हमारे ऊपर राज करने वालो में अंग्रेजो की मानसिक गुलामी आज भी हम कर रहे है . राष्ट्रकुल खेल इसी का तो प्रमाण है .राष्ट्रकुल यानी अंग्रेजो के गुलाम देशो का समूह . जो आज भी अपने को धन्य मानते है की अंग्रेजो ने हम पर उपकार किया हमें दुनिआवी तहजीव सिखाई . तरक्की के रस्ते दिखाए .
ऐसे ही एक हमारे चचा है इंग्लेंड रिटर्न . अगर आज अंग्रेज राज कर रहे होते तो निश्चित ही उनेह राय बहादुर या राय साहेब से नवाजते . उनकी आस्था आज भी अंग्रेजो के प्रति अगाध है . उनका यह पागल पन कभी कभी निरुत्तर कर देता है वकौल उनके हमें अंग्रेजो का शुक्रगुजार होना चाहिए . क्यों ? पूछने पर उनका रिकार्ड चालु हो जाता है .
चचा पूछते है और याद भी दिलाते है अंग्रेज जब भारत में आये तो किस्से उन्होंने राज छीना . कुछ बोलने से पहले ही बोल उठे बादशाह बहादुर शाह जफ़र से . यानी यानि क्या तुम तो ऐसे गाली देते हो जैसे अंग्रेजो ने प्रथ्वी राज चौहान से राज छीना . मतलब क्या मतलब यह की अंग्रेजो ने मुसलमानों से हिन्दुस्तान की कमान ले कर हिन्दुओ को सौंप दी .नहीं तो जजिया देते देते अब तक हिन्दुओ का नामोनिशान मिट जाता .
अब इस चचा का क्या करू एक नयी बहस को जन्म दे दिया चचा ने . चलिए इस बहस पर भी तलवार भाँज ले .
बात तो कांटेदार है।
जवाब देंहटाएंbaat to thik he.. par raaaj dene me 200 saal laagaa diye..
जवाब देंहटाएंये लो..एक और दिशा..
जवाब देंहटाएंऔरंगजेब के ज़माने में तो बहुतों ने जजिया दिया, बहादुर शाह ज़फर के ज़माने में जजिया देने वाले अकेले चच्चा ही रहे होंगे.
जवाब देंहटाएंshirshk!!! shat % sahi
जवाब देंहटाएंजबरदस्त!
जवाब देंहटाएंवैसे अगर मुझे गुलामी चुननी हो तो मुगलिया की बजाय फिरंगी चुनूंगा!
पिंजरा चाहे सोने का हो, चाँदी का या फिर सींकों का- होता पिंजरा ही है. गुलामी किसी की भी मंजूर नहीं. आज जो राज कर रहे हैं वे भी अंगरेज से कम हैं क्या? और जहाँ तक बात हिन्दू होने की है तो उसका भी कोई पता नहीं. दादा (फिरोज) मुसलमान, माँ इसाई, दादी के पिता पंडित(???).
जवाब देंहटाएंभूत में क्या हुआ चचा जाने दो आज जागो कोई हिन्दू को जजिया के लिए मजबूर न कर पाए !
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त पाण्डेय जी आप उस सोच से बाहर आओ और विश्वास पैदा करो की अब जो हमें गुलाम बनाने आयेगा उसे सदियों तक हम अपना गुलाम बनायेंगे चाहे जो भी आये !!!
आपकी बात में भी दम है धीरू जी ........... नया दृष्टिकोण देती है आपकी पोस्ट ........
जवाब देंहटाएंबुरा न मानना चच्चा गुलाम तो हम अभी भी हैं, काले अँगरेज़ और नेता नबावों के. वैसे बड़े बुजुर्ग बताया करते हैं की अंग्रेजों का ज़माना आज से लाख गुना बेहतर था. न बिजली जाती थी, न रिश्वत थी, न लेटलतीफी थी, न ट्रेन लेट होती थीं, न कोई कानून तोड़ कर यूँ ही बच सकता था. इमरजेंसी के दिन भी बाप दादा कुछ ऐसे ही सुहाने बताते हैं.
जवाब देंहटाएंहम गुलाम तब थे या अब?
वैसे तो अपने भारत में आजादी के सपने देखता हूँ. पर नाउम्मीदी की स्थिति में मैं भी आज की गुलामी और मुगलिया गुलामी के बजाय अंग्रेजों की 'गुलामी' पसंद करूँगा.
क्या बात कर रहे हैं गुलामी तो गुलामी है, और १८५७ के बाद अंग्रेजों ने जो कहर ढाये हैं उसे आपके चाचाजी ने तो न झेले होंगे । अपनों का कहर भी अच्छा है गैरों के मिठाई से ।
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