श्राद्ध बड़े श्रद्धा के साथ मना रहे है ,
अपने पितरो को हलुआ पूरी खिला रहे है ,
पंडितो को दान ,कौओं को दावत ,
समाज में अपना रुतबा बड़ा रहे है ।
जिन्दा थे जब पितृ तो पानी भी न दिया ,
तड़प तड़प के मर रहे थे तब सहारा न दिया ,
आज अपने गुनाहों को छिपा रहे है ,
श्राद्ध बड़े श्रद्धा के साथ मना रहे है ।
बहुत बढ़िया लिखा है ,वास्तव में कर्मकांडो द्वारा हम अपने गुनाहों को ही दुपाने का प्रयास करते हैं।
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