हम भारत देश के रहने वाले है । और हम अपने को भारतीय कहते है , लेकिन अंग्रेजो ने हम पर शासन किया और हमारी पहचान ही बदल दी हमें इंडियन कहा जाने लगा और हमारे देश को इंडिया । इंडियन शब्द दोयम दर्जे का ही प्रतीक होता है । एक कहावत है कि सबसे अच्छा इंडियन मरा हुआ इंडियन है । और हम उस शब्द को ढो रहे है ।
अंग्रेजो कि विकृत मानसिकता की देन थी यह इंडियन शब्द । चाहे इंडियन हो या अमेरिका के रेड इंडियन सब गुलाम ही तो थे । और हम उसी गुलामी की ज़ंजीर मे जकडे अपने को इंडियन कहलाने पर गर्व की अनुभूति प्राप्त करते है । इंडियन एक ऐसा शब्द है जो राष्ट्र प्रेम की भावना को जाग्रत नही कर सकता जो भारतीय या हिन्दुस्तानी शब्द कर सकता है ।
इसलिए इंडियन और इंडिया को अपने भारत से निकाल दो और सिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय कहने मे ही गर्व महसूस करें । एक मुहीम चले अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए इसलिए गर्व से कहो हम भारतीय है । proud to be Bhartiy not indian ।
अगर मेरी आवाज़ मे आपकी आवाज़ मिल जाए तो बहुतो की आवाज़ बन जायेगी यह हमारी इच्छा इंडियन और इंडिया को अपने भारत से निकाल बाहर करने की । इंडियन सुन कर तो ऐसा लगता है की जैसे अपने बच्चे का नाम अंग्रेजी मे कुत्ते का जो नाम होता है वह रख लिया हो ।
यदि देशप्रेम की भावना का संचार करना है तो पहले देश का तो असली नाम ज्ञात हो ।
आलेख तो बिल्कुल सही लिखा ,आपकी भावनाओ को समझ गयी, पर हिन्दी के आलेख में 'proud to be Bhartiy not indian' की क्या जरूरत ?
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ और सिर्फ़ भारतीय कहने मे ही गर्व महसूस करें
जवाब देंहटाएं"" हम आपके साथ हैं"
regards
जय भारत
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति है...
जवाब देंहटाएं---------------
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
हम आपके साथ हैं.
जवाब देंहटाएंहमें इंडियन नहीं भारतीय होने पर गर्व है.
शायद आपने अंग्रेजी में 'proud to be Bhartiy not indian'इसलिये लिखा कि इंडियन लोगों तक भी यह बात पहुंच जाय . सही है न .
आपकी भावनायें तारीफ के लायक हैं।
जवाब देंहटाएंआज जरूरत है अपनी संस्कृति को समझने की, अपनी विरासत को सहेजने की। गलत शिक्षा नीतियों के कारण हमें आज पश्चिम अपने से बेहतर लगता है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज जिन बुराईयों से वे धीरे-धीरे मुंह मोड रहे हैं, उन्हीं को हम अपनाते जा रहे हैं। जिसका फल भी अब दिखने लग गया है।
सबसे पहले हमें अपने पर विश्वास करना सीखना होगा। जन-मानस में, जैसा भी है, अपने देश के प्रति समर्पण की भावना कूट-कूट कर भरनी होगी।
सही कहा धीरू जी . जय हिन्द !
जवाब देंहटाएंBahut badiya likha hai.
जवाब देंहटाएंहम है हिंदुस्तानी, हम है हिदुस्तानी...
जवाब देंहटाएंधीरू भाई आज इस बात को लेकर एक जर्मन से बात हो रही थी, गोरे तो सिर्फ़ युरोप मै ही थे? आज अमेरिका, अस्ट्रेलिया, अफ़्रीका, कानाडा सब ओर फ़ेल गये.... कारण हम( भुरे, ओर काले लोग अपने आप को तुच्छ समझते है, ओर गोरो को महान.... यही भावना अब भी भारत समेत बहुत से देशो मै है... जिस दिन यह भावना ःअट जायेगी हम गोरो को अपने जेसा ही आम समझेगे.... उस दिन ईंडिया खुद वा खुद भारत बन जायेगा,
जवाब देंहटाएंमै आप सब के साथ हुं.
धन्यवाद
हम आपके साथ हैं !
जवाब देंहटाएंबंधुवर क्या आपने यह पोस्ट केवल आम भारतीयों की भावनाओं से खेलने के लिए लिखी है ? क्योकि मुझे तो आपकी कथनी और करनी मैं फर्क नजर आ रहा है | आपकी घड़ी तो उन्ही अग्रेजो के धर्म का प्रचार प्रसार करती नजर आ रही है जिन्होंने भारतीयता को तहस नहस किया |
जवाब देंहटाएंधीरू जी,इसी टैग ने तो सब खेल खराब कर दिया है.
जवाब देंहटाएंभावनाओ से खेला तो कभी नही .लेकिन आपकी शिकायत को देखते हुए इस घड़ी को हटा रहा हूँ . हमारी सभ्यता की सबसे बड़ी कमी है आरोप . और इन्ही के कारन राम को भी सीता को निकालना पड़ा था .
जवाब देंहटाएंधीरू जी ,बहुत दिनों से आपके ब्लॉग को पढ़ रहा था और आपके विचारो से सहमत भी हूँ लेकिन इसी बात को लेकर आपको प्रतिक्रिया नही दे पा रहा था | आपने मेरी भावनाओं की कद्र की इसके लिए आपका आभारी हू | आपने एक स्वस्थ आलोचना को स्वीकार किया जिस कारण हमारे मन में आपके प्रति आदर बढ़ा है |
जवाब देंहटाएंधीरू सिंह, भाई इंडिया अंग्रेजों की कारस्तानी नही है , यह उस युग की उत्पति है जब अंग्रेज आधुनिक आदिवासियों [ उस युग के सापेक्ष ]की श्रेणी में आते थे , पत्तों -पेडों की छाल से जानवरों की खाल पहनने की स्थिति में आचुके थे , यह नाम ग्रीको - रोमन [यवन =यूनानी ] के '' इन्दुस या इन्डस " [Indus ] से जन्मा है जिसे उन्हों ने सिन्धु नदी एवं सिन्धुकुश पर्वत के आर -पार रहने वाले वासियों जिन्हें अरब देशों ने हिन्दू कुश और सिन्धु नदी के तीर रहने वाले लोगों को " हिंदू " अब इसपर अजित वडनेरकर ही ज्यादा हाई -मास्ट फेंक सकतें हैं [अज - कल कोहरा ज्यादा है तीनदिन से सूरज नही दिखा है ] , | यह इस लिए बता दिया की कहीं इसकी ख़बर हमारे " सरदार जी '' [ अरे डा ० महीप सिंह प्राजी o ना समझ लें ] को ख़बर ' लग गयी तो वे एक लेख अखबारों में अंग्रेजी दारू पीते दुम्बे की टांग पाडते "एन्ग्रेजों की प्रशस्ति" में एक लेख लिख फेंकेंगे [ब्लागर बन्धुओं देंखें ' 'दैनिक जागरण / दैनिक हिन्दुस्तान 2008 नव० 15 दिन शनिवार ' ना कहू से दोस्ती ना काहू से बैर :: अंग्रेंजी राज की याद में ::'] और गत वर्ष के हृदयाघात के बात से डाक्टरों ने मुझे इन चीजो से परहेज बाताया है इसी लिए मई अभी तक अंग्रेजी दारूओं का मुजियम देखने नही गया हूँ ] \ वैस धीरू भाई ने मेरी आत्मा की आवाज ही उठाए है | मेरे जमाने में डा ० लोहिया जी ......खैर यह किस्सा फ़िर कभी जय राम जी की
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