हे राजकुमार राहुल
यह आपको क्या हो गया
महलो मे रहने वाले आप
झोपडी से प्यार क्यो हो गया
क्या आपको सुख हड़ता है
या
सिद्धार्थ बुद्ध बनने की ओर बड़ता है
मेरी जिज्ञासा का समाधान करे
हे जन गन मन अधिनायक
कुछ तो छाया कोहरा साफ़ करे
युवराज राहुल पहले कुछ मुस्कराए
फिर धीरे से बुदबुदाये
हे दीन तुम अब भी नही समझ पाये
६० सालो मे दिया दर्द तुमने भूलाये
आज राज बचाने को यह प्रसंग जरूरी है
दीना नाथ तुम्हरी कुटिया मे आये
दीन को भरमाने के लिए जरूरी है
इससे कई कार्य सिद्ध हो जायेंगे
हमारे द्वारा बनाये गए गरीब
हमें अपने बीच पाकर
चुनाब तक अपने सारे शिकवे भूल जायेंगे
उनके वोटो से हम फिर सत्ता पा जायेंगे
उनके कष्टों का निवारण के लिए
हम फ़िर चार साल बाद आयेंगे
तब अपने महलो मे जम कर एश मनाएंगे
क्या तुम उल्टा सोचते
हम बुद्ध नही तुमको बुद्धू बनायेंगे
"हम फ़िर चार साल बाद आयेंगे"
जवाब देंहटाएंप्रतीक्षा अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है !
कवि ने अब जाकर अपने अन्दर के कवि को पहचाना है !
बायें का सामान उठाकर दायें रख दिया ? यह क्या फेंगशुई है :)
बहुत सही लिखा।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सटीक!
जवाब देंहटाएं@ भाई विवेक
जवाब देंहटाएंपरिवर्तन है यह या नकल भी कह सकते हो .
पता नही चलता लिखता जाता हूँ किसी धुन मे आप से पता चलता है यह तो कविता हो गई
सही लिखा है जी ..आगे आगे देखिये होता है क्या
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha hai
जवाब देंहटाएंबढ़िया नीतिकथन,व्यंग्य समेत।
जवाब देंहटाएंखूब कहा भाई.....वैसे हम तो राहुल बाबा से उम्मीद लगाये बैठे है.....की उन घाघ बुढो से शायद उनकी रेटिंग थोडी सी ऊपर हो.
जवाब देंहटाएंहम फ़िर चार साल बाद आयेंगे
जवाब देंहटाएंतब अपने महलो मे जम कर एश मनाएंगे
क्या तुम उल्टा सोचते
हम बुद्ध नही तुमको बुद्धू बनायेंगे
" bhut sach likha agar jeet gye to sach mey janta ko buddu bna hi jayenge.."
Regards
बहुत करार तमाचा है है ये आज की राजनीति पर...इतनी आसन सी बात को भी भोले भले वोटर नहीं समझ पाते....अब क्या कहें उन्हें? बहुत लाजवाब कविता है आपकी...
जवाब देंहटाएंनीरज
उनको देखने से आ जाती है चेहरों पे रौनक,
जवाब देंहटाएंवे समझते हैं कि वोट इसबार हमें ही मिलेगा !!!
bilkul sahi kaha hai...
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