रविवार, अगस्त 30, 2009

या खुदा इन नासमझो को कौन समझाए

एक नए मौलाना तकरीर के लिए एक जलसे में गए और धुँआधार तकरीर झाडी । और बाद में पूछा हजरात जलसा आपको समझ आया । लोग हां कर बैठे लेकिन समझ कुछ नही आया । लोगो ने विचार किया अगली बार आधे हां कहेंगे आधे ना ।

मौलाना अगली बार आए और बाद में पूछा हजरात ऐ जलसा आपको समझ आया आधो ने हां कहा और आधो ने न । मौलाना बोले जिन हजरात को समझ आया है वह न समझो को समझा दे । लोग परेशान मौलाना फिर बेब्कुफ़ बना गया । अगली बार तय हुआ सब मना करेंगे ।

मौलाना आए फिर तकरीर की जो लोगो के ऊपर से निकल गई । मौलाना ने फिर पूछा हजरात ऐ जलसा आपको समझ आया । सब ने कहा नही , मौलाना सर पकड कर बोले या खुदा इन नासमझो को कौन समझाए ।

शुक्रवार, अगस्त 21, 2009

भाजपा पर तानाशाही हावी है

जसवंत सिंह की पुस्तक पर उठा विवाद या कहे उठाया गया विवाद बिलकुल ऐसा है जैसे कौआ कान ले गया और हम उसके पीछे दौड़ रहे है पहले कान टटोले बिना . ऐसा क्या लिख दिया जसवंत सिंह ने जिससे सिर्फ भाजपा के पौरुष पर प्रश्न चिन्ह लग गया . बिना पढ़े समझे बेतुके आरोप संघ परिवार की पुराणी खसलत है . जसवंत सिंह ने वही लिखा जो संघ पिछले ६० साल से चीख चीख कर कहता रहा है कि भारत विभाजन का सबसे बड़ा कारण पंडित नेहरू रहे है . और उस समय के सभी नेता जिन्होंने विभाजन का प्रस्ताव पास करा था वह भी कम अपराधी नहीं है चाहे उसमे गांधीजी हो या सरदार पटेल .

बेचारे जसवंत सिंह की किताब क्या अडवानी जी के ब्यान जो जिन्ना की मजार पर दिया था से ज्यादा घातक है . अगर जिन्ना की हकीकत ब्यान करना अपराध है तो जसवंत सिंह को सजा और अडवानी जी को प्रधानमंत्री वेटिंग और नेता प्रतिपक्ष बनाना इन्साफ के साथ दोगलापन नहीं . लगता है भाजपा के बारे में कहागया सत्य है कि वहां पर तानाशाही हावी है

जसवंत सिंह जो भाजपा के संस्थापक सदस्य है को अपमानित करके अलोकतांत्रिक तरीके से भाजपा से निकालना इस बात का प्रमाण है भाजपा में लोकतंत्र नहीं और इस समय के नेताओ में इतनी छमता नहीं वह अपने को साबित करे इसलिए पुराने स्थापित व्यक्तित्व को बेईज्ज़त कर उनेह हटा रहे है या यह कहे बड़ी लाइन तो खीच नहीं सकते लेकिन बड़ी लाइन को मिटा कर अपने को बड़ा साबित करने पर लगे है . और राजनाथ सिंह जैसे बिना धरातल के राष्ट्रीय नेता भाजपा को मिटाने का संकल्प कर चुके है .

सोमवार, अगस्त 17, 2009

आज एक साल का हो गया मै ब्लॉग की दुनिया में

एक साल सिर्फ़ एक साल नही नही पूरा एक साल हो गया मुझे अपना दरवार जमाये हुए । आज ही के दिन मैने पहली पोस्ट लिखी आज ही के दिन मै ब्लोगर बना । एक साल कोई उपलब्धि तो नही लेकिन निरंतरता के हिसाब से मेरे लिए एक बहुत बड़ी बात है । आज तक इतना लगके कोई काम नही किया सिवाय खाने सोने के ।

इन एक साल में बहुत कुछ परिवर्तन महसूस हुआ मुझे । रोज़ १० से २० अलग अलग लोगो के विचार ब्लॉग के माध्यम से जान कर मेरी सुप्त्प्राय बुद्धि में एक करंट सा प्रवाहित हुआ । सच में सोच में एक नया उत्साह सा जगा है । मानसिक उठापटक से विचारो में धार तो लगी है । स्वतः सुखाय लिखने से शुरू सफर एक जिम्मेदारी में तब्दील हो जाता है जब लोग उसे पढ़ते है और उस पर टिप्पणी करते है ,सराहते है और हां कभी कभी कोसते भी है ।

