शनिवार, दिसंबर 20, 2008

हमारा समाज ईमानदार नही रहा

समय के साथ साथ सब पीछे छूटता जा रहा है जिसमे आदर ,सम्मान ,इज्ज़त ,ईमानदारी जैसी कुछ चीजे भी है । आधुनिकता की अंधी दौड़ उस फिसलन भरे रस्ते पर हो रही है जिस पर एक बार फिसला हुआ व्यक्ति अपनी संस्क्रति अपनी सभ्यता सब भूल जाता है । आज अपने समाज मे कुछ चीजे चौकाती भी है जिसमे एक है ईमानदारी ।

अपने देश मे आज ईमानदारी की घटना अखबार की सुर्खियाँ बन जाती है उस देश मे जहाँ ईमानदारी की गाथाएं भरी पड़ी है इतिहास मे ,कितने प्रसंग है जो आज भी ह्रदय को झकजोर देते है । एक राजा हरिशचन्द्र सपने मे दिए गए अपने वचन को ईमानदारी से पूरा करते है और अपने को अपनी पत्नी को अपने पुत्र को बेच दिया ऐसे कई और उधारण हमारे इतिहास मे धूल फांक रहे है ।

ईमानदारी आज चर्चा का विषय बन गई है क्योंकि हमारा समाज भी ईमानदार नही रहा है । कष्ट तो हो रहा आपको पढने मे मुझे भी समय लगा यह लिखने मे लेकिन यह सच है कि हमारा समाज ईमानदार नही रहा है । अपनी थोडी सी खुशी के लिए हम वह कदम उठा लेते है वह ईमानदारी की परधि मे तो नही आता । इसीलिए एक ऐसा कार्य जो महान नही सिर्फ़ कर्तव्य है और वह ईमानदारी की श्रेणी मे आता है जैसे किसी ने सड़क पर गिर गए १००० रु वापिस कर दिए वह चर्चा मे आ जाता है । और समाचार की सुर्खी बन जाता है ।

यह हमारे समाज के पतन के लक्षण है । अभी भी समय है सम्हलने का वैसे तो ईमानदारी और ईमानदार की वजह से ही हम अस्तित्व मे है। हमारे साथ की सभी सभ्य्ताये समाप्त हो चुकी है । और कहा भी है-
कुछ बात है की हस्ती मिटती नही हमारी .

11 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा धीरू जी :

    कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी .
    सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहाँ हमारा ..

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  2. सही लिखा है आपने ईमानदारी का क्षरण समाज के पतन और गिरते मूल्यों का मुख्य कारण है जो चिंताजनक है |

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  3. सच है समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है .

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  4. समाज तो कभी इमानदार था ही नहीं |
    व्यक्तिगत ईमानदारी तो सम्भव है किंतु समाज आडम्बरों के बल पर चलता है |
    अतः हम इमानदार बने काफी है |

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  5. धीरू जी!!

    सच है समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है

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  6. sahii keh rahey haen . ham sab ko apne ander khud imaandar honey ka jzbaa laana hoga aur naetiktaa ko niji naa man kar samaajik mannaa hoga

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  7. बिलकुल सही कह रहे हो भाई,जिस समाज मै ईमान दारी होती हे वही समाज तरक्की भी करता है, ओर जहां बेईमानी होती है वो समाज हमेशा दल दल मे धंसता है,हमारे देश मै आज से ६०, ७० साल पहले ईमान दारी थी... लेकिन अब धीरे धीरे .....हम जिस रास्ते से पेसे की ओर भाग रहै है, वो रास्ता गलत है

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  8. सार्थक पंक्तियाँ सुंदर विचार यथार्थ को उकेरते आपके गहरे विचार और मजेदार

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  9. पूर्णत: ईमानदारी की अपेक्षा समाज से नहीं की जाती। पर जिन्हें ईमानदार होना चाहिये वे अगर बेइमानी पर आ जाते हैं, तब समाज पतित होता है। डाकू तो बे-इमान रहेगा, पर संत से वह अपेक्षा नहीं होती।

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  10. यथार्थ को चित्रित करते सुंदर विचार हैं आपके।

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा