गुरुवार, सितंबर 30, 2010

खुशबु आ नहीं सकती कागज़ के फूलो से सच्चाई चुप नहीं सकती बनावटी उसूलो से

खुशबु आ नहीं सकती कागज़ के फूलो से 
सच्चाई चुप नहीं सकती बनावटी उसूलो से 

जब अयोध्या का फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा तो क्या देश में मार्शल ला लागू होगा ?

डरता हूँ मैं यह सोच  कर जब अयोध्या का फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा तो क्या देश में मार्शल ला लागू होगा ? क्या सेना को देश की कमान अपने हाथ में लेनी होगी ? एक उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर जब इतना डर पैदा किया जा रहा जबकि हर पक्ष फैसला मानने के लिए तैयार है .

कान पक गए सुनते सुनते कि इतने पेरा मिलेट्री फ़ोर्स लगा दिए है . सेना और वायु सेना को अलर्ट कर दिया गया है . जगह जगह सीमाए सील कर दी गई है . क्या है यह सब . ................ कौन सी वह ताकते है जिनसे इतना भय है . प्रधानमंत्री , गृहमंत्री अपील कर रहे है शान्ति  की . सभी धर्मगुरु अपना ब्यान दे रहे है शान्ति बनाए रखे .

आज के इस फैसले के बाद एसा तो हो नहीं सकता की असफल पक्ष सुप्रीम कोर्ट ना जाए . कोई यह क्यों नहीं समझाता आज का फैसला मन्दिर और मस्जिद का नहीं उस विवादित जमीन की मिलकियत का है .आम लोग आज मन्दिर और मस्जिद की फैसला मान बैठे है . और यह फैसला अयोध्या के वर्तमान स्टेट्स पर कोई फर्क नहीं डालेगा .

अपील की जा रही है इंसान बनने की हिन्दुस्तानी  बनने की . क्या बकवास है यह ............. अपीलकर्ता  क्या समझते है अपने को क्या आम आदमी जाहिल है . इन्ही अपील कर्ताओं से अपील है कृपया आग में घी का काम ना करे आम आदमी इतना समझदार है कि वह इन खुराफातो से बहुत दूर रहता है . सड़क पर आग से ज्यादा जरुरी समझता है वह अपने चूल्हे की आग को .

भावावान राम से प्रार्थना है सबको सन्मति प्रदान करे .

रविवार, सितंबर 26, 2010

मेरी इकलौती बेटी जिसका आज जन्मदिन है .

आज के दिन मेरे घर में एक जश्न का सा माहौल  रहता था . आज ही मेरी बेटी का जन्म हुआ . एक ईश्वर का उपहार मिला हमें आज ही के दिन . हिन्दू तिथी के हिसाब से उस दिन अनंत चौदस था एक बहुत ही शुभ दिन .

मेरी बेटी के लिए यह दिन एक उत्सव से कम नहीं होता कई हफ्तों से तैयारी चलती  थी गिफ्ट ,रिटर्न गिफ्ट ,केक सब का चयन उसी के द्वारा किया जाता था . सभी के लिए हर्षोललास का दिन हुआ करता है यह दिन .

लेकिन इस साल वह हास्टल में है पिछले साल तो उसे छुट्टी मिल गयी थी और उसने अपना जन्मदिन उसी जोर शोर से मनाया था . लेकिन इस बार छुट्टी नहीं मिली . जिन्दगी में पहली बार वह हमारे साथ नहीं थी . वह नैनीताल में पढ़ती है और बारिश और बाढ़ के कारण इस समय नैनीताल से सड़क संपर्क कटा हुआ है . और उसके स्कूल की टेलीफोन लाइने भी इसी कारण से खराब है सो उससे बात करनी भी मुश्किल हो गई .

लेकिन ईश्वर ने हमारी सुन ली और शाम को हमारी उससे बात हो गई . उसने हमारा ही ढांढस  बढ़ाया क्योकि हम लोग बहुत परेशान हो चुके थे . उसकी बातों को सुनकर हम अचम्भित थे . उसी ने कहा कि ज्यादा मोह सही नहीं . उसकी माँ टिपिकल भारतीय माँ की तरह उदास थी और उससे बात करते समय रो दी तो उसने मुझ से कहा मम्मी को ज्यादा पानी पीने को मत देना क्यों की वह आँखों से ज्यादा पानी निकाल दे देती है .