कभी कभी लगता है कि मै भी कुछ है मुझे भी लोग जानते है देश और विदेश में भी । और ऐसे महानुभावो के सानिध्य में मै हूँ जिन्हें मैने देखा तो नही लेकिन उनेह जानता जरूर हूँ । क्या कहू लेकिन एक परिवर्तन तो है ही , निश्चित तौर पर ब्लोगिंग मानसिक क्षमता को और सक्षम बनाता है ।

इस एक साल में मुझे कई विशिष्ट व वरिष्ट ब्लोगरो का स्नेह मिला है जिसका मुझे गर्व है । मै सभी अपने पढने वालो को धन्यबाद देता हूँ जिनके स्नेह के कारण ही ब्लॉग कि दुनिया में रह पाया हूँ । आपका आर्शीवाद ऐसे ही मिलता रहे जिससे मै इस दुनिया मै भी आबाद रह सकू ।

शुक्रवार, अगस्त 14, 2009

आज़ादी आज़ादी आज़ादी

आज़ादी आज़ादी आज़ादी सिर्फ़ आज़ादी के लिए लाखो लोगो ने अपना सर्वस्य न्योछावर किया तब जाकर मिली यह आज़ादी । इन ६२ सालो में आज़ादी की हवा में साँस लेने के अलावा कुछ भी हासिल नही हुआ । आज़ादी का जश्न बचपन में स्कूल में मिठाई औए बड़े होने पर एक छुट्टी ही मायने रही ।

१८५७ की क्रान्ति के बाद नब्बे साल तक रोज़ एक क्रांति हुई तब जाकर हम आजाद हुए । लेकिन वह जज्बा हम आगे बरकरार नही रख पाये पता नही क्यों ? १५ अगस्त ४७ के बाद दिन ब दिन हम स्वार्थी होते चले गए और इतने आजाद हो गए अपने और अपनों के अलावा हमें कुछ सूझा नही । अपनी तरक्की के आगे देश तो सिर्फ़ मिटटी ही रह गया ।

१५ अगस्त सिर्फ़ प्रधानमन्त्री का लाल किला से भाषण , आजादी के पुराने गाने ,छुट्टी और कुछ सालो से बड़ी दुकानों पर सेल ही पहचान बन कर रह गया है । स्वतंत्रता दिवस के क्या मायने रह गए है समझ नही आता । अगर आपको पता है तो जरुर बताये ।

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओ सहित ।

गुरुवार, अगस्त 06, 2009

वोट के भवंर में डूबेंगी यह तीन फासियाँ भी

एक फ़ैसला और हुआ । उसकी भी धज्जिया उड़ते हुए हम देखेंगे । आज अदालत ने मुम्बई बम धमाको के तीन अभियुक्तों को फासीं की सज़ा सुना दी । शाबास या कहे धन्यवाद कानून को जिन्दा बताने के लिए ।

लेकिन हम वह है जो जीते युद्घ मेजों पर हार जाते है । हुई सजाओ का क्रियान्वन नही कर सकते है । क्योकि हमारे लिए देश कानून से उची एक चीज है ,वह है वोट और वोट के भवर में तमाम फैसले डूब जाते है जो कानून के द्वारा होते है । शाहबानो केस हो या अफजल केस हो । हम मो.युनुस के साहबजादे को तो विदेश से सज़ा को माफ़ करा कर बापिस ला सकते है क्योकि वह धरोहर था १५ अगस्त ४७ को पैदा हुआ था लेकिन सरबजीत को नही जो निर्दोष है ।

हम आतंकियों को मय फिरोती के ससम्मान उनके घर छोड़ के आते है । पुरलिया में हथियार गिराने वाले पायलट को छोड़ देते है , दाऊद को मय परिवार के जाने देते है । ऐसे न जाने कितने उधारण होंगे जो हमें शर्मिंदा तो करते है लेकिन आंदोलित नही ।

ख़ैर यह फासी की सज़ा भी विवादों में घिरेगी अभी तो इत्तदा है । कितने मानवाधिकारी आसूं बहायेंगे क्योकि एन .जी .ओ विदेशो के पैसे से चलता है आम आदमियों के दुःख दर्द से नही ।

रविवार, अगस्त 02, 2009

मेरा गाँव सुधर रहा है . ...

