सोमवार, जनवरी 11, 2010

स्व . लाल बहादुर शास्त्री को भी भूल गए है- हां हम है ही अहसानफरामोश


                                               


.
हां हम है ही अहसानफरामोश . हमारे खून में ही घुल गयी है यह बीमारी . हम भूलने की बीमारी से ग्रसित है . हम उन्हें भी बिसार चुके है जो देश की खातिर कुर्बान हो गए .  भारत के लाल ,सादगी की प्रतिमूर्ति, हिम्मत के धनी  जय जवान जय किसान के उद्बोधक स्व लाल बहादुर शास्त्री का आज शहीदी दिवस है . पुण्य तिथि की जगह शहीदी दिवस मैने जानबूझ कर लिखा है .

आज़ादी के १८ साल तक नेहरू के आभामंडल में भारत बहुत कुछ खो चुका था . १९६२ चीन ने पंचशील की लाश पर भारत के ऊपर हमला किया . हमारे नेहरू का रेडियो पर भाषण के हम बहादुरी से लड़ रहे है और पीछे हट रहे है . उस समय की हमारी इच्छा शक्ति का हमारे नेतृत्व का नंगा सच था . हमारे हजारो सैनिक शहीद हो गए और हम अक्षय चीन सहित हजारो किलोमीटर भूमि को हार गए और एक हारा हुआ हिन्दुस्तान था सामने .

 ६४ में नेहरू के स्वर्गवास के बाद नेहरू के बिना भारत कैसा होगा के बीच देश के बहादुर लाल - लाल बहादुर शास्त्री ने कमान संभाली . उस समय देश का मनोबल टूटा हुआ था अकाल था भुकमरी थी . लेकिन शास्त्री जी की अदम्य इच्छा शक्ति भारत सम्हलने लगा . जय किसान जय जवान का नारा एक नई प्राण वायु का संचार हुआ . मंगलवार को उपवास अन्न की कमी के कारण जनता ने सहर्ष अपनाया . ईमानदार शास्त्री जी के कारण एक नया १८ साल का बालिग़ भारत नए सपने देखने लगा .

तभी सन ६५ में पाकिस्तान ने भारत पर अमरीका के वरदहस्त पर हमला कर दिया . पाकिस्तान अपने अमरीकी पैटर्न टैंक हो अभेद था के बल पर भारत को कब्जाने के लिए आ गया . तभी एक आवाज़ गूंजी ईट का जबाब पत्थर से देंगे .जय जवानो ने पाकिस्तान को हरा दिया . उनके पैटर्न टैंक आज भी सडको पर टूटे पड़े है . वीर सैनिको की वीरता के पीछे लाल बहादुर शास्त्री के अदम्य साहस और इच्छा शक्ति थी . हम आज़ादी के बाद पहली लड़ाई जीते थे . फिर ताशकंद में शान्ति वार्ता हुई . क्या  हुआ क्या नहीं लेकिन हमने युद्ध तो जीत लिया लेकिन देश का बहादुर लाल अपना लाल बहादुर खो  दिया .

और हम लाल बहादुर शास्त्री को भी भूल रहे है . क्या करे हम अल्प स्मृति के शिकार है हमें तो करंट इशु ही याद रहते है और ४४ साल पहले आज के दिन क्या हुआ हमें क्या मतलब . हां शास्त्री जी ने भी अपने बच्चो को राजनीति में अपने समय में ही एडजेस्ट कर देते तो आज शास्त्री जी को भी याद कर रहे होते कई लोग ...... और पार्टी ..........हम भी


11 टिप्‍पणियां:

  1. श्रृद्धांजलि!!


    महान आत्माओं को भूलना अब हमारा स्वभाव बन चुका है.

    जवाब देंहटाएं
  2. शास्त्री जी को दिल से श्रधांजलि।
    आपकी बात सही है, लोग आजकल सही रास्ता दिखाने वालों को भूल रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी को हार्दिक श्रद्धांजलि .
    आज का धन लोलुप नेता वर्ग पहले अपने
    बैंक बैलेंस फुलाने में लगा हुआ है. शास्त्री जी
    जैसे महान पुरुषों के आचरण को अपनाएं तो
    देश का भला तो होगा, पर उसे इससे उसे क्या लेना देना!
    उसे इससे क्या मिलेगा!!
    बस, यही भूलने, या यह कहिये की याद आ भी जाये तो उसे
    अचेतन मस्तिष्क में धकेल देने की बीमारी अब वायरस
    की तरह पूरे देश में फैल चुकी है.
    धीरू सिंह जी आपका यह आलेख बहुत सार्थक है. साधुवाद.
    महावीर शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  4. शास्त्री जी ने जो किया वो विरले ही करते हैं ......... ये हमारा दुर्भाग्य है की नेहरू परिवार की चकाचोंध में हम उनको भूल गये ........

    जवाब देंहटाएं
  5. शास्त्री जी को याद करने से गांधी फैमिली की चमक मन्द नहीं पड़ जायेगी?

    जवाब देंहटाएं
  6. स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी को हार्दिक श्रद्धांजलि
    लेकिन हम नही भुले इस सच्चे देश भगत को आज भी हमारे दिल मै बसते है, आप का धन्यवाद इस अच्छॆ लेख के लिये

    जवाब देंहटाएं
  7. शास्त्रीजी वस्तुत भारत की माटी से जुड़े, उपजे नेतृत्व थे। उनका इतिहास में स्थान मात्र ग्लैमर के न होने से धुंधला हो जायेगा?
    कहा नहीं जा सकता।

    जवाब देंहटाएं
  8. स्व. लाल बहादुर शास्त्री जी को हार्दिक श्रद्धांजलि
    आपको भी स्मरण कराने के लिए धन्यवाद.

    इस वाक्य (सोया समाज जो राख समान उसमे कुछ आग लगे) के विषय में कहना है कि राख में आग नहीं लगती पर सही वाक्य क्या होगा यह बता पाने में असमर्थ हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. राख समान है राख नही राजीव जी ,और राख में भी बहुत गर्मी बाकी रहती है

    जवाब देंहटाएं

आप बताये क्या मैने ठीक लिखा