शनिवार, सितंबर 11, 2010

खुशवंत सिंह का मानसिक दिवालियापन .

९० साल से ज्यादा के हो गए खुशवंत सिंह शायद अपना मानसिक संतुलन खो बैठे है या सस्ती लोकप्रियता का बुखार उन्हें चढ़ गया है . आज उन्होंने अपने साप्ताहिक लेख जो हिन्दी में ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर के नाम से  छपता है   में कलम के सिपाही और शहीदों के खून में एक तुलना की है . उस बूढ़े माणूस ने  ओसामा बिन लादेन ,और भिंडरावाले के साथ वीर सावरकर को भी खडा कर दिया है . कितना  नीचता पूर्ण कृत्य है यह .

वीर सावरकर के लिए नहीं हम लोगो के लिए शर्म की बात है .कहाँ वीर सावरकर जिन्होंने देश की आजादी  के खातिर दो आजन्म कारावास   की सज़ा पायी . जो देश की आज़ादी के लिए कालापानी में कोल्हू में बैल की तरह जुते रहे  को आज अंग्रेजो की चाटूकारिता कर रोटी कमा कर खाने वाले परिवार का एक सदस्य आतंकवादी की लाइन में खडा कर रहा है . उसे आज वीर सावरकर का संसद में लगा चित्र भी आपतिजनक लगता है .

लादेन , भिंडरावाला के साथ सावरकर को खडा करना खुशवंत सिंह के मानसिक दिवालियापन का सबूत है . अब खुशवंत सिंह को लिखना छोड़ कर सिर्फ स्काच और अपनी बूढी होती महिला दोस्तों का ही ध्यान रखे जो  उनके शेष जीवन के लिए बेहतर रहेगा .

22 टिप्‍पणियां:

  1. 90 साल बाद किसी व्यक्ति से बुद्धिमानी एक्स्पेक्ट करना क्या बुद्धिमानी है:)

    जवाब देंहटाएं
  2. khushwant singh ji sirf mahilao kee dosti ke baare acche se likh sakte hain,

    "naa kaahou se dosti, naa kaahou se bair" ka matlab hain

    "naa mere paas samjhdari, naa mere paas bewkoofi"

    जवाब देंहटाएं
  3. cmpershad ने कहा…

    90 साल बाद किसी व्यक्ति से बुद्धिमानी एक्स्पेक्ट करना क्या बुद्धिमानी है:)
    agreed!

    जवाब देंहटाएं
  4. अटपटा तब लगता है जब नियमित अन्तराल में यह इस तरह की हरकतें नहीं करते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. भाई साहिब! खुश्वंत बाबू यह सब नहीं करेंगे तो सत्ता की मलाई के जो टुकड़े उन्हें अभी भी मिल रहें हैं वह नहीं मिलेंगें, हाल ही में कोई इनाम भी मिला है उनकों.

    तन्त्र इस तरह के लोगों को एक ओर कारण से पालता है क्योकिं अभी टेलीविज़न और समाचार पत्रों मे दिखायी देने वाले "50 से 80 की उम्र" के जो खुश्वंत बाबू टाईप पत्रकार, सरकारी शान में कसीदे पढ़ रहें उनमें उम्मीद जगी रहे, कि तन्त्र उनका भी इसी तरह ख्याल रखेगा!

    पर्सुएशन इंडस्ट्री इसी तरह काम करती है.

    समय मिले तो यह भी देखियेगा:
    राहुल गाधीं की दाढ़ी और पा (पायति) प (पर्सुएशन इंडस्ट्री)

    जवाब देंहटाएं
  6. ऐसे घटिया लोगों के कारण ही यह देश 1000 वर्ष तक गुलाम रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  7. पागल हो गया है ये गांधी परिवार का पालतू जीव..

    जवाब देंहटाएं
  8. सठियाने के लिये 60 पार जाना भी ज़रूरी नहीं है, 90 की तो बात ही क्या है। बेतुके स्तरहीन चुटकुलों की बैसाखी पर टिका "ना काहू से दोस्ती" कई बार पढा है और एक बार उसमें ढंग की बात भी मिली थी।

    जवाब देंहटाएं
  9. पागल हो गया है ये गांधी परिवार का पालतू जीव..इस परिवार ने सबकी मति मार ली है ...देश और समाज कराह रहा है इस परिवार की वजह से ...

    जवाब देंहटाएं
  10. अजी उम्र की बात नही, इस उम्र मै लोग समझ दारी की बात करते है, ओर जानवर भी अपनी उम्र मै आप कर समझ दार हो जाते है, लेकिन जयचंद जेसे ओर चाप्लुस चमचे तो वोही करेगे जो उन के आकाऒ को मंजुर होगा,

    जवाब देंहटाएं
  11. खुशवंत सिंह ने पहले कौनसा अच्छा लिखा है?कभी अश्लील तो कभी विवादस्पद लिख कर ही ये बूढा जीव अपनी रोज़ी रोटी चला रहा है...वैसे भी ये सब पढता कौन है?

    जवाब देंहटाएं
  12. ओह ! एक महान लेखक ने ऐसा कहा ...........मैं ये लिख रहा था कि पीछे से आवाज आई ...कौन लेखक बे ...और कौन महान ????

    जवाब देंहटाएं
  13. अधिकतर मित्रों ने खुशवन्त सिंह के लिये आशीर्वचन पहले ही प्रदान कर दिये हैं…

    अब मैं उसे दारुबाज, रंडीबाज, गाँधी परिवार का चमचा और ठरकी बुढ़ऊ कहना नहीं चाहता… :) :)

    जवाब देंहटाएं
  14. हिन्दुओं को गाली देना प्रगतिशील सोच रखने की पहली शर्त है, आज का फ़ैशन है। बात चाहे आतंकवाद की हो या कुछ और, जब तक साबित न हो दूसरों को निर्दोष बताना और अगर सब साफ़ दिख रहा हो तो उनके समकक्ष किसी राष्ट्रवादी व्यक्ति या संगठन को ला खड़ा करना इनकी चाल है। आजकल भगवा आतंकवाद का जुमला उछाल कर एक तरफ़ से दूसरों को क्लीनचिट दे दी गई है, वैसे ही सावरकर को लादेन और दूसरों के बराबर रखकर जस्टीफ़ाई करने की कोशिश है ये।

    जवाब देंहटाएं
  15. नेहरु का पालतू है, इसलिए उसी तर्ज पर अपनी वफादारी दिखाता है समय-समय पर ! मैंने भी बहुत पहले इसके एक करतूत उजागर की थी अपने ब्लॉग पर !

    जवाब देंहटाएं
  16. लगे हाथ चंद्रमौलेश्वर जी को यह भी बता देना चाहिए था कि अधिकतम कितने साल से पहले किसी से बुद्धिमानी की आशा रखना बुद्धिमानी होगा ।

    जवाब देंहटाएं
  17. ख़ुशवंत जैसे लेखकों को बहुत पहले ही हमने तो अच्छे लेखों की श्रेणी से निकल दिया था ... सस्ती लोकप्रियता के लिए ऐसे लोग कुछ भी लिख सकते हैं ...

    जवाब देंहटाएं
  18. Kushwant Singh may not be rational in his writings, but I am a fan of his. His honest yet irrational views have never failed to bring a smile to many faces. Personal attacks are neither justified, not called for. I am pained to read the comments.

    Manoj

    जवाब देंहटाएं

आप बताये क्या मैने ठीक लिखा