चिपलूनकर जी जब मैं चल नहीं पाता था तब पिता की गोद में संघ की शाखा जाता था . जब बोलना सिखा तो पहले कुछ स्पष्ट शब्दों में नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमे था . जब दूसरी कक्षा में था तब पहला शिविर में गया . सायं शाखा का मुख्य शिक्षक था . आई टी सी ,ओ टी सी किया . सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या मन्दिर में पढाई की .
आपको व पढने वालो को लग रहा होगा मैं यह सब लिख कर क्या कहना चाहता हूँ . सिर्फ एक बात कि हिंदुत्व का ठेका संघ , भाजपा या शिवसेना का नहीं है . और हिंदुत्व पर कोई विपदा भी नहीं है . आज आपका लेख राज ठाकरे कि चर्चा में हिंदुत्व को घसीटा जाना कुछ अच्छा नहीं लगा .
जब तक हिंदुत्व इन तथाकथित पालनहारों से दूर नहीं हटेगा तब तक साम्प्रदायिक ही कहलायेगा . आज तक किसी हिंदुत्व के पुरोधा को यह कहते नहीं सुना जब तक राम लला का मन्दिर नहीं बनेगा तब तक वह भी टेंट में रहेगा . राम लला को बेघर कर सिर्फ इलेक्शन में ही उनकी कुटिया का ध्यान आता है .
चिपलूनकर जी अगर हिन्दू और मुस्लिम पर आधारित राजनीती चलती होती तो हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के आलावा कोई नहीं होता सत्ता में .
हिंदुत्व कि उलटी माला जपते जपते भाजपा कहाँ पहुच गई है यह किसी से नहीं छुपा है . शायद २२ तारीख को आसूं पुछे लेकिन आपका लेख घोषित कर रहा है कि मुंबई का सपना सपना ही रह जाएगा .
चिपलूनकर जी का लेख तो अभी तक नहीं पढ़ा लेकिन इतना तो सही है कि वोट की राजनीती हिंदुत्व नाम को साम्प्रदायिकता का पर्याय बनाने में तुली है जबकि असली साम्प्रदायिक शक्तियों की और कोई ध्यान ही नहीं दे रहा | कारण स्पष्ट है वोट बैंक |
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनाएँ |
जवाब देंहटाएंआप ने सही विश्लेषण किया है। दीपावली पर शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लिखा जब देशवासी खुद इन नेतओ को इस धर्म की नीति से नही हटाते तब तक कुछ नही हो सकता, लोगो को चाहिये जो जात पात, ओर धर्म के नाम पर वोट मांगे उसे जुत्ते मारे... अगर सुखी रहना है, वरना लडते रहो अलग अलग खेमो मे लडाने वाले खुद तो आपस मै मिलते जुलते है... ओर मुर्ख जनता पर हंसते है.
जवाब देंहटाएंआप को ओर आप के परिवार को दिपावली की बहुत बहुत शुभकामानये
सही विश्लेषण| दीपावली की शुभकामनाएँ|
जवाब देंहटाएंयह बात तो उन दलों को भी समझना चाहिये जो हिन्दुत्व के मुद्दे से चिपके बैठे हैं क्योंकि आम व्यक्ति भी अब यह समझता है । आपने ठीक विश्लेषण किया है ।
जवाब देंहटाएंएक सही बात...
जवाब देंहटाएंजो एक बेहतर तरीके से कही गई है....
यह बात कह कर अपने साहस का परिचय दिया है.
