गुरुवार, सितंबर 18, 2008

आओ मौत को जाने करीब से

कैसी दिखती है मौत क़रीब से?
मौत के क़रीब पहुँचने का अनुभव कैसा होता है यह जानने के लिए डॉक्टर दिल का दौरा झेल चुके लोगों के बीच एक बड़ा अध्ययन करने जा रहे हैं.
ब्रिटेन और अमरीका के 25 अस्पतालों के डॉक्टर ऐसे 15 सौ लोगों से उनका अनुभव पूछेंगे जिनके दिल ने धड़कना बंद ही कर दिया था या मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था और फिर उनका जीवन लौट आया.
डॉक्टर जानना चाहते हैं कि क्या ऐसे लोगों को अपने शरीर से बाहर भी कोई अनुभव हुआ था.
ऐसे अनुभव से गुज़र चुके कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने गुफ़ा देखी या फिर तेज़ रोशनी. जबकि कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने ऊपर से मेडिकल स्टाफ़ को देखा.
तीन साल में होने वाले इस शोध का संयोजन साउथैंपटन यूनिवर्सिटी करेगी.
इस प्रयोग के लिए ऐसी जगहों पर तस्वीरें लगाई जाएँगी जो सिर्फ़ छत से दिखाई पड़ सकती है.
इस शोध का नेतृत्व कर रहे डॉ सैम पार्निया का कहना है, "यदि आप ये दिखा सकें कि मस्तिष्क के काम करना बंद करने के बाद भी किसी की चेतना बची रहती है तो एक संभावना यह दिखती है कि चेतना कोई अलग ही चीज़ है."
उनका कहना है,"इसकी संभावना बहुत कम है कि ऐसे बहुत से मामले मिलें लेकिन हमें अपना दिमाग खुला रखना होगा."
वे कहते हैं, "यदि उस तस्वीर को कोई नहीं देख पाता है तो यह मानना ठीक होगा कि लोगों ने जो अनुभव बताए वो केवल भ्रम थे या फिर कोई झूठी याद है."
डॉ पार्निया का कहना है कि यह एक रहस्य है लेकिन लेकिन अब इसका वैज्ञानिक परीक्षण किया जा सकता है.
सघन चिकित्सा कक्ष में काम करने वाले डॉ पार्निया का मानना है कि मौत के क़रीब पहुँचने पर होने वाले अनुभवों को लेकर वैज्ञानिक क्षेत्र में बहुत अधिक काम नहीं किया गया.
मौत की प्रक्रिया
उनका कहना है कि आम तौर पर माना जाता है कि मौत का कोई एक क्षण होता है लेकिन ऐसा है नहीं.
वे कहते हैं, "यह एक पूरी प्रक्रिया होती है जिसमें पहले दिल धड़कना बंद करता है, फिर फेफड़े काम करना बंद करते हैं और फिर मस्तिष्क काम करना बंद करता है...यह एक चिकित्सकीय स्थिति है जिसे हृदयाघात कहा जाता है."
डॉ पार्निया कहते हैं कि हृदयाघात के दौरान ये तीनों परिस्थितियाँ मौजूद होती हैं.
उनका कहना है कि उसके बाद एक ऐसा समय शुरु होता है जब चिकित्सकीय उपायों से दिल की धड़कन को शुरु किया जा सकता है और मौत की प्रक्रिया को रोका जा सकता है. यह समय कुछ सेकेंड का भी हो सकता है और एक घंटे का भी.
वे कहते हैं, "हृदयाघात के दौरान लोगों का अनुभव एक मौक़ा देगा कि हम समझ सकें कि मौत की प्रक्रिया के दौरान का अनुभव कैसा होता है।" (बी बी सी से साभार )

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