जब -जब हिन्दी चीनी भाई भाई की उम्मीद होती है तब -तब चीनी लोग मुह कडबा कर देते है । आखिर पंचशील का क्या हुआ सिर्फ एक पंचशील रोड और एक पंचशील एन्क्लेव वह भी दिल्ली में ।
चीन कभी नहीं चाहेगा कि भारत उसके बराबर आये ,वह तो यह भी भूल गया होगा १९४५ में भारत ने ही उसे राष्ट्र संघ में सदस्यत्या दिलवाई थी ।
यह तो पुरानी बाते है ख़ाक डालिए ,नई बातो पर गौर करे -
अभी ताज़ा ताज़ा चीनी हरकते पहले अपने मानस पुत्रो (कम्निष्ठो) से १२३ का विरोध ,सरकार गिराने की कोशिश , इसमें कामयाबी न मिली तो युरेनिम आपूर्ति कर्ता देशो में परदे के पीछे भारत का विरोध ,लेकिन एक बड़े बाज़ार भारत को खुश करने के लिए अमरीका ने पूरा जोर लगाया ओर विअना में उसने अपनी इज़त बचाई । ओर परमाणु करार के बाद चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा भगवान् बचाय अपने देश को ..........
चीन और भारत मे मित्रता का सब से बडे शत्रु, अमेरिका और बिलायत है। जब की भारत और चीन मे मित्रता हीं हम दोनो के विश्व शक्ति बनने की पहली और अंतिम शर्त है। भारत मे राष्ट्रिय स्वय्सेवक संघ जो की ईसाईयो के निवेष से चलने वाला संगठन है, वह भारत और चीन मे दुश्मनी कराने का काम करता रहता है। वामपंथी ही अब ईस देश को ठीक राह पर ला सकते है - अगर बिद्रा करात जैसी ईसाई एजेंट हटा दी जाए।
जवाब देंहटाएंapne blog me favourite book ki spelling theek kar le.
जवाब देंहटाएंSATYA KE PRAYOG hoga. blog par galat likha hai.