आग
जब चुल्हे मे
जलती है
तो जिन्दगी
पलती है
और
आग
जब सडको पर
लगती है
तो जिन्दगी
उजडती है
यह आग आजकल मेरे शहर में लगी है झुलसा रही है इंसानियत को ,सपनों को और अपनो को . शैतानो ने अपना काम कर दिया और हमें छोड़ दिया नफरत की फसल में पानी लगाने के लिए .लम्हों की खता है जिसकी सज़ा सदिया उठाएंगी .दंगे की आग ने हमारी आँखों की शील को जला दिया . एक चोडी खाई खोद दी गई है हमारे बीच में .कब तक भरेगी पता नहीं . वैसे रहीम लिख गए है
रहिमन धागा प्रेम का मत तोरो चटकाए
टूटे ते फिर ना जुरे ,जुरे गाठ परिजाए
धागा टूट गया है गाठ पड़ गई है . दिलो पर भी और दिमाग पर भी . कैसे भरपाई होगी पता नहीं .आपको अगर पता हो तो हमें भी बता दे .......
आग
जवाब देंहटाएंजब चुल्हे मे
जलती है
तो जिन्दगी
पलती है
और
आग
जब सडको पर
लगती है
तो जिन्दगी
उजडती है ..
बहुत सार्थक शब्दों में....सुंदर रचना....
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www.lekhnee.blogspot.com
Regards...
Mahfooz..
धागा तो तभी टूट गया था जब अल्पसंख्यक जिन्ना देश के दो टुकड़े करके पाकिस्तान बनाने में कामयाब हुआ था. उसने सिद्ध कर दिया कि कुछ अल्पसंख्यक देश के टुकड़े और दुनिया का सबसे बड़ा खून-खराबा और जन-पलायन (१९४७) कर सकते हैं.
जवाब देंहटाएंउसके बाद तो बस गाँठ पर गाँठ पड़ती ही गयी - चाहे काश्मीर पर पाकिस्तानी हमला हो चाहे बंगलादेश का कत्ले-आम और चाहे जिहादी आतंकवाद.
भारत की घटनाओं की ज़िम्मेदारी भारतीय प्रशासन, नेता, पुलिस और सिविल-सर्वेन्ट्स की है और उन्हें आगे बढ़कर काम करना ही पडेगा.
Bahut Vicharniya post hai....Aabhar!
जवाब देंहटाएंधीरू भैया, बरेली की इन द्खद घटनाओं के बारे में अखबार में कोई खबर नहीं दिखाई दी(कम से कम पंजाब के संस्करणों में)। ऐसी खबरें भी सेंसर हो रही हैं।
जवाब देंहटाएंवक्त ही सभी दुखों की भरपाई करता है, ऐसा हमनें सुना था लेकिन लगता है कि यहां तो वक्त को भी वक्त नहीं मिलता कि पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगा पाये। दंगाईयों से निपटने के लिये प्रशासन को कड़े कदम उठाने ही चाहियें, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति से संबंध रखते हों। आपका दुख हम सबका दुख है।
जनाब धीरू सिंह साहब, आदाब
जवाब देंहटाएंपूर्वजों से क्या पाया... ये सवाल अपने आप में बहुत बडा और महत्वपूर्ण है....
इससे भी बड़ा सवाल ये है..
कि हम आने वाली पीढ़ी को क्या विरासत देने जा रहे हैं.
सही है
जवाब देंहटाएंआग तो आग है हम इसकी आँच का इस्तेमाल कैसे करें यह तो हम पर ही है.
आपकी चिंता जायज है इस तरह घटनाएँ आपसी सोहार्द में गांठ पर गांठ लगाये जा रही है |
जवाब देंहटाएंअब हालात केसे है, ओर असल मै हुआ क्या, ्यह सब बताये, टी वी या नेट पर तो कही नही पढा इस बारे.
जवाब देंहटाएंसच में जाने कितनी ज़िंदगियाँ उजड़ जाती हैं ... इन दंगाइयों का कुछ नही जाता ....
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