बुधवार, नवंबर 12, 2008

गोरी तू मेला देखन नाय जइयो तोको नोच नोच खाय जाएँ

मैं तो मेला देखन जाउंगी मेरे पास पडोसी सब जाएँ
गोरी तू मेला देखन नाय जइयो तोको नोच नोच खाय जाएँ

यह लाइन एक लोकगीत की है जो मेले को जाने की जिद कर रही पत्नी को पति समझा रहा है । मेला एक ऐसा शब्द जो बचपन की यादे ताज़ा कर रहा होगा आपकी, और वह भी गंगा का मेला जो दिवाली के ठीक १५ दिन बाद पूर्णमासी को होता है ।

मेरा गावं श्री गंगा जी के तट पर है और पिछले १५० सालो से वहा कार्तिक मास में गंगा दशहरा के अवसर पर मेला लगता है । आज भी बैल गाड़ियों में सपरिवार आकर लोग तीन चार दिनों के लिए गंगा के किनारे एक रंग बिरंगा शहर बसाते है ,रेत पर तम्बूओ पर रहना ,वही पर खाना बनाना खाना ,गाना बजाना कीर्तन । सब ग्रामीण परिवेश एक नयनाभिराम द्रश्य जो दिल में बस जाता है ।

मेले में रोजमर्रा की घरेलू सामान ,बर्तन ,ढोलक ,चारपाई ,मिटटी के बर्तन ,खिलोने लोग खरीदते है और मनोरंजन के लिए नौटंकी ,झूले ,सर्कस ,खेल तमाशे और मेले में जलेबी न खायी तो कुछ भी नहीं किया ।

और हमारे मेले में सबसे बड़ा आकर्षण है पशु नखासा {बाज़ार } एक से एक नस्ल वाले घोडे ,बैल ,गाय ,भैस ,भैसे और तो और हाथी व ऊठ तक । पशुओं को सजाने के लिए सामान भी मेले में मिलते है ।

एक अद्भुत द्रश्य कभी मौका मिले तो जरूर देखे । गंगा के किनारे जन समुन्द्र और हां पति की बात भी सच हो सकती है । गोरी जइयो संभल के नाय तो तुझे लोग नोच नोच खाय जाय

3 टिप्‍पणियां:

  1. गॉव का मेला देखा है, मजेदार अनुभव रहे हैं बचपन के, मगर बड़े होने के बाद शहरी चोंचलेबाजी आ गई है, कि‍ धूल-धक्‍कड़ और भीड़ के इलाके में धक्‍का-मुक्‍की से घबराहट होती है। बाकि‍ दी गई सलाह सोलह आने सच है।

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  2. gaon ka mela hum bhi ghume hai,budhi ke baal khate aur baraf ka gola,chudi lete,aur na jane ka kya,bahut achhiy aadein rahi.

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  3. वाह क्या याद दिला दी आप ने सब कुछ एक चल चित्र की तरह से आंखो के आगे घुम गया, ओर यह लोक गीत भी बहुत पंसद आया, इसे पढ के इस से मिलता जुलता एक लोक गीत मुझे भी याद आया, जो पंजाबी मै है.
    जिस मे बीबी अपने पति से कहती है प्यार भरी जिद मै... कि मै चलुगी तो तेरे साथ ही लेकिन लडके ( छोटे बच्चे) को नही उठाउगी.
    धन्यवाद

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा