शुक्रवार, अक्तूबर 02, 2009

गाँधी जयंती पर एक और सत्याग्रह - चीन उत्पादित वस्तुओ का बहिष्कार

आज से ही हमें एक सत्याग्रह करना है वह है चीन की बनी वस्तुओ का वहिष्कार . जहाँ तक हो सके कोशिश करे की चीन उत्पादित वस्तुओ का प्रयोग न करे . यही नहीं सरकार को भी रोक लगानी चाहिए आयात पर क्योकि चीन का मुकाबला हम इसी हथियार से कर सकते है .

चीन की शैतानी चाले आज कश्मीर के हिन्दुस्तानियों  को अलग पहचान दे रही है . अरुणाचल पर कब्जे की कोशिश हो रही है . और हम किस डर से अपनी बात नहीं रख पा रहे है समझ नहीं आ रहा .

साम्यवादी चीन अब पूरी तरह से व्यापारिक चीन है और हम एक बहुत बड़ा बाज़ार . यह सत्य है की व्यापारी कितना भी बड़ा हो ग्राहक को नाराज़ नहीं कर सकता .

 इस तथाकथित ड्रेगन के प्राण इसके उन हथियारों में नहीं जो इसने कल दिखाए  . इसके प्राण है उसकी अर्थव्यवस्था में जो हम आसानी से संकट में डाल सकते है . और उसका फायदा हमें उठाना ही चाहिए आज गाँधी जयंती पर संकल्प ले की चीन उत्पादित वस्तुओ का प्रयोग न करे .

13 टिप्‍पणियां:

  1. सिंह जी, विलासिता ये उसकी चाह मैं आकन्ट डुबे भारतीय समाज मैं अब किसी सार्थक आन्दोलन की कोई गुन्जाईस है ?

    फिर भी आपका प्रयास सराहनीय है और हम आपके साथ हैं, हम सालों पहले से ही चीनी सामान खरीदने से बचते रहे हैं ....

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  2. बहुत सुन्दर और समसामयिक पोस्ट है।

    महात्मा गांधी जी और
    पं.लालबहादुर शास्त्री जी को
    उनके जन्म-दिवस पर नमन।

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  3. आपका प्रयास सराहनीय है और हम आपके साथ हैं |

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  4. वैसे भी अब क्वालिती के कारन चीन का बाज़ार कम हो रहा है

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  5. चीनी ही क्यों, इस आर्थिक् संकट के दौर में सिर्फ भारतीय बस्तुएं ही प्रयोग में लायें और सारी विदेशी चीज़ों का बहिष्कार करें

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  6. मुक्त बाजार के युग में यह कठिन नजर आता है। दूसरे चीनी माल इतना सस्ता डम्प हो रहा है कि उसको मना करने को जो संकल्प शक्ति भारत में चाहिये, वह नजर नहीं आती। मेरे विचार से भारत वासी अगर कम खर्च में काम चलाने और कम संग्रह की बात पर चलें तो बड़ा भला हो।

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  7. ओर इस इटली वालो का भी साथ मै, जो इस देश को चुना ला रही है

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  8. हम तो चीनी माल की उपेक्षा ही करते है. एक तो घटिया उपर से दुश्मन देश का...

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  9. पहले स्वदेशी का नारा लगाया जाता था जिसे अब प्रायः भुला दिया गया है। अब हिंदी-चीनी भाई-भाई वालों से यह दरकार तो कठिन ही लगती है:)

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  10. "ड्रेगन के प्राण इसके उन हथियारों में नहीं जो इसने कल दिखाए . इसके प्राण है उसकी अर्थव्यवस्था में जो हम आसानी से संकट में डाल सकते है . और उसका फायदा हमें उठाना ही चाहिए"
    सही बात है लेकिन जब हमारा नेत्रित्व ही बेरीद का होकर उनकी हर मनमानी चुपचाप सहता रहेगा तो ऐसा कैसे हो पायेगा?

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  11. हमने तो बहुत पहले से ही चीन उत्पादित वस्तुओं को त्याज्य की श्रेणी में डाल रखा है ।

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  12. मंदी के दौर मैं स्वदेशि का नारा समय की मांग है ......... चीनी वस्तुएं तो वैसे भी घटिया माल के चलते मार खा रही हैं .... अच्छा नारा है ........

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा