कुछ साल पहले जनसत्ता मे एक कार्टून छपा था कि नेताजी जा रहे है और एक बदमाश उनकी जेब मे बैठा है आगे बड़कर वही बदमाश नेताजी के साए मे पीछे चल रहा है उससे आगे वह नेताजी के बराबर मे चल रहा है उससे आगे अब बदमाश आगे है और नेताजी उसके साए मे है और आख़िर मे बदमाश की जेब मे नेताजी बैठे है । दस पद्रह साल पहले का यह कार्टून आज हकीक़त बन गया है । टिकट जब से बिकने लगे बदमाश या कहे माफिया खरीदने लगे और खरीद भी कौन सकता है, [गेहू बेचकर तो टिकट खरीदा नही जाता और इलेक्शन लड़ा नही जाता ] टिकट खरीदा समीकरण या कहे बिरादरी के वोट मिले पैसा फेके वोट खरीदे औए बन गए ऍम.पी .,ऍम.एल.ऐ ।
इसका दुष्परिणाम यह हुआ नेता पद बदनाम हो गया राजनीती अपनी अस्मिता खो गई । और हम लोग अपने आप ही लुट गए । और यह हमारे नए भाग्यविधाता सिर्फ़ एक काम जानते है पैसा बनाना और अय्याशी करना अगर आप दिमाग पर जोर दे तो कई ऐसे नाम आपको याद आ जायेंगे उसमे कुछ लोग तो जेलों की शोभा बड़ा रहे है । और हमारे यह नेता सदनों मे निशब्द रहते है । यानी जो काम के लिए चुने गए उसके आलावा वह सब काम करते है ।
ऐसे ही यशस्वी नेता ने कल एक सरकारी अधिकारी को पीट पीट कर मार डाला क्योकि उस बेचारे ने उनकी नेता के प्रक्टोयौत्स्व पर चंदा नही दिया । यह है कारनामे हमारे अपने बनाये गए अपने भाग्यविधाता के । इनसब कुक्र्त्य मे ऐसा नही की कोई एक राजनितिक दल शामिल है सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है कोई किसी से कम नही
सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे है कोई किसी से कम नही ......
जवाब देंहटाएंनेता और बदमाश दोनों एक दुसरे के पूरक है कभी बदमाश नेता की जेब में तो कभी नेता बदमाश की जेब में ! राजनीती में यही खेल चलता रहता है !
जवाब देंहटाएंसवेरा होने के पहले अंधेरा गहराता है।
जवाब देंहटाएंआ. ज्ञानजी के शब्द मे ही अच्छे भविष्य के प्रति आशा का संचार हो रहा है .
जवाब देंहटाएंjee haan aur ye surat badalne wali bhi nahi dikhti| ghupp andhera hai.
जवाब देंहटाएंपहले चुनाव जीतने के लिये बाहूबलियों का सहारा लिया जाता था। जब उन्होंने देखा कि सब हमारी बदौलत नेता बन कर राज करते हैं तो हम ही क्यूं नहीं। बस उसी दिन से दोनो के बीच का फासला मिट गया।
जवाब देंहटाएंबहोत ही बढ़िया ब्यंग कसा आपने धीरू भाई ढेरो बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंअर्श
कभी समाज सेवी और सच्चरित्र व्यक्ति ही नेता कहलाते थे परंतु आज नेता की परिभाषा बदल गई है। अब जिसके पास जितना बाहुबल और धनबल है, वह उताना बडा नेता कहलाता है।
जवाब देंहटाएंअभी देखते जाये, यही जनता इन नेताओ को पीटे गी ओर वो भी नंगा कर के....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
माहौल ही ऐसा हो गया है . भला आदमी तो राजनीति में टिक ही नहीं सकता . या तो राजनीति से आउट होना पडेगा या फिर दुनियाँ से .
जवाब देंहटाएंएक इंजीयर की हत्या का वहिशयाना तौर-तरीका और फिर उसको मरी हुई हालत में थाने पर छोड़ आना यह स्वतः सिद्ध करता है कि शासन-प्रशासन नेताओं की रखैल बन चुकी है। इसीको लोकतंत्र कहते हैं ?
जवाब देंहटाएंप्रभु! अजब तेरा खेल, अजब तेरी 'माया'
जवाब देंहटाएंआज 'माया-भक्त' को ही जेल पहुंचाया!!
वाह प्रभु!!
Sirph netaon ko dosh nahin de sakte.Wo usi samaj ki paidaish hain jahan se hum bhi aate hain.Hum sab ko atmmanthan karne ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंबुरी बात है जी आप देश के चुने हुये गुंडो माफ़ कीजीयेगा नेताओ को ऐसे नही कह सकते ..
जवाब देंहटाएंऔर फ़िर नई पार्टी है मायावती जी की अभी उसे काग्रेसियो की तरह माल वसूलना नही आता धीरे धीरे सीख जायेगे की आदमी को मारो पर इस तरह मत मारो की मर जाये . वर्ना पैसा किससे वसूलेगे ? थोडा सब्र कीजीये मायावती जी उन्हे ट्रेनिंग दे रही है खुद भी ट्रेंड हो रही है कि मुलायम जी की तरह काग्रेस जी की तरह पैसा उगाये इस तरह से नही . आपने देखा नही अब मायावती जी भी खुद बहुत नम्र स्वभाव की हो गई है. पार्टी भी सुधर जायेगी . बाकियो को कह दिया है कि इतना मारपीट ना करे कि बंदा मर जाये उन्हे खुद बहुत दुख है कि अगला ना मरता तो पचास नही पच्चीस लाख तो देता ही ना
"निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
जवाब देंहटाएंचली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले" फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की ये पंक्तियाँ मानों एकदम साकार हो गईं है उत्तर प्रदेश में!