लो जी एक एपीसोड खत्म हो रहा है आतंक शो का इस बादे के साथ फिर मिलेंगे इंतज़ार करे । और हम इंतजार करने के आलावा कर भी क्या सकते है । कब नया एपिसोड हो यह पता नहीं लेकिन यह धरावाहिक अभी खत्म होता नहीं दीखता । न जाने कितने नए एक्टर आकर अपनी प्रतिभा दिखायेंगे और लाइव शो कर के न जाने कितनी माँ की कोअख सूनी होंगी , कितने मांगे सूनी होंगी , कितने बच्चे अनाथ होंगे ।
और कितनी सरकारे बनेंगी , कितने वादे होंगे , कितनी कसमे खायी जाएँगी आतंक को खत्म करने को , लेकिन सनातन सत्य यह है की आतंक नामक लोकप्रिय धारावाहिक अभी तो चलेगा । और एक कड़वा सच --
रावन भी तभी मारा गया जब उसने सीता का हरण किया मतलब [ लिखने मे डर लग रहा है ] जब तक संघारक पर खुद नहीं बीतती तब तक लंका पर हमला नहीं होता ।
आपके जज्बात समझे जा सकते है |आप से सहमत हूँ यह धारावाहिक कभी खत्म ना होने वाला |
जवाब देंहटाएंहाँ ये बात सही है,जब-तक दूर से आग तापने की आदत नही जायेगी कुछ् नही होने वाला.
जवाब देंहटाएंकल इसराइल की संस्था "मोस्साद" ने मदद की पहल की थी क्योंकि उन्हें इस प्रकार के ऑपरेशन की "आदत" और अनुभव है, लेकिन भारत सरकार ने मुस्लिम वोटों को खोने के डर से उन्हें मना कर दिया…
जवाब देंहटाएंये राजनितिक कुत्ते चले हैं पकिस्तान से मदद लेने.. वोट बैंक अच्छी बनेगी.. साले.. हरा*****.. इससे ज्यादा गलियां इन माद****** को देकर अपनी ही जबान ख़राब होगी..
जवाब देंहटाएंमुझे पता है कि मेरी जो पहचान है उससे कुछ अलग मैंने कमेन्ट में लिखा है, मगर यही भाव मन में आ रहे हैं.. और मैं इन राजनितिक पिट्ठुओं कि तरह मुखौटे में नहीं जीता हूँ..
" शोक व्यक्त करने के रस्म अदायगी करने को जी नहीं चाहता. गुस्सा व्यक्त करने का अधिकार खोया सा लगता है जबआप अपने सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पाते हैं. शायद इसीलिये घुटन !!!! नामक चीज बनाई गई होगी जिसमें कितनेही बुजुर्ग अपना जीवन सामान्यतः गुजारते हैं........बच्चों के सपोर्ट सिस्टम को अक्षम पा कर. फिर हम उस दौर सेअब गुजरें तो क्या फरक पड़ता है..शायद भविष्य के लिए रियाज ही कहलायेगा।"
जवाब देंहटाएंसमीर जी की इस टिपण्णी में मेरा सुर भी शामिल!!!!!!!
प्राइमरी का मास्टर
यह शोक का दिन नहीं,
जवाब देंहटाएंयह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।
जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।
यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।
युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।
हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।
एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।
याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।
इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।
चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।
- कविता वाचक्नवी
साभार इस कविता को इस निवेदन के साथ कि मान्धाता सिंह के इन विचारों को आप भी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचकर ब्लॉग की एकता को देश की एकता बना दे.
सही लिखा आपने , जब अपना ही सिक्का खोटा है तो क्या कहें .
जवाब देंहटाएंखेल खत्म हुआ अब शूरू होगा एकता कपूर मार्का राजनितिज्ञो और चैनल वालो का आतंकवादी कौन कैसे ?
जवाब देंहटाएंइंडीयन लाफ़टर चैलेंज पार्ट@$56&*%
नरीमन पाईंट मे रहने वाले काटेगे थाने के चक्कर अपने घर पर वापस कब्जे के लिये. जो घर मे था वो तो लुट गया बचा खूचा पुलिस कानून को दिखानेके नाम पर मालखाने मे जमा कर लेगी
एटीऎस की पूछताछ अब इस लुटे पीटे लोगो से शुरू होगी. ताज और ओबराय तो फ़िर से चालू हो जायेगे . लेकिन इन बेचारो ( ताज ओबराय के कर्मचारी ) अब ए टी एस और पुलिस जांच मे महीनो चक्कर काटेगे
सत्य यही है दोस्त , नया धमाका होगा नई कारवाई होगी तब तक ये लोग कोर्ट और पुलिस से निपट भी नही पायेगे
फ़िर नई सीरीजि शुॠ हो जायेगी
सत्ताधीशो को अपने बिलो से बाहर निकालने के लिये जरुरी है कि देशवासी दिल्ली की ओर कूच करे और इन कायरो को बिलो से बाहर निकाले। आप शांत हो गये तो इन बेशर्मो को चमडी बदलने मे जरा भी समय न लगेगा।
जवाब देंहटाएंप्रार्थना करे कि भारत को फिर ऐसा नपुंसक प्रधानमंत्री और गृहमंत्री न मिले।
पीडी मै आपके जजबात समझ सकता हूँ। किसी ने एसएमएस मे इन देशद्रोही राजनेताओ के लिये 'हराम के जने' शब्द का प्रयोग किया। सच बताऊँ यह गाली मुझे राजनेताओ की करतूतो की तुलना मे बहुत कम लगी। इनके लिये नयी गाली रचनी होगी।
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