प्रीति जिन्टा का टायलेट में फसना और दीवार फांद कर निकलना भारी पड़ गया महान भारत के गणतंत्र के समारोह पर . लगता तो ऐसा ही है आज के अखबार को देख कर . अमर उजाला ,दैनिक जागरण ,हिन्दुस्तान ,पंजाब केसरी ,हिन्दुस्तान टाइम्स आदि जो मैने देखे उनकी मुख्य खबर में भी नहीं था गणतंत्र दिवस समारोह . एक अरसा हो गया गणतंत्र दिवस के सचित्र कवरेज हेड लाइन में हो . जबकि गणतंत्र दिवस पर करोडो रुपए विज्ञापन के रूप में कमाते है यह अखवार .
यह मानसिक दिवालियापन नहीं तो और क्या है देश के प्रहरी पत्रकारिता का जो राष्ट्र सम्मान को भी तबज्जो नहीं देता . दूसरो का छिद्रान्वेष्ण और खुद अपने गिरहवान में भी झांक कर देखे कभी .
आज मीडिया भी ज्यादा निरंकुश हो गया है .सर्वोपरि मानसिकता से ग्रस्त किसी को कुछ ना समझने वाला मिडिया असल में एक माफिया से मिलता जुलता हो गया है जो सिस्टम को डरा सकता है ,पब्लिक को भड़का सकता है रस्सी का साप बना सकता है .
और मीडिया एक मिशन ना हो कर व्यापार हो गया . आज सब अखवार , न्यूज़ चैनल उद्योगपतियों के हरम में दाखिल हो चुके है और वही से चल रहे है .
यह मेरा गुस्सा ही समझे . आखिर नक्कारखाने में तूती बजाता हूँ- ब्लागर हूँ लिखकर भूल जाता हूँ
सही लिखा जी सही लिखा ....
जवाब देंहटाएं---- राकेश वर्मा
मानसिक दिवालियापन-यही तो है ही!
जवाब देंहटाएंसब साले मानसिक गुलाम है, इन्हे ये जरुरी नहीं लगता है कि हम उन्हे याद करें जिसने हमें आजादी की साँस देने के लिए अपनी कुर्बानी दे दी, इन्हे तो बस वे भाते है जो भारत को गुलाम बनानें की फिरक में है ।
जवाब देंहटाएंधीरू भैया, आपका गुस्सा जायज है, लिखकर भूलना नाजायज। तूती बजाते रहिये, एक को भी सदबुद्धि आ गई तो टाईम खोटी करना वसूल हो जायेगा और कभी ऐसा भी हो सकता है कि इस चिन्गारी से ही कोई दावानल उठ जाये।
जवाब देंहटाएंआप की बात से सहमत हुं,
जवाब देंहटाएंसौ प्रतिशत सहमत
जवाब देंहटाएंभाई हमारी शिकायत तो यह है की उन्हें पद्म भूषन क्यों नहीं मिला.
जवाब देंहटाएंShukr hai...saniya mirza ki sagai 2 din baad tooti
जवाब देंहटाएंधीरू भाई,
जवाब देंहटाएंप्रीति जिंटा को वैसे ही बॉलीवुड की अकेली 'मर्द'नहीं कहा जाता...प्रीति ने अंडरवर्ल्ड की धमकियों पर भी उन्हें करारा जवाब दिया था..इसीलिए उन्हें रेड एंड व्हाईट ने ब्रेवरी अवार्ड का अंबेसडर बनाया था...
जय हिंद...
नये दिन माफ करो जी...
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