एक तूफ़ान उठा और मडरा कर चला गया . मुम्बई बची गुजरात बचा . अच्छा हुआ बबाल टला . प्रक्रति की उठा पटक तो रुक गयी लेकिन यह आप्रक्रतिक बबंडर जो पुरे भारत में मडरा रहा है . कब थमेगा पता नहीं . खासकर हमारे ब्लोगजगत पर भी एक तूफ़ान सा उठता रहता है . विवाद तो हमारी पहचान बनते जा रहे है .
किस्से कहानियों , शायरी ,चुटकले ,पहेलियों के बाद बेकार के झगडो में हम लोग फस चुके है . अपनी ऊर्जा को हम जाया कर रहे है . हिन्दू और मुस्लिम धर्म का छिद्रान्वेष्ण जितना हम लोगो ने किया है शायद ही किसी ओर माध्यम में हुआ हो . दुनिया भर की कमिया घर बैठे निकाल देते है . नकारात्मकता का एक माहोल बना रखा है हमने . कौन से दिशा में भटक रहा है यह ब्लॉग जगत .
हम गडे मुर्दे उखाड़ लेते है , हम मुर्दों को गोबर सुंघा कर जिन्दा करने की कोशिश करते है . मुर्दा मतलब विवाद . मै भी कोई दूध का धुला नहीं मैने भी इस नाले में चाहे अनचाहे गोते खाये है .
मुझे नहीं लगता कोई सकरात्मक दिशा की ओर हम कदम उठाते है . महंगाई , गरीबी के बारे में हम नहीं सोचते शायद हम पर यह चीजे फर्क नहीं डालती है .लेकिन यही दो चीजे नक्सलवाद को बढावा दे रही है. एक अराजकता को क्रान्ति का नाम देकर गरीबो की भावनाओ से खिलवाड़ कर जो राष्ट्रविरोधी माहोल बन रहा है उसके दोषी भी हम ही है क्योकि इनके कारणों को हम अनदेखा कर रहे है .
हम ब्लोगरो की एक लम्बी चोडी फौज है . जो इतनी दम रखती है अपनी आवाज से दिल्ली को हिला सकती है . किसी चौराहे पर बैठे १०० लोग भी अपनी आवाज़ सरकार तक पंहुचा देते है ओर हम तो दस हज़ार है ओर सब सक्षम सब सामर्थ्य वान तो क्यों ना हम गरीब ,कमज़ोर ,दबे कुचले ,किसान ,झुग्गी झोपडे के इंसान की आवाज़ बने . उनके बारे में भी सोचे .
इस सब में हमारा भी हित है क्योकि अगर यह गरीब तबका थोडा भी संतुष्ट हुआ तो तथाकथित क्रांति के नाम पर जो अराजकता फैल रही है उसकी धार शायद थोडी कुंद हो . अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस अराजकता के सबसे बड़े शिकार हम जैसे दिमागी खटपट करने वाले होंगे क्योकि हम है ही इस के जिम्मेदार ..
मै आपके विचारो से सहमत हूँ . हम ब्लागरो का समाज के प्रति दायित्व है की हम सभी मंहगाई के विरुद्ध आवाज बुलंद करें .
जवाब देंहटाएंkaro ji ham aapke sath hen,, wese to ham akele bhi bhot kuch hila dete hen,,,lekin aapke sath milke to delhi kiya america hilwalo.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कह रहे हैं आप !!
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आदरणीय धीरु जी,
आपकी बात सही है, पर तरीका क्या हो...
क्या 'विरोध' जैसे शीर्षक से एक अलग सा ब्लॉग या वेब-पेज नहीं हो सकता जो हाशिये पर रह रहे भारतवासियों के लिये ब्लॉगरों की भावनाओं और सरकार की नीतियों के विरोध के लिये आनलाइन पिटीशन या विरोध ज्ञापन का जैसा कार्य कर सके ?
सोचो बंधुओं...
आप ने बहुत सही कहा है। हमारा काम तो वास्तव में अपने (आम मेहनतकश) दुख-दर्दों-सुखों की बात करना होना चाहिए। लेकिन जैसे राजनीति में लोगों को साम्प्रदायिक, क्षेत्रीयता, आरक्षण जैसें मामलों में उलझा कर रख दिया जाता है वहीं हमारे कुछ ब्लागरों ने ब्लाग जगत को भी उन्हीं मुद्दों में उलझाने की कमर कस रखी है। हमें जनता के वास्तविक मुद्दो पर बात करनी चाहिए और इस तरह से लोगों को बांटने वाले मसलों की उपेक्षा करनी चाहिए। आप ने इस अभियान का आरंभ किया है। नेतृत्व कीजिए! हम आप के साथ हैं।
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga yeh lekh......
जवाब देंहटाएंMain aapke saath hoon.......aur aapke vichaaron se sahmat hoon........
बिल्कुल सही......
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग के नाम का मतलब समझ नहीं आया. यह ’दरबार’ तो नहीं है. इसका मतलब बतायेंगे तो अच्छा होगा...
जवाब देंहटाएंअम आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंप्रवीण भाई विरोध नाम से एक ब्लाग पहले से अम्बरीश कुमार जी का और वो तो मशहूर ही है विरोधी तेवरो के कारण्।
अब ब्लाग जगत ने सही अंगड़ाई ली है....अब देखना है यह कारवां किधर बढ़ता है...और इसकी गुंज कहां सुनाई देती है...जमीनी हकीकतों से आज सारा संचार माध्यम कट सा गया है...बेतुके शोर कर रहे हैं सब के सब...इस शोर में ब्लाग जगत का हुंकार कुछ कमाल कर जाएगा...यकीनन कमाल कर जाएगा...धीरु भाई अपना झंडा तो उठा दिया है....बस इस लहराते जाना है...
जवाब देंहटाएं‘क्यों हम महंगाई और गरीबी के खिलाफ़ खडे नहीं होते?’
जवाब देंहटाएंगुड क्वेश्चन! भैये, हम ब्लागर तो बैठे बैठे काम करते हैं तो खडे़ कैसे हों?
बिल्कुल बनता है जी.. छोटी छोटी बातों से ऊपर आ कर कुछ सकारत्मक काम किया जाये..
जवाब देंहटाएंयही बात हम कह रहे है लेकिन कोई सुन नही रहा है सब "वन्दे मातरम" के फ़तवे के पीछे पडे है... हम आपके साथ है...
जवाब देंहटाएंचलिये अगर सभी इसी तरह से सोचने लगे तो शुरुआत होने मे देर नही लगेगी । सम्वाद हो लेकिन सही मुद्दों पर । मेरी तो शुरू से यही कोशैश रही है और मै इसे कर भी रहा हूँ ।
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