मंगलवार, जनवरी 26, 2010

६० साल के संविधान में ९४ पैबंद

६० साल के संविधान में ९४ पैबंद . यानी कपड़ा तार तार हो चुका लेकिनपैबंद से गणतंत्र ढका सा है .समय समय पर अपने हिसाब से तोड़  मरोड़ कर संविधान का मज़ाक सा बना दिया .अदालत   का  कोई फैसला वोटो 
पर असर डालता तो छेड़छाड़ संविधान से , आरक्षण को हथियार बनाना हो तो फिर छेड़छाड़ . 


२६  जनवरी के दिन तो यह सोच ही लिया जाए कि संविधान जो राजनीतिज्ञों द्वारा  क्षत विक्षत कर दिया गया  उसे संरक्षण की जरूरत है ?

4 टिप्‍पणियां:

  1. सही और सार्थक चिंतन ........... ये राजनेता अपनी मर्ज़ी के हिसाब से संविधान में परिवर्तन करते रहते हैं ..... इस पध्ति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ........

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  2. डा०अम्बेडकर ने शायद यह कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके द्वारा लिखे गये संविधान को सत्ता प्राप्ति और स्वार्थ साधन का हथियार बना लिया जायेगा. न ही ये सोचा होगा कि लुच्चे, लफंगे और चोर-बदमाश-बलात्कारियों को टिकट देने की परम्परा बन जायेगी.

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा