रविवार, जून 19, 2011

फादर्स डे................. जस्ट सैलीब्रेट

अमरीकी तहजीब या कहे मार्केटिंग के फंडे ने तरह तरह के डे इजाद  कर दिए है . फादर ,मदर ,सिस्टर ,ब्रदर ,सन,डाटर और ना जाने क्या क्या .................. और हम उसे आत्मसात भी कर रहे है . आज फादर डे है . एक पुत्र और एक पिता होने के नाते इस दिन को अपने तरीके से देख रहा हूँ मै .

पूर्वजन्मो का फल है मुझे ऐसे घर में जन्म मिला जो बिरलो को ही मिलता होगा . मेरे पिता एक प्रेरणा हो सकते है किसी के भी . मेरा सौभाग्य है मेरे पापा . उनकी मेहनत लगन ने उन्हें वहां तक पहुचाया जहां लोग कल्पना ही कर सकते है . 

एक ऐसे परिवार में जन्म लिया मेरे पापा ने जहा किसी बात की कोई कमी नहीं थी . उस जमाने में अपने इक्के [तांगा] से स्कूल जाना बहुत ही विलासता मानी जाती थी . लेकिन एक दुर्भाग्य भी था उनकी माँ का निधन उस समय हो गया जब वह दूध पीते बच्चे थे . समय के साथ दूसरी माँ आई और वह वैसी ही साबित हुई जैसे लोगो के मन में छवि है दूसरी माँ की . बचपन कष्ट कारक बीता . आज तक यह समझ नहीं आता है पति क्यों कमजोर पड़ जाता है पत्नी के सामने . खैर ......... .. कल्पना कीजिये चार पांच साल का बच्चे को आटा,  दाल ,नमक दे कर कहा जाए की अपना खाना खुद बनाओ तो क्या होगा ............. किसी तरह बचपन कट गया लेकिन मन में ठाना किसी से कुछ नहीं लेंगे . अपने पैरो पर खड़े होने की ललक ने उन्हें कठिन परिश्रम की ओर आगे किया . 

पहली शुरुआत सायकिल पर सामान रखकर लगभग १०० किमी रोज़ की परिक्रमा . यह कार्य मुझे लगता है जीवकोपार्जन से ज्यादा घर वालो को यह दिखाना था मै कुछ भी कर सकता हूँ . शुरू से ही समाज सेवा व् राजनीति का भी जज्बा था वह भी साथ साथ चलता रहा . राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के  प्रचारक बन संघ के शुरआती दौर में घर घर ,गाँव गाँव उसका काम किया . बाद में जनसंघ में सक्रिय रूप से शामिल हुए . अपना व्यापार शुरू किया और उसे बुलंदियों तक पहुचाया . 

बाद में अपनी मेहनत और इमानदारी से तीन बार संसद सदस्य चुने गए . आज के दौर के ऐसे नेता जो इतने ऊँचे पदों पर रहने के बाद भी बेदाग़ है . विरोधी भी उन पर आरोप लगाने का साहस ना कर सके . आज वह रिटायर है राजनीति से भी क्योकि आज के माहोल  को वह अड्जेस्ट नहीं कर पा रहे है . सब एक थैली के चट्टे बट्टे है यह उनका मानना है . 

मै उनका पुत्र जो इस कोशिश में हूँ अपने पिता के पदचिन्हों पर कदम दो कदम चल सका तो अपने  को धन्य समझूंगा . 



शनिवार, जून 04, 2011

मुफ्ते माल दिले बेरहम

कुछ दिनों से व्यापार कर रहा हूँ . व्यापार भी कार का . बहुत पैशन और टेंशन का काम है यह . टारगेट की तलवार हमेशा सर पर  लटकती है . कैसे हमारे सेल्स की टीम मेहनत करती है तब कही जाकर टारगेट के नज़दीक पहुँच पाते है . 

नए नए अजीबोगरीब ग्राहक से रोज़ पाला पड़ता है . आजकल दहेज़ के लिए  कारे बिक रही है जैसे कभी मोटर साइकिल और उनसे पहले साइकिल बिका करती थी . लड़की का बाप जो निरही गाय नज़र आता है उस समय और लडके का बाप कसाई . आते है कम कीमत की कार खरीदने और शोरूम पर पसंद करते है उससे महंगी कार .वह समय लड़की के बाप के लिए बहुत भारी होता है . मुझ से मदद की उम्मीद लिए मेरे चेंबर में जब आता है तो मुझे समझोता कराना पड़ता है . जब जब मैंने यह कहा की लड़की वालो की सामर्थ्य इतनी ही है क्यों ना आप और पैसा डाल कर इससे बढ़िया कार खरीद ले . तब तब लड़के वाले उसी कार पर आ जाते है जो लड़की वाले दे ना चाहते थे . 

मुफ्ते माल दिले बेरहम का उदहारण रोज़ देखने को मिल रहा है .........................