 वह हमारी  इकलौती बेटी है हमारे खानदान का चिराग वह भी नाम रोशन करने वाली . हमें गर्व है कि हमारी बेटी हमारा नाम आगे बढ़ाएगी . आज तक हमें यह नहीं लगा कि एक बेटा होता तो ........................ हमारी बेटी लाखो बेटो से आगे है . और जो उससे मिलता है हमेशा उसी की बाते करता है .
मै और मेरी बेटी 

गुरुवार, सितंबर 23, 2010

बी.बी.सी. को यह क्या हो गया ......

यह लेख सत्य घटना पर आधारित है किसी की भावनाये आहत हो सकती है . सत्य कडवा होता है इसका विशेष ध्यान रखा जाये .  


आज से कई साल पहले मेरा एक जानकार  बाल काटता था . गांव मे एक छोटा सा सैलून था . एक कुरसी और एक छोटा सा शीशा  और थोडे से औजार . बाप दादो से यह व्यव्साय उसे मिला था . थोडा बहुत पढा लिखा था वह . बहुत सालो  से उससे मुलाकात नही हुई थी . अभी कुछ दिन पहले वह मिला उसकी जेब मे तीन पैन और हाथ मे एक डायरी थी जो मैने बाद में देखी हाल चाल लेने के बाद मैने उससे पूछा और काम धन्धा कैसा चल रहा है वह इस सवाल पर कुछ असहज हुआ और बोला अब हम पत्रकार है .मेरे ध्यान मे आया कोई चीखता भारत , उजडता चमन जैसा कोई २ पेज का अखवार होगा जिसमे वह काम करता होगा . लेकिन मै तब भौचक्का रह गया जब मुझे उसने बताया कि वह दुनिया के सबसे ज्यादा पढे जाने वाले अखवार का सम्वाददाता है .

ऎसे ही कल जब में बी.बी.सी के हिन्दी बेबसाइट को देख रहा था तभी मुझे उनके रिपोर्टर द्वारा लिखित ब्लाग पडने को मिला .शीर्षक था बाबरी ,गोधरा , जय श्री राम . कोई सुशील झा है जो बी.बी.सी. के सम्वाददाता है  उनके द्वारा लिखा यह लेख था .मुझे यह लेख पढते ही अपने वाले पत्रकार की याद आ गई . लेख की शुरुआत झा जी ने क्रिकेट खेलते हुये जब वह ११ वी कक्षा के छात्र थे से की है -


"बात बहुत पुरानी नहीं है...बस 17-18 साल..मैं ग्यारहवीं में पढ़ता था. दिन के ग्यारह बजे होंगे. हम सड़क पर क्रिकेट खेल रहे थे. तभी एक रिक्शा और उसके साथ लोगों का एक गुट आता हुआ दिखा...पास आए तो हमने देखने की कोशिश की कि आखिर रिक्शा पर है क्या?
कुछ नहीं था एक ईंट थी जिसके सामने कुछ रुपए पड़े थे और साथ चलने वाले, लोगों से कह रहे थे राममंदिर के लिए दान दीजिए. लाउडस्पीकर पर घोषणा हो रही थी कि इस ईंट से मंदिर बनेगा.
कारवां गुज़र गया लेकिन उसकी धूल कुछ महीनों बाद दिखी जब पता चला कि कहीं कोई मस्जिद तोड़ दी गई है .

झा जी की इन चंद लाइनो ने मुझे हिला कर रख दिया मुझे तरस आया बी.बी.सी. पर जो विश्व में लोकप्रिय और विश्वसनीय है का सम्वाददाता जो ११ वी कक्षा का छात्र था तब यह नही जानता था कि भारत में कोई मन्दिर मस्जिद विवाद भी है जबकि  उस समय यह विवाद चरम पर था . छोटे बच्चे भी जानते थे कि क्या हो रहा है . इससे पता चलता है झा साहब का उस समय मानसिक क्षमता क्या थी . वह कोई गोद खेलते बच्चे नही थे जो यह ना जाने देश मे क्या चल रहा है . वह उम्र के उस दौर मे थे जब बच्चा तरुण हो जाता है और एक साल बाद १२वी पास करके अपने जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कर लेता है . 

खैर पूत के पांव पालने मे दिख गये लेकिन बी.बी.सी से ऎसी उम्मीद नही थी कि वह इस क्षमता के व्यक्ति को अपना रिपोर्टर बनाये . इन सब बातो से बी.बी.सी पर तरस आना लाजमी है . आज तक बी.बी.सी की विश्वसनीयता उनके रिपोर्टर पर ही थी . मार्क टुली को कौन भूल सकता है उनकी रिपोर्ट पत्थर की लकीर होती थी . लेकिन झा जैसे रिपोर्टरो पर अगर बी.बी.सी चलेगी तो उसका भगवान ही मालिक है . 






मंगलवार, सितंबर 21, 2010

हम तो डूबे है सनम ................ बा्ढ लाईव

बाढ़ भीषण हो गई . बाढ़ में डूबा मेरा फ़ार्म . जहाँ आज तक कभी बाढ़ का पानी नहीं पहुचा इस बार पहुच गया है . गाँव के बुजुर्ग कहते है इतनी बाढ़ तो कभी नहीं आई . इससे पहले एक बार सन १९७१ में भी ऐसी बाढ़ आई थी तब भी इतना पानी तब भी नहीं था . 



मेरा डूबा हुआ लॉन 



पुल से जो पेड़ दिख रहे है वह मेरे है और पेड़ से पहले ८ फीट की ऊँची दीवार है जो पानी में डूबी हुई है 


डूबे हुए खेत

सोमवार, सितंबर 20, 2010

मां से बिछडे हुये हो गये १९ साल

माँ 
आज मुझे अपनी माँ से बिछड़े १९ साल हो गए . एक बहुत लंबा अरसा .... मैं उस समय २० साल और १४ दिन का ही था . मेरी बहिन की शादी हो चुकी थी . पिता जी उस समय सांसद थे . एक छोटे  से आपरेशन मे हुई लापरवाही ने  मेरी माँ को मुझ से दूर कर दिया . मेरी माँ मेरे पूरे परिवार की धुरी थी . 






बहुत चाहते हुए भी मैं कुछ नहीं लिख पा रहा हूँ . सच में आज सब कुछ है हमारे पास सिर्फ माँ को छोड़ कर . आज का दिन मेरे लिए सबसे मनहूस दिन है . 

ईश्वर से प्रार्थना है किसी से उसकी माँ ना छीने .

माँ 
तुम प्रेरणा हो 
तुम शक्ति हो 

शनिवार, सितंबर 18, 2010

मै भी दर्शन कर आया रामलला और अयोध्या के .

अयोध्या राम की अयोध्या खामोश है ,चिंतित है . कल ही मैं अयोध्या में रामलला के दर्शन को गया था . जिन्दगी में पहली बार मैं अयोध्या गया .मेरे बरेली से अयोध्या ४०० कि .मी . दूर है . सुबह ४ बजे चल कर दोपहर तक मैं अयोध्या पहुच गया . रास्ते में भयंकर बारिश थी जो  सिर्फ लखनऊ को छोड़ कर बाकी सब जगह मिली . फैजाबाद से जैसे ही अयोध्या के लिए बढ़ा तो मन में श्रद्धा और साथ में भय भी था .

 २४ के फैसले को लेकर जो मीडिया में हाहाकार मच रहा है वह मुझे अयोध्या में नहीं दिखा . अयोध्या मैं घुसते ही अयोध्यावासियो से ज्यादा तरह तरह के सुरक्षा कर्मी देखकर भय और पुख्ता हुआ . पूरी मुस्तैदी से बारिश में भीगते हुए यह जवान अयोध्या के वातावरण में इस बात के संकेत दे रहे थे तूफ़ान आने को है .

और अयोध्यावासी भी चिंतित थे आगे आने वाले समय को लेकर . 


इसके आगे हमने अपना कैमरा   और सभी  समान  कार  में  रख  कर  जन्मभूमी  की  और  बढ़  गए   . कई  बैरियर  पार  करके  सुरक्षाकर्मियों  और  अयोध्या वासियों की घूरती आँखों से होते हुए कोप भवन के सामने जन्मभूमि के अन्दर जाने वाले गेट से बहुत सी जांच कराकर अन्दर घुस गए . इस प्रक्रिया में हमें लगभग एक घंटा लगा . एक लोहे का बाड़ा सा बना है जिसमे श्रद्धालू चलते  है . वह घुमाव दार रास्ता जहा कई जगह चेक पोस्ट बनी थी से होता हुआ   एक टीले के पास पहुंचा जहाँ टेन्ट में इस समय राम लला विराजमान है .अनुपम सुन्दर रामलला के दर्शन करते ही सब कष्ट विदा हो गए . हमारे साथ लाइन में कई तीर्थयात्री जो तमिलनाडू के थे मंत्रमुग्ध से दर्शन लाभ ले रहे थे लेकिन सुरक्षा कर्मियों की सखती के कारण कुछ ही पलो का श्री राम से साक्षात्कार  हुआ . उस परिसर में श्री राम के अलावा सिर्फ तरह तरह के सुरक्षाकर्मी और शैतान बंदरो का ही जमावाडा था .

मुझे गर्व था कि मैंने जिन्दगी में पहली बार अपने आराध्य की जन्मभूमि के दर्शन किये थे . सूनी अयोध्या और जन्मभूमि के आस पास सिर्फ बूटो की आवाज़े ही सुनाई दे रही थी . लौटते समय हनुमान गढ़ी पर हनुमान जी के दर्शन करके उनसे यही माँगा कि अयोध्या को सिर्फ अयोध्या ही रहने दो .

अयोध्या में घुमते समय वहां के स्थानीय निवासियों से २४ तारीख के बारे में बात हुई . किसी ने भी इस विषय में रूचि नहीं दिखाई . पटरी पर लौटी अयोध्या अब पटरी से उतरने को तैयार नहीं दिखती . चलते चलते एक महलनुमा मन्दिर की यह तस्वीर मुझे बहुत पसंद आई जो शायद कह रही थी अब अयोध्या में तोपों से सिर्फ परनाले ही चलेंगे गोले नहीं . कोई आग नहीं सब शीतल शीतल .



बुधवार, सितंबर 15, 2010

२४ सितम्बर एक फैसले की घड़ी

२४ सितम्बर एक फैसले की घड़ी .......... शायद सदियों का इंतज़ार खत्म हो जाएगा . अयोध्या के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा .


 राम जन्म फिर सदियों तक जन्मभूमि के सम्मान में बना मन्दिर फिर बाबर का सेनापति मीरबाकी द्वारा विध्वंस फिर सदियों तक उसका बदला लेने के लिए प्रयास फिर ६ दिसंबर ...................... और अब यह फैसला . यह फैसला पहला और आख़िरी नहीं होगा . इसके बाद भी सर्वोच्च अदालत है और उसके बाद संसद . फिर भी इतिहास में दर्ज होगा यह फैसला .


फैसला किस के पक्ष में हो या किस के विपक्ष में कहा नहीं जा सकता . लेकिन नीर छीर विवेक से होगा तो सबको मालूम है क्या फैसला आयेगा .


 खैर जो होगा सो होगा दुकानदार दुकाने सजाने में लगे है . बाज़ीगर करतब दिखाने को तैयार है .तवे गर्म हो रहे है रोटी जो सेकनी है इस आग में . धुँआ देख हवा करने आ रहे है राख में से आग को कुरेद कर दावानल की परिस्थितिया उत्पन्न हो इसी प्रयास में सब लगे है . 


उस दिन का हम भी इंतज़ार कर रहे . तब तक  जय राम जी की तो कहना ही पडेगा . 

