सोमवार, अक्टूबर 15, 2012
बुधवार, अक्टूबर 10, 2012
मैं जिन्दा हूँ
मैं जिन्दा हूँ . यह बात मैं जानता हूँ शायद मेरे ब्लॉग पर आने वाले समझ न बैठे की मैं कहीं मर तो नहीं गया इसलिए अपनी गलती सुधारने के लिए नियमित अंतराल से फिर से ब्लॉग लिखने का निश्चय कर लिया है .और हाँ ब्लॉग के लिए कम से कम 1 घंटा जरूर दूंगा . आलस्य और इंटरनेट के गलत इफेक्टो के कारन ब्लॉग से दूर होता चला उस ब्लॉग से जिसको मैंने बनाया और उस ब्लॉग ने मुझे पहचान दिलाई
एक नई पहचान जो मेरे भूत काल से बिलकुल अलग थी . जिस समय मैं अनजाने में ब्लॉग पर आया था उस समय मैं खानाबदोशो जैसा जीवन व्यतीत कर रहा था लेकिन आज एक कम्पनी को सही ढंग से चला रहा हूँ .वह भी कार बेचने वाली कम्पनी .
खैर आज से पुरानी बातो को भूलते हुए एक बार फिर से नई शुरुआत आपके आशीर्वाद के साथ चालू होचुकी है
एक नई पहचान जो मेरे भूत काल से बिलकुल अलग थी . जिस समय मैं अनजाने में ब्लॉग पर आया था उस समय मैं खानाबदोशो जैसा जीवन व्यतीत कर रहा था लेकिन आज एक कम्पनी को सही ढंग से चला रहा हूँ .वह भी कार बेचने वाली कम्पनी .
खैर आज से पुरानी बातो को भूलते हुए एक बार फिर से नई शुरुआत आपके आशीर्वाद के साथ चालू होचुकी है
बुधवार, अगस्त 15, 2012
आजादी में गिरफ्तार हम ....हमारा कसूर क्या
आजादी के दिन हमारा शहर कर्फ्यू ग्रस्त हालत में जश्न ? मना रहा है . लगभग महीना भर होने को आ रहा है हमारे शहर की फिजा खराब हुए .सडको पर सन्नाटा है दिलो में खौफ है .
हम जैसे लोग तो कर्फ्यू को कई महीनो तक झेलने का माद्दा रखते है . लेकिन रोज़ कुआँ खोदने वाले लोगो के दुखो की कल्पना से ही मेरा तो मन विचलित हो ही जाता है .दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों के हालत तो बदतर हो गए होंगे उन बेचारो को तो नमक भी रोज़ ही खरीदना पड़ता है . खैर हमारे हुक्मरानों को इससे कोई फर्क तो पड़ता नहीं वह तो 2014 की गुणा भाग लगा रहे होंगे इसका फायदा कैसे उठाया जाए .
दुःख तो होता है आज की मीडिया को देख कर .किसी भी चैनल किसी भी अखबार में कोई भी खबर हमारे बरेली की नहीं जबकि दो साल में तीसरी बार दंगे हुए और कर्फ्यू लगा . तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया को चिंता है हाई फाई सोसाईटी औरतो की मौत मर ,उन्हें चिंता है मीडिया द्वारा प्रायोजित आन्दोलनों की कवरेज पर . और न जाने कितने जरूरी काम है सिवाय देश के शन्ति प्रिय इलाको में हो रही हिंसा के
मुंबई में हिंसा हुई सिर्फ वही चैनल रो रहे है जिन्हें नुक्सान हुआ . बाकी सब खामोश . आसाम की आग धर्म आधारित कर दी गई जबकि लड़ाई घुसपैठियो के खिलाफ है . खैर हम भी ओरो पर क्यों रोये अभी अपने ही दर्द बहुत है हमें रुलाने को .
अगर अब जल्दी हमारी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ तो कई शहर बरेली बन जायेंगे . हो सके तो कोई हमारी आवाज़ मे अपनी आवाज मिला दे
हम जैसे लोग तो कर्फ्यू को कई महीनो तक झेलने का माद्दा रखते है . लेकिन रोज़ कुआँ खोदने वाले लोगो के दुखो की कल्पना से ही मेरा तो मन विचलित हो ही जाता है .दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों के हालत तो बदतर हो गए होंगे उन बेचारो को तो नमक भी रोज़ ही खरीदना पड़ता है . खैर हमारे हुक्मरानों को इससे कोई फर्क तो पड़ता नहीं वह तो 2014 की गुणा भाग लगा रहे होंगे इसका फायदा कैसे उठाया जाए .
दुःख तो होता है आज की मीडिया को देख कर .किसी भी चैनल किसी भी अखबार में कोई भी खबर हमारे बरेली की नहीं जबकि दो साल में तीसरी बार दंगे हुए और कर्फ्यू लगा . तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया को चिंता है हाई फाई सोसाईटी औरतो की मौत मर ,उन्हें चिंता है मीडिया द्वारा प्रायोजित आन्दोलनों की कवरेज पर . और न जाने कितने जरूरी काम है सिवाय देश के शन्ति प्रिय इलाको में हो रही हिंसा के
मुंबई में हिंसा हुई सिर्फ वही चैनल रो रहे है जिन्हें नुक्सान हुआ . बाकी सब खामोश . आसाम की आग धर्म आधारित कर दी गई जबकि लड़ाई घुसपैठियो के खिलाफ है . खैर हम भी ओरो पर क्यों रोये अभी अपने ही दर्द बहुत है हमें रुलाने को .
अगर अब जल्दी हमारी समस्या का कोई समाधान नहीं हुआ तो कई शहर बरेली बन जायेंगे . हो सके तो कोई हमारी आवाज़ मे अपनी आवाज मिला दे
शुक्रवार, जुलाई 27, 2012
हमें बचाओ .... हम जल रहे है
बहुत दिनों बाद दरबार लगाया है . कई दिनों से यह वायरस से पीड़ित था . आज देखा तो ब्लॉग की तबियत ठीक लग रही थी . इसलिए कुछ जुगाली कर ही ली जाए . कई विषय सामने से गुजर गए जिस पर लिखना चाहता था लेकिन ..... खैर देर आयद तो दुरुस्त आयद
सब से ज्वलंत विषय है मेरे शहर बरेली में पिछले 6 दिनों से चलने वाला कर्फ्यू .. हिन्दू मुस्लिम दंगे के बाद तीन चार मौतों के बाद आगजनी हुयी और अंजाम हुआ की कर्फ्यू ... कावारियां निशाना बने और फिर राजनीति ने आग में घी डाला .जब घी पड़ा है तो आग भडकेगी ही . और वही हुआ दो साल में दूसरी बार दंगे हुए हम बरेली वाले जो अमन पसंद का तमगा लगाए घूमते थे आज अलीगढ ,मुरादाबाद ,मेरठ से भी ज्यादा बदनाम हो गए .
यह बार बार के दंगे हम को बर्बाद तो कर ही देंगे .एक विचार आता है यह दंगे आम क्यों होते जा रहे है ? बहुत सोचने के बाद मुझे तो यह लगता है दंगाईयो पर कठोर कार्यवाही न होना एक कारण है . डर तो किसी का नहीं है दंगाइयो को इसलिए बार बार वह अपने नापाक इरादों पर कामयाब हो जाते है और हमारे शासक वोटो के नुक्सान के डर से खामोश रहते है . चाहे वह कोई हो .... यह वादी या वह वादी
हमारे लिए तो रोजमर्रा की बात हो गई है जैसे वियतनाम ,ईराक और अफगानिस्तान हो यह ......
सबसे मज़े की बात यह है हमारा दर्द बस हमारा होकर रह गया है .प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मूर्ति की चिंता है ,अन्ना के सर्कस में भीड़ ना आने की चिंता है ,तिवारी के डी एन ऐ की चिंता है ............ लेकिन एक शहर में लगी आग की चिंता नहीं जिसमे जल रहा है हमारा सदभाव
सब से ज्वलंत विषय है मेरे शहर बरेली में पिछले 6 दिनों से चलने वाला कर्फ्यू .. हिन्दू मुस्लिम दंगे के बाद तीन चार मौतों के बाद आगजनी हुयी और अंजाम हुआ की कर्फ्यू ... कावारियां निशाना बने और फिर राजनीति ने आग में घी डाला .जब घी पड़ा है तो आग भडकेगी ही . और वही हुआ दो साल में दूसरी बार दंगे हुए हम बरेली वाले जो अमन पसंद का तमगा लगाए घूमते थे आज अलीगढ ,मुरादाबाद ,मेरठ से भी ज्यादा बदनाम हो गए .
यह बार बार के दंगे हम को बर्बाद तो कर ही देंगे .एक विचार आता है यह दंगे आम क्यों होते जा रहे है ? बहुत सोचने के बाद मुझे तो यह लगता है दंगाईयो पर कठोर कार्यवाही न होना एक कारण है . डर तो किसी का नहीं है दंगाइयो को इसलिए बार बार वह अपने नापाक इरादों पर कामयाब हो जाते है और हमारे शासक वोटो के नुक्सान के डर से खामोश रहते है . चाहे वह कोई हो .... यह वादी या वह वादी
हमारे लिए तो रोजमर्रा की बात हो गई है जैसे वियतनाम ,ईराक और अफगानिस्तान हो यह ......
सबसे मज़े की बात यह है हमारा दर्द बस हमारा होकर रह गया है .प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया को मूर्ति की चिंता है ,अन्ना के सर्कस में भीड़ ना आने की चिंता है ,तिवारी के डी एन ऐ की चिंता है ............ लेकिन एक शहर में लगी आग की चिंता नहीं जिसमे जल रहा है हमारा सदभाव
मंगलवार, मई 15, 2012
सांसद रेखा के बहाने
सांसद रेखा के बहाने आज का पुराना सच्चा किस्सा याद आ गया . लोकतंत्र भी कितना अजीब है हमारे यहाँ के सांसद इंदिरा लहर में जीत कर दिल्ली गए . जब उनसे उनके क्षेत्र में लोगो ने उनसे पूछा आपको संसद में सबसे अच्छा कब लगा .तो वह यादो में खो गए और साफ़ गोई से बोले .........एक दिन जब फिल्म गंगा जमुना आई थी तब हम उसका टिकिट लेते समय भीड़ में अपना कुर्ता तक नुचवा चुके थे क्योकि हमें वैजयन्ती माला को परदे पर देखना था . और अब वही बैजयंती माला संसद में हमारे पास में बैठती है . इससे अच्छा क्या लगेगा हमें .
वही संतोष आज मुझे तमाम सांसदों के चेहरे पर लगा जब रेखा शपथ ले रही थी . ना जाने कितने सांसद सलामे इश्क को याद कर रहे होंगे .कितने सांसदों ने अपने उन दिनों में रेखा को सपने में जरूर महसूस किया होगा वही वजह थी मेज की थपथपाहट ज्यादा जोर से थी . जय हो रेखा की .वह अपने अनुभवों को महसूस जरूर कराएंगी चाहे वह उत्सव का हो या टेल ऑफ़ कामसूत्र का .........
शुक्रवार, अप्रैल 20, 2012
कैसी कही
उन्हें शिकवा है हम उन्हें न समझ सके
अगर यह हम कहते तो बेहतर होता
बहुत कुछ न कह सके हम उनके लिए
शायद कुछ कहते तो अच्छा होता
जो दिल में है कमबख्त वही दिखता है
अच्छा होता हमारे चेहरे पर चेहरा होता
हम भी उनमे शुमार हो जाते धीरू
जिन्हें शराफत का तमगा मिलता
शुक्रवार, अप्रैल 13, 2012
निर्मल बाबा की ..................? कृपा
लगभग हर टी वी चैनल पर जब निर्मल बाबा की तीसरी आँख बतौर विज्ञापन दिखाई जाती रही और कमाई होती रही तब तक कोई आलोचना नहीं हुई .और जब लगा कि बिना विज्ञापन के बाबा की दुकान दौड़ रही है और कमाई खत्म होने को है तो बाल की खाल निकालनी शुरू हो गई है .
आज बाबा निर्मल ही हर चैनल में मुफ्त में प्रचार पा रहे है . और इसी बहाने कई तर्क शास्त्री .धर्माचार्य आज रोज़गार पा रहे है . एक बकवास बहस चल रही है . निर्मल सिंह नरूला का दरबार चल ही रहा है .
क्या निर्मल बाबा ही दोषी है ? क्या वह लोग दोषी नहीं जो आज तक निर्मल बाबा की कमाई का हिस्सा विज्ञापन के रूप में खा रहे थे . स्टार ,जी ,आजतक ,a x n जैसे चैनल भी मलाई चाट रहे थे तब नहीं सोच रहे थे वह किसको बढावा दे रहे है .
खैर निर्मल बाबा की जगह कोई और बाबा आ जाएगा दुखी हिन्दुस्तानियों को दो पल की ख़ुशी देकर उन्हें लूटने के लिए . वैसे में भी अगर इस धंधे में उतर जाऊ तो कोई आश्चर्य ना करे क्योकि २३० करोड़ रु . कमाना इस जन्म में तो फ्राड करके ही कमा सकता हूँ . तो शुरुआत अपने आप से बोलिए धीरू बाबा की .....................
मंगलवार, फ़रवरी 28, 2012
हिंदी ब्लागिग के नुक्सान के लिए क्या चिट्ठाजगत व् ब्लागवाणी दोषी है
लगभग दो महीने हो गए ब्लॉग को लिखे हुए . ऐसा पहली बार हुआ . कल बहुत सोचा की ऐसा क्यों हो रहा है . और तो और इण्डिया टुडे के इस अंक में हिंदी ब्लोगिग की दुर्दशा पर भी एक रिपोर्ट आई है . जितनी तेज़ी से हम लोग चले थे उससे तेज़ी से हम लोग रुक गए .
हिंदी ब्लोगिग को नुक्सान के लिए ट्विटर और फेस बुक को काफी हद तक दोषी माना जा रहा है लेकिन मै इस का कारण चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी जैसे लोकप्रिय ब्लॉग प्रेरको का असमय गन्दी राजनीति के आगे हार मान लेना रहा . आज भी ब्लागवाणी को खोलकर देखता हूँ की सीता की दुविधा ख़त्म हुयी की नहीं हुई . यह सच है चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी गागर में सागर थे ब्लागों के लिए . कोई माने या न माने मेरे लिए तो थे ही . बहुत से और एग्रीगेटर आये लेकिन मै उनके साथ सहज नहीं हो पाया . काश ब्लागवाणी फिर से शुरू हो चाहे तो एक प्रतीकात्मक शुल्क के साथ ही .
मेरी वरिष्ट ब्लागरो से अपील है की एक माहौल बनाये फिर से जिससे हम स्वयम्भू लोग भी लिखना पढना चालू रखे . ............................................... आमीन
हिंदी ब्लोगिग को नुक्सान के लिए ट्विटर और फेस बुक को काफी हद तक दोषी माना जा रहा है लेकिन मै इस का कारण चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी जैसे लोकप्रिय ब्लॉग प्रेरको का असमय गन्दी राजनीति के आगे हार मान लेना रहा . आज भी ब्लागवाणी को खोलकर देखता हूँ की सीता की दुविधा ख़त्म हुयी की नहीं हुई . यह सच है चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी गागर में सागर थे ब्लागों के लिए . कोई माने या न माने मेरे लिए तो थे ही . बहुत से और एग्रीगेटर आये लेकिन मै उनके साथ सहज नहीं हो पाया . काश ब्लागवाणी फिर से शुरू हो चाहे तो एक प्रतीकात्मक शुल्क के साथ ही .
मेरी वरिष्ट ब्लागरो से अपील है की एक माहौल बनाये फिर से जिससे हम स्वयम्भू लोग भी लिखना पढना चालू रखे . ............................................... आमीन
गुरुवार, जनवरी 05, 2012
बिना शीर्षक
मेरी एक तमन्ना थी की भाजपा ख़त्म हो जाए लेकिन इस तरह यह तो कभी सोचा ना था . भाजपा का पतन तो उसी समय शुरू हो चुका था जब बंगारू लक्ष्मण को वोटो की खातिर अध्यक्ष बनाया गया उसके बाद राजनाथ सिंह ने ढेर किया और ताबूत में आंखिरी कील ठोकने के लिए गडकरी है ही .
वर्तमान में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जो हो रहा है वह भाजपा के अंतिम संस्कार की तैयारी ही लगती है . सत्ता को पाने के लिए पहले से ही नाले में बदल गई यह गंगा<?> अब भी नाले और सीवर को आत्मसात कर रही है . धरातल विहीन नेता जो भाजपा की ह्त्या करने में शामिल है आज भी बेशर्मी से बक बक कर रहे है . आज श्यामाप्रशाद मुखर्जी ,दीनदयाल उपाध्याय ,सुन्दर सिंह भंडारी ,कुशाभाऊ ठाकरे की आत्माए सिर्फ एक ही बात सोच रही होगी की उन्होंने एसा क्या अनजान पाप किया जो उनकी मेहनत इस तरह बर्बाद हो गई .
भाजपा की जहां जहां सरकारे रही है वह भ्रष्ट शासन के नए नए रिकार्ड बना गई एक आध अपवाद हो सकता है . कलपना करते पर डर लगता है अगर कही यह ६० साल शासन कर लेते देश में तो भारत का नामोनिशान मिटा देते .
यह लेख एक दर्द है जो सही आकार नहीं ले पाया
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