सोमवार, नवंबर 03, 2008

महिला आरक्षण के नाम पर महिलाओं के साथ धोखा ?

एक नई बहस पुराने विषय पर "महिला आरक्षण" ।

पिछले कई सालों से फुटबाल बना यह बिल नेताओं की ठोकरे खा-खा कर अपनी शक्ल भी खो बैठा है । उ।प्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने ताजे बयान में आरक्षण में आरक्षण का शिगूफा छोड़ कर बहस को तेज कर दिया । वैसे महिला आरक्षण में आरक्षण राजनाथ सिंह अपने मुख्यमंत्री काल में लागू कर चुके है ।


भाजपा ,कांग्रेस ,कम्युनिष्ट महिला आरक्षण की वकालत तो करते है लेकिन अमल से कोसो दूर है । अभी दिल्ली की विधान सभा प्रत्याशियों की सूची इनकी कलई खोलने के लिए काफी है । ३३% की तो दूर .३% भी तो नहीं दिए महिलाओं को टिकट । महिलाओं के हक की बड़ी -बड़ी बातें करने वाली नेत्रिया भी आरक्षण की जानबूझ कर चर्चा नहीं करती ।

दवी कुचली महिलाओं की आवाज़ सशक्त महिलाएं भी सुनती नहीं चाहे वह सोनिया गाँधी हो वृंदा करात हो ,सुषमा स्वराज हो या मायावती हो । तथाकथित महिला सशक्तिकरण का दंभ भरने वाली भी कान में ऊँगली डाल के बैठी रहती है ।

महिला आरक्षण पर आखरी बहस शुरू होनी चाहिए , आर या पार जो पार्टी इस आरक्षण का समर्थन करती है वह इन विधानसभा चुनाब में अपनी सूची में महिलाओं को स्थान दे , नहीं तो आधी आबादी से माफ़ी मांगे कि हम उनेह बेबकूफ बना रहे है ।

1 टिप्पणी:

आप बताये क्या मैने ठीक लिखा