और अपनी कमीज़ दूसरे की कमीज़ से ज्यादा सफ़ेद दिखाने की  होड़ शुरू हो जाती है वही राजनीति अपना कुचक्र चला देती है . जो आजकल यहाँ हो रहा है अपनी  ब्लॉग की दुनिया में . तीर छोड़े जा रहे है छुप छुप के पर लग रहे है सीधे सीधे . यह अभिनय बंद होना चाहिए पहले जैसा हो जाए सब कुछ . क्योकि यह सही नहीं हम लोगो के लिए . 


आगे आपकी मर्जी . ......... आखिर आप और हम भी खेमो में बटने को तो तैयार बैठे है . 

सोमवार, जनवरी 04, 2010

सुरा यानी शराब समुन्द्र मंथन से उत्पन्न और दानवो द्वारा प्रदत्त है . सेवन के बाद दानवी प्रवत्ति हावी हो सकती है -

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शायद सतयुग में समुन्द्र मंथन हुआ . देव और दानवो ने पर्वत को मथनी और शेषनाग को रस्सी बना कर बहुत मेहनत से समुन्द्र को मथा . बहुत से रत्न समुन्द्र में से निकले सामर्थ्य  के अनुसार उन रत्नों पर देवो ने औए दानवो ने कब्जा कर लिया . धन्वन्तरी निकले , कामधेनु आदि आदि . लक्ष्मी जी निकली तो विष्णु ले गए . विष निकला जो शिवजी को पिला दिया , एरावत इंद्र ले गए ,अमृत देवता पी गए और सुरा दानवो को पिला दी छल करके .

और मनुष्यों को कुछ नहीं मिला कुछ भी  नहीं . क्या करते उस समय भी मनुष्य की  गिनती आज के आम आदमी की तरह होती थी . निरही प्राणी बस और कुछ नहीं . मनुष्यों की गुहार देवताओ ने अनसुनी कर दी और अपने दरवाजे भी बंद कर दिए हमेशा के लिए . चिंतित मनुष्यों को अब दानवो से ही कुछ उम्मीद थी गुहार हुई कुछ तो हमें भी दो कुछ तो हमें भी दो . दानव शरीर से डरावने होते है लेकिन मन से नहीं ,उनमे दया का भाव जागा जो देवताओ में नहीं जगा था . दानवो ने मनुष्य से कहा हे मनुष्यों जो हमें मिला वह हम तुमको दे रहे है और युगों युगों  तक तुम उसका उपभोग करते रहोगे .

इस तरह सुरा मनुष्यों को प्राप्त हुई और युगों युगों से ख़ुशी और गम में समान रूप से सुरा का सेवन अनिवार्य सा हो गया . आज सुरा का रूप और गुण तो नहीं बदला लेकिन समय के साथ साथ नाम बदल गया . सुरा का लोकप्रिय नाम शराब हो गया और उसके पौराणिक रूप को देख कर सरकार का संरक्षण उसे प्राप्त हुआ . आज दूध से सरकार को कोई मतलब नहीं लेकिन शराब उसकी सरपरस्ती में दिन दुनी रात चौगनी तरक्की पर है .

इसलिए किसी विद्वान ने कहा
                                            कृष्ण युग में दूध  मिला राम युग में घी  
                                           कलयुग में दारु मिली सोच समझ कर पी 

ना छरण होने वाला यह रत्न तब भी याद आता है जब ज्यादा सर्दी होती है . औषधीय गुणों से भरपूर दवा का विकल्प जो बिना डाक्टर या वैध के पर्चे को आम आदमी को सुलभ है नित नए नए विधियों द्वारा निर्मित विभिन्न नामो से  उपलब्ध है . इसका सेवन बिना किसी पूर्वाग्रह के करे क्योकि यही तो एक रत्न है जो समुन्द्र मंथन से निकला और आज भी प्रचलित है . ...


 वैधानिक चेतावनी -


सुरा यानी शराब समुन्द्र मंथन से उत्पन्न है और दानवो द्वारा प्रदत्त है . सेवन के बाद दानवी प्रवत्ति हावी हो सकती है -
                                                                                                                                                                            

रविवार, जनवरी 03, 2010

खुशदीप जी गए छुट्टी पर - इसमें मक्खन क्या करे

नए साल में सूरज के दर्शन मुश्किल हो गए . ठण्ड ने कमाल कर दिया कभी कभी लगता है ठण्ड के मारे सूरज छुट्टी पर सुसराल चले गए . हां सुसराल से ध्यान आया बड़े बड़े सूरमा छुट्टियों पर सुसराल जाते है राज़ी से नहीं तो .......... तो क्या जिन्दगी हराम कर ले ना करके ........ खैर सुसराल है ही स्वर्ग की सार 


सुसराल की बात चली तो सुसराल वकेशन मनाने हमारे शहर एक ब्लागर भाई खुशदीप सहगल आज कल आये  है  . इसीलिए देशनामा छुट्टी पर है और स्लाग ओवर बंद और मक्खन ........ मक्खन भी गया सुसराल मक्खनी के साथ . खैर अब आगे 


एक फोन काल आई मैं खुशदीप सहगल बरेली में . वाह वाह क्या बात हुई तो मिलने का प्रोग्राम तय हो गया . ठीक समय पर खुशदीप भाई आये हमारे घर . कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते रहे . कितने सुंदर व्यक्तित्व पता नहीं क्यों कम्प्यूटर और कलम तोड़ी १५ साल अगर माडल होते तो सुपर . 


इतने जिम्मेदार पोस्ट पर कार्यरत खुशदीप भाई कितने सरल है उनसे दो मिनट बात करके ही पता चल जाता है . एक पत्रकार होने के कारण भारत के बिगड़े सिस्टम से दुखी खुशदीप भाई कुछ करना चाहते है और युवा सोच ही इस देश का कल्याण कर सकती है ऐसा मानना है उनका . मेरे पिता जी से एक लम्बी चर्चा हुई दुनिया जहान की बाते हुई और परिवार की भी . 


उनके द्वारा कुछ टिप्स भी मिले ब्लॉग पर लिखने के लिए . समय कितनी जल्दी  बीत रहा था पता ही नहीं चला . समय की अपनी मर्यादा होती है और ना चाहते हुए भी मुलाक़ात का वक्त ख़त्म करना पड़ा . पहली बार किसी ब्लॉगर से रूबरू हुआ था तो एक खुशी भी थी मुझे और परिवार को भी 


और आखिरी बात पहली बार कोई मेरी पहचान से मेरे घर आया . 


स्लाग ओवर 


मक्खन सुसराल गया वहां मक्खनी से पूछा अब तो खुश हो .....


मक्खनी क्या बोली ..........................


फिर कभी ....................