मेरा गाँव जिसका नाम सुनकर लोगो को डर लगता है । आज भी शहर के नज़दीक होने के बाबजूद लोग वहां जमीन खरीदने की हिम्मत नही जुटा पाते क्योकि उन्हें यकीन नही होता कब्जा मिलेगा या नही । बसों में आज भी गाँव के लोग फ्री चलते है । रात में लोग डरते है वहां से निकलने पर , चलते ट्रक पर रखा सामान उतार लिया जाता है ।

कच्ची शराब बनाने का कुटीर उद्योग है । पहले तो स्मेक और हेरोइन का भी कारोबार था अब उससे तो राहत है । नई पीडिया भी मार काट में विश्वास करती है । देसी हथियार तो गहने है लोगो के लिए । और यहाँ सूरज अस्त और गाँव मस्त होता था और तो और कई लोग सूरज प्रकट पर भी मस्त हो जाते है . पर ऐसा नही सब ऐसे ही है कुछ मछलियों ने तालाब गन्दा कर रखा है ।

लेकिन कुछ दिनों से एक नई बात हो गई है लोग धर्म कर्म में पड़ गए है जो शराब से कुल्ला करते थे वह लोग शराब को छोड़ रहे है । कोई जय गुरु देव का चेला हो गया है कोई बाल योगेश्वर का और कोई भोले बाबा का । सब गुरु की प्रेरणा से शराब , मॉस मछली छोड़ रहे है । कमाल हो गया है सब सुधर रहे है । गाँव से ५० से ज्यादा लोग कांवर लेकर आए लगभग १०० किलो मीटर की पैदल यात्रा की ।

ईश्वर से प्रार्थना है ऐसी ही कृपा बनाये रखे मेरे गाँव पर । आप लोग भी प्रार्थना करे ।

गुरुवार, जुलाई 23, 2009

हिन्दी का अपमान - कब तक सहेगा हिन्दुस्तान

हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है यह एक मज़ाक से ज्यादा कुछ नही । हिन्दी को इस उपाधि से मुक्त करना हमारे लिए भी अच्छा है और हिन्दी के लिए भी । क्योकि हिन्दी के साथ इतना सौतेलापन बर्दाश्त नही होता । यह सब विचार इसलिए आए क्योकि भारत के सुप्रीम कोर्ट यानी सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दी में फैसले व कार्यवाही में असमर्थता जताई है । कहा गया हिन्दी में कार्य सम्भव नही ।

अगर बेचारी हिन्दी के साथ यह व्यवहार सुप्रीम कोर्ट का है तो किस मुहं से हिन्दी अपने को इस देश की राष्ट्र भाषा कहे । बेचारी और लाचार हिन्दी का हाल बिल्कुल ऐसा ही है जैसे शहंशाह आलम - दिल्ली से पालम

जो देश और देशवासी अपनी भाषा का सम्मान नही कर सकते उनका सम्मान कौन करेगा । आज फ्रांस ,जर्मनी ,रूस ,चीन ,जापान जैसे देश अपनी राष्ट्र भाषा का सम्मान करते है । और विकसित है उन देशो को किसी दूसरी भाषा की बैसाखी की जरूरत नही पड़ती । लेकिन हम लोगो को अ आ इ ई से पहले ऐ ,बी ,सी ,डी सिखा दी जाती है बचपन में । और यह बात भर दी जाती है बिन अंग्रेज़ी सब सून ।

मैं भी अपवाद नही , समय के साथ चलने के चक्कर में मेरी बेटी भी एक कोंवेंट स्कूल में पढ़ रही है । क्योकि मैं इतना शक्तिशाली नही जो धारा के विपरीत बह सकू ।

अपनी हिन्दी को राष्ट्र भाषा न सही मातृ भाषा के रूप में तो सम्मान दे ही सकते है । और उसके सम्मान के लिए कुछ तो योगदान दे ही सकते है । वैसे कुछ समय बाद हिन्दी सिर्फ़ एक १०० नम्बर का एछिक विषय के आलावा कुछ नही रह जायेगी संस्कृत की तरह । हिन्दी की जगह लेने के लिए हिंगलिश तैयार है ।