जवाब देंहटाएंचिपलूनकर जी का आलेख तो पढा है मैंने और मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगा | पता नहीं आप किस द्रिस्टीकोन से सोच रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंआपके इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता की "हिंदुत्व पर कोई विपदा भी नहीं है" | ढेर सारे घटनाओं से अनभिज्ञ रह कर और भारतीय गन्दी सेकुलर सोच रखेंगे तो आपको ऐसा ही लगेगा की हिंदुत्व पर कोई विपदा है ही नहीं | जरा इन बातों पे गौर करें :
* लाखों कश्मीरी हिन्दू,सिख अपने ही देश मैं सर्नार्थी बन कर जीवन यापन कर रहे हैं | कसूर इतना ही की वो हिन्दू या सिक्ख है |
* प्रतिदिन हुन्दुओं को मुर्ख बना कर/ठग कर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है | सेकुलर लिए शायद धर्म परिवर्तन तो कोई मायने ही नहीं रखता |
* मलेशिया, पाकिस्तान, बंगलादेश मैं हिन्दुओं की क्या दुर्दशा हो रही है ये तो शायद आप जानते ही होंगे | फिर भी आप चुप रहेंगे क्योंकि आप सेकुलर कहलाना चाहते हैं, क्यूँ?
* हिन्दुओं के मंदिर पे आतंकवादी हमला कर हिन्दुओं को मारता है | मुंबई हमले मैं भी आतंकवादियों ने साफ़ कहा की उनका टारगेट हिन्दू ही है |
* कांग्रेस सरकार खुलेआम कहती है भगवान् राम मिथक है | किसी और धर्म के मिथक पात्रों पे आप या सरकार बोलने की हिम्मत क्यूँ नहीं जुटाते?
* M.F.Hussain द्बारा हिन्दू देवी देवताओं की नग्न paintings को अभिव्यक्ति की आजादी कहा जाता है | और इसका विरोध करने वालों को साम्प्रदायिक | वहीँ पैगम्बर का कार्टून बनाने मात्र से पूरा मुसलमान सडकों पे आ जाता है | सरकार की दो नियत क्यों?
* प्रधानमन्त्री मुसलमाओं के लिए अलग से पैकेज (सिक्ख, जैन, बोद्ध, पारसी को अल्पसंख्यक माना ही नहीं जाता), क्यों
की गरीब हिन्दू सहायता के लायक नहीं है क्या?
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लिस्ट बहुत लम्भी है बंधू | खैर लगता है सलीम खान पे एक-दो पोस्ट लिखने के बाद आप balance करने के चक्कर मैं ये पोस्ट लिखे हैं ...
आपने लिखा है की - "हिन्दू और मुस्लिम पर आधारित राजनीती चलती होती तो हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग के आलावा कोई नहीं होता सत्ता में ... ". आपको वर्तामान कांग्रेस मुस्लिम लीग से कम नजर आती है क्या?
जवाब देंहटाएंचाहे भाजपा हिंदुत्व की असली वाहक न हो लेकिन घटिया राष्ट्रद्रोही कांग्रेस की अब भी एक हद तक राजनैतिक विकल्प तो है ही |
जवाब देंहटाएंजो भी हो कम से कम राज ठाकरे को हिन्दुत्व या राष्ट्र्वाद जैसी विचारधारा का वाहक नही कहा जा सकता । अगर सन्घ नही तो विकल्प क्या है वो भी बतायें ? हिन्दुत्व से उपर होकर देखें तब भी देश हित में ,स्थाइ लोकतत्र के हित मे राज ठाकरे एक बीमारी है । क्या क्षेत्रीयता के आधर पर चुनाव लड्ने वाले ये दल देश को नुक्सान नही पहुन्चा रहे ?
जवाब देंहटाएंधीरू भाई!!
जवाब देंहटाएंहमारी सरकार भी तो जब तक एक हिन्दू और एक मुस्लिम को गले मिलते ना दिखा दे .....तब तक गैर साम्प्रदायिक का तमगा कहाँ हासिल कर सकती है? मानवता वादी क्यों नहीं होते हम और हमारी सरकार?
बाकी तो आप समझदार हैं!
प्राइमरी के मास्टर की दीपमालिका पर्व पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें!!!!
तुम स्नेह अपना दो न दो ,
मै दीप बन जलता रहूँगा !!
अंतिम किस्त-
कुतर्क का कोई स्थान नहीं है जी.....सिद्ध जो करना पड़ेगा?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंधीरू जी,
श्री कँवर जीत सिंह जी की एक अंगरेजी कविता याद अ रही है ; I detest these politicians and bureaucrats
Who nibble at the system like wild rats
And do what they are known to do best
Keep filling their pockets and their chests
Why are we ruled by these imbeciles
Why are we fooled by these slimy eels
Who stick to their seats and pass the blame
For they are used to this and have no shame
Out with them Oh countrymen
Throw them out before they strengthen their den
Throw them so, so very far
That they are never able to return again
@ owner
जवाब देंहटाएंयही तो फर्क है इस्राइल और भारत मैं ! उनके दस लोग मरनेसे उन्को तकलिफ होती है और वो हमालेकी तयारी करते है ! और हम दोसो लोग मरनेपर कहते है कोई बडी बात नहि है ! बंधू और भगिनी ये शब्द बस भाषण करनेके लिए हमे मिले है ! हम बस मेंडेक की तरह है जिसको पानी मे डाल के पानी उबालना चालू करो वह मरनेतक उस्मेहि रहेगा कुद कर बहर नही आता ऐसा कहते है !
Varun Kumar Jaiswal and
Rakesh Singh & Chiplunkarji tinose
sahamat
वाह धीर सिंह जी, आपने तो धीरे से जोर का धक्का मारा, हमार दंगा फसादी भैय्या को मराठी के लिये मांग करने दो, फिर गुजराती, तेलगु, हरियाणवी सबके लिये लडेंगे, इसी में हिन्दी हित है, कि बस वह अवध की बन के रह जाये क्यूंकि उसके लिये तो ऐसा वीर है ही नहीं जैसा कि मराठी को चिपलूनकर महाराज है,
जवाब देंहटाएंदीवाली की शुभकामनायें, सबको मिठाइयां बांटना क्यूंकि अबकि बार मिलावट तो है ही नहीं, इसमें किसका हित है पता करके बताउंगा,
आपका अवधिया चाचा
जो कभी अवध गया ही नहीं
बंधू और भगिनी ये शब्द बस भाषण करनेके लिए हमे मिले है!लेकिन कोई मरनेपर हमे ऐसा नही लगता के हमारे देश का इन्सान हमारा भाई था ! लेकिन इस्राइल के दस आदमी मरनेपर वह खुद्के घरका कोई ना होनेपर भी इतना दुखी होता है ! और हमारे मंत्री कहते है ऐसे हाद्से होते है ! अतँकवाद दुनियाके हर कोने मे है ! लेकिन उससे निपटने के लिए कोई कदम नही उथाते ! क्यूं की जैसा आप को लगता है की हिंदुओ को कोई धोका नही है वैसेही सरकार को लगता है की देश को कोई धोका नही है !
जवाब देंहटाएंप्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद धीरु भाई,
जवाब देंहटाएंमेरे लेख का मंतव्य भी यही था कि भले ही शिवसेना-भाजपा ने आज तक हिन्दुत्व के लिये कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया हो, लेकिन ज़रा सोचिये कि यदि ये पार्टियाँ हिन्दुत्व और हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों, अन्याय के खिलाफ़ बोलना बन्द कर दें, या मान लीजिये कि भाजपा-शिवसेना हिन्दुत्व के बारे में बोलना ही छोड़ दें तब क्या होगा? राकेश सिंह जी ने ऊपर जो विभिन्न उदाहरण गिनाये हैं क्या तब उनकी संख्या इसकी अपेक्षा कहीं अधिक नहीं हो जायेगी? ये भी माना कि इन पार्टियों ने हिन्दुत्व का ठेका नहीं ले रखा, लेकिन किसी न किसी को तो यह ठेका लेना ही पड़ेगा, आप ही इसका विकल्प बतायें। ऐसे में जबकि भारत पर चारों दिशाओं से खतरा मंडरा रहा हो, भारत के भीतर से ही जयचन्द और विभीषण जड़ें खोदने में लगे हों, तब क्या किया जाये? ऊपर से यह राज ठाकरे, जो शिवसेना को कमजोर करने में लगे हैं…। मेरी दिली इच्छा है कि राज ठाकरे बुरी तरह हार जायें और अन्ततः शिवसेना में जा मिलें… भले ही महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार बन जाये…
अपना नाम बदलकर, "अवधिया चाचा" के नाम से जो भी व्यक्ति टिप्पणियाँ कर रहा है, उसकी औकात सभी लोग पिछले 1-2 माह में वाकिफ़ हो चुके हैं…। एक घटिया सी "अंजुमन" से निकलकर आया हुआ यह वायरस, "जनादेश वाले पत्रकारों" की एकदम खालिस धमकी के बाद नाम बदलकर टिपिया रहा है… जिसे इसकी टिप्पणी रखना हो रखे, हटाना हो तो हटाये… मेरा काम था आगाह करना सो कर दिया…
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंyahan bhi bhai logon ne akhada jod liya hai.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ SALEEM AKHTAR SIDDIQUI
जवाब देंहटाएंश्रीमान सिद्दकी जी, यह कहने से पहले कि इन लोगो ने यहाँ भी अखाडा जोड़ लिया है आप तनिक अपनी गिरेवान में भी झाँक लेते ! और तो और इस ब्लॉग जगत पर भी "हमारी अंजुमन" नाम से एक अलग गुट या अखाडा आपके इन विरादारो ने ही बनाया है, किसी हिन्दू ने ऐसा कोई गुट नहीं बनाया! खैर, हमें उससे भी ऐतराज नहीं पर मेरी समझ में नहीं आता कि मुसलमानों को दूसरो की एकता क्यों नहीं भाती ?क्या तकलीफ है, क्या हिन्दुओ या अन्य किसी को इसका हक़ नहीं ? या फिर आप लोगो को कोई डर लगता है क्या ?
@ भाई राकेश जी ,
जवाब देंहटाएंआपके दिए उधारण से १०० % सहमत हूँ लेकिन कश्मीरियों हिन्दू पर अत्याचार के समय भाजपा सरकार ने क्या किया .
मुख्तार अबास नकवी और शाहबुद्दीन अब और पहले सिकन्दर बख्त क्या भाजपा का मुस्लिम तुष्टिकरण नहीं है .
हिंदुत्व की रक्षा इन कमजोर सत्ता लोलुप लोगो से नहीं हो सकती क्योकि इतिहास है जब भी संकट आया है कोई चन्द्रगुप्त आगे आया शायद कोई चाणक्य तैय्यार कर रहा होगा च्न्द्र्दुप्त को .
aapko deepawali ki haardik shubhkaamnayen......
जवाब देंहटाएंधीरू जी, आप संघ की छत्रछाया में युवा हुए और फिर भी संघ ने आपका ब्रेनवाश नहीं किया और आप वह सब बातें कह सके जिसकी एक "संघी" से उम्मीद नहीं की जाती. क्या यही काफी नहीं है उन लोगो को जवाब देने के लिए जो संघ को "हिन्दू साम्प्रदायिकता" की नर्सरी कहते हैं?
जवाब देंहटाएंमैं कभी संघ की शाखा में नहीं गया. कभी किसी स्वयंसेवक या प्रचारक के संपर्क में नहीं आया. कभी किस राजनैतिक दल या राजनैतिक व्यक्ति के संपर्क में नहीं रहा. 10 वर्ष की उम्र में ८४ के दंगों के दौरान एक सिख युवक को दो दिन तक अपने घर की दुछत्ती में छिपाए रखा (अपने घरवालों की जानकारी के बगैर) और अपने दो रोटी की खुराक को उसके साथ बांटकर खाया. १३ वर्ष की उम्र में नास्तिक हो गया और तब से आज तक कभी किसी पूजागृह में प्रवेश नहीं किया. प्रथम खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा द्वारा एक ईरानी नागरिक हवाई जहाज को मार गिराने पर अपने स्कूल के मैदान में अकेले खड़े होकर जूनियर बुश के बाप को जी भरकर गालियाँ दीं और अमेरिका विरोधी नारे लगाये. १५ वर्ष की उम्र में राममंदिर आन्दोलन के दौरान आडवानी की रथयात्रा के दौरान फैले सांप्रदायिक वैमनस्य से खिन्न होकर आडवानी को गालियाँ दीं. कहने का मतलब यह कि एक "कट्टर कम्यूनिस्ट" कहलाने के लिए आवश्यक सभी गुण मुझमें बचपन से थे.
