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मैने बचपन से एक आदमी को बहुत मेहनत करते देखा वह रिक्शा चलाता है . जाड़ा , गर्मी ,बरसात उसके लिए कोई मायने नहीं रखती . उसका एक ही धर्म है मेहनत और एक ही प्रसाद है मजदूरी . हाड तोड़ मेहनत के बाद भी उसके चहरे पर कोई शिकन नहीं दिखती थी . हमेशा मुस्कराता हुआ दिखा मुझे जब भी मैने उसे देखा . नन्नू लाल है उसका नाम .
अभी कुछ दिन से मुझे वह नहीं दिखा जो आपको रोज़ मिलता है और ना दिखे तो चिंता तो होती ही है . दो चार दिन बाद नन्नू मुझे दिखा मैने तुरंत उसके गायब रहने का कारण पूछा . तो पहली बार उसकी आँखों में आसूं से दिखे और उसने बताया उसका जवान इकलौता बेटा अचानक मर गया . कैसे क्या वह बीमार था ? नहीं बिलकुल तो भला चंगा था एक दर्द सा उठा और सब ख़त्म . रात को दवा दी थी सुबह वह सो कर ही नहीं उठा . सब ऊपर वाले का खेल है ना जाने किस पाप की सजा दी ,इतना कह वह सामान से भरा अपना रिक्शा लेकर चल दिया .
मैं यह सोचता रह गया खून पसीने की कमाई खाने वाला मेहनत मजूरी करने वाला नन्नू ने ऐसा क्या पाप किया जिसकी उसे सजा मिली . उस बेचारे पर तो पाप करने का टाइम ही नहीं था जिन्दगी में . और जो पाप में आकंठ तक डूबे है उनेह तो आज तक सजा मिलती नहीं दिखी . क्या ऐसे हादसे पाप पुण्य के कारण होते है ?
बेचारे नन्नू लाल को अपने साथ हुई ईश्वर की नाइंसाफी को जायज ठहराने का एक वाक्य मिल गया पाप की सजा
बहुत दर्दनाक कथा। सही है कि बाप तो बेटे को अपने से आगे तरक्की करते देखना चाहता है ना कि......:(
जवाब देंहटाएंधीरू जी, इत्तेफाक से आपने ये पोस्ट ऐसे वक़्त में लिखी है जब मुहर्रम शुरू हो गया है. मुहर्रम में हज़रत इमाम हुसैन का ग़म मनाया जाता है. जिन्हें कर्बला में शहीद कर दिया गया था. शहीद होने से पहले उन्होंने भी जवान बेटे का लाशा कंधे पर उठाया था. और साथ ही अपने छः महीने के बेटे को गले पर तीर खाकर शहीद होते भी देखा था. इसलिए ऐसा कहना सरासर ग़लत है की ये सब पाप की सजा होती है. हज़रत इमाम हुसैन वह हस्ती हैं जिनके बारे में उनके दुश्मनों ने भी कहा की ये जीवन भर लोगों की भलाई ही करते रहे. कभी किसी को दुःख नहीं दिया.
जवाब देंहटाएंदर्दनाक कहानी है बहुत ..... कुछ कहना आसान नही है ऐसे में ........ शायद किस्मत .........
जवाब देंहटाएंइस से बड़ा कोई दुख नही होता जब जवान बेटे की लाश बाप के कंधे पर होती है..बहुत दुखद ....
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद घटना है. सबसे बड़ा पाप गरीबी ही है शायद!
जवाब देंहटाएंधीरू भाई, मुहर्रम शुरू हो गया है तो बरेली के अद्वितीय ताजियों और इमामबाड़ों पर एक सचित्र पोस्ट ठेलिए ज़रा.
बूढ़े बाप के कांधे पर जवान बेटे की लाश...वाकई इससे बड़ी त्रासदी और कोई नहीं...ऊपर वाला नन्नू की बूढ़ी हड्डियों में इतनी ताकत दे कि वो इस गम को बर्दाश्त कर सके...
जवाब देंहटाएं(धीरू भाई, जनवरी शुरू होने पर एक-दो दिन के लिए बरेली में ससुराल आऊंगा...आपसे ज़रूर मुलाकात करूंगा...)
जय हिंद...
दुखद...ईश्वर का खेल है..कौन जान पाया आज तक.
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद .. बिचारे को इस बडी विपत्ति को झेलने की ईश्वर शक्ति दें !!
जवाब देंहटाएंकभी कभी लगता है ईश्वर जब ज़िन्दगी देता है.. तो इतनी छोटी क्यों..?
जवाब देंहटाएंपाप और पुण्य को इस निगाह से देखना शायद ठीक न होगा. बहरहाल जवान बेटे की मौत तो त्रासदी ही हो सकती है.
जवाब देंहटाएंनन्नू लाल के दर्द का तो सिर्फ अहसास ही किया जा सकता है। दुखद।
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