सोमवार, सितंबर 13, 2010

धीरुभाईज्म


ब्लोगिंग अपने आप में एक लाइलाज बीमारी है . उस पर कोढ़ में खाज वाली बात हो जाती है पुस्तको के पढाने की आदत . अभी दिल्ली से बरेली ट्रेन से आने का सौभाग्य मिला . नईदिल्ली स्टेशन पर देखा देखी बुक स्टाल पर खडा टाइम पास कर रहा था तभी नज़र पढी धीरुभाईज्म नाम की किताब पर . जो धीरू भाई अम्बानी के सहयोगी रह ए. जी कृष्णमूर्ति ने धीरू भाई की कार्य पद्धति पर लिखी है . धीरू भाई की सफलता और वह भी फर्श से अर्श तक का सफ़र के पीछे जो उनका दर्शन था उसी को धीरुभाईज्म के नाम से लिखा है . और पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है मुकेश अम्बानी ने . 


धीरुभाई के हज़ारो आलोचक है लेकिन करोडो प्रसंशक भी . एक साधारण मैट्रिक पास लड़का जो एक प्राइमरी मास्टर का पुत्र है सिर्फ अपने आप कार्य पद्धिति से ही व्यापार जगत में जीवंत किदवंती बन गया हो के बारे में पढ़ना तो जरुर चाहिए . अम्बानी के ब्रह्म वाक्य " बड़ा सोचो ,तेज़ी से सोचो व सबसे पहले सोचो . विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होता " अपने आप में सफलता का मूलमंत्र है . 

धीरुभाईज्म में धीरू  भाई के दर्शन को १५ भाग में बाटा गया है 

१. आगे बड़े व मदद करे 

२. अपने दल का सुरक्षा कवच बनो 

३. मूक दानी बनो 

४. " बड़े -बड़े सपने देखो ,लेकिन खुली आँखों से "

५. गलबाहीं देने वाला नेता 

६. आपूर्ति मांग पैदा करती है 

७. धन अपने आप में कोई प्रोडक्ट नहीं यह बाय प्रोडक्ट है 

८. व्यवसायी को अधिकार दो 

९. अपनी कक्षा बदलते रहो 

१०. आशावादिता 

११. हर व्यक्ति मित्र है 

१२. बड़ी सोच 

१३. सपनों की डोर थामे रहो 

१४. अपने लोगो पर दाव लगाओ 

१५ .सकारात्मक  बनो 

कृष्णमूर्ति ने सरल शब्दों में इनकी व्याख्या की है . मेरे हिसाब से यह पुस्तक एक बार पढनी जरुर चाहिए . धीरू भाई कितने भी विवादास्पद रहे हो कितने भी क़ानून अपने हिसाब से तोड़े मरोड़े हो लेकिन धीरू भाई अम्बानी से सफलता से  प्रेरणा तो ली ही जा सकती है . बहुत  बुराई सही जैसा कुछ लोग मानते है  लेकिन उनसे ज्यादा बहुत अच्छाई होंगी धीरू भाई अम्बानी में जिसके कारण सफलता के शिखर  पर पहुंचे .

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नोट :- मेरा नाम धीरू भाई अम्बानी से मिलना एक इतेफाक है जब मेरा नाम रखा गया था तब धीरू भाई अम्बानी धीरू भाई अम्बानी नहीं थे . मैं तो मज़ाक में कहता हूँ जब से मैं पैदा हुआ तभी से धीरू भाई अम्बानी ने तरक्की शुरू की . शायद मेरे भाग्य का कोटा धीरू भाई अम्बानी को प्राप्त हो गया . और एक सच जब से अम्बानी का निधन हुआ है तब से मैं आर्थिक मज़बूत हो  रहा हूँ ईश्वर की कृपा से .  




शनिवार, सितंबर 11, 2010

खुशवंत सिंह का मानसिक दिवालियापन .

९० साल से ज्यादा के हो गए खुशवंत सिंह शायद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है या सस्ती लोकप्रियता का बुखार उन्हें चढ़ गया है . आज उन्होंने अपने साप्ताहिक लेख जो हिन्दी में ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर के नाम से  छपता है   में कलम के सिपाही और शहीदों के खून में एक तुलना की है . उस बूढ़े माणूस ने  ओसामा बिन लादेन ,और भिंडरावाले के साथ वीर सावरकर को भी खडा कर दिया है . कितना  नीचता पूर्ण कृत्य है यह .

