शुक्रवार, नवंबर 21, 2008

बिना शीर्षक ..क्या करे शीर्षक लिख कर

कुलबुलाहट सी होती है मन छठपटाता रहता है की कुछ लिखो , विषय मन मे आते है कुछ चर्चित कुछ विवादास्पद। फिर खुद ही डर लगने लगता है क्यों आग मे घी डालूं । लेकिन जो आग लगी है उसे देख कर चुप भी तो नहीं रहा जा सकता । आज के दौर में अपनी कमीज़ साफ कैसे दिखे उस के लिए दुसरे की कमीज़ को गन्दा कर दो का चलन बढ़ रहा है ।

स्वयम को महान साबित करने के लिए दुसरे को बदनाम कर दो । इसी परम्परा के ध्वज वाहक हो गए है नेता ,मिडिया ,यहाँ तक सरकार और पुलिस भी । दूसरो की भावनाओं का बलात्कार करना एक फेशन बन गया है। नोयडा का आरुशी काण्ड हो या प्रज्ञा का इतनी जल्दी अर्थ लगा लिय जाता है चाहे बाद मे उसका परिणाम कुछ निकले ।

आरुशी को रोज़ मारा गया बेचारी बच्ची का चरित्र हनन किया गया ,उसके माँ -बाप को ऐसा गम दिया जो आरुशी के कत्ल से भी ज्यादा गहरे साबित हुए । उस समय मिडिया की भाषा बदल गयी सब टी .आर .पी के चक्कर मे डॉ तलवार को इस अभद्र भाषा में पुकारते थे की जाहिल भी ऐसी भाषा का प्रयोग करने मे हिचकेगा ।

यही जाहिलता कर्नल पुरोहित ओर प्रज्ञा सिंह के साथ हो रही है । अभी यह लोग आरोपित है दोषी नहीं यदि इनका दोष सिद्ध हो जाए उस दिन बीच बाज़ार सूली पर टांग देना । लेकिन यदि निर्दोष साबित हुए तो इनका जो चरित्र हनन हम लोग आज कर रहे उसकी भरपाई केसे करेंगे ।

कर्नल पुरोहित को गाली देने के चक्कर मे हम सेना को गाली दे रहे है उस सेना को जो आजतक अपनी एक साफ़ ,निष्पक्ष छवि बना कर रखी हुई है ,यदि सेना का मनोबल ऐसे ही तोड़ते रहे ओर सेना ह्तौत्साहित हो गई तो उसका परिणाम क्या होगा । सोच कर डर लगा या नहीं

7 टिप्‍पणियां:

  1. जो आपकी व्यथा है वही अधिकांश भारतीयों की व्यथा है.

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  2. TRP ka chakkar media ko netaon se bhi jyada khuknkhwar na bana de kahin, isi terah ki kisi khabar dene per ek baar star news ke daftar me kuch log patthar maar aaye thai

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  3. यदि सेना का मनोबल ऐसे ही तोड़ते रहे ओर सेना ह्तौत्साहित हो गई तो उसका परिणाम क्या होगा । सोच कर डर लगा या नहीं

    " ya well said, it is horrible to think even.. the results can me drastic..."

    Regards

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  4. यही चर्चा हर ओर है भाई. हमारी मीडीया बिक गयी है. आभार.
    http://mallar.wordpress.com

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  5. बहुत सुंदर लिखा आप ने ,
    धन्यवाद

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  6. सही लिखा आपने, बिना जाँच पुरी हुए तरह तरह की बाते करने का क्या फायदा | लेकिन यहाँ तो ये केस भी शायद चरित्र हनन करने के उद्धेस्य ही किया गया लगता है | सब राजनेताओं का ड्रामा है | इन्हे वोट चाहिए देश तो इनकी जेब में है ही |

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  7. आज के दौर में अपनी कमीज़ साफ कैसे दिखे उस के लिए दुसरे की कमीज़ को गन्दा कर दो का चलन बढ़ रहा है ।
    बहुत सुंदर

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा