सोमवार, मार्च 15, 2010

वसीम बरेलवी भी रो उठे बरेली की बर्बादी देखके - कर्फ़्यु मे बरेली

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कई दिन बाद चार घंटे की छूट मिली कर्फ्यू में पूरी सख्ती के साथ . सडको पर कार स्कूटर से चलना मना था . सिर्फ सायकल या रिक्शा को इजाजत थी अनजाने में ही सही गरीब रिक्शे वालो की  थोड़ी सी मदद हुयी इस नियम से . जो रोज़ कुआं खोदते है और पानी पीते है उनकी १४ दिन की कैद ................... कल्पना से ही भय लगता है . भुखमरी की ओर हजारो परिवार बड़ रहे है . आज के हालात को देखकर कल कर्फ्यू में ढील बड़ाई जा  सकती है . 


एक शान्ति यात्रा निकाली गयी शहर में . हमारे बरेली की शान वसीम बरेलवी भी फफक फफक के रो पड़े इस अमनपसंद शहर की दुर्दशा देखकर . शायद उनके आसूं देखकर कुछ संगदिल पिघले . 




 शहर को जिसने इतनी हिंसा आज तक ना झेली देखकर डर सा लगता है . एक लाइन खिच  गयी जो हाल फिलहाल मिटती नज़र नहीं आ रही क्योकि सियासत के सौदागर नहीं चाहते उनकी तिजारत में कोई कमी आये . दिल्ली  लखनऊ के होलसेलर भी नहीं चाहते कि इतनी जल्दी उनकी दुकाने सिमटे . उन्हें तो मौका मिला है एक दुसरे को गरियाने का इसीलिए तो अपने एजेंट रोज़ बरेली की तरफ  भेज रहे है . आज यह ,कल यह ,परसों यह एजेंट फिजा को बिगाड़ने आ रहे है . 


ईश्वर के लिए खुदा के लिए हम बरेली वालो को अकेला छोड़ दीजिये . हम ने गलती की हम ने चोट खाई हमने सजा भुगती हम ही इस दर्द का इलाज़ ढूंड लेंगे . आप हम पर रहम करे हमारे जख्मो को सूखने दे उन्हें कुरेदे नहीं . 







15 टिप्‍पणियां:

  1. ye varelivee sahab nahi ro rahe the ye dard ro rahaa tha ... sach behad marmik...


    arsh

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  2. ब्लाग की शक्ल बदलने पर बधाई. अब जल्दी खुल रहा है. शहर का मिजाज जल्दी बदले, यही प्रार्थना है. तथाकथित अल्पसंख्यकों को आत्मावलोकन करना होगा कि वह क्या चाहते हैं. टीयर्स आफ बरेली देखा था इन्टरनेट पर. दिल रो पड़ा. शेष जी को उनके ब्लाग sheshji.blogspot.com पर जाकर दंगों के बारे में थोड़ी जानकारी दे दीजियेगा. बेचारे पता नहीं कम्युन हैं या कांग...

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  3. दुआ कीजिये कि ऐसा बरेली मे क्या कही भी न हो ।

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  4. बहुत दुखद है।
    घुघूती बासूती

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  5. धीरू भैया, सुकून मिला कि कुछ हालात सुधरे हैं। हर संवेदनशील व्यक्ति ये देखकर रोता है, लेकिन रोने से पत्थर नहीं पिघलते।

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  6. बरेली के बारे ओर वहा के हालात के बारे ही सोच कर ही रोंगटे खडे होते है, उन लोगो का क्या हाल होगा, जो रिकक्षा चलाते है, मजदुरी कर के अपना परिवार का पेट भरते है? इन सियासत के सौदागर को भी यही सब भुगता पडे तो जाने, अब जनता को चाहिये की वो इन के बहकावे मै ना आये, ओर मिल जुल कर रहे,
    भगवान ओर खुदा से यही प्राथना करते है कि बरेली के हालात जल्द ठीक हो ओर दुनिया मै कही भी फ़िर से ऎसे हालात ना बने

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  7. .
    .
    .
    बरेली में जो हुआ वह बहुत ही दुखद है... और यह भी बताता है कि मौका मिलने पर किस प्रकार से साम्प्रदायिक भेड़िये हमारे अमन को तार-तार कर सकते हैं। शांतिप्रिय नागरिकों को मुखर होना होगा इसके खिलाफ... एक दूसरे पर दोषारोपण हल नहीं... हल है साम्प्रदायिक भेड़ियों को समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग करना !

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  8. अति दुखद...वसीम साहब रो दिये, यह भी कहीं पढ़ा था उस गज़ल के साथ जो उन्होंने कही थी.

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  9. ये आंसू बेकार नहीं जाएंगे....

    लखनऊ और बरेली की दूरी सिर्फ ढाई सौ किलोमीटर है...मायावती को रैली में करोड़ों फूंकते और करोड़ों की माला पहनने से फुर्सत ही कहां जो दो हफ्ते से कराहते बरेली का दर्द दिखे...

    जय हिंद...

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  10. बरेली शहर कहां फिर अस्सी के दशक में चला गया समझ में नहीं आया। ये तो तब होता था कि ये फैल गया, वो फैला दिया गया। कई बार तो मुझे लगता है कि ये जो विचलित करने वाली तस्वीरें न दिखाने की नीति अपना रखी है न हम मीडियावालों ने, उससे नुक़सान ज़्यादा हो जाता है। जनता को तो विचलित होने से बचा लेते हैं हम लेकिन सरकारें भी बच जाती हैं बदनाम होने से। और बदनामी नहीं होती तो बदइंतज़ामी होती है।

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  11. मैंने भी आपके लिंक से जाकर "टीयर्स आफ बरेली" देखा. बहुत दुःख हुआ. जिन लोगों ने जुलूस के स्वागत में अपनी सड़कों को फूलों से सजा रखा था उन्हीं के घर दूकान कोई कैसे फूंक सकता है?

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  12. प्रार्थना है ऊपरवाले से ... जल्दी ही शांति बहाल हो ...

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आप बताये क्या मैने ठीक लिखा