रोज़ रोज़ जिन्दा रहने की जद्दोजहद मे कट रही अपनी जिन्दगी मे कुछ यादें ऐसी होती है जो चाहते हुए भी हम भुला नहीं पाते है । कुछ अनजान से चेहरे अपनी ऐसी छाप हमारे मस्तिष्क में छोड़ते है जो गाहे बगाहे नजरो के सामने तैरने से लगते है ।
ऐसी ही एक याद मेरा पीछा करती है ,उसकी खुद्दारी के आलावा शायद उसके पास कुछ न था एक आम आदमी इतना स्वाभिमानी हो सकता है मन स्वीकार नहीं कर पाता जबकि आँखों से खुद देखा है ।
पिछले साल की बात है , नए साल के आने की प्रतीक्षा मे कुछ ऐसा किया जाए जो मन के साथ साथ ह्रदय को भी उल्लाह्स का अनुभव कराये राय बनी गरीबो को ठंड से बचने के लिए कम्बल बाटे जाए । समार्थनुसार कम्बल लेकर रात मे निकले जिससे जरूरत मंद ही मदद मिल सके । बस अड्डा ,रेलवे स्टेशन ऐसे ठिकाने है जहाँ ऐसे लोग मिल ही जाते है ।
कुछ लोगो को कम्बल देकर आगे बड़े ही थे , एक ६० साल का बुजुर्ग सूती मोती चादर जिसे खेस कहते है ओड़े ठंड मे ठिठुर रहा था । हमने उसे कम्बल देते हुए कहा बाबा यह ले लो उसने हाथ आगे न करा और ऊपर आसमान की तरफ देखा एक टक देखने के बाद बुदबदाया फिर उसने हमारी तरफ देखा और हाथ जोड़कर बोला बेटा यही मेरी तकदीर है मै इसी मे खुश हूँ यह कह कर आगे बढा और देखते ही देखते भीड़ मे ओझल हो गया । हम लोग हैरान उसे देखते रह गए और ऐसा लगा जैसे हमारे मुहं मे जबान और हमारे पैरों में ताकत न हो ।
आज भी वह बुजुर्ग एक पहेली सा मेरे सामने खडा महसूस होता है । क्या देखा उसने आसमान की तरफ क्या बुदबदाया । लेकिन एक खुद्दार था वह ।
ऐसे कई लोग मिलते हैं हमें राह-ऐ-जिंदगानी में जिनकी याद रह रह कर कौंध जाती है जेहन में| और ऐसी ही यादें हमें चलने का हौसला देतीं हैं|लेकिन कभी ऐसा भी होता है की रोजगार इतनी दूर ला के पटकता है की वहां तक कि लम्बी दुरी यादें भी तय नही कर पातीं|
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण पोस्ट. दुनिया में कुछ लोग खुद्दार होते है जो खुद्दारी को ही सब कुछ मान बैठते है .
जवाब देंहटाएंखुद्दार था वो, चाहे ठण्ड से मर जाये, चाहे भुख से, लेकिन खुद्दार कभी अपनी खुद्दारी नही छोड सकता,आप को बहुत ऎसे मिल जायेगे, जिन्हे लोग बेवकुफ़ कह देते है, लेकिन यही लोग दुसरो को जीना सीखाते है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
kya kahun is khuddari ko..khuddari
जवाब देंहटाएंyaa aatmhatya...khuddari kahan khatm hoti hai...aur anhankaar kahaan shuru...shayad ye khud main bhi nahin jaantaa...!!
वह तो खुद्दार था ही . साथ ही एक बात और : दान देने का सही तरीका बताया गया है कि , दान दाएं हाथ से दिया जाय तो बांए हाथ को खबर न हो .
जवाब देंहटाएंवृद्ध का व्यवहार अच्छा लगा। पर तकदीर से संतुष्ट होना भी सही नहीं। यह उद्यम विरोधी बनाती है कभी कभी।
जवाब देंहटाएंबहुत से ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने अपनी जरूरतों को सीमित कर लिया है।
जवाब देंहटाएंऐसे ही किसी ने बताया था कि वे लोग खाना बांट रहे थे तो एक वृद्धा ने इसलिये लेने से इंकार कर दिया था क्योंकि वह उस समय खाना खा चुकी थी और चाहती थी कि उसका हिस्सा किसी जरूरतमंद के काम आ सके।
मेरा जीवन भर का अनुभव एवं अध्ययन उस व्यक्ति की खुद्दारी को सलाम करता है ; क्योंकि ऐसी सेवा में रहा जिस में लोग मेरे पास दूसरो का हक़ हड़पने के लिए आते थे यह अलग बात है की उनकी दाल भले ही न गले | परन्तु धीरू सिंह जी वह कभी मिले तो सत्य अवश्य जानियेगा वह केवल और केवल यही निकले गा की वह व्यक्ति जीवन भर संघर्ष के साथ सब कुछ बनाने के बाद उसे उसकी संतान पतनी ने सब हड़प कर दुत्कार दिया था ; अथवा उसने बहुत कमाया परन्तु उसका को ई भी पैसा कोशिश उसकी जीवनसाथी या सन्तान को ना बच्चा पाई | आकाश की और देख कर बुदबुदाना यही संकेत देता है | मैं भी ऐसे कुछ ओगों से मिल्चुका हूँ | ढूँढ़ना अगर मिलजाए तो उन्हें किसी समाज सेवा के कार्य में लगाने की कोशिश करिएगा | क्योंकि ऐसे लोग जितना समाज से पाते है उससे ज्यादा दे जाते हैं |
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