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बाल ठाकरे से एक जन्मजात मराठी की गुहार
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बाल ठाकरे से एक जन्मजात मराठी की गुहार
(मूल मराठी लेख का हिन्दी अनुवाद )
बाला साहेब
जय मराठा
बाला साहेब में एक जन्मजात मराठी मुलगा हूँ . और मुंबई में पैदा हुआ . मैंने मुंबई में ही अपना कारोबार शुरू किया . आपके वरदहस्त से दिन दुनी रात चौगनी तरक्की की . अपने मराठी मानुषो के लिए मैंने कई काम किये . सैकड़ो लोगो को रोजगार दिया . जब मैंने अपने व्यापार को शुरू किया था उससे पहले एक मद्रासी हाजी मस्तान के यहाँ नौकरी की . उस समय मेरे व्यापार में मद्रासियो का कब्जा था . आपने ही शिवसेना के माध्यम से पहली बार मद्रासियो के खिलाफ जंग छेड़ी थी . और उसी का फायदा उठा मैने व्यापार पर कब्जा कर लिया . परन्तु मेरा समय ख़राब था जो आपका स्नेह मुझे नहीं मिल पाया . मेरे एक साथी राजेन्द्र सदाशिव निक्ल्जे जिसे मैं प्यार से छोटा राजन कहता था के चक्कर में आप से दूर हो गया .
आप का साथ क्या छुटा मुझे देश ही छोडना पड़ गया . और एक दुश्मन देश पाकिस्तान में शरण लेनी पड़ी . वहां से अपना व्यापार चला रहा हूँ .लेकिन मेरा दिल अभी भी मुंबई में ही रहता है . मैंने गलती से एक उत्तर भारतीये अबू सलेम को अपना व्यापार सम्हालने को दिया तो उसने कब्ज़ा करने की कोशिश की . यह मेरी गलती थी एक उत्तर भारतीय पर भरोसा किया .
अगर आपकी कृपा हो जाए तो मै फिर से अपनी मराठी मातृभूमि में दुबारा आ जाऊ और आपकी जो इच्छा है उसे पूरा करू . मुंबई सिर्फ मराठियों की होनी चाहिए इसके लिए मै तन मन धन से न्योछावर हो जाऊ यही अरमान बचा है . इसके लिए मैंने अपने आका लादेन साहब से भी बात कर ली है .
आपके आदेश की प्रतीक्षा में.
एक सच्चा मराठी
दाउद इब्राहीम
dauad@laden.com
:) :) पूरा नाम लिखिये… "दाऊद इब्राहीम कासकर"… हा हा हा हा…
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबालासाहेब के उत्तर का इंतजार रहेगा
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ......
जवाब देंहटाएं"दाऊद इब्राहीम कासकर" बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंशानदार.
जवाब देंहटाएंधीरू भाई,
जवाब देंहटाएंवाकई सरासर अन्याय है...एक बेचारे धरतीपुत्र को देशनिकाला दे दिया गया...अब उसकी सारी योग्यता, प्रतिभा का फायदा आईएसआई उठा रही है...अगर बेचारा अपनी ज़मीन पर ही रह कर मुंबई की आबादी को कम कर रहा होता तो किसी के बाप का क्या चला जाता...ठाकरों की ताऊ-भतीजे की कंपनी भी तो यही चाहती है, मुंबई की आबादी घटे...ये नासपिट्टे परप्रांती कुछ करने दे तब न...
जय हिंद...
अच्छा व्यंग्य है ।
जवाब देंहटाएंumda
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग...
जवाब देंहटाएंनोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....
मज़ा आ गया.
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