आतंक का मुकाबला कौन सा हथियार कर सकता है -- गाँधी गीरी या गोलीगीरी
फैसला करे आतंक से आज़ादी किस माध्यम से प्राप्त हो सकती है ।
हमारे पास दो विकल्प है
एक है गाँधी गीरी जिस की प्रसांगिकता पर इस समय संदेह है क्योंकि आतंकी ह्रदय विहीन राछस है उनका उद्देश्य ही है आतंक फैलाना ,शायद गांधीजी के विचार इनका ह्रदय परिवर्तन न कर सके क्योंकि यह लोग अहिंसा की भाषा से दूर दूर तक का रिश्ता नहीं रखते ।
दूसरी है गोलीगीरी जो सदिओं से कारगर हथियार है हमारे शास्त्रों मे भी लिखा है शठे शाठ्यम समाचरेत यानी दुष्ट के साथ दुष्टता ही करनी चाहिए । गोली का जबाब गोली होता है । गोली की बोली समझने वाले सिर्फ गोली की भाषा ही समझते है इसलिए मेरा मानना है गोली गीरी ही आतंक का अंत कर सकता है ।
यह तो मेरी राय है आपकी राय भी जरुरी है आपके विचार क्या है अवगत कराये ।
निस्सन्देह गांधीगीरी । प्रथमत: गांधीगीरी और अनन्तमत: गांधीगीरी ।
जवाब देंहटाएंसत्यवचन।
जवाब देंहटाएंहमको उनसे है वफा की उम्मीद,
जो नहीं जानते वफा क्या है।
भाई, गोलीगीरी यदि हल होता
जवाब देंहटाएं1. इजराईल शांत होता।
2. विश्व के मानचित्र पर फिलीस्तीन नामका राष्ट्र होता।
3. अफगानीस्तान की वादीयो मे गोलीया नही चल रही होती।
4.इराक मे सद्दाम हुसैन के बाद शातीं होती।
5.मिजोरम/दार्जिलींग मे आज भी गोलीया चल रही होती।
6. या तो तमिल-इलम नामका राष्ट्र होता या श्रीलंका मे शांति होती !
7. दक्षिण अफ्रिका मे आज भी रंग भेद होता\
9. संयुक्त राज्य अमरीका मे के के के (क्रुक क्लुक्स क्लान) का राज्य होता।
और भी बहुत से उदाहरण मील जायेंगे।
हिंसा से सुकरात/ईसा मसीह/महात्मा गांधी/मार्टिन लूथर किंग नही मरते ! वे अमर हो जाते है। जितता है उनका ध्येय। शांति के ये सभी पूजारीयो मे से किसका आंदोलन अधूरा रहा है ?
aaj tak to gandhigiri hi kiya hamane,.. magar ab to bhai goli giri chahiye.... jawab to ab pathar se dena hi hoga.....
जवाब देंहटाएंअलगाववादी भारतीय नागरिकों के लिए तो गांधीगिरी उचित है लेकिन लश्कर और जैश जैसे पाकिस्तानी आतंकवादियों के साथ तो गोलिगिरी के बिना काम ही नही चल सकता | इनके लिए तो गोलिगिरी ही उचित है चाहे शान्ति हो या न हों |
जवाब देंहटाएंआतंक का मुकाबले के लिए दोनॊ हथियार ही जरूरी हैं।जैसे आजादी की लड़ाई में एक तरफ तो गाँधीगिरी चल रही थी और दूसरी ओर से सुभाष और भगत सिहँ जैसे क्रातीकारी की गोलीगिरि थी।
जवाब देंहटाएंमुकाबला हथियार नहीं ,हथियार चलाने वाला करता है हमारी समझ से तो :)
जवाब देंहटाएंगांधीगिरी के लिए पहले मज़बूत तो बनो। कमज़ोर जूते भी खाते हुए कहेगा कि मैं अहिंसावादी हूं तो हास्यस्पद लगेगा कि नहिं?
जवाब देंहटाएंधीरू जी जरा विचारों को आहिस्ता रखें, कांग्रेस की सरकार है, आपको सांप्रदायिक, असामाजिक तत्त्व करार दे दिया जाएगा | अहिंसा का ढिंढोरा पीटने से कुछ नही होगा| सुभाष, भगत सिंह, विश्व युध, ब्रिटेन में लेबर पार्टी का आना इत्यादि कारणों को झुठला कर हम जिन गांधीजी को स्वतंत्रता का श्रेय देते हैं, उन्होंने भी १९४७ में कश्मीर पर चढाई करने के पटेल जी के फैसले पर हामी भरी थी |
जवाब देंहटाएंप्राथमिकता तो सदैव गांधीगिरी को ही देनी चाहिए,पर बात न बने तो शास्त्र उठाने से पीछे हटना कायरता है.दोनों का संतुलित कम्बीनेशन ही सदा ठीक रहता है.
