समय चाहिए जो लिखा है उसे पढने के लिए ,जो पढ़ा उसे समझने के लिए । लेकिन हम तो आकर्षक शीर्षक को देख कर उसे पढ़ लेते है चाहे उसका स्तर कैसा भी हो । और गंभीर विषय अगर शीर्षक विहीन है तो उस ओर हमारी नज़र जाती ही नहीं है ।
क्या करे प्रचार का जमाना है भाई -अंडर बिअर बेचने के लिए बन्दर की फंतासी होना जरूरी है ,कहे तो तोइन्ग होना जरुरी है । ओर हम उसी ओर दौड़ रहे है ,और चरचे भी उन्ही के हो रहे है जो चर्चित शीर्षक का उपयोग कर रहे है ।
अपनी आप बीती बता रहा हूँ बेकार की तुकबंदी ज्यादा लोगो ने सराही ,और किसानो का दर्द किसी को आकर्षित नहीं कर पाया ।
समय के साथ चलने की मझबुरी हमें गंभीरता से दूर कर रही है । बिलकुल वैसे ही जैसे कवियो की जगह लाफ्तारोने ले ली । मुझे यकीन है यह भी न पढ़ा जायगा और टिपण्णी की तो बात ही न करे ।
शीर्षक पढ़ कर आ गये...:)
जवाब देंहटाएंआकर्षक शीर्षक से दिगभ्रमित करना-काठ की हांडी जैसा है, बार बार नहीं चढ़ता. उपयुक्त शीर्षक और स्तरीय एवं रोचक लेखन ही बांध का रख सकता है पाठकों को.
जवाब देंहटाएंसमीर जी बात पर गौर करो बंधू.....
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लेखन बधाई फुर्सत निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पुन: दस्तक दें
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