तीस साल ठीक तीस साल पहले मैंने अपना पहला स्कूल सरस्वती शिशु मंदिर छोड़ा था . कई यादे आज तक पूरी तरह से याद है . तीस साल में मैं शायद ही कुछ भूला होउंगा . पैतीस साल पहले स्कूल का पहला दिन जब रोते पीटते गया और वहाँ रखे खिलोनो से खेलता रहा . इंटरवेल में जब सब जूते उतार कर साथ में बैठ कर भोजन करते थे उसके बाद जब मैं जूते के फीते नही बाँध पाता था तब वहाँ मेरी बड़ी बहिन आकर मेरे फीते बांधती थी . वही पुरानी यादें आज चलचित्र की भाति मेरे दिमाग में घूम रही थी . क्यों ........ क्योकि आज मैं तीस साल बाद फिर से अपने स्कूल में था .
कुछ भी तो नहीं बदला हां दो मंजिल भवन अब तीन मंजिल का हो गया . वही क्लास रूम , वही ब्लेक बोर्ड ,वैसी ही कुर्सिआं ....... शब्द नहीं मिल रहे है उस आनंद को व्यक्त करने के लिए . खो सा गया वहां पहुच कर . लगता है जैसे कल की बात है मैं अपने दोस्तों के साथ खेल रहा हूँ ,भागदौड़ कर रहा हूँ , स्कूल में बैंड बजा रहा हूँ ....................... छोटे छोटे बच्चे देख अपना बचपन याद आ गया था .
इन सब यादो का मौक़ा मिला क्योकि आज एक समारोह था और मैं उस समारोह में उस जगह बैठा था जहाँ बचपन में सोचा करता था बैठने के लिए . तीस साल पहले एक शील्ड बतौर इनाम मिली थी और आज तीस साल बाद मैं मेधावी बच्चो को अपने हाथो से शील्ड बाँट रहा था . ठीक तीस साल बाद . आज का यह द्रश्य में हमेशा के लिए सहेजना चाहता हूँ . कितनी खुशी मिली है आज व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ .
कुछ फोटो अब के और तब के इकट्ठे कर रहा हूँ जल्दी ही आपको दिखाउंगा .
absolutely correct
जवाब देंहटाएंसुन्दर! अब फोटो का इंतजार है।
जवाब देंहटाएंअबसे वैरी गुड बंद... खासकर अपनों के पोस्ट पर तो बिलकुल भी नहीं.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी, आप की खुशी हम भी महसुस कर रहे है
जवाब देंहटाएंभाई,
जवाब देंहटाएंमैं जब कभी राजगढ़ जाता हूं (अब तो गए हुए शायद तीन बरस हो गए) तो अपने स्कूल कॉलेज के आसपास का चक्कर जरूर लगाता हूं।
बीते हुए लम्हों की कसक...
तीस साल में उसी स्कूल में जाकर बच्चो को अपने हाथो से शील्ड बाँटकर आपने वाकई एक लंबा सफ़र तय किया है. शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंवो टिचर मिले... जो धुनाई करते थे...:)
जवाब देंहटाएंकितनी सुखद अनुभूति हुई होगी..अंदाजा ही लगा सकता हूँ..फोटो दिखाइयेगा
जवाब देंहटाएंमुझे भी वो दिन याद हैं । सरस्वती शिशु मन्दिर के । भारतीय संस्कृति के प्रथम अध्याय वहीं पर ही पढ़े ।
जवाब देंहटाएं@रंजन भाई
जवाब देंहटाएंवह टीचर तो शायद अल्लाह को प्यारे हो गये
बचपन ऐसे ही लौट आता है .... आपकी खुशी समझ में आती है धीरू जी .....
जवाब देंहटाएंअरे वाह, आप सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़े हैं? हम शिशु भारती के छात्र रहे हैं। अपना स्कूल और अपने आचार्य याद आ गये।
जवाब देंहटाएंआभार।
चलो अच्छा है किसी अपने को तो खुशी महसूस करने का मौका मिला
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा...
जवाब देंहटाएंare kya bat hai,,,padhte padhte main to jeise kho hi gya,mujhe bhi apna bachapan yyad aagya ,,bahut hi badiya lekh hai,, is lambe safar ke liye der saari shubhkaanye,,,,ram kumar
जवाब देंहटाएंधीरू भाई,
जवाब देंहटाएंस्कूल में बैंड बजाता था...तभी न जाने क्यों मुझे इन्ट्यूशन होती है कि आप भ्रष्टाचारियों का भी बैंड अच्छी तरह बजा सकते हैं...आप में कूव्वत भी है और ताकत तो माशाअल्लाह कूट कूट कर भरी ही है...
जय हिंद...
काश हमें भी कोई हमारे स्कूल में बुलाये!
जवाब देंहटाएंचित्रों का इन्तजार है।
धीरू जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया संस्मरण | और बहुत अच्छा लगता है जब कोई शिशु / विद्य अमंदिर से मिलता है | मुझे भी अपना विद्यालय छोड़े 13 साल हो गए पर पिछले साल ही मै भी गयी थी अपने विद्यालय " पूर्वर्ती छात्र समारोह " में भाग लेने | सच कहती हूँ जो संस्कार वहां से मिले है वो जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है और कुछ बातें तो साथ साथ है आज भी जैसे प्रातः स्मरण, भोजन मंत्र, आज भी माँ पापा के पैर छु कर ही ऑफिस के लिए निकलती हूँ |