आत्म मुग्ध भाजपा को सही झटका दिया है दिल्ली ने । नकारत्मक प्रचार भारी पड़ा भजपा को । अपने हर प्रचार मे शीला दिक्षित की बुराई , आतंक मुंबई काण्ड को ट्रम्प कार्ड की तरह इस्तमाल करने के बाबजूद करारी हार भाजपा को एक थप्पड़ की तरह लगा होगा ।
भाजपा के बड़बोले नेता कहीं खो गए है उनेह खोजे और उन से पूंछे कांग्रेस महंगी पड़ी या आप सस्ते हो गए ।
और भाजपा के एक बुजुर्ग तो विजय प्राप्त नहीं कर पाए , दुसरे का क्या होगा ............... तेरा क्या होगा लाल
बिल्कुल सही कहा धीरू जी,
जवाब देंहटाएंयह कांग्रेस की विजय से ज्यादा भाजपा की हार है. भाजपा ने भी उतनी कूबत है नहीं जितना ये दिखाने की कोशिश करते है. शायद अब भी समय है इनके पास अपने सिद्धांतों पर पुनर्विचार करने का.
और ये हाल तब हैं जबकि मुम्बई की घटना के बाद दिल्ली में वोट पड़े थे। आतंकवाद-आतंकवाद चिल्लाकर भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ… जनता अब जाग रही है, जो काम करेगा तो वोट पायेगा, बातों से काम नहीं चलने वाला…
जवाब देंहटाएंसही लिखा है आपने .
जवाब देंहटाएंदिल्ली में कांग्रेस के जीतने का कारण साध्वी प्रकरण है. मुसलमानों के सारे वोट समाजवादी पार्टी के बजाय कांग्रेस को गये. 15% से अधिक वोट किसी भी परिणाम को बदल सकते हैं.
जवाब देंहटाएंदूसरे महिलाओं के वोट महिला फैक्टर के कारण कांग्रेस को मिले.
भाजप का अति आत्मविश्वास भी मार गया. कांग्रेस ने वोट जातिगत समीकरणों को देख भाल कर दिये.
वैसे हमेशा नकारात्मक प्रचार जीतता आया है. यहां कांग्रेस नहीं जीती बल्कि भाजप हारी है.
यदि भाजप दिल्ली में मल्होत्रा के बजाय सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता तो भाजप जीतती
बड़बोलों के साथ यही होता है | इनके सबसे बड़बोले नेता खुराना साहब का हाल हम पहले ही देख चुके है |
जवाब देंहटाएंसही लिखा है
जवाब देंहटाएंहो सकता है दिल्ली में कांग्रेस महँगी पड़ी हो भाजपा को, लेकिन मध्यप्रदेश और छतीसगढ़ और कुछ दिनों पहले गुजरात में भाजपा बहुत भारी पड़ी कांग्रेस को, ये भाजपा की हार है कांग्रेस की जीत नही। और गुजरता में कांग्रेस जैसी दुष्ट पार्टी के लिए दोबारा सर उठाना मुश्किल होगा। सिर्फ़ एक-दो राज्यों में जीत पर इतना इठलाने वाली कांग्रेस का लोकसभा चुनाव में क्या हश्र होगा ये देखने की चीज़ होगी, और कोई माने या न माने आतकवाद कांग्रेस को बहुत भारी पड़ेगा। इस देश को काम करनेवाले लोग चाहिए मनमोहन सिंह जैसे मिमियाते रिरियाते प्रधानमन्त्री नही चाहिए।
जवाब देंहटाएंचलिये देखते है आगे आगे ऊंठ किस करवट बेठता है, लेकिन अगर काग्रेस दोवारा आ गई तो ..... ??
जवाब देंहटाएंindian type logo ki aith barkara hai.ise kahate hai 100-100 jute khaye tamasha ghush ke dekhe.
जवाब देंहटाएंआज भारत की जनता ही इतनी स्वकेन्द्रित हो गई है कि सरकार चाहे कोई भी आए,इस देश का कुछ नहीं होने वाला। हम भारतीय इतिहास का वो सबसे शर्मनाक हादसा नहीं भूल सकते ,जब स्वयं को राष्ट्रवाद का प्रतिनिधि बताने वाली बी.जे.पी. सरकार का विदेश मंत्री तीन आतंकवादियों को लेकर कंधार गया था। इस निर्लज्ज तर्क के साथ कि सरकार का दायित्व अपहरण कर लिए गए एक हवाईजहाज में बैठे लोगों को बचाना था।
जवाब देंहटाएंओर आज यही लोग आंतकवाद का मुद्दा उठाकर कांग्रेस पार्टी को कोसने मे लगे हुए है,माना कि कांग्रेस भी दूध की धुली हुई नहीं है. लेकिन पहले अपने खुद के गिरेबान मे झांक के तो देखना चाहिए इस राष्ट्रवादी पार्टी को.
बल्कि आलम तो यह है कि अभी भी इस पार्टी के सर्वेस्रर्वा जो कि अपने आप को 'लौह-पुरूष' कहलवाने के शौकीन है, मुंगेरी लाल की भांती भविष्य मे प्रधानमंत्री बनने के सपने देखने मे वयस्त हैं.
साँप नाथ नाग नाथ मज़बूरी है हमें इन्ही से काम चलाना पड़ेगा . लेकिन हम अपने शासक रुपी सेवक से अपनी शर्तो पर तो काम करा सकते है . सही काम करे तो ठीक वर्ना बाहर का रास्ता तो हम दिखा ही सकते है .
जवाब देंहटाएंभाजपा को अपनी बुनियाद को फिरसे णहसूस करना होगा जुडना होगा िस देश के लोगों से । जागरूक है जनता आप ठग नही सकते ।
जवाब देंहटाएंउत्तरभारत में आतंकवाद कभी मुद्दा नहीं बना, क्योंकि दिल्ली धमाकों के वक्त भी मीडिया ही चिल्लाई, लेकिन मुंबई धमाकों के वक्त पूरी मुंबई सड़कों पर आ गई. महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंआज वोटर कौन है ? जो आज से पन्दरह वर्ष पूर्व शामिल हुआ था वह परिपक्कव हो चुका है ] जो दस वर्ष पूर्व आया वह परिपक्कव होने की प्रक्रिया में है ,] और जो गत पाँच वर्षों से इसमे आ रहे है वे इतने पड़े लिखे और समझ दार है कि वे दिल्ली कि केन्द्र सरकार का चुनाव और देश कि महा- महा नगर पालिका के चुनाव दोनों के प्रशासकों शासकों के अधिकार एवं कर्तव्य में क्या अन्तर है इसे जानते है जबकि बीजेपी के नितकारों के लैपटाप में यह नही था और यही लेडूबी ] राजस्थान में यह तो हमेशा से होता रहा है जबसे वहाँ बीजे पी सत्ता-संतुलन में मुख्य पार्टी में शामिल हुई है ] रज ठाकरे जैसे लोगों के लिए लिए एक चेतावनी कि क्षेत्रीय दलों के युग का अवसान निकट है ,या तो शिव सेना कि तरह किसी राष्ट्रीय दल से जुडें या बी एस पी कि तरह अपना रूप सर्व समाज का करे और रास्ट्रीय रूप में ढालें ]दिल्ली कि केन्द्रिय सत्ता का फाईनल होना है गत चुनाव में भी कांग्रेस बीजेपी का सीट अंतर केवल ७या ८ का था ,दुआ दें लेफ्ट का जोअप्रत्यक्ष शासन कि मनो भावना से उसे समर्थन दे बैठी ,सरदारजी चतुर सुजन निकले एक ओर पुच -पुच करते रहे दूसरी ओर अपनी मन मणि भी करली ] काश कंधार कांड कि आलोचना कर ने वालों का कोई प्रिय या परिवार का जीवन आधार से जुडा कोई भी वहाँ होता और उसके बाद भी वे गाल बजते तो उन्हें बहादुर जानता ]रही Anonymous कि बात तो पतानाही उन्होंने खान घुस कर सौ-सौ जूते खाए है कि अपना नामतक छिपाए घूम रहें है ]
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