बुधवार, सितंबर 17, 2008

प्रभु कि माया ,गूगल कि छाया

मैं लिखता था कागज पर वह रद्दी बन कर फिक जाता था,
लेखक का बेटा न था ना आलोचक मेरा चाचा था
मुझ जैसा हर एक यही प्रार्थना करता था
कुछ तो ऐसा करो प्रभु
कि हमको भी कोई रास्ता मिले जाये
हमारी भावना को भी कोई पढ़ने वाला मिल जाये
प्रभु ने तब ऐसा वरदान दिया
गूगल को ब्लॉग बनाने का आदेश किया
हम जैसो को एक हथियार दिया
आज हम जो चाहते है वह लिखते है
दो -चार हमें भी पढ़ते है


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