वीर सावरकर के लिए नहीं हम लोगो के लिए शर्म की बात है .कहाँ वीर सावरकर जिन्होंने देश की आजादी  के खातिर दो आजन्म कारावास   की सज़ा पायी . जो देश की आज़ादी के लिए कालापानी में कोल्हू में बैल की तरह जुते रहे  को आज अंग्रेजो की चाटूकारिता कर रोटी कमा कर खाने वाले परिवार का एक सदस्य आतंकवादी की लाइन में खडा कर रहा है . उसे आज वीर सावरकर का संसद में लगा चित्र भी आपतिजनक लगता है .

लादेन , भिंडरावाला के साथ सावरकर को खडा करना खुशवंत सिंह के मानसिक दिवालियापन का सबूत है . अब खुशवंत सिंह को लिखना छोड़ कर सिर्फ स्काच और अपनी बूढी होती महिला दोस्तों का ही ध्यान रखे जो  उनके शेष जीवन के लिए बेहतर रहेगा .

गुरुवार, सितंबर 09, 2010

आप कौन से नम्बर के भारतीय हो ?

 बच गये बाल बाल बच गये . आज इस बात की खुशी है की २ नम्बर का होना कितना फ़ायदेमंद है . मुझे गर्व है मै २ नम्बर का हिन्दुस्तानी हूं. क्योकि हर तीसरा हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है . ऐसा मानने वाले सी बी सी मि.सिन्हा क्या कहना चाहते है पता नही .लेकिन इतनी लम्बी और महत्वपूर्ण पद से रिटाइर सिन्हा साहब आज तक यह नही जान पाये हिन्दुस्तान  कहां है .

भारत में ८० % जनता गांव मे रहती है . गांव मे रहने वाले मेहनत मजदूरी करने वाले भूख से लडकर मरने वाले कब से भ्रष्ट की श्रेणी मे आ गये . हां सिन्हा साहब जहा रहते है और जहा उन्होने नौकरी की है वहा जरुर हर व्यक्ति भ्रष्ट है . वहां ना कोई एक नम्बर वाला ईमानदार है ना दो नम्बर वाला और ना ही तीन नम्बर वाला . पता नही तीसरा कह कर किसे बचाना चाहते है सिन्हा साहब .  
दिल्ली मे एक दो तीन नम्बर पर है राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री,और सोनिया गान्धी . और सी वी सी के अनुसार हर तीन मे से एक भ्रष्ट है . इन तीनो मे से कौन वह यह बताये . खैर जो है सो है .

एक सवाल आप सब से आप कौन से  नम्बर के भारतीय हो ?

मंगलवार, सितंबर 07, 2010

धन्यवाद धन्यवाद और धन्यवाद

धन्यवाद धन्यवाद और धन्यवाद . इसके सिवा और कुछ कह भी तो नहीं सकता . ५ सितम्बर को रात में सोया था तब तक आने वाली खुशियों से अन्जान था . ठीक १२ बजे मोबाइल बजा उधर से आवाज़  थी आपको जन्मदिन की शुभकामनाये .क्या आपको डिस्टर्व तो नहीं किया . कुछ सैकेंड तो मैं कुछ समझ नहीं पाया लेकिन तभी चेतना आयी और समझ आ गया यह आवाज़  तो अपने पाबला जी की है . पाबला जी एक ऐसे ख़ास रिश्तेदार है जिन्हें अभी तक देखा ही नहीं . लेकिन सुख दुःख में पाबला जी हमेशा साथ खड़े मालूम होते है . पाबला जी से बात हो ही रही थी तभी फोन पर एक काल ने और दस्तक देना शुरू की .

वह थे दीपक मशाल जी . सात समुन्दर पार से बधाई मिलने लगी .मैं तो सोच भी नहीं सका इतनी दूर दूर से भाई लोग मेरा जन्मदिन मना  रहे  है जबकि  घर  वाले  अभी सो  ही रहे  है .दीपक मशाल जी को  तो धन्यवाद के शब्द भी कम पड़ रहे है . तभी एक फोन और बजा वह था अपने ललित शर्मा जी का . ललित जी को भी धन्यवाद दिया और बधाई ली .

खुशियाँ ज्यादा देर तक साथ नहीं रही मैं उस दिन नोयडा में था और जिस होटल में था वहा अपना बी एस एन एल का नेटवर्क दम तोड़ गया . और सुबह तक मृत रहा . कई लोगो से बात नहीं हो पाई जिसका मुझे खेद है . लेकिन एक खुशी इस बात की है ब्लॉग ने बहुत से साथी दिए इससे अच्छा उपहार और क्या  हो सकता है .

उसके बाद जब घर आकर शाम को जब मेल चैक की तो वहा  अग्रज समीर जी , दिनेशराय द्विवेदी जी ,नरेश सिंह जी सहित कई लोग वहा वधाई दे रहे थे . और पाबला जी के ब्लाग  पर तो वधाईयां  ही बधाईयाँ मौजूद थी .

आज तक मेरा जन्मदिन इतनी शानदार तरीके से नहीं मना .वैसे मैं भी जन्मदिन नहीं मनाता हूँ और कई सालो से अपना फोन भी बंद कर लेता था इस दिन . परन्तु पाबला जी ने वह परम्परा समाप्त करा दी .

बुधवार, सितंबर 01, 2010

आतंक कलर ब्लाइंड होता है

आधा अगस्त अस्त व्यस्त रहा मेरा . अब गाडी पटरी पर लग रही है . अभी बे कार हूँ क्योकि अपनी तो कार चोरी हो चुकी है और बिना क्लेम मिले नई कार सोचना अपने से मज़ाक करना ही है . खैर जब वह  दिन ना रहे तो रहेंगे यह भी नहीं .

बहुत दिनों से ब्लॉग से भी दूर रहा . नोयडा के एक अस्पताल में १० दिन तीमारदारी में रहा जहां इन्टरनेट सुबिधा नहीं थी और शायद जो थी वह सिर्फ विदेशी मरीजों को ही उपलव्ध थी . कोई बात नहीं हम को तो सदियों से आदत है इस तरह के दुर्व्यवहार की . इन १५ दिनों में हालात जैसे भी हो कई समाचार पढ़कर देखकर लिखने का मन करता था . लेकिन मजबूर था . फिर भी दो चार विषय पर दो चार लेने तो लिख ही सकता हूँ .....

१- सांसदों का वेतन भत्ते बेहताशा बड़ा दिए गए . मज़ा आ गया .............. अब कोई गरीब नहीं रहेगा सांसद लेकिन जिन सांसदों ने उसका विरोध किया उन्ही सांसदों की खबर सुनने को आतुर हूँ उन्होंने बढोतरी को ठुकरा दिया . शायद बड़ी बिंदी वाली बहन जी या उनके देवर समान साथी जल्द घोषणा करे . पर मुझे मालूम है आती हुई लक्ष्मी ठुकराता कौन है .

२- भगवा आतंक का हौआ मचा दिया चिदम्बर ने थोड़ी देर को नक्सल ,कश्मीर को भुलावे में तो डाल ही दिया . अब पढ़े लिखे जो कहें वह सही ........पर मैं जानता हूँ यदि भगवा में थोड़े आतंक की कीटाणु होते तो हरा काला सफ़ेद कही ना होता . क्योकि सबसे पहले सदियों से भगवा ही तो था . वैसे आतंक कलर ब्लाइंड होता है यह सब जानते है . और आज सबसे ज्यादा तो आतंक रंग बिरंगा है पट्टियों वाला  जिसके किनारे पर कई तारे जड़े है .

३- आखिर  यमुना की बाढ़ ऐसा लगा जैसे हथिनी कुंड से छोड़ा गया पानी सिर्फ  दिल्ली को ही डुबोयेगा . टी वी पर समाचार चैनल देखकर तो ऐसा ही लगा .यमुना का सफ़र जो इलहाबाद तक   है सिर्फ दिल्ली तक  ही महसूस   हो रहा था इन्हें . बिलकुल कूप मंडूक है हमारे चौथे खम्बे वाले . वैसे अगर आपको बाढ़ देखनी हो तो हमारे यहाँ आइये हजारो बीघा जमीन डूबी हुई है . जिसमे ४० बीघा मेरी भी है .

शेष शुभ अब नियमियतिता बनी रहे यही कामना है किशन कन्हैया से