अब दूसरी बात, हिंदुत्व का ठेका शिवसेना, भाजपा या संघ किसी ने नहीं ले रखा है लेकिन हिन्दुओं को इनके पीछे खडा होने के लिए कौन मजबूर कर रहा है यह किसी से छिपा नहीं है. आज हर दूसरा राजनैतिक दल "सेकुलरिस्म" के नाम पर हिन्दुओं की भावना और आस्था पर कुठाराघात करता हुआ एक वर्गविशेष के तुष्टीकरण में लीन है. ऐसे में अगर हिन्दू संघ, भाजपा या शिवसेना में अपनी समस्याओं का हल खोजते हैं तो गलत क्या है? और अगर गलत है तो फिर विकल्प भी सुझाएँ............. परन्तु यह कहकर हमारी बात को खारिज करने का प्रयास ना करें कि आप संघी और भगवा मानसिकता वाले सांप्रदायिक लोग हैं.
@धीरू जी जैसा की आपने अपनी टिप्पणी मैं कहा - आप मेरे उदाहरण से १००% सहमत हैं | मतलब अब आप ये मानते हैं की "हिंदुत्व पर कोई विपदा भी नहीं है" वाली आपकी बात गलत है | चलिए संकट को देर होने से पहले ही समझने मैं भलाई है |
जवाब देंहटाएंदेखिये कश्मीरियों हिन्दू पर अत्याचार के समय भाजपा ने कुछ खास नहीं किया पर कश्मीरी हिन्दुओं का मुदा यदि आज भी उठ रहा है तो मैं मानता हूँ की भाजापा के कारन ही | जब कश्मीर मैं हिन्दुओं का कत्लेआम हो रहा था तब आपकी कांग्रेस या वामपंथी अपने वोट सेट करने मैं मशगुल थे | भाजपा ने ही इस मुद्दे को अब तक जिंदा रखा है | कांग्रेस और वामपंथी आज तक कश्मीरी हिन्दुओं की समस्या को समस्या मानता ही नहीं |
भाजापा मैं कुछ मुस्लिमों के होने भर को ही आप भाजापा तुस्टीकरण मान बैठे हैं, एक दो तुस्टीकरण की पॉलिसी भी गिना देते तो समझ मैं आता ... | खैर अन्य पार्टियों मैं तो मुस्लिम नेता भरे पड़े हैं, आपके हिसाब से वो पार्टी (कांग्रेस, वामपंथी, समाजवादी, लालू, माया जी....) ज्यादा साम्प्रदायिक है, क्यों?
हिंदुत्व की रक्षा इन कमजोर सत्ता लोलुप लोगो से नहीं हो सकती - ये तो बिलकुल सही कहा है | तो हिंदुत्वा की रक्षा कांग्रेस, वामपंथी, समाजवादी, लालू, माया जी.... कौन करेगी या एक ऐसा व्यक्ती जो खुल के हिंदुत्वा पे बोलने से डरता है या कतराता है, आखिर कौन ?
आपके जवाब का इन्तजार रहेगा |
@धीरू भाई जब आपने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया है तो सबों की टिप्पणियों को उचित सम्मान देते हुए निसाचर जी, सुरेश जी, जयराम जी और मेरे सवालों का उचित जवाब भी दीजिये |
जवाब देंहटाएंएक बातyah bhi hai.
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