सोमवार, दिसंबर 01, 2008

बिना देश के सैनिक है यह आतंकी पूरी तरह से प्रशिक्षित

बिना देश के सैनिक है यह आतंकी पूरी तरह से प्रशिक्षित । लेकिन इनेह कई देशो का समर्थन प्राप्त है जिसमे से एक देश है पाकिस्तान । ऐसा मुझे लगता है क्योकि इनके आत्मघाती हमले युद्ध के समान है । एक अघोषित युद्ध छेड़ रखा है भारत जैसे देशो के साथ ।

और हम लोग इसे हमला समझ कर हल्के मे ले रहे है यह हमला बम्ब विस्फोट की तरह आसान नहीं । यह संसद हमले की अगली कड़ी है और आगे बहुत जल्दी इसकी पुनरावर्ती होगी । यदि हमारा खुफिया तन्त्र अभी भी नहीं जागा तो हम चिदम्बरम साहब का भी इस्तीफा देखेंगे बहुत जल्दी ।

हर हिन्दुस्तानी को एक सिपाही बनना पड़ेगा तब हम यह ज़ंग जीत पाएंगे । क्योकि यह जंग अद्रश्य दुश्मनों से है जिनका एक ही उदेश्य है भारत की बर्बादी । हमारी मिडिया जिम्मेदार मिडिया {?} इस जंग मे जो अपनी भूमिका निभा रही है वह देश का मनोबल तोड़ने के लिए काफी है । तरह तरह की नई कहानी पूरे देश को भ्रमित कर रही है । यह काम खुफिया विभाग का है और उसे करने दे उसे समय दे ।

ओर आखिरी बात सबकी जबाबदेही तय हो चाहे वह आम आदमी हो ,नेता हो ,अधिकारी हो ,मिडिया हो ,सरकार हो , धार्मिक नेता हो या कोई भी । क्योकि देश से बड़ा कोई नहीं

12 टिप्‍पणियां:

  1. धीरू जी, देश की चिन्ता किसे है, लोगों को आज तक इसीलिये शिक्षित नहीं किया कि अगर ठीक से पढ जाते तो इनकी कुटिलता भांप लेते.जो भांप रहे हैं, उनका संख्याबल बहुत कम है.

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  2. क्या हमारा देश भी इसी तरह के सैनिक तैयार नही सकता जो दुश्मन के घर में घुस कर आतंक के अड्डे चलाने वालों का सफाया कर सके |

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  3. 1.बिना देश के सैनिक है यह आतंकी पूरी तरह से प्रशिक्षित । लेकिन इनेह कई देशो का समर्थन प्राप्त है
    2.जिम्मेदार मिडिया {?} इस जंग मे जो अपनी भूमिका निभा रही है वह देश का मनोबल तोड़ने के लिए काफी है ।
    ये दोनों निष्कर्ष बहुत सच्चे और कीमती हैं।

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  4. सही कह रहे है आप्। आपसे सहमत हूं पूरी तरह्।

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  5. बहुत ही अच्छा संदेश निहित है. आभार.

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  6. Panch raajyon mai hue elections ke nateejon ne yeh to saabit kar diyaa hai ki ab janta janaardan banna chaati hai isi liye national parties ko hi aage layaa gayaa hai.kathit national dalon ki importance par bhi ek savaaliyaa nishaan lagaa diyaa hai in elections ne .ye natize ek sabak hai in vijetaa nationals ke liye bhi.ab kuch karoge tabhi kuch milegaa .

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  7. अचानक ही बहादुरशाह ज़फर की पंक्तियाँ याद हो आयीं "दो गज ज़मीन भी न मिली........" जो चंद लोगों के बहकावे में आकर अपना घर बार अपने माता पिता अपने सरज़मीं को छोड़कर आतंकवादी बन जाते है वो भी कभी धर्म के नाम पर कभी अपनी कॉम के नाम पर, उन्हें ये अक्ल आनी चाहिए की जिनके लिए हथियार उठाये वो तो मरने के बाद उनकी लाशें तक पहचानने से इंकार कर रहे हैं. सचमुच कितने अभागे हैं जीतेजी जिन लोगों के बहकावे में आ गए अब उनसे बदला (?) भी तो ले नहीं सकते.

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा