आज से कई साल पहले मेरा एक जानकार बाल काटता था . गांव मे एक छोटा सा सैलून था . एक कुरसी और एक छोटा सा शीशा और थोडे से औजार . बाप दादो से यह व्यव्साय उसे मिला था . थोडा बहुत पढा लिखा था वह . बहुत सालो से उससे मुलाकात नही हुई थी . अभी कुछ दिन पहले वह मिला उसकी जेब मे तीन पैन और हाथ मे एक डायरी थी जो मैने बाद में देखी हाल चाल लेने के बाद मैने उससे पूछा और काम धन्धा कैसा चल रहा है वह इस सवाल पर कुछ असहज हुआ और बोला अब हम पत्रकार है .मेरे ध्यान मे आया कोई चीखता भारत , उजडता चमन जैसा कोई २ पेज का अखवार होगा जिसमे वह काम करता होगा . लेकिन मै तब भौचक्का रह गया जब मुझे उसने बताया कि वह दुनिया के सबसे ज्यादा पढे जाने वाले अखवार का सम्वाददाता है .
ऎसे ही कल जब में बी.बी.सी के हिन्दी बेबसाइट को देख रहा था तभी मुझे उनके रिपोर्टर द्वारा लिखित ब्लाग पडने को मिला .शीर्षक था बाबरी ,गोधरा , जय श्री राम . कोई सुशील झा है जो बी.बी.सी. के सम्वाददाता है उनके द्वारा लिखा यह लेख था .मुझे यह लेख पढते ही अपने वाले पत्रकार की याद आ गई . लेख की शुरुआत झा जी ने क्रिकेट खेलते हुये जब वह ११ वी कक्षा के छात्र थे से की है -
"बात बहुत पुरानी नहीं है...बस 17-18 साल..मैं ग्यारहवीं में पढ़ता था. दिन के ग्यारह बजे होंगे. हम सड़क पर क्रिकेट खेल रहे थे. तभी एक रिक्शा और उसके साथ लोगों का एक गुट आता हुआ दिखा...पास आए तो हमने देखने की कोशिश की कि आखिर रिक्शा पर है क्या?
कुछ नहीं था एक ईंट थी जिसके सामने कुछ रुपए पड़े थे और साथ चलने वाले, लोगों से कह रहे थे राममंदिर के लिए दान दीजिए. लाउडस्पीकर पर घोषणा हो रही थी कि इस ईंट से मंदिर बनेगा.
कारवां गुज़र गया लेकिन उसकी धूल कुछ महीनों बाद दिखी जब पता चला कि कहीं कोई मस्जिद तोड़ दी गई है .
झा जी की इन चंद लाइनो ने मुझे हिला कर रख दिया मुझे तरस आया बी.बी.सी. पर जो विश्व में लोकप्रिय और विश्वसनीय है का सम्वाददाता जो ११ वी कक्षा का छात्र था तब यह नही जानता था कि भारत में कोई मन्दिर मस्जिद विवाद भी है जबकि उस समय यह विवाद चरम पर था . छोटे बच्चे भी जानते थे कि क्या हो रहा है . इससे पता चलता है झा साहब का उस समय मानसिक क्षमता क्या थी . वह कोई गोद खेलते बच्चे नही थे जो यह ना जाने देश मे क्या चल रहा है . वह उम्र के उस दौर मे थे जब बच्चा तरुण हो जाता है और एक साल बाद १२वी पास करके अपने जीवन के लक्ष्य को निर्धारित कर लेता है .
खैर पूत के पांव पालने मे दिख गये लेकिन बी.बी.सी से ऎसी उम्मीद नही थी कि वह इस क्षमता के व्यक्ति को अपना रिपोर्टर बनाये . इन सब बातो से बी.बी.सी पर तरस आना लाजमी है . आज तक बी.बी.सी की विश्वसनीयता उनके रिपोर्टर पर ही थी . मार्क टुली को कौन भूल सकता है उनकी रिपोर्ट पत्थर की लकीर होती थी . लेकिन झा जैसे रिपोर्टरो पर अगर बी.बी.सी चलेगी तो उसका भगवान ही मालिक है .
साफ तौर पर ये बात उन्होंने सिर्फ लेख लिखने के लिए लिखा था कोई सच्ची बात नहीं थी | पर आप विश्वास मानिये यहाँ मुंबई जैसे बड़े शहरों में भी ऐसी बढे लिखो की कोई कमी नहीं है जो वास्तव में नहीं जानते की दिन दुनिया में क्या हो रहा है वो टीवी पर कभी न्यूज चैनल लगते नहीं और अखबार पढ़ने की वो जरुरत नहीं समझते |
जवाब देंहटाएंधीरू भाई आजकल के पत्रकारों का यही सच है। कम से कम मैं तो अपने शहर में ऐसे ही देख रही हूँ। एक बार जनजातीय क्षेत्र में एक कार्यक्रम था उसमें 50 हजार लोगों की भागीदारी थी। मुख्यमंत्री जी भी गए थे लेकिन समाचार कौन दे? रात दस बजे मेरे पास फोन आया कि आपका समाचार प्राप्त नहीं हुआ। मैंने कहा कि आज तो सारे ही प्रेस वाले थे तो समाचार तो आ गए होंगे। वे बोले कि अरे हमारे प्रेस वाले तो गाँव में साइकिल रिपेयर वाला है, अत: आप ही भेजिए। ऐसे ही न जाने कितने उदाहरण हैं मेरे पास। जब इन्हें केमरा उठाए और माइक हाथ में लिए देखती हूँ तो इस देश की पत्रकारिता पर तरस आता है। जनता बेचारी भोली है जो इनके समाचारों पर विश्वास कर लेती है।
जवाब देंहटाएंVicharniya post hai.
जवाब देंहटाएंमैंने ऐसे ईंटे तो ले जाते नहीं देखीं लेकिन आज भी चादरों में पैसे इकट्ठे किये जाते देखे हैं... झूठी बातें गढ़ने वाले और "मैं सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष बनने के लिये कुछ भी करुंगा" टाइप के लोगों को देखकर हमारे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी आंसू बहा रहे होंगे...
जवाब देंहटाएंbhawan bhi unkaa maalik nahi ho sakata...
जवाब देंहटाएंझा जी को मालूम होगा, लेख में नाटकीयता दिखाने के लिये यह इस्टाइल मात्र लगती है।
जवाब देंहटाएंअब ऐसे ही पत्रकारों से काम चलाईये :)
जवाब देंहटाएंये आजकी पत्रकारिता का सत्य है .... बी बी सी को कैसी शर्म ..... आज कल सनसनी बिकती है इसलिए मदारी पूछे जाते हैं ....
जवाब देंहटाएंखींच लिया बेचारे को । उसने इमोशनल इफेक्ट डाला था भई !
जवाब देंहटाएंअजी जब हमारे नेता इतने महान है तो पत्र कार भी तो उन जेसे महान होने चाहिये. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.......
जवाब देंहटाएं“20 वर्षों बाद मिला मासूम केवल डॉन से"
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
जेब मे तीन पैन और हाथ मे एक डायरी :) इधर तो महीना दिन में भी एक रीफिल खाली नहीं होती :)
जवाब देंहटाएंबीबीसी ब्लॉग से होकर आ रहा हूं। वहां महाभारत छिड़ी है :)
धीरू भाई, सलमा ज़ैदी के बीबीसी-हिन्दी का लम्बे समय से यही हाल है।
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के लिए शुभकामनाये.
जवाब देंहटाएंक्या कहें ! ऐसे समाचार पत्रों व एजेंसियों का भगवान् भला करें
जवाब देंहटाएंअब चहुँ ओर ऐसे ही हैं ।
जवाब देंहटाएंFirst paragraph of your article is quire Racist seems like you think a Barber son can only be barber
जवाब देंहटाएंशायद पत्रकार का मतलब बिना आंख कान का व्यक्ति होता हैं.....वो वहां आकर भी नहीं पढते कि लोगों को कैसा लग रहा है मेरा लिखा हुआ....क्यों कि इतना ही अकल उनमें होती और वे देख सुन पाते तो शायद हर तर्क का जवाब देते....मैंने भी उस पोस्ट पर कंमैंट लिखा था पर बेचारे मैं इतनी अकल कां कि सब को जवाब दे पायें
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