जवाब देंहटाएंआतंक का जवाब तो चाणक्य कूटनीति है। उसमें सब प्रकार से आपको हथियारों का प्रयोग करना है - अहिंसा से ले कर प्रति-आतंक तक।
जवाब देंहटाएं1971 से हिन्दुस्तन में 4100 आतंकी हमला हो चुका है मरने बालों की संख्या हिन्दुस्तान के तीनों युद्ध से दस गुणा से भी ज्यादा है अभी तक हम गाँधीगिरी का ही सहारा लिये हैं लेकिन नतीजा शुन्य आतंकीयों के हाथ में आधुनिक हथीयार रहता है और जिनकों गाधीगीरी में भरोसा हैं गुलाब का फुल लेकर वही जायें आतंकवादीयों के सामनें। पता चल जायेगा गांधीगीरी का ताकत।
जवाब देंहटाएंभाई मैं तो जरा पुराने विचारों का आदमी हूँ गीता पर विश्वास रखने वाला और गीता में श्री कृष्ण के उपदेश "जो तुझे मारे उसे तू मार" को ही सही समझता हूँ।
जवाब देंहटाएंगाँधीगिरी अपनाकर तो हजारों साल तक देख लिया, सिर्फ़ और सिर्फ़ आक्रमण ही झेले… अब दो-चार बार गोलीगिरी ही करके देख लें… कौन कहता है कि कुत्ते की पूँछ सीधी नहीं हो सकती, डाबरमेन कुत्ते को देखा है कभी? न रहेगी पूँछ न होगी वह टेढ़ी… अरे भाई लड़ना नहीं भी हो तो कम से कम युद्ध की "मुद्रा" तो बनाओ, देखो उतने भर से ही असर पड़ेगा…
जवाब देंहटाएंपता नही भाई आपने गांधीगिरी का विकल्प भी क्यों रखा है ?कूटनीतिक ,राजनैतिक ,सब कुछ आजमा लो.....वैसे इसे गोली बारी नही अपनी प्रतिरक्षा में उठाया कदम कहते है .....
जवाब देंहटाएंलातो के भुत बातो से नही मानते .
जवाब देंहटाएंभाई,
जवाब देंहटाएंबात जब गैरइंसानी ताक़तों की हो, गांधीगिरी कोई विकल्प हो ही नहीं सकता। नि:संदेह गोलीगिरी और हर बार गोलीगिरी। गांधी तो बहुत बाद में हुए, दुष्टों के दम के लिए महाभारत और रामायण के दौर में ही गोलीगिरी का इस्तेमाल हो गया। और इतिहास गवाह है कि गोलीगिरी से कौरव और रावण जैसे दुष्टों का इलाज भी हुआ। इसलिए गोलीगिरी की एकमात्र रास्ता है। एक बात और जो लोग आतंकवाद के लिए गांधीगिरी को सही ठहरा रहे हैं, वे शायद भूल गए हैं कि आतंकवादियों के सामने उनकी गांधीगिरी को सुनने का विकल्प ही नहीं है। वे तो सिर्फ़ गोली चलाना जानते हैं। गांधीगिरी करने जाएंगे, तो गोली ही खाएंगे। वैसे आख़िरी में एक बात कहना बेहद ज़रूरी है। मैं गांधीगिरी के ख़िलाफ़ नहीं हूं। लेकिन जिस तरह हर ताला सिर्फ़ एक ही चाबी से नहीं खुल सकता, ठीक उसी तरह हर बीमारी का इलाज भी एक नहीं हो सकता।
भाई लातो के भुत बातो से मान जाये तो ठीक गांधी गिरी, वरना ताऊ का लठ्ठा किस दिन काम आयेगा, गरीब की जोरू सब की भाभी होती है,ओरो का तो नही मालुम मेरा यह मानाना हे, अगर बात प्यार से बने तो अच्छी बात,नही तो दे दनादन.... अब भी कहा शांति है भारत मै, जो हम गाधंई बन कर बेठे... कोई एक मारे साले के दस मारो.अगर इस पाकिस्तान से हम सरदर पटेल बन कर बात करते तो यही हमारे आगे घुटनो के बल होता....-
जवाब देंहटाएंधन्यवाद